11 मई – लिविंग रूट ब्रिज –
रोमांचक अनुभव
खूबसूरत डौकी में
तृप्तिदायक बोटिंग के बाद हम मगन मन शिलौंग की तरफ बढ़ रहे थे ! इतनी सारी तस्वीरें
इतनी सारी बातें मन में उमड़ घुमड़ रही थीं कि कब साँझ उतर आई पता ही नहीं चला !
एकाध स्थान पर बस रोकने के लिए कहा भी तो दिन्तू ने रोकी नहीं ! “बस थोड़ी दूर और
है !” यही कहता रहा और बस हवा से बातें करती रही ! हमें समझ ही नहीं आ रहा था कि
एक टॉयलेट पर रोकने के लिए इसे बस को इतना दौड़ाना क्यों पड़ रहा है ! अंतत: एक बहुत
ही छोटी सी जगह पर बस रुकी ! यहाँ लोकल हैन्डीक्राफ्ट की और फल फ्रूट्स की कुछ
छोटी छोटी दुकानें थीं ! टॉयलेट तो कहीं दूर दूर तक दिखाई नहीं दिया ! खैर राजन को
छोड़ कर लगभग सभी लोग बस से नीचे उतर चुके थे ! मैंने भी उतरने का मन बना लिया !
राजन नीचे नहीं आ रहे थे तो अपना फोन का पाउच मैंने उन्हें थमाया ! यह पाउच मेरे
सामान का सबसे आवश्यक और महत्वपूर्ण हिस्सा था ! इसमें कुछ रुपये, मेरे दोनों फोन और हम दोनों के आई कार्ड्स रखे रहते थे !
यह हमेशा मेरे गले में लटका रहता था इसीलिये कहीं भी फोटो लेनी हो, कोई पेमेंट करना हो या अपना आई कार्ड दिखाना हो मुझे देर
नहीं लगती थी ! रास्ता ज़रा ऊबड़ खाबड़ था तो दुद्दू ने बस से उतरते ही मुझे मेरी बाँस
की लाठी थमा दी !
एक टूटे फूटे से कमरे में
बड़ा खराब सा टॉयलेट था ! लेकिन कोई विकल्प नहीं था तो उसीसे काम चलाना पड़ा ! एक
छोटी सी बालिका बोतल से पानी डाल कर हाथ धुला रही थी और दस रुपये चार्ज कर रही थी
! मैंने सोचा अभी किसीसे लेकर दे दूँगी फिर बस में लौटा दूँगी क्योंकि मेरा पाउच
तो राजन के पास बस में ही था ! दो चार कदम आगे बढ़ी तो देखा राजन तो नीचे ही खड़े थे
! मैंने पाउच के बारे में पूछा तो बोले वह तो बस में ही है सीट पर ! मैं जल्दी से
बस की ओर जाने लगी तो दुद्दू दिन्तू ने मुझे एक नए रास्ते पर कंधा पकड़ कर घुमा
दिया ! “आंटी, इधर जाना है ! इधर रास्ता है !” मैं हैरान थी ! मैंने कहा बस तो उधर
खड़ी है तो उसने बताया हम लोग लिविंग रूट ब्रिज देखने जा रहे हैं ! मैंने देखा
हमारे ग्रुप के सभी लोग उसी रास्ते पर चल रहे थे ! दुद्दू दिन्तू के बस को दौड़ाने
का आशय अब समझ में आया ! रात न हो जाए और हम लोग समय से इस जगह को देख लें इसीलिये
वे लोग बस को भगा रहे थे ! मुझे बड़ा अफ़सोस हो रहा था न मेरे पास फोन था और न ही
पैसे ! कोई मुश्किल आने पर न किसीसे कांटेक्ट कर सकते थे, न फोटो खींच सकते थे, न
ही कुछ पसंद आ जाए तो खरीद ही सकते थे ! रास्ते के दोनों ओर हैन्डीक्राफ्ट आइटम्स
की, ठंडे पानी की बोतल, कोल्ड ड्रिंक्स, नमकीन, चिप्स, वेफर्स आदि की
अनेक दुकाने थीं ! हमारे पास भी पानी की बोतल, नमकीन, बिस्किट्स वगैरह सब कुछ थे लेकिन वह बैग भी तो बस में ही
था ! सब लोग अपनी अपनी स्पीड से चल रहे थे ! संतोष जी, प्रमिला जी, विद्या जी,
मैं और राजन धीरे धीरे चल रहे थे, अंजना जी, रचना और यामिनी आगे निकल गयी थीं ! काफी दूर जाने के बाद
ढेर सारी सीढ़ियाँ दिखाई दीं ! सीढ़ियाँ पत्थरों के ब्लॉक्स की थीं और बहुत रफ और ऊँची
थीं ! प्रमिला जी, संतोष जी ने तो अपने हाथ
खड़े कर दिए ! मुझे भी राजन की चिंता हो रही थी ! अभी मेघालय के इस ट्रिप पर आने से
पहले 23 अप्रेल को दिल्ली में हुमायूँ टूम पर ऐसी ही ऊँची नीची सीढ़ियों पर चढ़ने की
वजह से इन्हें पीठ में बहुत तकलीफ हो गयी थी ! यहाँ तो सीढ़ियों पर कोई रेलिंग भी
नहीं थी ! लेकिन लिविंग रूट ब्रिज देखने की मेरी इच्छा बहुत प्रबल थी ! राजन ने
मुझे पीछे से वापिस लौट आने के लिए आवाज़ दी ! उन्हें मेरी चिंता हो रही थी कि मुझे
सीढियाँ चढ़ने में बहुत तकलीफ होती है और वापिस लौटने वाले सैलानी बता रहे थे कि अभी
तो बहुत नीचे जाना है ! ये सीढ़ियाँ ख़त्म होने के बाद नेचुरल ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर
ट्रेकिंग करके भी काफी नीचे और उतरना होगा ! मैंने मन ही मन तय कर लिया था नीचे
ब्रिज तक तो जाना ही है किसी भी तरह ! मैंने पलट कर राजन से वापिस बस में लौट जाने
के लिए कहा और उन्हें यह भी आश्वस्त कर दिया कि मैं जहाँ तक आसानी से जा सकूँगी
जाउँगी वरना लौट आउँगी ! विद्या जी भी साथ हैं ! फिर जल्दी से मैं मुड़ गयी ! कहीं
ऐसा न हो कि ये स्ट्रोंगली मना कर दें तो मैं फिर जा ही न पाऊँ ! राजन बस की तरफ
जाने लिए वापिस लौट गए और मैं ब्रिज की तरफ जाने के लिए सीढ़ियाँ उतरने लगी ! लाठी
का ही इस समय सबसे बड़ा सहारा था क्योंकि रास्ता चौड़ा था ! आने जाने वालों की भीड़
थी और पकड़ने के लिए रेलिंग भी नहीं थी ! हम और विद्या जी अपनी अपनी स्पीड से आगे
पीछे चल रहे थे ! गला सूख रहा था ! बेहद प्यास लग रही थी लेकिन बोतल खरीदने के लिए
पैसे नहीं थे ! धीरे धीरे रुकते रुकाते मैं नीचे चली जा रही थी ! अभी तो रोशनी थी
दिन की ! डर लग रहा था अन्धेरा हो गया तो कैसे दिखाई देगा कुछ ! बीच में विद्या जी
भी एक साइड में बैठी मिलीं ! बोलीं बहुत थक गयी हैं अब और आगे नहीं जायेंगी ! यहीं
से लौट जायेंगी ऊपर ! मुझे भी यही ठीक लगा ! तकलीफ हो गयी तो कैसे जायेंगी और हम
लोग ही कितनी मदद कर पायेंगे उनकी ! मैंने अनुमोदन में सर हिलाया और यही सलाह दी
आराम आराम से जाइयेगा ! ज़रुरत हो तो किसीकी हेल्प ले लीजिएगा ! और आगे बढ़ गयी !
अब सीढ़ियाँ समाप्त हो गयी थीं
! नेचुरल चट्टानी रास्ता था उतार पर ! मुझे मन ही मन घबराहट हो रही थी अगर यहाँ मैं
गिर गयी तो फोन के बिना किसीको कैसे इन्फॉर्म करूँगी कि क्या हुआ है ! या बेहोश हो
गयी तो ‘अज्ञात’ महिला की पहचान के साथ कहाँ पहुँचा दी जाऊँगी ! सोचती जाती थी और
अपना सर झटक कर हर दुश्चिंता को खारिज भी करती जाती थी ! हर चार छ: कदम के बाद
लोगों से पूछती थी और कितना उतरना है और फिर हिम्मत बाँध कर लाठी के सहारे अपने
कदम बढ़ा देती थी ! मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी अंधे कुँए में प्रवेश करने जा
रही हूँ जहाँ के खतरों से मैं अनजान भी हूँ और उनका सामना करने के लिए मेरे पास
पर्याप्त साधन भी नहीं हैं ! फिर भी एक जूनून सा था कि लिविंग रूट ब्रिज तक तो
जाना ही है किसी भी हाल में ! भले ही इस समय मेरे साथ कोई नहीं था लेकिन एक भरोसा
था हमारे ग्रुप के तीन बहुत ही समर्पित और ऊर्जावान साथी अंजना जी, रचना और यामिनी नीचे हैं ! कोई ज़रुरत पड़ी तो उनसे सहायता
ज़रूर मिल जायेगी ! बस इन्हीं ख्यालों में गुम लाठी के सहारे मैं आगे बढ़ती जा रही
थी ! कितना और जाना होगा आगे पता नहीं था लेकिन सम्मोहित सी मैं आगे खिंची जा रही
थी ! और अचानक देखा सामने थोड़ी दूरी पर रूट ब्रिज दिखाई दे रहा था ! मन खुशी से
बल्लियों उछल रहा था ! जीवन के 75 वें साल में यह मैदान तो मार लिया था मैंने !
ब्रिज देखते ही घबराए हुए मन में जोश का संचार हो गया ! चहरे पर चमक आ गयी और चाल
में तेज़ी आ गयी कि पीछे से आवाज़ आई, “ओ आंटी जी, टिकिट तो लो पहले !” पैरों में
जैसे ब्रेक लग गया ! यह क्या आफत आई ! मेरे पास तो पैसे ही नहीं हैं ! अब क्या
करें ! क्या मंज़िल तक आकर टिकिट न ले पाने के कारण बिना देखे लौट जाना होगा ! इतनी
मेहनत, इतने प्रयत्न सब व्यर्थ हो जायेंगे ! मैंने
पीछे मुड़े बिना हाथ हिला दिए, “मेरे पास इस समय पैसे नहीं हैं भाई ! पर्स बस में
रह गया ! लौट कर पैसे दे दूँगी ! आप किसीको मेरे साथ भेज देना !” “हैं ?” कुछ देर
सन्नाटा रहा ! फिर बड़ी ज़ोर से हँसने की आवाज़ आई, “आप तो जाइए आंटी ! कोई बात नहीं
बाद में दे देना पैसे !” मेरी जान में जान आ गयी ! लिविंग रूट ब्रिज पर पाँव रखते
ही मन झूम उठा ! कुदरत और इंसान की कारीगरी का यह अनोखा नमूना है जो न जाने कितने
सालों से खड़ा हुआ है ! इसमें किसी किस्म का मानव निर्मित स्तम्भ, कलपुर्जा या सपोर्ट के लिए कोई गर्डर एंगिल आदि नहीं लगा
है लेकिन फिर भी यह इतना मजबूत है कि सालों से लाखों सैलानियों के बोझ को आराम से
उठा रहा है और ज़िंदा है ! एक ख़ास तरह के रबर के पेड़ की लचीली जड़ों को गूँथ कर यह
पुल बनाया गया है जो दूर से बड़े से झूले का आभास देता है ! इस पेड़ का बॉटोनिकल नाम
है ( Ficus elastica ) ! यहाँ के लोग पेड़ों की जड़ों को मन चाही दिशा देकर विकसित
करने के कौशल में माहिर हैं ! जहाँ ज़रुरत होती है दोनों किनारों पर उगे हुए पेड़ों
को इसी प्रकार मन वांछित दिशा देकर बढ़ने देते हैं और पर्याप्त बढ़ जाने पर उनकी
कोमल जड़ों को आपस में गूँथ पुल का आकार दे देते हैं ! बीच के हिस्से में मिट्टी
डाल कर उसे समतल करके रास्ता बना दिया जाता है ! अद्भुत है ना ! यह पुल लोहे पत्थर
सीमेंट कॉन्क्रीट का नहीं है ! यह पेड़ की जड़ों को गूँथ कर बनाया हुआ पुल है ! पुल
बहुत लंबा नहीं है लेकिन निश्चित रूप से दर्शनीय है ! नीचे से अंजना जी, रचना और यामिनी ने जैसे ही मुझे देखा तो उन्हें भी अपनी
आँखों पर भरोसा नहीं हुआ ! मुझे इसी बात का अफ़सोस रहा कि मोबाइल पास नहीं था इसलिए
मैं इस अजीबो गरीब रास्ते और सीढ़ियों की फोटो नहीं खींच पाई ! थोड़ी देर बाद विद्या
जी भी पहुँच गईं ! अब तो नीचे ब्रिज तक आने वाला हमारा पूरा ग्रुप इकट्ठा हो गया
था ! खूब जम के फोटोग्राफी हुई ! थोड़ा समय नीचे जलधारा के पास गुज़ारा ! और लौट चले
वापिसी के रास्ते पर ! अन्धेरा होने लगा था ! टिकिट विंडो पर अंजना जी ने मेरे
टिकिट के पैसे दे दिए ! यामिनी को मैंने बता दिया था मुझे ऊपर चढ़ने में दिक्कत
होती है उस समय मेरे साथ रहना ! यामिनी सच में बहुत प्यारी और बहुत हेल्पिंग हैं !
पूरे रास्ते वो मेरे साथ रहीं ! पानी पिलाती रहीं ! जहाँ ज़रुरत पडी हाथ पकड़ कर ऊपर
चढ़ने में भी सहायता की ! रास्ते में जो लोग मिल रहे थे हमारी हौसला अफजाई कर रहे
थे ! अच्छा लग रहा था ! अंतत: यह मेराथन भी जीत ली और हम पसीने से लथपथ ऊपर भी पहुँच
ही गए ! लेकिन पार्किंग में तो हमारी बस थी ही नहीं ! पता चला आधा किलोमीटर दूर एक
और पार्किंग है बस वहाँ पर है ! अंजना जी और रचना आगे निकल गए थे ! विद्या जी भी
अलग हो गयी थीं ! मैं और यामिनी साथ थे ! धीरे धीरे पैदल चलते हुए जब बस तक पहुँचे
तो जान में जान आई ! इस समय ग्रुप के सभी साथियों को एक साथ देख कर एक बड़ी जीत का
अहसास हो रहा था !
यहाँ से मावलिन्नांग विलेज
जाना था जो लिविंग रूट ब्रिज से मात्र 2-3 किलोमीटर दूर ही था ! मेघालय का गाँव
मावलिन्नांग, राजधानी शिलौंग और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से 90 किलोमीटर दूर स्थित है ! इस गाँव को एशिया के सबसे स्वच्छ
गाँव का खिताब मिला हुआ है ! मावलिन्नांग गाँव इसलिए साफ है क्योंकि यहाँ के लोग
सफाई को लेकर बहुत जागरूक हैं !
अपनी स्वच्छता के लिए मशहूर
मावलिन्नांग को देखने के लिए हर साल पर्यटक भारी तादाद में आते हैं ! 'मावलीन्नांग' गाँव को 'भगवान का अपना बगीचा' भी कहा जाता है ! 500 लोगों की
जनसंख्या वाले इस छोटे से गाँव में करीब 95 खासी जनजातीय परिवार रहते हैं !
मावलिन्नांग गाँव
मातृसत्तात्मक है, जिसके कारण यहाँ
की औरतों को ज्यादा अधिकार प्राप्त हैं और गाँव को स्वच्छ रखने में वो अपने
अधिकारों का बखूबी प्रयोग करती हैं ! मावलिन्नांग के लोगों को कंक्रीट के मकान की
जगह बाँस के बने मकान ज्यादा पसंद हैं !
मावलिन्नांग में पॉलीथीन पर
पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है और यहाँ इधर उधर थूकना मना है ! गाँव के रास्तों
पर जगह-जगह कूड़े फेंकने के लिए बाँस के कूड़ेदान लगे हुए हैं ! इसके अलावा रास्ते
के दोनों ओर फूल-पौधों की क्यारियाँ और स्वच्छता का निर्देश देते हुए बोर्ड भी लगे
हुए हैं ! परिवार का हर सदस्य गाँव की सफाई में हर रोज़ भाग लेता है और अगर कोई
ग्रामीण सफाई अभियान में भाग नहीं लेता है तो उसे सजा के तौर पर घर में खाना नहीं
मिलता है ! यहाँ अधिकतर घरों में होम स्टे की सुविधा है ! पर्यटकों के लिए यह बहुत
ही सुखद अनुभव होता है !
यहाँ गाँव के प्रवेश स्थल पर
ही स्थानीय आर्ट और हैंडीक्राफ्ट की कई दुकाने थीं ! हम लोगों ने स्वादिष्ट
गरमागरम चाय का आनंद लिया ! और कुछ छोटी छोटी सोवेनियर टाइप चीज़ें भी खरीदीं जो
अन्य स्थानों की तुलना में यहाँ बहुत किफायती दरों पर मिल रही थीं ! बहुत थकान होने
के कारण मैं गाँव के अन्दर बहुत दूर तक नहीं गयी आस पास घूम कर ही लौट आई !
अब रात घिर आई थी ! शिलौंग
पहुँच कर हॉट बाथ लेकर सोने का मन हो रहा था ! बस में बैठने के बाद कुछ झपकी सी भी
आ रही थी ! हम लोग रात को आठ बजे तक शिलौंग में अपने होटल लैंडमार्क हिल्स विक्टोरिया
पहुँच गए थे ! गनीमत यही रही कि उसी फ्लोर पर कमरा मिल गया ! होटल के वाई फाई से
अपने फोन कनेक्ट करवाए ! नहा धोकर फ्रेश हुए और खाना खाने जब डाइनिंग हॉल में
पहुँचे तो हमारे ग्रुप के लोगों का खाना लगभग समाप्त हो चुका था ! हमने भी जल्दी
से खाना खाया और अपने बेहद थके हुए शरीर को बिस्तर के हवाले कर दिया ! इस वक्त भी रात
के लगभग एक बज रहे हैं ! वही थकान इस समय भी हो रही है ! तो अब आपसे विदा लेती हूँ
! इजाज़त दीजिये ! शेष संस्मरण अगली पोस्ट में ! शुभ रात्रि !
साधना वैद
शानदार अभिव्यक्ति
ReplyDelete