जीवन की
हर शै इन दिनों
कितनी मुश्किल
होती जा रही है !
चंद कदम
भी और बढ़ाना जैसे
अब
दुश्वार होता जा रहा है !
नहीं
जानती मैं ही थक गयी हूँ
या
ज़िंदगी की रफ़्तार तेज़ हो गयी है !
ऐसा
लगता है जैसे
मैं
पिछड़ती ही जा रही हूँ और
ज़िंदगी
आगे भागती जा रही है !
कितना
मुश्किल हो जाता है
हर कदम
पर खुद को
सिद्ध
करते हुए जीना !
कितना कुंठित कर जाता है
हर छोटी
से छोटी बात के लिए
अपने
अधिकारों की
दुहाई
देते हुए जीना !
और कितना
पीड़ादायक हो जाता है
हर वक्त
अपने अस्तित्व
अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए
अस्त्रों
को पैना करते हुए जीना !
क्या पल
भर का भी सुकून
हासिल
हो पाता है इतने
विप्लवकारी
संघर्ष के बाद ?
फिर किसलिए
इतना झमेला !
विष के
इतने कड़वे घूँट
पीने के
बाद यदि
अमृत की
एकाध बूँद ही मिलना
नसीब
में हो तो फिर
उस
प्राप्य का मोल ही क्या !
इससे तो
प्यास ही भली !
चित्र - गूगल से साभार
साधना
वैद
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