Sunday, March 19, 2023

‘छलका मधु घट’ आदरणीय डॉ. आर. एस. तिवारी ‘शिखरेश’ जी की नज़र से -



‘छलका मधु घट’ के विमोचन समारोह में कार्यक्रम के अध्यक्ष आदरणीय डॉ. आर. एस. तिवारी ‘शिखरेश’ जी द्वारा रचित समीक्षा जिसे समयाभाव के कारण उन्होंने उस दिन संक्षिप्त में प्रस्तुत किया था किन्तु अपनी हस्तलिखित प्रति उन्होंने मुझे सौंप दी थी ! मैं इसे पढ़ कर इतनी आल्हादित हूँ कि आप सबके साथ इसे साझा करने से स्वयं को रोक नहीं पा रही हूँ ! इसलिए इसे टाइप करके आपके साथ शेयर कर रही हूँ ! आदरणीय ‘शिखरेश जी यह मेरा परम सौभाग्य है कि आप जैसे जौहरी ने मेरे इस हाइकु संग्रह को देखा, पढ़ा और इस पर अपने इतने सुन्दर विचार व्यक्त किये ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार !

आदरणीय ‘शिखरेश जी के विचार -

“हाइकुकार कवियित्री साधना वैद का हाइकु संग्रह, “छलका मधु घट” अपने शीर्षक को सार्थक करता हुआ मूलत: रचनाकार के बहुआयामी व्यक्तित्व का वह दर्पण है जिसमें उसकी संचेतना, संकल्पना, चिंतन एवं मनो दार्शनिक ( psycho phylosophic ) मंथन प्रतिबिम्बित है ! रचनाकार के प्रकृति, पर्यावरण, राष्ट्र प्रेम, भक्तिभाव एवं समाज की विविधता से सम्बंधित सरोकार एवं चिंतन पठनीय होने के साथ-साथ एक अनूठे बहुरंगी यथार्थवादी संसार को रूपायित करने में सफल रहे हैं !

केवल 17 वर्णों में कही जाने वाली सम्पूर्ण रचना अपने आप में एक चुनौती है ! साधना जी ने एक अनुशासित विद्यार्थी की भाँति इस संग्रह को ऊर्जा दी है ! सुन्दर-सुन्दर बिम्बों, रूपक एवं मानवीकरण की कसौटी पर सभी रचनाएँ खरी उतरती हैं ! एक बानगी देखिये :

अँधेरी रात / चलती रही थाम / चाँद का हाथ

भावभूमि की गहनता, संवेदना एवं रूपक संग बिम्ब देखिये :

हल्की सी ठेस / तोड़ जाती पल में / काँच से रिश्ते 

भाषा, भाव एवं अभिधा तथा लक्षणा शैलियों का अद्भुत संगम देखिये जब रचनाकार बेटी को रूपायित करती है :

सिन्धु-सा मन / पर्वत-सा हौसला / फूल-सा तन 

अर्थ की व्यापकता के साथ बोधगम्यता साधना जी की अनूठी शैलीगत विशेषता है ! विषय विविधता की सशक्त हस्ताक्षर साधना जी के तेवर देखते ही बनते हैं ! पर्यावरण पर कवियित्री का चिंतन देखिये :

धुंध ने किये / सूरज, चाँद, तारे / अवगुंठित 

स्वार्थी मानव / युद्ध की विभीषिका / दहकी धरा 

आधुनिकता के नाम पर मनाए जा रहे विभिन्न अवसरों पर सजग हाइकुकार का व्यंग्य देखिये :

मनाने लगे / परिवार दिवस / अजब युग 

जीवन वृक्ष / जड़ है परिवार / रिश्ते शाखाएं 

संग्रह में ‘आ गया वसंत है’ से लेकर ‘होली तक 102 रचनाएं हैं ! प्रथम रचना ‘वसंत एवं अंतिम रचना ‘होली संग्रह के शीर्षक ‘छलका मधु घट को सार्थकता प्रदान करती हैं !

प्राकृतिक छटा की पारखी कवियित्री संग्रह के प्रथम हाइकु में मधुमास का नैसर्गिक रूप चित्रित करती है : पृष्ठ 19,

दूर मंजिल / उदास मधुमास / तुम न पास 

जता देते हैं / भ्रमर के सुगीत / वसंत आया 

साहित्यकार के सच्चे धर्म का निर्वाह करती कवियित्री सामाजिक बुराई के प्रति सचेत करती है : पृष्ठ 21,

जला दें आज / दुश्मनी बैर भाव / होली की आग 

उपमा, रूपक एवं मानवीकरण की अनूठी छटा बिखेरती हुई साधना जी बेटी की उपादेयता को कुछ यूँ स्थापित करती हैं : पृष्ठ 22,

बेटी जन्मी

घटा जीवन तम

लाई खुशियाँ

ज़िंदगी गाने लगी

रोशनी छाने लगी 

कवियित्री चिन्तक है ! उसका आतंकवाद के विरुद्ध स्पष्ट नज़रिया है ! अलंकारिक छंद ! देखिये पृष्ठ 24,

विषैली धरा

नफ़रत के बीज

हिंसा की खाद

फसल में उगते

बेरहम दरिन्दे

प्रेम संग साधना, आराधना एवं भक्ति की मजबूत डोर देखते ही बनती है :

पृष्ठ 28,

भावों के फूल / पिरो आँसू की डोर / अर्पित तुम्हें 

पिरोती रही / वन्दना की माला में / भक्ति के फूल 

यथार्थ संग सवाल करना कोई साधना जी से सीखे – सरल, सहज सपाट बयानी :

पृष्ठ 28,

पेड़ है कटा / अतिक्रमण हटा / बेघर पंछी

पेड़ केवल / देना ही जानते हैं / लेते कहाँ हैं 

कवियित्री में राष्ट्रीय चेतना कूट-कूट कर भरी है ! उसका चेतन मन अनिश्चितता के दौर में प्रश्नों की बौछार ( volley of questions ) करता है ! पृष्ठ 30-31 पर संवेदना एवं संचेतना की प्रबलता देखते ही बनती है ! सारे सवाल अनुत्तरित हैं !

साधना जी के बिम्ब अद्भुत हैं ! रूपक एवं मानवीकरण का प्रयोग अभिव्यक्ति को जीवन्तता प्रदान करता है ! कुछेक चित्र देखिये : पृष्ठ 34-35,

क्रोधित चन्दा / धरने पर बैठा / अमावस्या को 

चन्दा ओ चन्दा / क्या तेरी भी मैली है / आकाशगंगा 

यथार्थ के साथ व्यंग्य की धार देखिये : पृष्ठ 37,

बम की लड़ी / सड़क पर चली / लुढ़के लोग

पटाखा चला / साइकिल सवार / धरा पे गिरा 

राजनीति पर यथार्थ की चुटकी – पृष्ठ 38,

अपनाते हैं / छल बल कौशल / सत्ता के लिए 

बदरंग जीवन, सामाजिक विषमता पर चोट करती साधना जी : पृष्ठ 41,

खाली बर्तन / चुक गया ईंधन / भूखा है तन 

पृष्ठ 42-43 पर ‘जीवन’ शीर्षक रचना में हाइकु संश्लेषण से बुना गया जीवन का ताना बना ! सर्वोत्तम हाइकु जो पूर्ण कविता को मात देती ध्वनित होती है !

पृष्ठ 42-43 पर धरतीपुत्र की पीड़ा कवियित्री की चेतना व संवेदना को झकझोर देती है ! कवियित्री का सामाजिक सरोकार एवं मानवीकरण देखिये :

चाँद ने पूछा

कौन पड़ा उघड़ा ?

रुँधे स्वर में

बोल पड़े सितारे

एक धरतीपुत्र 

शालीन, संवेदनशील व्यंग्य का अनुपम उदाहरण – पृष्ठ 45,

आज भी हल्कू

बिताते सड़क पे

ठण्ड की रात 

कुछ भी न बदला

स्वतन्त्रता के बाद 

राष्ट्रीय चेतना के स्वर, देवी माँ के नौ स्वरूपों की भव्यता का चित्रण, कोविड की विभीषिका में मजदूरों के पलायन का दर्द, प्रेम में विश्वास की उपादेयता, माँ की ममता का खजाना, पिता का साया, राखी की गरिमा, शहीदों को श्रद्धांजलि, रिश्तों की बुनियाद तथा स्वतन्त्रता के मायने आदि-आदि अनगिनत जीवन, राष्ट्र, समाज एवं मानवीयता के स्वरों से झंकृत है यह हाइकु-संग्रह !

भाव पक्ष, कथ्य एवं शिल्प अनूठा एवं तकनीकी प्रकृति का होने के बावजूद संग्रह आद्योपांत सजीवता के साथ इन्द्रधनुषी आभा बिखेरता है ! उपादेयता एवं उदात्तता से आलोकित हाइकु-संग्रह के लिए साधना जी को बधाई एवं अभिनन्दन ! आभार ! शुभकामनाएं !”

12 – 3 – 2023                          डॉ. आर. एस. तिवारी

                                               ‘ शिखरेश ‘   

                                         मो. 9458734783

 

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आपका कृतज्ञ हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आदरणीय ‘शिखरेश जी !

 

साधना वैद  

 

 

 

 

 



 
 


4 comments:

  1. बहुत सुंदर समीक्षा

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  2. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ती |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !

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