तुम
ज़मीं पर सितारों से मिलते रहे
मैं
फलक के सितारों को गिनती रही
तुम
बहारों में फूलों से खिलते रहे
मैं खिज़ाओं में शूलों को चुनती रही
मैं खिज़ाओं में शूलों को चुनती रही
न
बुलाया ही तुमने न दस्तक ही दी
मैं
खलाओं में तुमको ही सुनती रही
वो
जो ख़्वाबों खयालों में मिलना हुआ
मैं
उन्हीं चंद लम्हों में जीती रही
कि जिन राहों से होकर गुज़रते थे तुम
मैं
वहीं नक्शे कदमों को तकती रही
बेसबब
यूँ सवालों में उलझे रहे
कशमकश
में उमर यूँ ही कटती रही
कि
न साहिल पे रुकना गवारा हुआ
मैं
समंदर की लहरों पे चलती रही !
साधना
वैद