महादेव तो बन गए कर के
विष का पान
भला किसी का क्या किया ज़रा कहो श्रीमान !
भरे असुर संसार में
धारे पद सम्मान
भोली जनता लुट रही
आफत में है जान !
विष पीकर जग में भला
मिला किसे है चैन
नीलकंठ बनते नहीं मुँद जाते हैं नैन !
चाहे जितने भी चलें धर्म
नीति के बाण
विष मिलते ही रुधिर
में खिंच जाते हैं प्राण !
आशुतोष कह कर
तुम्हें ठग लेते हैं लोग
तुम्हें चढ़ा फल फूल
खुद करें माल का भोग !
सुर नर मुनि जन नाम के
गिनने को हैं आज
भाँति-भाँति के पाप से
भरता जाय समाज !
क्या कर पाए देव तुम
करके विष का पान
उच्श्रन्खल हो घूमते
दानव क्या है भान ?
इससे तो कर डालते
उसी वक़्त संहार
हल्का हो जाता तभी
धरती माँ का भार !
वंश बेल जो बढ़ रही
असुरों की है आज
उस पर गिर जाती तभी
सदा-सदा को गाज !
अब भी कुछ बिगड़ा
नहीं धारो हाथ त्रिशूल
नेत्र खोल दो तीसरा
इन्हें चटा दो धूल !
भगवन दुविधा त्याग के
करो तुमुल जय घोष
सभी असुर औ’ दानवों
के उड़ने दो होश !
सुन्दर स्वस्थ समाज
की कर दो रचना आज
शुद्ध करो मन वचन से
और सँवारो काज !
साधना वैद
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