Sunday, October 8, 2023

शुक्रिया दोस्त

 



 

वादा तो किया था तुमने

ताउम्र साथ चलने का

प्यार की बारिश में

साथ-साथ भीगने का 

दर्द के सहरा में

साथ-साथ जलने का !

कोई बात नहीं तुम भूल गए तो

आज भी मेरे हमराह

कुछ तो है तुम्हारा दिया

जो लम्हा दर लम्हा

कदम दर कदम

मेरे साथ-साथ चलता है

न जाने क्यों

जैसे तुम साथ हो मेरे

इस मीठे से भरम से

ज़िंदगी का हर पल

मुझे रात दिन छलता है !

एक शिद्दत भरा एहसास

तुम्हारी चुभती बेवफाई का

मेरी चीरती रुसवाई का

जान खींचती तुम्हारी खामोशी का

दम घोंटती मेरी तन्हाई का

मेरे दिल ओ दिमाग में पलता है !

क्या हुआ जो तुम नहीं हो साथ

हर पल लहूलुहान करतीं

तुम्हारी यादें तो हैं मेरे हमराह !

मंज़िले मक़सूद तक

पहुँचने के लिए

इतने हमसफ़र काफी हैं !

शुक्रिया दोस्त

तुम्हारे इस करम के लिए !

 

साधना वैद   

 


4 comments:

  1. पहुँचने के लिए

    इतने हमसफ़र काफी हैं ! sunder

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    1. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. बहुत सुन्दर

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    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !

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