Monday, April 29, 2019

रफूगिरी



सारी ज़िंदगी
मरम्मत करती रही हूँ
फटे कपड़ों की
कभी बखिया करके
तो कभी पैबंद लगा के
कभी तुरप के
तो कभी छेदों को रफू करके !
धूप की तेज़ रोशनी और  
साफ़ नज़र की कितनी
ज़रुरत होती थी उन दिनों
सुई में धागा पिरोने के लिए
और सफाई से सीने के लिए !
मरम्मत तो अब भी
करती ही रहती हूँ
कभी रिश्तों की चादर में
पड़े हुए छेदों को
रफू कर जोड़ने के लिए  
तो कभी ज़िंदगी के
उधड़ते जा रहे लम्हों को
तुरपने के लिए
कभी विदीर्ण मन की
चूनर पर करीने से
पैबंद लगाने के लिए
तो कभी भावनाओं के
जीर्ण शीर्ण लिबास को  
बखिया लगा कर  
सिलने के लिए !
बस एक सुकून है कि
इस ढलती उम्र में
यह काम रात के
निविड़ अन्धकार में ही
बड़े आराम से हो जाता है
इसके लिए मुझे
किसी सुई धागे और
तेज़ रोशनी की
ज़रुरत नहीं होती !

साधना वैद   


Friday, April 26, 2019

वेदना की राह पर


वेदना की राह पर 
बेचैन मैं हर पल घड़ी ,
तुम सदा थे साथ फिर 
क्यों आज मैं एकल खड़ी !

थाम कर उँगली तुम्हारी 
एक भोली आस पर ,
चल पड़ी सागर किनारे 
एक अनबुझ प्यास धर !

मैं तो अमृत का कलश 
लेकर चली थी साथ पर ,
फिर भला क्यों रह गये
यूँ चिर तृषित मेरे अधर !

मैं झुलस कर रह गयी
रिश्ते बचाने के लिये ,
मैं बिखर कर रह गयी 
सपने सजाने के लिये !

रात का अंतिम पहर 
अब अस्त होने को चला ,
पर दुखों की राह का 
कब अंत होता है भला ! 

चल रही हूँ रात दिन 
पर राह यह थमती नहीं ,
कल जहाँ थी आज भी 
मैं देखती खुद को वहीं ! 

थक चुकी हूँ आज इतना
और चल सकती नहीं ,
मंजिलों की राह पर 
अब पैर मुड़ सकते नहीं 

कल उठूँगी, फिर चलूँगी 
पार तो जाना ही है ,
साथ हो कोई, न कोई 
इष्ट तो पाना ही है ! 

साधना वैद

Saturday, April 20, 2019

यादव डॉग ट्रेनिंग सेंटर



समय समय पर अनेक विलक्षण व्यक्तित्व के महानुभावों से मैं आपका परिचय करा चुकी हूँ ! आज भी एक ऐसे ही व्यक्ति से मैं आपका परिचय कराने जा रही हूँ जिनकी अपने काम के प्रति अनन्य निष्ठा एवं समर्पण अनुकरणीय ही नहीं स्तुत्य भी है ! ये है श्री सोनू यादव, एक बहुत ही कर्मनिष्ठ, अनुशासन प्रिय डॉग ट्रेनर एवं ‘यादव डॉग ट्रेनिंग सेंटर’ के मालिक एवं संचालक ! यह आगरा में रहते हैं और इनका प्रमुख व्यवसाय हर तरह के कुत्तों को प्रशिक्षण देना है ! डॉग ट्रेनर्स तो बहुत देखे लेकिन इनके व्यक्तित्व में कुछ विशेष बात निश्चित है कि बिना कुछ बोले भी कुत्ते इनकी आँखों की भाषा समझ लेते हैं और एकदम अनुशासित होकर शांत बैठ जाते हैं !
सोनू जी से प्रथम परिचय कुछ माह पूर्व ही हुआ जब हमने अपने पेट विराट को ट्रेनिंग देने के लिए उनसे संपर्क किया ! विराट किसी विशिष्ट ब्रीड का कुत्ता नहीं है ! एक साधारण देसी कुत्ता है इसीलिये हमें चिंता थी कि बड़ा होकर यह कहीं कॉमन स्ट्रीट डॉग्स की तरह झगड़ालू और कटखना ना हो जाए ! सोनू जी ने उसे तीन चार दिन में ही इतना काबू में कर लिया कि हम तो अचंभित ही हो गए ! जो पहले एक बात नहीं सुनता था तीन महीने की ट्रेनिंग में आज बड़े बड़े करतब करने लगा है !
सोनू जी ने 2012 में बी एस एफ़ में ट्रेनिंग ज्वाइन की थी ! लेकिन एक डेढ़ महीने में ही लॉन्ग जम्प के अभ्यास के दौरान फ्रैक्चर हो गया और वह जॉब छोड़ना पड़ गया ! वहाँ से लौटने के बाद उन्होंने बड़ा संघर्ष किया ! कई जगह कई तरह के काम किये लेकिन कहीं संतोषजनक परिणाम नहीं मिल रहे थे ! सोनू जी को जानवरों से बहुत लगाव है ! कुत्तों से उन्हें विशेष प्रेम है और वे इशारों में कुत्तों से अपने मनमाफिक काम करा लेते हैं ! अंतत: जीविका के लिए सोनू जी ने अपने इसी गुण को आजमाने का निश्चय किया और इस तरह से ‘यादव डॉग ट्रेनिंग सेंटर’ की स्थापना हुई ! आगरा में उनका यह ट्रेनिंग सेंटर अच्छा खासा मशहूर है और गूगल सर्च में सबसे ऊपर इसीका नाम आता है !
आम तौर पर सभी लोगों के अनेकों फैन्स होते हैं लेकिन यादव जी के फैन्स बाकी सबसे दोगुने हैं ! क्योंकि उनमें इंसान ही नहीं उनके प्रशिक्षित किये अनेकों कुत्ते भी हैं जो उनके आने पर उनकी खुशबू से ही दीवाने हो जाते हैं ! हमारे विराट को ट्रेनिंग देने के लिए जब उनके आने का समय होता है तो उसकी बेचैनी और हाव भाव से ही हमें समझ में आ जाता है कि दो तीन मिनिट्स में ही गेट पर यादव जी प्रकट होने वाले हैं ! वो बताते हैं कि एक डॉग की ट्रेनिंग के लिए वे जहाँ जाते थे उसके मालिक फर्स्ट फ्लोर पर रहते थे ! उनके पहुँचने पर वह इतना अधीर हो गया कि फर्स्ट फ्लोर की बालकनी से नीचे कूद गया और अपना पैर तुड़वा बैठा ! सोनू जी ने कई दिनों तक उसकी बड़ी सेवा की ! दयावान इतने कि एक लावारिस सांड के इलाज में अपने पास से ३५००० रुपये खर्च कर दिये ! आवारा स्ट्रीट डॉग्स के लिए शेल्टर भी बनवाना चाहते हैं ! अक्सर बड़े दार्शनिक अंदाज़ में कहते हैं सब कुछ यहीं तो छूट जाना है तो जितना इन लोगों की सेवा और देख रेख में काम आ जाए अच्छा ही है ! लेकिन कुत्तों के मालिकों से अच्छी खासी फीस भी लेते हैं ! कुछ कम्यूनिस्टिक अप्रोच है जो दे सकते हैं उनसे लेकर उन प्राणियों पर खर्च कर देते हैं जिनका कोई रखवाला नहीं !
सोनू जी के कई वीडियो यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं जिनमें उनके सिखाये हुए कुत्तों को बड़े ही अद्भुत करतब करते हुए देख कर आप दाँतों तले उँगली दबा लेंगे ! अपने हुनर में वे निश्चित ही न. वन हैं ! बड़े बड़े बिगड़ैल कुत्तों को वो साध चुके हैं और कई बार उनसे घायल भी हो चुके हैं लेकिन अपने काम के प्रति उनके समर्पण में कोई कमी नहीं आई ! कुत्तों का वो हर तरह से बहुत ध्यान रखते हैं ! उनकी हर छोटी बड़ी तकलीफ का इलाज उनके पास होता है और उसे वे बड़े प्यार से धर्म समझ कर अंजाम देते हैं ! अपने विराट को प्रशिक्षण के लिए उन्हें सौंप कर हम बहुत संतुष्ट भी हैं और प्रसन्न भी ! पिक्चर्स में देखिये हमारा विराट कितना खुश है उनके साथ !
शुक्रिया सोनू जी !


साधना वैद

Friday, April 19, 2019

अमिया के टिकोरे सी तुम

  


कितनी मासूम,
कितनी भोली,
कितनी प्यारी,
कितनी सुन्दर हो तुम
बिलकुल अमिया के टिकोरे सी !
खट्टी मीठी, कुरकुरी,
खुशबूदार और ताज़ी !  
तुम्हारी चंचल बातें
मुझे अक्सर
हैरान कर जाती हैं !
मेरे अंतर को
आनंद से भर जाती हैं !
देर तक उनका स्वाद
मेरे मन मस्तिष्क को
उद्दीप्त रखता है !
कभी मुझे अपनी
शरारती खटास से
झकझोर जाता है
तो कभी अपनी
मधु सी मिठास से
मुग्ध कर जाता है !
इसीलिये हरदम मुझे
तुम्हारे सामीप्य की
चाहत होती है !
जैसे स्कूल के बच्चे
अमिया की आस में
आम के पेड़ों के
इर्द गिर्द मंडराते हैं
मेरा बावरा मन
तुमसे बतियाने की
चाहत में हर वक्त
तुम्हारे ही आस पास
मंडराता है !
तुम्हारी चंचल बातों के
अनोखे स्वाद में 
  डूब जाना चाहता है !  


साधना वैद 

Wednesday, April 17, 2019

संवेदना की नम धरा पर – साधना वैद : समीर लाल ’समीर’ की नज़र में

(अमेरीका से प्रकाशित मासिक पत्रिका सेतु के मार्च अंक में)
साधना वैद जी से परिचय हुए १० साल से उपर का समय गुजरा. परिचय का माध्यम उनका ब्लॉग ’सुधीनामा’ रहा. उनकी लेखनी शुरु से प्रभावित करती आई. जीवन और समाज के विभिन्न पहलुओं पर गंभीरता से और गहराई से विचार रखना और वो भी कविता और गध्य दोनों के ही के माध्यम से, यही साधना जी की खासियत है.
हाल ही में साधना जी द्वारा भेजा हुआ उनका कविता संग्रह ’संवेदना की नम धरा पर’ प्राप्त हुआ. १५१ कविताओं का गुलदस्ता, जिसमें चिन्तन उनके मानस की गंभीरता और सजगता को उजागर करता है और अनुभूतियाँ उनके कोमल हृदय को जो कभी माँ का, तो कभी नारी का तो कभी स्वच्छंद सा विचरता मन एक अलग सा संसार निर्मित करता है.
१५१ कविताओं में हर एक कविता का एक अलग अंदाज है. एक अलग आयाम है. कहीं भी दोहराव नहीं प्रतीत होता, यह मुझे इस संग्रह की विशेषता लगी.
एक बार जो पढ़ना शुरु किया तो न जाने कितने ही आयामों को छूते, मनोभावों के सागर में गोता लगाते जब उस पार निकले तो पाया कि पूरी किताब पढ़ चुके हैं और इच्छा अभी भी और पढ़ते चले जाने की बाकी है.
कुछ कविता की बात करें तो एक बलात्कारी की माँ के दिल में उठता अपने ही पुत्र के प्रति घृणा और शर्मिंदगी के भाव को जितनी गहराई से वो ’कुंठित नारी’ शीर्षक की कविता में पेश करती है. वहीं समाज में घूमते इन नर पिशाच बलात्कारियों के रहते घर से बाहर निकलने को विवश पुत्री की आशंकित माँ के हृदय के भय को बखूबी ’पुराने जमाने की माँ’ कविता कलमबद्ध करती हैं.
’मैं शर्मिंदा हूँ’ के कुछ अंश:
आज याद करती हूँ
तो बड़ा क्षोब होता है कि
तुझे पाने के लिए मैंने
कितने दान पुणय किये थे
कितने मंदिर, मस्जिद
गुरुद्वारों में
भगवान के सामने जाकर
महींनों माथा रगड़ा था!
वो किसलिये?
तुझे जैसे कपूत को
पाने के लिए?
--------
चार पन्नों में इसी क्षुब्दता के बीच...
यहाँ की अदालत
तेरा फैसला कब करेगी
मैं नहीं जानती
लेकिन अगर तू
मेरे हाथों पड़ गया तो
एक हत्यारिन माँ
होने का पट्टा मेरे माथे पर
ज़रुर चिपक जायेगा!
और उनकी एक अन्य कविता ’पुराने ज़मानें की माँ’ के कुछ अंश:
तुम्हारे लिए
मैं आज भी वही
पुराने ज़माने की माँ हूँ
मेरी बेटी
तुम चाहे मुझसे कितना भी
नाराज़ हो लो
तुम्हारे लिए
मेरी हिदायतें और
पाबंदियाँ आज भी वही रहेंगी
जो सौ साल पहले थीं
क्योंकि हमारा समाज,
हमारे आस – पास के लोग,
औरत के प्रति
उनकी सोच,
उनका नज़रिया
और उनकी मानसिकता
आज भी वही है
जो कदाचित आदिम युग में
हुआ करती थी!
पुनः ५ पन्नों में लिखी गई यह लंबी कविता कितने भीतर तक झकझोरती है, इसका अहसास आप इस कविता से गुजर कर ही कर पायेंगे.
अन्य कवितायें मसलन ’शुभकामना’, ’अब और नहीं’, गृहणी’, ’मैं वचन देती हूँ माँ’, ’मौन’, आदि नारी मन के भाव तो दूसरी तरफ ’दो जिद्दी पत्ते’, ’वसंतागमन’ में प्रकृति का सामिप्य. एक परिपक्व लेखन.
२९४ पन्नों मे १५१ कविताओं का समावेश किये इस संग्रह ’संवेदना की नम धरा पर’ का मेरी पुस्तकों की अलमारी में खास स्थान रहेगा. खास बात यह भी है कि इस कविता संग्रह की प्रकाशक भी साधना जी स्वयं ही है.
मुझे पूरी उम्मीद है कि जब आप इस संग्रह से गुजरेंगे तो आप भी इन्हीं अनुभवों को प्राप्त होंगे और यह संग्रह आपकी पुस्तकों के संग्रह में भी अपना विशिष्ट स्थान बनायेगी.
मेरी अनेक शुभकामनायें साधना जी के साथ हैं और मुझे इन्तजार है उनके अगले संग्रह का. मुझे ज्ञात है कि वो पूर्ण सक्रियता से अपने लेखन को सतत अंजाम देने में पूर्ण उर्जा के साथ लगी हैं.
किताब: ’संवेदना की नम धरा पर’
लेखिका: सधना वैद
प्रकाशक: साधना वैद, ३३/२३, आदर्श नगर, रकाबगंज, आगरा
प्रकाशक का फोन: +९१ ९३१९९१२७९८
लेखिका का ईमेल: sadhna.vaid@gmail.com
मूल्य: रुपया २००
अमेरीका से प्रकाशित सेतु मासिक पत्रिका के मार्च, २०१९ अंक में:

Monday, April 8, 2019

विश्वासघात या अवसरवाद


चुनाव चक्र अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच रहा है और अब एक नये दुष्चक्र के आरम्भ का सूत्रपात होने जा रहा है । मंत्रीमंडल में अपनी कुर्सी सुरक्षित करने के लिये सांसदों की खरीद फरोख्त और जोड़ तोड़ का लम्बा सिलसिला शुरु होगा और आम जनता ठगी सी निरुपाय यह सब देख कर अपना सिर धुनती रहेगी । व्यक्तिगत स्तर पर चुनाव लड़ने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों और छोटी मोटी क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं का वर्चस्व रहेगा । उनकी सबसे मँहगी बोली लगेगी और सत्ता लोलुप और सिद्धांतविहीन राजनीति करने वाले आयाराम गयारामों की पौ बारह होगी |
नेताओं के प्रति विश्वास और सम्मान आम आदमी के मन से इस तरह धुल पुँछ गया है कि गिने चुने अपवादों को छोड़ दिया जाये तो किसी भी नेता के नाम पर मतदाता को मतदान केंद्रों तक खींच कर लाना असम्भव है । आज भी मतदाता पार्टी के नाम पर अपना वोट देता है और पार्टी के घोषणा पत्र पर भरोसा करता है । लेकिन यही सिद्धांतविहीन नेता चुनाव जीतने के बाद आम जनता के विश्वास का गला घोंट कर और पार्टी विशेष की सारी नीतियों के प्रति अपनी निष्ठाओं की बलि चढ़ा कर कुर्सी के पीछे पीछे सम्मोहित से हर इतर किस्म के समझौते करते दिखाई देते हैं तो आम जनता की वितृष्णा की कोई सीमा नहीं रहती । मतदान के प्रति लोगों की उदासीनता का एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि लोगों के मन में निराशा ने इस तरह से जड़ें जमा ली हैं कि किसी भी तरह के सकारात्मक बदलाव का आश्वासन उन्हें आकर्षित और उद्वेलित नहीं कर पाता । तुलसीदास की पंक्तियाँ आज के राजनैतिक परिदृश्य में उन्हें अधिक सटीक लगती है-
कोई नृप होहि हमहुँ का हानि
चेरी छोड़ि ना होवहिं रानी ।।
जनता की इस निस्पृहता को कैसे दूर किया जाये , उनके टूटे मनोबल को कैसे सम्हाला जाये और नेताओं की दिन दिन गिरती साख को कैसे सुधारा जायें ये आज के युग के ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जिनके उत्तर शायद आज किसी युधिष्ठिर के पास नहीं हैं ।
इन समस्याओं को विराम देने के लिये एक विकल्प जो समझ में आता है वह यह है कि देश में सिर्फ दो ही पार्टीज़ होनी चाहिये । अन्य सभी छोटी मोटी और क्षेत्रीय पार्टियों का इन्हीं दो पार्टियों में विलय हो जाना चाहिये । जो पार्टी चुनाव में बहुमत से जीते वह सरकार का गठन करे और दूसरी पार्टी एक ज़िम्मेदार और सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाये । इस कदम से सांसदों की खरीद फरोख्त पर रोक लगेगी और अवसरवादी नेताओं की दाल नहीं गल पायेगी । इसके अलावा संविधान में इस बात का प्रावधान होना चाहिये कि चुनाव के बाद प्रत्याशी पार्टी ना बदल सके और जिस पार्टी के झंडे तले उसने चुनाव जीता है उस पार्टी के प्रति अगले चुनाव तक वह् निष्ठावान रहे । यदि किसी तरह का मतभेद पैदा होता है तो भी वह पार्टी में रह कर ही उसे दूर करने की कोशिश करे । पार्टी छोड़ने का विकल्प उसके पास होना ही नहीं चाहिये । तभी नेताओं की निष्ठा के प्रति लोगों में कुछ विश्वास पैदा हो सकेगा और पार्टीज़ की कार्यकुशलता के बारे में लोग आश्वस्त हो सकेंगे । इस तरह के उपाय करने से जनता स्वयम को छला हुआ महसूस नहीं करेगी और राजनेताओं और राजनीति का जो पतन और ह्रास इन दिनों हुआ है उसे और गर्त में जाने से रोका जा सकेगा और उसकी मरणासन्न साख को पुनर्जीवित किया जा सकेगा ।

साधना वैद

Saturday, April 6, 2019

अब तो आ जाओ प्रियतम




जूड़े का हार बुलाये
कजरे की धार बुलाये   
बिंदिया सौ बार बुलाये
अब तो आ जाओ प्रियतम !

नैनों का प्यार बुलाये  
चितवन का वार बुलाये
सोलह सिंगार बुलाये
अब तो आ जाओ प्रियतम !

मन में ख़याल है तेरा
दिल बेकरार है मेरा
कब हो कदमों का फेरा
अब तो आ जाओ प्रियतम !

   पढ़ लो नैनों की भाषा   
ना बदली है परिभाषा
है दर्शन की अभिलाषा
अब तो आ जाओ प्रियतम !

हिलता विश्वास बुलाये,
नैनों की प्यास बुलाये
मन का मधुमास बुलाये
अब तो आ जाओ प्रियतम !


साधना वैद




Thursday, April 4, 2019

प्रेमाश्रु


मेरे अंतर्मन के देवालय में
चंद कलश बड़े प्यार से
सहेज कर रखे हैं मैंने !
जानते हैं क्या है उनमें ?
उनमें बड़े कीमती मोती हैं
प्रेमाश्रुओं के मोती
जिनका मोल संसार का
पारखी से पारखी जौहरी भी
नहीं लगा सकता !

इनमें से एक कलश में  
भरे हैं आँसू मेरी माँ के
जो मेरे जन्म से लेकर आज तक
मेरी हर व्याधिहर कष्ट,
हर चोट पर चिंतित होकर  
ना जाने कितनी बार
आकुल व्याकुल होकर
नयनों के रास्ते बहते रहे हैं !

दूसरे कलश में भरे हैं आँसू
मेरी प्यारी दीदी के
जो मेरे मन में धधकती
ज्वाला के शमन के लिए
गाहे बगाहे बरबस ही
बरस पड़ते थे और बड़े प्यार से
उनसे आचमन कर मैं अपनी
सारी दुविधा सारे संशय
भूल जाया करती थी !

तीसरे कलश में बहुत थोड़े हैं
लेकिन सबसे कीमती प्रेमाश्रु हैं
जो हैं मेरे बाबूजी के
जो उनकी छात्र छाया से
दूर हो जाने पर परदेश में
मेरी पीड़ा के अनुमान मात्र से
यदा कदा उनके नेत्रों में
छलक आया करते थे
और कोई देख ले  
उससे पहले ही वे उन्हें
सुखा दिया करते थे !

चौथे कलश में आँसू हैं
हर रंग के जिनमें हैं
प्यार, गुस्सा, ईर्ष्या, क्षोभ,
पश्चाताप और क्षमा के
बहुरंगी आँसू और
यह कलश है मेरे सबसे प्यारे
सबसे अंतरंग छोटे भैया का !

लेकिन इन सबसे अलग
यह जो स्वर्ण कलश है
इसमें संगृहित हैं तुम्हारे आँसू
जो मेरे लिए सबसे अनमोल हैं
क्योंकि उन आँसुओं में
मुझे सदैव अपनी पीड़ा के
प्रतिबिम्ब के स्थान पर
तुम्हारी पीड़ा का प्रतिबिम्ब
दिखाई दिया है 
वो बहे हैं तो सिर्फ मेरे लिए
नितांत विशुद्ध प्रेमवश
इसीलिये वो सबसे विशिष्ट हैं ! 

बस इतनी विनती है
मेरी अंतिम यात्रा से पूर्व
इन प्रेमाश्रुओं से ही
मेरा अंतिम स्नान हो और
गंगाजल के स्थान पर
मेरे मुख में इन्हीं आँसुओं की
चंद बूँदें टपकाई जाएँ क्योंकि
इनसे अधिक निर्मल
इनसे अधिक शुद्ध और
इनसे अधिक पवित्र
इस संसार में अन्य कुछ
हो ही नहीं सकता !



साधना वैद 




Tuesday, April 2, 2019

क्या है कविता



कभी मन में धधकते दावानल की 
चिंगारी है कविता तो कभी 
सुलगते अंगारों पर पड़ी 
शीतल फुहार है कविता ! 
कभी वर्षों के मौन को 
मुखर करती 
कुछ कहती कुछ सुनती 
बातों की लड़ी है कविता 
तो कभी अनर्गल प्रलाप पर 
सहसा लगा एक 
पूर्णविराम भी है कविता !
तुम्हारी चुप्पी है कविता 
तो मेरी बकबक भी है कविता ! 
कभी फूलों की खुशबू है कविता 
तो कभी काँटों की चुभन है कविता !



साधना वैद