Thursday, December 12, 2019

पूस की रात

चंद हाइकू और ताँका 

ठण्ड की रात
भारी अलाव पर
छाया कोहरा !

सीली लकड़ी
बुझता सा अलाव
जला नसीब !

बर्फ सी रात
फुटपाथ की शैया
मुश्किल जीना !

बर्फीली हवा 
बदन चीर जाये
फटा कम्बल !

पक्के मकान
मुलायम रजाई
पूस की रात !

दीन झोंपड़ी
जीर्ण शीर्ण बिस्तर 
कटे न रात ! 
                           
छाया कोहरा
चाँद तारे समाये
नीली झील में !

पूस की रात
‘हल्कू’ की याद आई
मन पसीजा !
 
चाँद ने पूछा
कौन उघडा पड़ा
सर्द रात में
बोल पड़े सितारे
ये हैं धरतीपुत्र !

करे लड़ाई
दिनकर धूप से
छाया कोहरा !
घर में घुसा रवि
छिपा कर चेहरा !


आज भी ‘हल्कू’
बिताते सड़क पे
ठण्ड की रात
कुछ भी न बदला
स्वतन्त्रता के बाद !


साधना वैद

8 comments:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13 -12-2019 ) को " प्याज बिना स्वाद कहां रे ! "(चर्चा अंक-3548) पर भी होगी

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का

    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है 
    ….
    अनीता लागुरी"अनु"

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  2. वाह दिल को छू गई आपकी रचना शीर्षक पढ़कर ही खत का मजनुम समझ आने लगा था.. बहुत ही खूबसूरत लिखा आपने #पूस की रात👌

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    1. रचना आपको अच्छी लगी मेरा श्रम सफल हुआ ! हार्दिक धन्यवाद अनीता जी !

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  4. बेहतरीन सृजन।

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  5. आज भी ‘हल्कू’
    बिताते सड़क पे
    ठण्ड की रात
    कुछ भी न बदला
    स्वतन्त्रता के बाद !
    पूस की रातों को समर्पित उम्दा हाइकु और ताँका आदरणीय साधना जी। हार्दिक शुभकामनायें और बधाई। 🙏🙏🙏

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  6. बहुत ही सुन्दर
    सादर

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