Monday, October 28, 2013

इंतज़ार




तुम ज़मीं पर सितारों से मिलते रहे
मैं फलक के सितारों को गिनती रही
तुम बहारों में फूलों से खिलते रहे    
मैं खिज़ाओं में शूलों को चुनती रही 
न बुलाया ही तुमने न दस्तक ही दी  
मैं खलाओं में तुमको ही सुनती रही  
वो जो ख़्वाबों खयालों में मिलना हुआ 
मैं उन्हीं चंद लम्हों में जीती रही 
कि जिन राहों से होकर गुज़रते थे तुम
मैं वहीं नक्शे कदमों को तकती रही 
बेसबब यूँ सवालों में उलझे रहे
कशमकश में उमर यूँ ही कटती रही 
कि न साहिल पे रुकना गवारा हुआ
मैं समंदर की लहरों पे चलती रही ! 

साधना वैद

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