पर्वत, बादल, झरने, तरुवर,
हवा, फूल, धरती, सागर ,
ये कितना कुछ देते हमको
हैं सारे गुण की गागर !
अटल अडिग निश्चय पर रहना
पर्वत हमें सिखाते हैं ,
बादल हर कर ताप जगत का
रिमझिम जल बरसाते हैं !
कल-कल-कल झरनों के स्वर से
वादी में गूँजे संगीत ,
पात हिला कर करतल ध्वनि से
वृक्ष जताते अपनी प्रीत !
मंद सुगन्धित मलय पवन का
झोंका जब-जब आता है ,
फूलों के भीने सौरभ से
सबका मन हर्षाता है !
त्वरित उर्वरा धरती माता
प्रति पल फसल उगाती है ,
देकर दान अन्न और फल का
सबकी भूख मिटाती है !
दुनिया के हर जन की पीड़ा
अंतर में हम भर पायें ,
सागर सी गहराई को यदि
आत्मसात हम कर पायें !
कितना कुछ पाते हम प्रकृति से
प्रकृति हमारी माता है ,
इसकी रक्षा करनी है यह
सबकी जीवन दाता है !
साधना वैद
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