दिग दिगंत
सुरभित प्रेम से
दिव्य है भाव
सागर से गहरा
आकाश से व्यापक !
प्रीत की ज्योत
सदा बाले रखना
उर अंतर
तृप्त रहेगा मन
आलोकित जीवन !
रही निहार
खिड़की पर खड़ी
बूंदों की लड़ी
कब आयेगी पिया
तेरे आने की घड़ी !
प्रेम के रंग
भावों की पिचकारी
रंग दे पिया
अपने ही रंग में
मेरी चूनर कोरी !
दिव्य प्रकाश
प्रेम मय जगत
धरा प्रफुल्ल
करे अभिनंदन
नवोदित रवि का !
रास की रात
मंत्रमुग्ध राधिका
विमुग्ध कान्हा
हर्षित ग्वाल बाल
औ’ आल्हादित धारा !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुमन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteक्या बात है, प्रेम के अभिनव रंग मनमोहक हैं साधना जी। बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा 🙏
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