Sunday, November 16, 2014

ऐसी ही होती है माँ





दिख जाती है मुझे स्वप्न में

आँचल से दुलराती माँ !

कभी गरजती, कभी बरजती

आँखों से धमकाती माँ !

कान पकड़ती, चपत लगाती

जाने क्यों तड़पाती माँ !

फिर मनचाही चीज़ दिला कर

घंटों हमें मनाती माँ !

सारे दिन चौके में खटती

चूल्हे को सुलगाती माँ ! 

अपने हाथों थाल सजा कर

खाना हमें खिलाती माँ !

रूठी बिटिया को खुश करने

मुँह में कौर खिलाती माँ !

माथे पर पट्टी रख-रख कर

ज्वर को दूर भगाती माँ !

नींद ना टूटे, कहीं हमारी

आँखों से बतियाती माँ !

राई नोन से नज़र उतारे

सीने से लिपटाती माँ !

बिन बोले जो बूझे सब कुछ

चहरे को पढ़ जाती माँ !

रंगबिरंगी चूनर रँग कर

हाथों में लहराती माँ !

रात-रात भर जाग-जाग कर

गोटे फूल लगाती माँ !

मंदिर में भगवन् के आगे

सबकी खैर मनाती माँ !

चौबारे में दीपक रख कर

सारे शगुन मनाती माँ !

बच्चों की सारी पीड़ा को

हँस-हँस कर पी जाती माँ !

छोटी सी भी चोट लगे तो

हाथों से सहलाती माँ !

बच्चे की हर उपलब्धि पर

फूली नहीं समाती माँ !

दुनिया भर में जश्न मनाती

इठलाती फिरती है माँ !

          हर पल आँखों में बसती है                        

सपनों में आती है माँ !

मेरी हर पीड़ा को हर कर

मुझे हँसा जाती है माँ !

छूकर अपने कोमल कर से

मुझे रुला जाती है माँ !

ऐसी ही होती है शायद

जग में हर बच्चे की माँ !

जीवन के तपते मरुथल में

बादल बन छाती है माँ !

जीवन पथ के शूल बीन कर

फूल बिछा जाती है माँ !

बच्चा चाहे जैसा भी हो

माँ तो बस होती है ‘माँ’ !  

हो कोई भी देश विश्व में

ऐसी ही होती है माँ ! 



साधना वैद












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