Thursday, November 2, 2023

शब्द सीढ़ी

 


स्वार्थ भरे इस जगत में मिले सयाने लोग

सब अपने में लीन हैं जाने कैसा रोग

 

प्रेम भाव का जगत में नहीं आज कुछ मोल

चौंक पड़े हैं कान भी सुन कर मीठे बोल

 

है स्वभाव का दास वो आदत से मजबूर

किसको हम अपना कहें दिल है गम से चूर

 

काश न होता इस कदर लोगों में बदलाव

काश न ऐसे डूबती बीच भँवर में नाव  

 

सोगवार हैं हम सभी खो अपनी पहचान  

कभी जगत था मानता हमें गुणों की खान !

 

चित्र -- गूगल से साभार 

साधना वैद



5 comments:

  1. अत्यंत सुंदर

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    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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  3. है स्वभाव का दास वो आदत से मजबूर
    किसको हम अपना कहें दिल है गम से चूर...
    .

    सुंदर रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद हरीश जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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