किसी भी लेखक के लेखन में उसके व्यक्तित्व या उसके आचरण की झलक दिखना आवश्यक तो नहीं होता फिर हम उसे ढूँढने की कोशिश ही क्यों करते हैं ! लेखक सर्वप्रथम एक इंसान है और लेखन उसकी रूचि, शौक या व्यवसाय कुछ भी समझ लीजिये ! ये दोनों ही चीज़ें एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं और किसी भी तरह से एक दूसरे को तनिक भी प्रभावित नहीं करतीं या यूँ कहिये कि उन्हें एक दूसरे को प्रभावित करना नहीं चाहिए !
किसी भी लेखक के लेखन में उसका अपना व्यक्तित्व झलक सकता है और उसकी अपनी सोच,
उसकी मानसिकता एवं उसकी प्राथमिकताएं प्रतिबिंबित अवश्य हो सकती हैं लेकिन उसके शत
प्रतिशत लेखन में ऐसा ही हो यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं ! कोई भी लेखक सदैव एक ही
साँचे में ढाल कर लेखन कैसे कर सकता है ! लेखन के विषय विविध होंगे तो उसका
प्रारूप भी भिन्न ही होगा ! सामाजिक सरोकारों के प्रति साहित्यकार की प्रतिबद्धता
सर्व विदित भी है और सर्वमान्य भी ! कभी उसकी रचनाएं आत्मपरक हो सकती हैं तो कभी नितांत
तटस्थ और निर्वैयक्तिक ! कभी वह भावुक होकर लिखता है तो कभी वस्तुपरक होकर ! दोनों
ही सूरतों में उसका लेखन भिन्न होगा ! जो व्यक्ति पर्यटन को विषय बना कर लिख रहा
है या किसी भवन की वास्तुकला पर लिख रहा है जो कि एक विशुद्ध तथ्यपरक विषय है
उसमें उसके आचरण की झलक देखने की कोशिश बेमानी ही होगी ! ऐसा मेरा विचार है ! वैसे
एक लेखक की कुछ रचनाओं को पढ़ कर उसके सोच, उसकी मानसिकता
और उसके आत्मिक सौन्दर्य के दर्शन तो अवश्य ही हो जाते हैं इसमें भी संदेह नहीं है
तभी तो हम बिना मिले ही कतिपय लेखकों के मुरीद हो जाते हैं और अपने हृदय में उनके
लिए कोई न कोई कोना अवश्य ही सुरक्षित कर लेते हैं ! आशा करते हैं कि उनका आचरण भी
उतना ही श्रेष्ठ होगा जितना उनका लेखन है !
एक बात और जो कहने से रह गई उसे और कह दूँ !
कुछ लेखकों की छवि और लोकप्रियता जनमानस में उनके लेखन व रचनाओं के माध्यम से बनती
है ! जैसे कि हास्य रस के दो बड़े स्तम्भ हैं काका हाथरसी एवं सुरेन्द्र शर्मा जी !
दोनों ही दिग्गज रचनाकार माने जाते हैं और पाठकों एवं श्रोताओं के बीच गहरी पैठ
बनाए हुए हैं ! दोनों ने ही अपनी रचनाओं में अपनी पत्नी की इंतहा की हद तक हँसी
उड़ाई है ! काका हाथरसी की कविताओं में 'काकी' और सुरेन्द्र शर्मा जी की कविताओं में उनकी 'घराड़ी' सारी मुसीबतों की
जड़ रही हैं तो क्या हम यह समझ लें कि वे अपनी पत्नियों का सम्मान नहीं करते या
उनकी नज़रों में उनकी पत्नियाँ केवल मूर्ख, अज्ञानी और उपहास
की पात्र ही हैं ! लेखक केवल कभी-कभी पाठकों को रिझाने के लिए, उनके अवसाद को कम कर उन्हें गुदगुदाने के लिए या उन्हें खुश
करने के लिए भी लिखते हैं ! लेकिन यह कतई ज़रूरी नहीं कि उनकी सोच भी वैसी ही हो और
उनका आचरण भी वैसा ही हो !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद पम्मी जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteसुन्दर लेख
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ऋतु जी ! आभार आपका !
Deleteसही है, एक लेखक भिन्न-भिन्न पात्रों की रचना करता है, नायक भी और खलनायक भी, वैसे हर इंसान के भीतर दोनों ही रहते हैं
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! दिल से आभार आपका !
Deleteजी साधना जी, रचनाकार अपनी रचनाओं में न जाने किन- किन परिस्थितियों को जीने की कोशिश करता है। उसे उसकी निजी जिंदगी से जोड़ना गलत है 🙏
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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