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Friday, October 4, 2024

प्रेम पर्याय

 




दिग दिगंत

सुरभित प्रेम से

दिव्य है भाव

सागर से गहरा

आकाश से व्यापक !

 

प्रीत की ज्योत

सदा बाले रखना

उर अंतर

तृप्त रहेगा मन

आलोकित जीवन !

 

रही निहार

खिड़की पर खड़ी

बूंदों की लड़ी

कब आयेगी पिया

तेरे आने की घड़ी !

 

प्रेम के रंग

भावों की पिचकारी

रंग दे पिया

अपने ही रंग में

मेरी चूनर कोरी !

 

दिव्य प्रकाश

प्रेम मय जगत

धरा प्रफुल्ल

करे अभिनंदन

नवोदित रवि का !

 

रास की रात

मंत्रमुग्ध राधिका

विमुग्ध कान्हा

हर्षित ग्वाल बाल

औ’ आल्हादित धारा !


चित्र - गूगल से साभार 

 

साधना वैद 

 


7 comments :

  1. हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय जी ! आपका बहुत बहुत आभार ! सादर वन्दे !

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  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद सुमन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. क्या बात है, प्रेम के अभिनव रंग मनमोहक हैं साधना जी। बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा 🙏

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