13 मई – बाय बाय शिलौंग
होटल लैंडमार्क के कमरा न. 106 में सुबह का सुरमई उजाला फैलने लगा था ! आज इस बेहद
खूबसूरत प्यारे से शहर से विदा लेने का समय आ चुका था ! जल्दी से चाय बना कर राजन
को भी दी और मैंने भी कप हाथ में लिए जैसे ही खिड़की का पर्दा हटाया तो देखा दूर
दूर तक पसरे मकानों की रंग बिरंगी छतें, बरामदे, बरामदों में लगे हरे भरे पौधे और बेहद खूबसूरत फूलों के गमले अपने सौन्दर्य
से लुभा रहे थे ! खिड़की के बाहर मुंडेर पर एक प्यारी सी गोरैया आकर बैठ गयी थी !
मैं देर तक मंत्रमुग्ध सी उसका इधर उधर फुदकना देखती रही ! वह बार बार अपनी गर्दन
घुमा कर मुझे देख रही थी जैसे कुछ कहना चाह रही थी ! जब तक चाय ख़त्म नहीं हुई मैं
उसकी चुहलबाजियाँ देख आनंदित होती रही ! उसे भी शायद मेरी व्यस्तता का अनुमान हो
गया था ! उसने आख़िरी बार मुझे देखा और एक लम्बी उड़ान भर कर न जाने कहाँ चली गयी !
उसके जाते ही समय का भान हुआ अभी तो तैयार भी होना था ! सुबह सात बजे नीचे उतर
जाना है यह बात भी याद थी मुझे ! ठीक साढ़े सात बजे हमें बस में सवार हो जाना था ! इस
होटल का कमरा, डाइनिंग रूम, खाना और सर्विस सब बहुत बढ़िया थे ! नाश्ता करके हम
लोगों ने बस में अपनी अपनी सीट सम्हाली और शिलौंग को बाय बाय कर गुवाहाटी के
रास्ते पर हमारा काफिला चल पड़ा !
गुवाहाटी में कामाख्या देवी
का मंदिर देखने का बहुत मन था हमारा ! दुद्दू और दिन्तू ने बताया कि उसके लिए कम से
कम दो घंटे और पहले निकलना होगा ! हम तो उसके लिए भी तैयार हो गए थे लेकिन ग्रुप
में ही रचना जी, संतोष जी, जो पहले इस
मंदिर को देख चुकी हैं, ने बताया कि हम लोग मंदिर
भले ही समय से पहुँच जाएँ लेकिन वहाँ दर्शनार्थियों का क्यू इतना लम्बा होता है कि
उस क्यू में खड़े होने के बाद मंदिर में प्रवेश का नंबर कितनी देर बाद आयेगा यह
अनुमान लगाना मुश्किल है और अगरतला की फ्लाइट का समय दिन में 13.05 का था ! दो
घंटे पहले एयरपोर्ट पर रिपोर्ट करना आवश्यक था ! इसलिए कामाख्या देवी के दर्शन की
इच्छा को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा !
शिलौंग से गुवाहाटी की दूरी
लगभग 120 किलोमीटर्स. की है लेकिन रास्ता पहाड़ी होने से बहुत अधिक स्पीड से बस
नहीं चलाई जा सकती ! सारे रास्ते सुपारी, नारियल और
बाँस के घने जंगल हमारे मन को लुभाते रहे ! आम, लीची, कटहल, केले और इनके अलावा भी न जाने कितने फलों से लदे
पेड़ों को निहारते रहे और मुग्ध होते रहे ! वहाँ के फलों और फूलों का साइज़ भी हैरान
कर देने वाला था ! साधारण गुलाब गुड़हल के फूल जो हम यहाँ अपने शहर में आये दिन
देखते हैं उनसे कम से कम दोगुने तीन गुने साइज़ के फूल वहाँ हम हर घर में, मैदानों में, जंगलों में
देख रहे थे ! वहाँ की आबोहवा इतनी बढ़िया और ज़मीन कुदरती तौर पर इतनी उपजाऊ है कि भीषण
गर्मी के बावजूद भी कहीं सूखा, उजड़ा या थोड़ा
सा भी वीरान ज़मीन का टुकड़ा हमें कहीं भी दिखाई नहीं दिया ! सारे रास्ते संतोष जी
की बड़ी खूबसूरत कवितायेँ गज़लें सुनते आये ! यामिनी ने उनके वीडियो भी बनाए ! मस्ती
करते, हँसते गाते, खाते पीते हम लोग गुवाहाटी
लगभग साढ़े दस बजे तक पहुँच गए थे !
कामाख्या देवी के दर्शन की
संभावना तो समाप्त हो गयी थी लेकिन दुद्दू और दिन्तू ने हमारी एक इच्छा का मान रखा
और हमें ब्रह्मपुत्र नद के दर्शन खूब अच्छी तरह से करा दिए ! अब जब ब्रह्मपुत्र की
बात चली है तो इस नदी के बारे में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्यों को भी जान लेना
चाहिए ! ब्रह्मपुत्र भारत की प्रमुख
नदियों में से एक है ! यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है ! ब्रह्मपुत्र का उद्गम हिमालय के उत्तर में तिब्बत के पुरंग जिले में स्थित मानसरोवर झील के निकट होता है, जहाँ इसे यार्लुंग
साँगपो कहा जाता है ! तिब्बत में बहते हुए यह नदी भारत के अरुणांचल प्रदेश में प्रवेश करती है ! आसाम घाटी में बहते हुए इसे ब्रह्मपुत्र और फिर बांग्लादेश में प्रवेश करने पर इसे जमुना कहा जाता है ! पद्मा (गंगा) से संगम के बाद
इनकी संयुक्त धारा को मेघना कहा जाता है, जो कि सुंदरबन डेल्टा का निर्माण करते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है !
ब्रह्मपुत्र नदी एक बहुत
लम्बी (2900 किलोमीटर) नदी है !
ब्रह्मपुत्र का नाम तिब्बत में साँगपो, अरुणाचल में
डिहं तथा असम में
ब्रह्मपुत्र है !
ब्रह्मपुत्र के बारे में एक
रोचक तथ्य और है ! उसे सुनाये बिना ब्रह्मपुत्र की गाथा अधूरी ही रह जायेगी ! भारत
में कई नदियाँ हैं और यहाँ नदियों को माता, देवी मानकर
पूजा जाता है. गंगा, यमुना आदि
नदियों के लिये स्त्रीलिंग का ही प्रयोग किया जाता है ! ब्रह्मपुत्र ही एकमात्र
नदी है जिसके लिये पुल्लिंग का प्रयोग किया जाता है या फिर इसे ‘नद’ कहा जाता है ! संस्कृत में ब्रह्मपुत्र का शाब्दिक अर्थ ब्रह्मा का पुत्र होता है ! भारत में ज़्यादातर नदियों की तरह ब्रह्मपुत्र के
साथ भी एक कहानी जुड़ी है ! हेरीटेज इंडिया के एक लेख के अनुसार, सृष्टिकर्ता
ब्रह्मा, ऋषि शांतनु की पत्नी अमोघा पर मोहित हो गये ! अमोघा ने ब्रह्मा को स्वीकार नहीं
किया और वापस लौटा दिया ! ब्रह्मा ने
ऋषि शांतनु को बताया कि उस संगम से पैदा होने वाली संतान से संसार को लाभ होगा ! ऋषि ने अमोघा को दोबारा विचार करने
को कहा लेकिन अमोघा टस से मस नहीं हुई ! ऋषि
ने अपनी शक्तियों से अमोघा और ब्रह्मा का संगम करवाया और अमोघा ने पुत्र को जन्म
दिया, नाम रखा गया ब्रह्मकुंड ! ब्रह्मकुंड को चार पर्वतों के बीच रखा गया ! बीतते वक़्त के साथ यह कुंड मैदानों की ओर बह चला और ब्रह्मपुत्र कहलाया !
ब्रह्मपुत्र एशिया की सबसे लंबी नदी है ! तिब्बत में इसकी लंबाई, 1625 किलोमीटर
है,
भारत में 918 किलोमीटर और बांग्लादेश में 363 किलोमीटर ! असम के
लोगों की इस नदी से गहरी आस्था है ! असम
सभ्यता इस नदी के किनारे ही विकसित हुई ! ऊँचाई को
तेज़ी से छोड़ यह मैदानों में दाखिल होती
है,
जहाँ इसे दिहांग नाम से जाना जाता है ! असम में
नदी काफी चौड़ी हो जाती है और कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई 10 किलोमीटर
तक है ! डिब्रूगढ तथा लखिमपुर जिले के बीच
नदी दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है ! असम
में ही नदी की दोनों
शाखाएं मिल कर मजुली द्वीप बनाती है जो दुनिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है।
असम में नदी को प्रायः ब्रह्मपुत्र नाम से
ही बुलाते हैं, पर बोडो लोग इसे भुल्लम-बुथुर भी
कहते हैं जिसका अर्थ है- कल-कल की आवाज निकालना !
ब्रह्मपुत्र का विशाल
विस्तृत पाट देख कर हमारी आँखें खुली रह गईं ! बस से नीचे उतरना प्रतिबंधित था
इसीलिये बस से ही जितना देख सकते थे देखा और कुछ कैमरे में कैद करने की कोशिश भी
की ! ब्रह्मपुत्र पर बने पुल से दो बार पूरे नद को क्रॉस किया ! किनारे पर बड़े बड़े
स्टीमर्स और नौकाएं भी खड़ी हुई थीं ! दूर दूर तक पानी का अपार विस्तार दिखाई देता
था ! भूपेन हजारिका गुवाहाटी के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक हैं ! बस में
बैठे बैठे ही हमने उनके स्मारक के भी दर्शन कर लिए ! दुख हो रहा था ! थोड़ा सा समय
और मिल जाता तो नीचे उतर कर यह स्मारक अन्दर से भी देख आते ! लेकिन फ्लाइट का समय
हो रहा था !
अंतत: हम लोग समय से लोकप्रिय
गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुँच गए थे ! मेघालय के हमारे सुखद
सफ़र के साथी दुद्दू और दिन्तू का साथ बस यहीं तक का था ! दोनों ने बड़ी विनम्रता के
साथ हम लोगों से विदा ली !
समय से सामान चेक इन हो गया
और बोर्डिंग लाउन्ज में पहुँच कर हम लोगों ने लंच के विकल्प के तौर पर चाय कॉफ़ी के
साथ बर्गर सैंडविच वगैरह खा भी लिया ताकि अगरतला पहुँचने पर अगर सीधे घूमने जाना
हो तो कोई परेशानी न हो ! छोटे डिस्टेंस की डोमेस्टिक फ्लाइट्स में स्नेक्स
ड्रिंक्स वगैरह सर्व नहीं की जाती हैं अब ! खैर समय पर हवाई जहाज ने टेक ऑफ कर
लिया ! मेघालय से हमारी यह फाइनल बाय बाय थी ! एक घंटे की फ्लाइट कब ख़त्म हो गयी
पता ही नहीं चला ! लगभग सवा दो बजे हम लोग अगरतला के महाराजा बीर बिक्रम एयरपोर्ट
पर लैंड कर चुके थे !
अब हमारा परिचय एक और बहुत
ही प्रसिद्ध प्रदेश से होने जा रहा था जिसे हम सब त्रिपुरा के नाम से जानते हैं !
अगरतला त्रिपुरा की राजधानी है और भौगोलिक संरचना के अनुसार यह प्रदेश एक तरह से
बांग्लादेश के अन्दर ही घुसा हुआ है ! इसका एक छोटा सा हिस्सा भारत की भूमि से
जुड़ा है और तीन तरफ से यह बांग्लादेश से जुड़ा हुआ है ! संगीत जगत के जाने माने
संगीत निर्देशक एस डी बर्मन इसी शहर के ख्यातिप्राप्त महामना हैं जिन्हें सब प्यार
से बर्मन दा के नाम से भी पुकारते हैं ! इस शहर में एक चौराहे पर उनकी विशाल
प्रतिमा भी देखी हमने !
एयर पोर्ट से सामान वगैरह
लेकर जब बाहर निकले तो हमारे लिए दो कारें प्रतीक्षा में खड़ी हुई मिलीं ! यहाँ
हमारा ग्रुप दो हिस्सों में बँट गया ! एक कार में संतोष जी, विद्या जी, प्रमिला जी और
यामिनी बैठीं दूसरी कार में राजन, मैं, रचना जी और अंजना जी बैठे ! पूरे ग्रुप की संग साथ की मौज मस्ती
और फन के अवसर ज़रूर समाप्त हो गए लेकिन फिर भी मज़े लूटने का एक भी अवसर हमने हाथ
से जाने नहीं दिया ! एयर पोर्ट से हमारा होटल एयर ड्रॉप पास में ही था ! तीन बजे
तक हम लोग अपने अपने कमरों में पहुँच कर रिलैक्स कर रहे थे ! बहुत खूबसूरत होटल था
! स्टाफ अति विनम्र और सहयोगी ! हम सबके कमरे तीसरे फ्लोर पर बिलकुल पास पास !
बहुत अच्छा लग रहा था यहाँ आकर ! यहाँ जो मज़े किये हमने उनके किस्से आपको अगली
पोस्ट में सुनाऊँ तो ठीक रहेगा ना ? क्योंकि अब जो आपको बताने जा रही हूँ उस अनुभव
को थोड़े शब्दों में समेटना मुश्किल है ! इसलिए आज मुझे इजाज़त दीजिये ! एक बहुत ही
शानदार कार्यक्रम की झलकियाँ लेकर मिलती हूँ जल्दी ही आपसे अगली पोस्ट में ! शुभ रात्रि
!
साधना वैद
अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteउम्दा पोस्ट
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