Monday, December 24, 2018

महादेव की विडम्बना




महादेव तो बन गए कर के विष का पान
भला किसी का क्या किया ज़रा कहो श्रीमान !

भरे असुर संसार में धारे पद सम्मान
भोली जनता लुट रही आफत में है जान !

विष पीकर जग में भला मिला किसे है चैन
नीलकंठ बनते नहीं मुँद जाते हैं नैन !

चाहे जितने भी चलें धर्म नीति के बाण
विष मिलते ही रुधिर में खिंच जाते हैं प्राण !

आशुतोष कह कर तुम्हें ठग लेते हैं लोग
तुम्हें चढ़ा फल फूल खुद करें माल का भोग !

सुर नर मुनि जन नाम के गिनने को हैं आज
भाँति-भाँति के पाप से भरता जाय समाज !

क्या कर पाए देव तुम करके विष का पान
उच्श्रन्खल हो घूमते दानव क्या है भान ?

इससे तो कर डालते उसी वक़्त संहार
हल्का हो जाता तभी धरती माँ का भार !

वंश बेल जो बढ़ रही असुरों की है आज
उस पर गिर जाती तभी सदा-सदा को गाज !

अब भी कुछ बिगड़ा नहीं धारो हाथ त्रिशूल  
नेत्र खोल दो तीसरा इन्हें चटा दो धूल !

भगवन दुविधा त्याग के करो तुमुल जय घोष
सभी असुर औ’ दानवों के उड़ने दो होश !

सुन्दर स्वस्थ समाज की कर दो रचना आज
शुद्ध करो मन वचन से और सँवारो काज !  



साधना वैद   

  


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