बोस्टन फर्न
मुझे यात्रा करना बहुत पसंद है !
सबसे ज्यादह ट्रेन से, फिर सड़क मार्ग से; पर हवाई जहाज से
तो बिलकुल भी नहीं ! जानते हैं क्यों ? इसलिए कि ट्रेन के माध्यम से रास्ते में
आने वाले सभी नदी तालाब, पर्वत, झरने, खेत खलिहानों से बातें भी हो जाती
हैं और गाँव देहात की सुन्दर इन्द्रधनुषी जीवन शैली के दर्शन भी हो जाते हैं ! सड़क
मार्ग से भी कई शहरों के अंदरूनी भाग के दर्शन हो जाते हैं और वहाँ के रहवासियों
के जनजीवन की कुछ झलक तो मिल ही जाती है ! हवाई जहाज से क्या ! टेक ऑफ के कुछ देर
बाद ही बस बादलों के बीच उड़ते रहो ! न ज़मीन दिखाई दे न आसमान ! न कोई परिंदा दिखे न
पहाड़ ! बस एक डिब्बे में बंद बैठे रहो हाथ पैर सिकोड़े ! न ठीक से खड़े होने के, न पैर सीधे करने के और जो साथ वाली सीट पर कोई
बंद किताब सा बन्दा बैठा हो तो बोलने बतियाने से भी गए !
इन दिनों अमेरिका में हूँ ! बस
शिकागो ही हवाई जहाज से गए थे और लौटे थे बाकी बच्चों के साथ शिकागो से परड्यू
यूनीवर्सिटी, जहाँ मेरा बड़ा पोता कम्प्युटर साइंस
में ग्रेजुएशन कर रहा है, और सेनोजे
से सैनफ्रांसिस्को, सेंटा बारबारा, लॉस एन्जीलिस, लेक टाहो, सेक्रामेन्टो, सेंटा क्लारा, ओकलैंड, लिवरमोर आदि कई
स्थानों की सैर सड़क मार्ग से ही कर रहे हैं ! ये ड्राइव इतनी खूबसूरत हैं कि उस
सौन्दर्य को शब्दों में व्यक्त कर पाने की क्षमता अभी तक तो मुझमें विकसित नहीं हो
पाई है ! कदाचित भविष्य में शायद हो जाए आप सब प्रतिष्ठित साहित्यकारों की संगति
में रह कर !
यहाँ के खेत खलिहान जंगल मैदान इतने
सुन्दर हैं कि नज़रें हटने का नाम ही नहीं लेतीं ! बस दिल करता है देखते ही रहें !
एक ओर ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ तो दूसरी ओर क्षितिज तक फैला महासागर, एक ओर हर तरह के
नयनाभिराम वृक्षों की समृद्ध प्रजातियाँ तो दूसरी ओर सुदूर एकांत में आमंत्रण सा
देते गिने चुने खिलौने जैसे खूबसूरत घरों के छोटे-छोटे समूह ! बस यहाँ एक ही चीज़
की कमी महसूस होती है कि किसी भी छोटे शहर में आपको किसी भी प्रकार की गतिविधि या
सक्रियता का आभास नहीं मिलता ! न कोई शोर, न भीड़, न सडकों पर आदमियों की आवाजाही ! यहाँ तक कि
पेट्रोल पम्प पर भी कोई कर्मचारी नज़र नहीं आता ! आप खुद कार्ड से पेमेंट करें, अपने आप पेट्रोल गाड़ी में भरें और अपनी राह पकड़
लें ! न किसीसे दुआ न सलाम ! सिर्फ कुछ कारें सडकों पर चलती हुई ज़रूर दिखाई दे जाती
हैं या इक्का दुक्का लोग अपने पेट डॉग्स को टहलाते हुए भूले से दिखाई दे जाते हैं
! ऐसा नहीं है कि दिन में भी नगरवासी गहरी निंद्रा में लीन रहते हैं ! बस यहाँ की
संस्कृति यही है कि कोई भी सड़क पर अकारण नहीं निकलता ! शायद यहाँ का मौसम इसकी एक
वजह हो ! लेकिन इन दिनों तो मौसम भी सुहाना है ! जैसा भारत में सिंतंबर अक्टूबर
में होता है ! न अधिक गर्मी है न अधिक ठण्ड ! यहाँ पान की दुकानों का चलन जो नहीं
है और वो भी शायद इसीलिये नहीं है कि कोई पान का खोका लगाता भी तो वह तो घाटे में
ही जाता ! रेस्टोरेंट्स के अन्दर खूब चहल पहल होती है ! सिनेमा हॉल्स और थियेटर्स
में भी खूब भीड़ होती है लेकिन सड़क पर किसी हॉर्न तक की आवाज़ सुनाई नहीं देती ! भीड़
के दर्शन करने के लिए महानगरों की राह पकड़नी होगी जैसे, न्यू यॉर्क, लॉस
एंजीलिस, शिकागो इत्यादि ! यहाँ लोग सड़कों पर
भी घूमते हुए दिखाई दे जाते हैं ! लेकिन शोर शराबा यहाँ भी नहीं होता ! किसीको ज़ोर
से आवाज़ लगाते हुए आज तक नहीं सुना, न किसीके घर में, न बाग़ बगीचे में, न ही पार्क या बीच पर !
कैलीफोर्निया खूबसूरत पाम वृक्षों के
लिए जाना जाता है ! सेंटा बारबारा से लॉस एंजीलिस तक का मार्ग बहुत ही खूबसूरत है
! एक तरफ वेस्टर्न कोस्ट की हरी भरी पहाड़ियाँ हैं तो दूसरी ओर जहाँ तक दृष्टि जाए दूर
तक फैला हुआ प्रशांत महासागर का अपने नाम को चरितार्थ करता बिलकुल खामोश सा
विस्तार है जिसमें कहीं-कहीं कुछ उत्साही साहसी सैलानियों की नावें दिखाई दे जाती
हैं या कुछ शौक़ीन लोग सर्फिंग करते हुए भी दिखाई दे जाते हैं ! आने जाने वाली कई
लेन्स की सड़कों के बीच में डिवाईडर पर बेहद ही खूबसूरत फूलों से सजी अनेकों रंगों
की खुशनुमां झाड़ियाँ शोभायमान हैं ! इन झाड़ियों की कटिंग इतनी सफाई से और निपुणता
के साथ की जाती है कि लगता है सुन्दर रंग बिरंगे फूलों के गुलदस्तों से पूरे रास्ते
को सजाया गया है ! मुझे तो अपनी दाईं ओर की हरी भरी पहाड़ियाँ और तरह-तरह के सुन्दर
वृक्षों से सुसज्जित घाटियाँ ही अधिक लुभाती रहीं ! आपको एक राज़ की बात बताऊँ ! मुझे
लगता है ये पेड़ भी मुझसे बातें करते हैं ! मुझे उनकी बातों में बड़ा रस आता है ! लगता
है घंटों उनकी गुफ्तगू सुनती रहूँ ! एक फर्न का पेड़ है उसका नाम शायद बोस्टन फर्न
है वह मुझे हमेशा गुस्से में भरा लगता है ! मैंने उसका नाम ‘चिड़चिड़ा पेड़’ रखा है !
बड़ा अनुशासनहीन सा और रूठा हुआ लगता है मुझे ! भय लगता है कुछ बोलते ही जैसे अपनी ऊबड़
खाबड़ सी डालियों से जम के खबर ले लेगा ! अगर न देखा हो तो उसे गूगल पर सर्च करके
देखिएगा ज़रूर ! क्या आपको भी वही महसूस हुआ जो मुझे होता है ! बाकी पेड़ तो इतने
सुन्दर थे कि क्या ही कहूँ उनकी खूबसूरती के बारे में ! छोटे बड़े, ऊँचे ठिगने, सुतवाँ लम्बे या पीपल नीम जैसे घने गोल छायादार, घने पत्तों वाले या झीनी पत्तियों वाले, सब के
सब अपने पूरे अनुपम सौन्दर्य के साथ सजे धजे खड़े हुए थे जैसे किसी ब्यूटी कांटेस्ट
के रैंप वॉक में हिस्सा लेने के लिए तैयार हुए हों और अभी अपने नाम की घोषणा सुन पूरे
नाज़ो अंदाज़ के साथ चल पड़ेंगे प्रतियोगिता जीतने के लिए ! हमारी कार सड़क पर दौड़ रही
थी और मुझे लग रहा था किनारे खड़े पाम, देवदार, फर्न, साइप्रस, ओक, पाइन आदि के पेड़ मुझे आवाज़ देकर
बुला रहे हैं,
“अरे ! कहाँ जा रहे हो ? हमारी बारी आने तक तो रुक जाओ !” इन मधुर आवाजों को
नकारना बहुत कष्टप्रद था ! लेकिन अपने गन्तव्य पर समय से पहुँचना भी ज़रूरी था ! छोटा
पोता प्रशान्त सेंटा क्लारा यूनीवर्सिटी में अपने समर डिस्कवरी कैम्प के समापन के
बाद कॉलेज में हमारा इंतज़ार कर रहा था ! मैं भी अपने अनुभव बच्चों को और पतिदेव को
सुनाती तो सब मुझे पागल ही समझते ! आप भी मुझे ऐसा ही कुछ कहें इससे पहले अपना यह
संस्मरण यहीं समाप्त करती हूँ ! अब तो आगरा आने में दो सप्ताह ही बाकी हैं ! वहीं
आने के बाद कुछ लिखना हो पायेगा ! आज के लिए इतना ही !
नमस्कार !
साधना वैद