है बैसाख महीना सबकी आफत आई
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !
ताल, तलैया, नदिया, सरवर खौल रहे हैं
खग, मग, वनचर व्याकुल होकर डोल रहे हैं
अभी से हैं ये हाल ज्येष्ठ क्या होगा भाई
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !
सुबह सवेरे गैया ने बस इतना बोला
मत बरसाना आग मेरा बछड़ा है भोला
सुनते ही रिस गए हमारे दिनकर भाई
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !
धरती ने अपनी आँखें बस खोली ही थी
कम कर लो कुछ ताप चिरौरी इतनी की थी
इतना सुनते ही सूरज को रिस क्यों आई ?
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !
भँवरे तितली नहीं बाग़ में जाते हैं, ना
तोता मैना, कोयल बुलबुल गाते गाना
सूखे जल के स्त्रोत कंठ सूखा है भाई
लगा दहकने सूरज सबकी शामत आई !
साधना वैद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteये शामत तो हमने ही बुलाई
ReplyDeleteअंधाधुंध करी पेड़ों की कटाई ।
आपने भी सबको एक
बेहतरीन रचना पढ़वाई ।
वाह वाह ! इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी ! हृदय से आभार आपका !
Deleteआपकी इतनी शानदार प्रतिक्रिया
हर्ष से फूल उठा मेरा हिया !