बुधिया सुबह
सवेरे जब खेत पर पानी लगाने पहुँचा तो हैरान रह गया उसके खेत में जाने वाली नहर की
धार को साथ वाले खेत के नए मालिक ने खूब ऊँची मेंड़ बना कर रोक लिया था और अपने खेत
की और मोड़ लिया था ! वहाँ पहलवान किस्म के चार हट्टे कट्टे आदमी भी मुस्तैदी से
पहरा दे रहे थे ! बुधिया ने प्रतिवाद किया तो उन्होंने उसे डपट कर हड़का दिया !
पहले तो बगल वाले खेत का मालिक रामेसर था ! उसका जिगरी दोस्त ! दोनों बारी-बारी से
अपने खेत में पानी लगा लेते थे ! कोई झगड़ा कोई तकरार कभी नहीं हुए ! गले तक कर्जे
में डूबे रामेसर ने पिछले हफ्ते अपना खेत किसी जगत सिंह को बेच दिया ! और अपने
परिवार के साथ शहर की ओर पलायन कर गया मेहनत मजदूरी करके बाल बच्चों का पेट भरने
के लिए ! बुधिया के सर पर संकट के बादल मंडरा रहे थे ! क्या करे किससे मदद माँगे !
पिछले साल भी सूखे की वजह से सारी फसल खराब हो गयी थी ! बहुत नुक्सान उठाना पडा था
उसे भी ! इस साल भी ठीक से सिंचाई नहीं हुई तो वह तो बर्बाद हो जाएगा !
दुखी चिंतित बुधिया मुँह लटकाए घर आया तो बापू ने सलाह दी विधायक जी के पास जाकर
अपनी विपदा कहे ! वो कुछ न कुछ सहायता जरूर करेंगे ! बुधिया को कुछ धीरज बँधा !
पास पड़ोस के दो तीन बुजुर्गों को लेकर वह विधायक जी का पता पूछते हुए उनके बंगले
तक पहुँचा ! गेट पर चार बंदूकधारी पहरा दे रहे थे और सुनहरे अक्षरों में नेम प्लेट
पर विधायक जी का नाम चमक रहा था, ‘जगत सिंह चौधरी’ !
साधना वैद
ओह! तो बुधिया लड़ने से पहले ही अपनी लड़ाई हार गया!, हो सकता है कि ये जगत सिंह जैसे भू माफिया की कुटिल चाल हो उसे तंग करने की ताकि वह भी अपने मित्र रामेशर की तरह जमीन का सौदा कर बच्चों के लिए कमाने शहर निकल जाए। बहुत कुछ कहती है ये लघुकथा साधना जी। प्रणाम और शुभकामनाएं🙏
ReplyDeleteसार्थक चिंतन का प्रमाण देती आपकी संवेदनशील प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार रेणु जी ! कटु सत्य आज का यही है जिसकी आशंका आपने जताई है !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
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