Wednesday, December 11, 2019

सर्दी की रात




सर्दी की रात 
ठिठका सा कोहरा 
ठिठुरा गात ! 

मंदा अलाव 
कँपकँपाता तन 
झीने से वस्त्र !

तान के सोया 
कोहरे की चादर 
पागल चाँद ! 

काँपे बदन 
उघड़ा तन मन 
खुला गगन  !

चाय का प्याला 
सर्दी की बिसात पे 
बौना सा प्यादा ! 

लायें कहाँ से 
धरती की शैया पे 
गर्म रजाई ! 

ठंडी हवाएं 
सिहरता बदन
बुझा अलाव ! 

चाय की प्याली 
सर्दी के दानव को 
दूर भगाए ! 

दे दे इतना 
जला हुआ अलाव 
गरम चाय ! 

आँसू की बूँदें 
तारों के नयनों से 
झरती रहीं ! 

तारों के आँसू
आँचल में सहेजे 
धरती माता ! 


साधना वैद  

11 comments:

  1. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर...

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका !

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  3. बहुत ही मार्मिक सृजन ,सादर नमस्कार आपको

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    1. हृदय तल से आभार आपका कामिनी जी ! रचना आपको अच्छी लगी मन मगन हुआ !

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  4. वाह बहुत ही सुंदर सटीक एवं सार्थक रचना।

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    1. तहे दिल से शुक्रिया सुजाता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  5. तान के सोया
    कोहरे की चादर
    पागल चाँद !
    बहुत ही सुंदर हैं रचना। सभी बन्ध अपनी विशेष आभा के साथ मौजूद है। सादर 🙏🙏

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  6. हार्दिक धन्यवाद रेनू जी ! आभार आपका !

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