बेटी जनमी
घटा जीवन तम
लाई खुशियाँ
ज़िंदगी गाने लगी
रोशनी छाने लगी !
कथा पुरानी
आँचल में है दूध
आँखों में पानी !
सिंधु सा मन
पर्वत सा हौसला
फूल सा तन !
बाँध लिया है
मुठ्ठी में आसमान
सारा जहान !
शिक्षित कन्या
प्रतिभाशाली बेटी
सुयोग्य बहू !
आज की बेटी
प्रवाहमान नदी
चंचल हवा
है शीतल चन्द्रमा
तो प्रखर सूर्य भी !
मरोड़ती है
रूढ़ियों की उँगली
आज की बेटी !
उन्नति पथ
तोड़ती वर्जनायें
बढ़ती बेटी !
गढ़ती तन
शुद्ध करती आत्मा
देती संस्कार !
घर की शान
परिवार का मान
शिक्षित बेटी !
एक छलाँग
और नाप लिये हैं
सातों गगन
बाँधने को बाहों में
चाँद और सूरज !
साधना वैद
No comments:
Post a Comment