Friday, December 29, 2017

ये रिश्ते



हल्की सी ठेस
तोड़ जाती पल में
काँच से रिश्ते


कटु वचन 
छुईमुई से सच्चे 
शर्मिन्दा रिश्ते 


  गुस्से की आँधी  
टहनी से झरते
फूलों से रिश्ते 


बातों के शोले
अपमान की आग
झुलसे रिश्ते



चीरती बातें
मखमल से रिश्ते
काँटों से लोग


हुए एकाकी
जो सँवारे न रिश्ते
लगाए रोग


निर्मम धूप
चुरा कर ले गयी
रिश्तों की गंध


व्यर्थ हो गये
कागज़ के फूलों से
रिश्ते निर्गंध  


पूरा होने को
तरसते ही रहे
अधूरे रिश्ते


डाल से टूटे
जीवन सलिला में
बहते रिश्ते



साधना वैद






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