Monday, October 2, 2023

सावनी कतौता

 




नभ में घन 

धरा माँ का आँचल 

न मिला तो रो पड़े ! 


भीनी फुहार 

भिगो गई बदन 

सुलगा गई मन !


हैरान रवि 

छिपा बादल ओट

कहीं भीग न जाऊँ !


लाये सावन 

मधुरिम पलों की 

स्मृतियाँ बारम्बार ! 


नर्म दूब पे 

पाँव थकने तक 

चलना सुख देता ! 


झूलों की पींगें 

सखियों की ठिठोली 

सावन की सौगात !


मीठी मल्हारें
गायें सारी सखियाँ
भेजें पी को पतियाँ !


साधना वैद 

🙏🌹🌹🌹🌹🌹🙏

4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर

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    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद विमल जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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