Saturday, January 16, 2010

चल मेरे मटके टिम्बकटू ( बाल कथा ) - 2

यह कहानी भी मेरे बच्चों और अब उनके भी बच्चों की मनपसन्द कहानी है । आप भी इसका आनन्द लीजिये और बच्चों को सुनाइये ।


एक थी बुढ़िया । बुढ़िया रहती थी गाँव में । बुढ़िया की बेटी रहती थी शहर में । बीच में था घना जंगल । जंगल में थे खतरनाक जानवर । एक बार बुढ़िया की बेटी ने अपनी माँ को कुछ दिन अपने साथ रहने के लिये शहर बुलाया । बुढ़िया बहुत खुश हुई । उसने अपनी बेटी के लिये बहुत सारे पक्वान बनाये और खूब सारे उपहार इकट्ठे किये और शहर की ओर चल पड़ी ।
जंगल के रास्ते में पहले उसे मिला भेड़िया । भेड़िया बोला, “ बुढ़िया-बुढ़िया मैं तुझे खाउँगा । “
बुढिया बोली, “ अभी नहीं । पहले मैं अपनी बेटी से मिल आऊँ । मोटी ताजी हो जाऊँ तब खाना । “
भेड़िया बोला , “ ठीक है । लेकिन जल्दी आना । “
बुढ़िया आगे चली । अब उसे मिला लकड़बग्घा । वह भी बोला, ” बुढ़िया-बुढ़िया मैं तुझे खाऊँगा । “
बुढ़िया बोली , “ अभी नहीं । पहले मैं अपनी बेटी से मिल आऊँ । मोटी ताजी हो जाऊँ तब खाना । “
लकड़बग्घा बोला, “ ठीक है । पर जल्दी आना । “
इसी तरह जंगल में दूसरे जानवर जैसे लोमड़ी, भालू और शेर भी मिले जो सभी बुढ़िया को खाना चाहते थे । बुढ़िया ने सबको यही जवाब दिया ,” पहले मैं अपनी बेटी से मिल आऊँ । मोटी ताजी हो जाऊँ तब खाना । “
सबने कहा ठीक है । इस तरह जंगल पार करके बुढ़िया अपनी बेटी के घर पहुँच गयी । बेटी उसे देख कर बहुत खुश हुई । बुढ़िया ने उसे सारे पक्वान और उपहार दिये । बेटी ने भी बुढ़िया की बहुत खातिर की और दोनों कुछ दिन खूब आराम से रहीं ।
अब बुढ़िया के वापिस अपने घर आने का टाइम पास आ गया । बुढ़िया चिंता के मारे उदास रहने लगी । बेटी ने उससे पूछा, ” माँ तुम क्यों परेशान हो ? “ बुढ़िया ने उसे जंगल के जानवरों से हुई सारी बात बताई और कहा कि अब तो लौटते वक़्त सारे जानवर उसे खा जायेंगे । लेकिन बेटी बहुत समझदार थी । उसने माँ से कहा, “ तुम चिंता मत करो । “ अब बेटी ने बुढ़िया के लौटने की तैयारी शुरू की ।
उसने एक खूब बड़ा मटका मँगवाया । उसमें बुढिया के लिये खाना, पानी और ज़रूरत का सामान रख दिया । और उस मटके में बुढ़िया को भी बैठा दिया । मटके के मुँह पर एक कपड़ा बाँध दिया और अपनी माँ से टाटा-टाटा बाई-बाई करके मटके को जंगल के रास्ते पर लुढ़का दिया । बुढिया अन्दर से ही मटके को आगे लुढ़काती जाती थी और बोलती जाती थी,
” चल मेरे मटके टिम्बकटू । चल मेरे मटके टिम्बकटू । “ और मटका आगे लुढ़कने लगता था ।
जंगल के रास्ते में सबसे पहले मिला भेड़िया जो बुढ़िया के लौटने का बसब्री से इंतज़ार कर रहा था ।
उसने मटके से पूछा, “ मटके-मटके क्या तुमने बुढिया को देखा है ? “
अन्दर से बुढ़िया ने उसे डाँट कर कहा -
” चल हट । कहाँ की बुढ़िया कहाँ का तू ।
चल मेरे मटके टिंबकटू । चल मेरे मटके टिम्बकटू । “
और जल्दी से मटके को आगे लुढ़का दिया । भेड़िये को आवाज़ कुछ-कुछ जानी पहचानी सी लगी और वह मटके के पीछे-पीछे चलने लगा ।
इसी तरह आगे उसको लकड-बग्घा, भालू, लोमड़ी आदि सभी मिले । जब उन्होने भी मटके से पूछा , “ मटके मटके क्या तुमने बुढ़िया को देखा है ? “
तो बुढ़िया ने उन्हें भी इसी तरह फटकार कर ज़ोर से कहा ,
” चल हट । कहाँ की बुढ़िया कहाँ का तू ।
चल मेरे मटके टिम्बकटू । चल मेरे मटके टिम्बकटू । “
और जल्दी-जल्दी मटके को लुढ़का कर आगे-आगे बढ़ाती गयी । सारे जानवर मटके के पीछे-पीछे चलने लगे ।
बुढ़िया का घर पास आता जा रहा था । लेकिन अब रास्ते में बैठा था शेर । वह भी बुढ़िया के लौटने का इंतज़ार कर रहा था । मटके को देख वह दहाड़ कर बोला ,
” मटके-मटके क्या तूने बुढ़िया को देखा है ? “
शेर की दहाड़ से बुढ़िया डर गयी और काँपती आवाज़ में बोली,
” क..हाँ.. की. .बु..ढ़ि..या.. .क..हाँ.. का.. तू ..।
च..ल.. मे..रे.. म..ट..के.. टि..म्ब..क..टू.., टि..म्ब..क..टू.., टि..म्ब..क..टू.. ।“.....
और जान बचाने के लिये जल्दी-जल्दी मटका लुढ़काने लगी । इसी हड़बड़ी में वह सामने पड़े पत्थर को नहीं देख पाई । मटका पत्थर से टकरा गया और फूट गया । अन्दर से निकल पड़ी बुढ़िया । जानवर हैरानी से बोले, “अरे-अरे यह तो बुढ़िया है । “
बुढ़िया पहले तो घबराई पर फिर हिम्मत कर पास में पड़े रेत के ढेर पर जाकर खड़ी हो गयी और जानवरों को डाँट कर बोली, ” अगर मुझे खाना चाहते हो तो तुम सब मेरे पास आकर बैठ जाओ । “
जानवर खुश होकर बुढ़िया के सामने आकर बैठ गये । बुढिया भी रेत के ढेर पर बैठ गयी । और पूरी ताकत लगा कर रेत को फूँकने लगी । रेत उड़ कर जानवरों की आँखों में भर गयी और उन्हें दिखाई देना बन्द हो गया । सारे जानवर दोनों हाथों से अपनी आँखें मलंने लगे । मौके का फायदा उठा कर बुढिया जल्दी से दौड़ कर अपने घर में घुस गयी और उसने अन्दर से दरवाज़ा कस कर बन्द कर लिया ।
इस तरह अपनी बेटी की चतुराई और अपनी हिम्मत से उसने अपनी जान भी बचा ली और बेटी से मिलने की अपनी इच्छा भी पूरी कर ली ।

साधना वैद

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर कहानी
    आभार ................

    ReplyDelete
  2. आजकल आप हम सबको हमारा बचपन याद दिला रही है| माँ^ की यह कहानी तो हम कभी भूल ही नहीं^ पाते|

    ReplyDelete
  3. asha.saxena88@gmail.comJanuary 17, 2010 at 12:49 PM

    A nice story.full of fun .
    It takes me to my childhood ,when I used to hear such stories from my
    amma and used to enjoy with full
    attention.I wish to be a small
    girl again .

    Asha

    ReplyDelete
  4. achhi kahani... mujhe to bachpan kee yaad aa gayi jab naani meri huein kahaniyaan sunaya karti thi... ab to hum khud ek kahani ban kar rah gaye hai...

    ReplyDelete
  5. किसने लिखा है

    ReplyDelete
  6. Maza aa Gaya
    Asia Laga ki Mai 6-7 saal ka Golu hu.1995 ka..(birthday 4-7-1990)

    ReplyDelete