Saturday, November 22, 2014

तीसमारखाँ की कहानी ( बाल कथा )



एक ग़रीब दर्ज़ी था ! गाँव की दूकान पर कपड़े सीकर अपना और अपनी माँ का गुज़ारा करता था ! एक दिन जब वह आम के साथ रोटी खा रहा था बहुत सारी मक्खियाँ आकर उसके खाने पर बैठने लगीं ! दर्ज़ी को आया बहुत ज़ोर का गुस्सा और उसने भिनभिनाती मक्खियों पर पूरी ताकत से हाथ का पंखा दे मारा ! जब उसने पंखा उठाया तो देखा कि ढेर सारी मक्खियाँ मर गयी थीं ! उसने गिना कि वे पूरी तीस थीं ! दर्ज़ी सोचने लगा ज़रूर मेरे अंदर कोई खास बात है तभी तो मैंने एक ही वार में तीस का काम तमाम कर दिया ! उसे लगा इस गाँव में तो कोई उसकी कदर करेगा नहीं अगर वह राजा के पास जायेगा तो राजा ज़रूर उसकी बहादुरी की कदर करेगा ! उसने गाँव छोड़ कर राजा के पास जाने का मन बना लिया ! कपड़े की एक बड़ी सी पट्टी पर उसने अपना नया नाम ‘तीसमारखाँ’ बड़े-बड़े अक्षरों में काढ़ लिया और उस पट्टी को अपने गले में लटका कर वह माँ के पास पहुँचा ! उसने अपनी माँ से कहा, “माँ, कल मैं राजा से मिलने जाऊँगा तुम मेरे लिये रास्ते का खाना बना देना ! मैं खूब सवेरे ही निकल जाऊँगा !”
घर में आटा खतम हो गया था ! दर्ज़ी की माँ शाम के समय गाँव के पंसारी के यहाँ पहुँची और कुछ आटा माँगा ! दूकान में था अँधेरा ! पंसारी ने गलती से आटे की जगह कोई ज़हरीला पदार्थ दर्जी की माँ को दे दिया ! माँ ने उसी ज़हरीले पदार्थ की रोटियाँ बना दीं और कपड़े में बाँध कर रख दीं ! 
तीसमारखाँ मुँह अँधेरे उन्हीं रोटियों को लेकर निकल पड़ा ! रास्ते में पड़ता था एक जंगल ! उस जंगल के एक पागल हाथी ने आसपास के गाँवों में बड़ा आतंक मचाया हुआ था ! रोज़ किसीका घर, किसीका बगीचा या खेत वह तहस नहस कर देता ! दुखी गाँव वालों ने राजा से सुरक्षा की गुहार लगाई ! राजा ने अपने कुछ सिपाहियों को उस हाथी को मारने के लिये जंगल में भेजा ! अब हुआ यह कि जंगल में एक तरफ से तो तीसमारखाँ आ रहा था दूसरी तरफ से राजा के सिपाही हाथी को मारने आ रहे थे और बीच जंगल में पागल हाथी घूम रहा था !



 तीसमारखाँ को देख हाथी उसकी तरफ दौड़ा ! बचने के लिये तीसमारखाँ एक पेड़ पर चढ़ गया ! हाथी उस पेड़ पर टक्कर मारने लगा ! डर के मारे तीसमारखाँ के हाथ से रोटियों की पोटली छूट कर नीचे गिर गयी ! भूखे हाथी ने वह ज़हरीली रोटियाँ खा लीं और वहीं ढेर हो गया ! जब राजा के सिपाही हाथी को ढूँढते हुए आये तो उन्होंने देखा कि हाथी तो मरा हुआ पड़ा है और पेड़ के ऊपर एक आदमी आँख बंद किये बैठा है ! उन्होंने तीसमारखाँ से पूछा, “क्या तुमने इस पागल हाथी को मारा है ?”
हाथी मर गया है जानकर तीसमारखाँ की जान में जान आयी ! शेखी मारते हुए उसने कहा, “हाँ, मैंने ही इसे मारा है ! मैं हूँ बहादुर तीसमारखाँ !” सिपाही उसे लेकर राजा के पास पहुँचे और सारी बात कह सुनाई ! राजा बहुत खुश हुआ ! उसे खूब इनाम दिया और पूछा, “क्या तुम मेरे यहाँ नौकरी करोगे ?”   तीसमारखाँ ने कहा, “मैं नौकरी कर तो लूँगा लेकिन मैं सिर्फ वही काम करूँगा जिसे कोई और आदमी ना कर सके !”
राजा ने कहा, “ठीक है ! तुम यहीं रहो !”
तीसमारखाँ राजा के किले में मज़े से रहने लगा ! सोचता था ऐसा कोई काम होगा ही नहीं जो बाकी लोग कर ना पायें इसलिए मुझे तो बस आराम ही आराम करना है !
लेकिन हुआ यह कि कुछ ही दिनों बाद जंगल के एक शेर ने रात को आकर शहर से पालतू गाय, बकरी आदि को उठाना शुरू कर दिया ! लोग शाम होने से पहले ही घरों में छिप कर बैठने लगे ! राजा तक शिकायत पहुँची ! राजा ने अपने मंत्रियों से पूछा कि क्या करना चाहिए ! मंत्रियों ने सलाह दी कि अपना तीसमारखाँ किस दिन काम आएगा ! उसके पास तो कोई काम भी नहीं है ! तीसमारखाँ को आदेश मिला कि जाओ और शेर को पकड़ो ! 




अब तीसमारखाँ कोई शिकारी तो था नहीं ! पागल हाथी तो ज़हरीली रोटियाँ खाकर अपने आप ही मर गया था ! उसने सोचा अब उसकी बहादुरी की पोल खुलने ही वाली है इसलिए चुपके से यहाँ से भाग लिया जाए ! उसने अपना सब सामान बाँध कर तैयार कर लिया और सोचा कि रात के अँधेरे में कोई गधा पकड़ के ले आउँगा और उसी पर सामान लाद कर यहाँ से भाग जाउँगा ! बरसात का मौसम था और अँधेरी रात थी ! गधा ढूँढते-ढूँढते तेज़ बारिश भी आ गयी ! तीसमारखाँ एक बुढ़िया की झोंपड़ी के आगे छप्पर के नीचे खड़े हो गये ! संयोग से शेर भी भीगने से बचने के लिये उसी छप्पर के नीचे खड़ा था ! पर अँधेरे में किसीको कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ! झोंपड़ी के छप्पर से पानी टपक-टपक कर बुढ़िया को परेशान कर रहा था ! झुँझला के बुढ़िया बोली, “मैं शेर से भी नहीं डरती लेकिन इस टपके से मुझे बहुत डर लगता है !” शेर ने यह बात सुनी और सोचने लगा कि यह टपका ज़रूर कोई मुझसे भी ताकतवर जानवर होगा तभी तो बुढ़िया उससे डरती है लेकिन मुझसे नहीं ! उसी समय अचानक बिजली चमकी ! तीसमारखाँ को किसी जानवर की कुछ झलक सी दिखाई दी उसे लगा कि गधा तो पास में ही खड़ा है जबकि था वह शेर ! लपक कर उसके गले में तीसमारखाँ ने रस्सी बाँध दी ! अचानक होने वाले इस हमले से शेर भी घबरा गया ! उसे लगा कि ज़रूर टपके ने उसके ऊपर हमला कर दिया है ! शेर की तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी ! तीसमारखाँ रस्सी से उसे अपने घर की तरफ खींचता हुआ ले जा रहा था और साथ में लातें भी जमाता जा रहा था ! शेर को पूरा यकीन हो गया था कि यह टपका ही है जो उसे पीट रहा है ! घर आकर तीसमारखाँ ने शेर को खिड़की की सलाखों से कस कर बाँध दिया और खुद बारिश रुकने का इंतज़ार करने लगा ! कुछ देर में उसकी आँख लग गयी और वो सो गया ! सुबह अँधेरे ही राजा के सिपाही तीसमारखाँ की मदद के लिये जब उसके घर पहुँचे तो शेर को बँधा हुआ पाया ! उन्होंने दाँतों तले उँगली दबा ली और भाग कर राजा को खबर दी ! राजा खुद वहाँ आया और तीसमारखाँ को खूब शाबाशी और इनाम दिया ! 




तीसमारखाँ के दिन फिर मज़े से कटने लगे ! कुछ महीने बीते कि फिर एक नई मुसीबत आ गयी ! एक दूसरे राजा ने बड़ी सी फ़ौज लेकर राजा के ऊपर हमला कर दिया ! जासूसों ने बताया कि हमला करने वाले राजा की फ़ौज इतनी बड़ी है कि हार निश्चित है ! बहुत सोचा गया पर कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया ! मंत्री ने कहा कि क्यों ना फिर से तीसमारखाँ की मदद ली जाए ! हो सकता है वह फिर कोई कमाल कर दे ! इस बीच हमलावर राजा अपनी फौज को लेकर शहर के बिलकुल पास मैदान में आ धमका था ! तीसमारखाँ को बताया गया कि उन्हें सेनापति बना दिया गया है और अब उन्हें घोड़े पर बैठ अपनी फ़ौज को लेकर दुश्मन को खदेड़ने के लिये जाना है ! तीसमारखाँ को घोड़े पर तो क्या गधे पर भी ठीक से बैठना नहीं आता था ! उनके तो होश ही उड़ गये ! राजा ने उनसे अपनी पसंद का घोड़ा छाँटने के लिये कहा ! एक से एक अच्छे घोड़े वहाँ खड़े थे ! तीसमारखाँ ने देखा कि एक घोड़ा अपने एक पैर को मोड़ कर ऊपर उठाये हुए था ! उन्हें लगा कि शायद यह लंगड़ा है इसलिए धीरे-धीरे चलेगा ! उन्होंने उसीको पसंद कर लिया ! राजा ने तीसमारखाँ की पसंद की तारीफ़ करते हुए कहा, “तुम्हें तो घोड़ों की भी अच्छी परख है ! यह सबसे तेज़ अरबी घोड़ा है !” तीसमारखाँ को लड़ाई की पूरी पोशाक पहनाई गयी और अपनी पसंद का हथियार चुनने के लिये कहा गया ! उन्होंने बहुत देख भाल कर भाला पसंद किया ! सोचा कि लंबे बाँस के आगे चाकू लगा है तो लड़ाई भी दूर-दूर से ही होगी और चोट नहीं लगेगी ! सिपाहियों ने किसी तरह उनको घोड़े पर बैठा दिया ! तीसमारखाँ ने खुद को रस्सियों से कस कर घोड़े से बँधवा भी लिया कि वह गिर ना पड़े ! लगाम को हाथ लगाते ही घोड़ा हवा से बातें करने लगा ! सब सिपाही पीछे छूटने लगे ! तीसमारखाँ डर के मारे “बचाओ-बचाओ, रोको-रोको” चिल्लाने लगे ! पर सुनने वाला कौन था ! रास्ते में खजूर का एक सूखा पेड़ खड़ा था ! तीसमारखाँ ने भाला फेंक उस पेड़ को कस कर पकड़ लिया ! झटके से पेड़ जड़ से उखड़ गया और तीसमारखाँ के साथ वह पेड़ भी खिसकने लगा ! भयंकर शोर मचने लगा और खूब धूल उड़ने लगी !
उधर दुश्मन की फ़ौज में यह खबर फ़ैल चुकी थी कि कोई नया सेनापति आने वाला है जो अकेले ही शेर और हाथी को मार देता है और तीस-तीस को तो वह एक ही वार में मार गिराता है ! भयानक शोर और धूल का गुबार सामने देख कर उन्हें लगा कि तीसमारखाँ कोई नया हथियार लेकर उन पर हमला करने आ रहा है ! डर के मारे वो पीछे भागने लगे ! उनका राजा अकेला पड़ गया ! तीसमारखाँ का घोड़ा झटके से उनके सामने आकर रुका और तीसमारखाँ के हाथ से पेड़ छूट कर राजा के ऊपर जा गिरा ! राजा पेड़ के नीचे दब गया ! तब तक पीछे से तीसमारखाँ के सिपाही भी आ गये और उन्होंने दुश्मन राजा को बंदी बना लिया ! तीसमारखाँ की जयजयकार होने लगी ! राजा को खबर भेजी गयी कि तीसमारखाँ ने अकेले ही दुश्मन की फ़ौज के छक्के छुड़ा कर जीत हासिल कर ली है !
और इस तरह एक बार फिर किस्मत ने तीसमारखाँ का साथ दिया ! राजा ने तीसमारखाँ से मुँहमाँगा इनाम माँगने के लिये कहा ! तीसमारखाँ ने कहा महाराज आपने मुझे धन तो बहुत दे दिया है अब मुझे अपने गाँव जाने दिया जाए ! राजा ने बेमन से उनकी बात मान ली ! अब तीसमारखाँ अपने गाँव पहुँच गये और मज़े से रहने लगे ! सारे दिन वो आज भी हर आने जाने वाले को अपनी बहादुरी के झूठे सच्चे किस्से सुनाते हैं और लोग सुन कर दांतों तले उँगली दबाते हैं !      


साधना वैद !

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