आगरा तो खूब घूमा होगा आपने
! ज़ाहिर सी बात है जिस एक शहर में विश्व विरासत की तीन तीन इमारतें स्थित हों, उनमें
भी विश्व की सबसे खूबसूरत इमारत ‘ताजमहल’ का नाम शुमार हो, उसके महत्त्व और जलवे
से कौन इनकार कर सकता है ! आगरा पर्यटन की दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर है
! ताजमहल, आगरे का किला और फतेहपुर सीकरी विश्वदाय समुदाय की तीन बहुत ही प्रसिद्ध
इमारतें आगरा की शान और गौरव को बढाती हैं ! इनके अलावा सिकंदरा, इत्माद्दुद्दौला,
स्वामीबाग, मरियम टूम आदि और भी कई स्थान हैं जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं
! लेकिन इन प्रसिद्ध स्थानों के अलावा भी आगरा में बहुत कुछ है जो न केवल ऐतिहासिक
दृष्टि से महत्वपूर्ण है इनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियाँ दर्शनार्थियों की ज्ञान
पिपासा को शांत करने में भी समर्थ हैं ! तो आइये आगरा और घूमिये हमारे साथ ! हम
आपको ऐसे स्थलों की सैर करायेंगे जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और बाहर से
आये पर्यटकों को दिखाने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा तैयार की गयी इमारतों की सूची
में तो इन स्मारकों का नाम शुमार ही नहीं है ! तो चलिए शुरुआत करते हैं झुनझुन
कटोरा से और आज चलते हैं हम झुनझुन कटोरा देखने !
झुनझुन कटोरा – आगरा के
दीवानी कचहरी के परिसर में स्थित यह एक बहुत सुन्दर इमारत है और कदाचित ताजमहल से
भी बहुत पहले की बनाई हुई है ! इससे जुड़ा किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है ! कहते हैं
एक बार शेरशाह सूरी से युद्ध करते हुए बादशाह हुमायूं की जान पर बन आई थी ! वो किसी
तरह अपनी जान बचा कर भाग रहे थे लेकिन रास्ते में एक गहरी नदी आ गयी ! हुमायूं का
घोड़ा नदी में डूब कर मर गया और गहरी नदी को पार करना हुमायूं के लिए एक बहुत बड़ी
चुनौती बन गया ! तब निजाम नाम के एक भिश्ती ने हुमायूं को अपनी मशक पर सवार करा के
नदी पार कराई और उनके प्राणों पर आये हुए संकट से उन्हें बचाया ! हुमायूं उस
भिश्ती पर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे वचन दिया कि जब समय अच्छा आयेगा वे
उसे अवश्य इनाम देंगे ! कुछ ही दिनों में संकट के बादल छँट गए और हुमायूं पुन:
गद्दी पर आसीन हुए ! तब वचन के पक्के बादशाह को उस निजाम भिश्ती की याद आई ! उन्होंने
उसे अपने दरबार में तलब किया और अपने वायदे के अनुसार उसकी किसी एक ख्वाहिश को पूरा
करने का वचन दिया ! तब निजाम भिश्ती ने इनाम के रूप में खुद उसे एक दिन के लिए बादशाह
बनाने की अपनी फरमाइश हुमायूं के सामने रखी ! वचनबद्ध बादशाह हुमायूं ने उसे एक
दिन के लिए बादशाहत का दायित्व सौंप दिया ! उसी दिन उस भिश्ती बादशाह ने चमड़े के
सिक्के देश में जारी कर दिए ! उसका चलाया हुआ सिक्का कोलकता के संग्रहालय में अभी
भी देखा जा सकता है ! निजाम भिश्ती के एक दिन का बादशाह बन जाने की कहानी तो सबने
सुनी होगी लेकिन इसका झुनझुन कटोरा से क्या सम्बन्ध है यह बहुत कम लोगों को पता
होगा ! है न दिलचस्प कहानी !
‘झुनझुन कटोरा’ यह नाम
सुनने में कुछ मज़ेदार सा लगता है ना ! इस स्मारक का नाम झुन झुन कटोरा क्यों पड़ा
यह कहानी भी कम रोचक नहीं है ! उन दिनों में जब नल नहीं हुआ करते थे तब आम लोगों
की पानी की ज़रुरत को पूरा करने का काम भिश्ती लोग ही किया करते थे ! सड़कों पर छिड़काव.
नालियों की सफाई, किसी निर्माण स्थल पर पानी की आपूर्ति, ये सारे काम चमड़े की मशक
में पानी भर कर भिश्ती लोग ही किया करते थे और उनके मेहनताने के स्वरुप उन्हें
बदले में कौड़ियाँ दी जाती थीं ! वे चलती
फिरती प्याऊ का काम भी किया करते थे ! उनके पास एक कटोरा होता था जिसमें पानी
निकाल कर वे ग्राहकों को पिलाते और बदले में लोग उनके कटोरे में कौड़ियाँ डाल देते !
कौड़ियों के कटोरे में पड़ते ही एक ख़ास किस्म की झनझनाहट की आवाज़ होती ! इस कटोरे को
बजा बजा कर ही भिश्ती लोग अपनी आमद की सूचना लोगों को देते ! इस प्रकार झुनझुन की
आवाज़ करने वाला कटोरा भिश्तियों की पहचान बन गया और यह नाम लोगों की जुबां पर चढ़
गया ! भिश्ती निजाम की मृत्यु के बाद उन्हें इसी स्थान पर उनके परिवार के सदस्यों
नें दफना दिया और इस मकबरे का नाम भी झुनझुन कटोरा पड़ गया ! निजाम भिश्ती को जिस
जगह पर दफनाया गया उस पर इस इमारत का निर्माण किसने करवाया इस बारे में तो इतिहास
की किताबों में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते लेकिन यह अवश्य स्पष्ट होता है कि
भिश्ती निजाम अपने समय की जानी मानी हस्ती था !
आगरा के खंदारी क्षेत्र में
सूर्यनगर के दीवानी परिसर में यह इमारत आज भी बुलंदी के साथ खड़ी हुई है ! इस इमारत
को देखने के लिए कोई टिकिट नहीं है ! शायद इसीलिये यहाँ पर्यटकों का आवागमन भी ना
के बराबर है और शायद इसीलिये इसके रखरखाव के लिए भी पर्यटन विभाग और पुरातत्व
विभाग लापरवाह नज़र आते हैं ! हम जब इस स्थल को देखने पहुँचे तो संध्या के चार बज
रहे थे लेकिन इमारत के गेट पर ताला लटका हुआ था ! हम अन्दर नहीं जा सके ! लोगों ने
बताया कि एक चौकीदार है ज़रूर लेकिन आज शायद जल्दी चला गया ! मुफ्त में जो कुछ मिलता
है या मिल सकता है लोगों को उसकी कद्र नहीं होती ! मेरे विचार से यदि इन स्मारकों
पर भी चाहे पाँच ही रुपये का टिकिट लगाया जाए लेकिन लगाया ज़रूर जाए ! इस तरह लोगों
की दिलचस्पी भी इन स्मारकों में जागेगी और सरकार को कुछ आमदनी भी होगी ! एक बात और
कहना चाहती हूँ पुरातत्व विभाग की ओर से एक बोर्ड जो यहाँ लगाया गया है वह केवल इस
स्मारक के संरक्षण के प्रति चेतावनी भर का ही सूचक है कि इसे नुक्सान पहुँचाना एक
दंडनीय अपराध है और दोषी पाए जाने पर सज़ा का भी प्रावधान है लेकिन एक भी बोर्ड
स्मारक के इतिहास के बारे में नहीं लगा है ! अन्य स्मारकों पर यह काम गाइड्स बखूबी
करते हैं लेकिन यहाँ गाइड तो दूर चौकीदार तक दिखाई नहीं दिया ! ऐसे में स्मारक की
कहानी और उसके निर्माण काल तथा इसे किसने और कब बनवाया इन बातों की जानकारी देता हुआ
एक बोर्ड तो लगाया ही जा सकता है !
आज आपको झुनझुन कटोरा की
कहानी सुनाई है ! आप मेरे ब्लॉग पर नियमित रूप से आते रहिये ! मैं आपको आगरा के
ऐसे ही और भी कई स्मारकों के बारे में रोचक कहानियाँ सुनाउँगी जिनके बारे में आपने
सुना ज़रूर होगा लेकिन वे किस स्मारक से जुड़े हैं शायद आपको ज्ञात नहीं होगा ! आज
के लिए इतना ही ! मिलती हूँ आपसे शीघ्र ही एक नयी इमारत के साथ उससे जुड़ी कहानी को
लेकर ! मुझे यकीन है मेरे साथ आगरा की यह सैर आपको ज़रूर आनंददायक लगेगी !
साधना वैद
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार(०९-०७ -२०२२ ) को "ग़ज़ल लिखने के सलीके" (चर्चा-अंक-४४८५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह वाह!सुंदर ऐतिहासिक जानकारी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विवेक जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteरोचक जानकारी है यह ,पहली बार सुना पढ़ा ,धन्यवाद
ReplyDeleteहृदय से आभार रंजू जी ! हार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteआपकी दी हुई जानकारी भी अनमोल है तथा आपके विचार भी। मैंने आगरा का भ्रमण आंशिक रूप से ही किया है। अब जब भी आगरा जाऊंगा तो झुनझुन कटोरा अवश्य जाऊंगा। और आपके प्रति आभारी रहूंगा।
ReplyDeleteस्वागत है जितेन्द्र जी ! आपको जानकारी अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ ! अवश्य आइये आगरा ! यह शहर मुगलकालीन स्थापत्य की बेजोड़ इमारतों से भरा हुआ है ! आपको यहाँ निश्चित रूप से आनंद आयेगा ! हार्दिक धन्यवाद !
Deleteआगरा के विस्मृत ईमारत "झुनझुन कटोरा" की जानकारी देने के लिए हार्दिक साधुवाद! ऐसे ही हर नगर में पुरातन ईमारतें हैं, जिसके बारे में एक अतीत जुडा है, जिसकी जानकारी उयलब्ध नहीं है.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मर्मज्ञ जी ! मेरा उद्देश्य इस उपेक्षित इमारत की और लोगों का ध्यान आकृष्ट करना ही था ! आप बिलकुल सही कह रहे हैं ! इन पुरानी जर्जर हो चुकी इमारतों के साथ भी महत्वपूर्ण इतिहास जुड़ा होता है ! हमें अवश्य उसके बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए !
DeleteThanks for the nice post
ReplyDeleteभई वाह हम तो इतनी बार आगरा हो आए हमने तो यह देखा ही न्ह्हीं |तुमने देखने की उत्सुकता और जगा दी इसे देखने की |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर स्थान है ! एक बार और आ जाइए इस बार साथ में देखेंगे ! अभी तो हमने भी इतना ही देखा है जितना तस्वीर में है ! गेट पर ताला जो लगा हुआ था ! हा हा हा !
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