Thursday, November 28, 2019

आये थे तेरे शहर में



आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
लौटे हैं तेरे शहर से अनजान की तरह !

सोचा था हर एक फूल से बातें करेंगे हम,
हर फूल था मुझको तेरे हमनाम की तरह !

हर शख्स के चहरे में तुझे ढूँढते थे हम ,
वो हमनवां छिपा था क्यों बेनाम की तरह !

हर रहगुज़र पे चलते रहे इस उम्मीद पे,
यह तो चलेगी साथ में हमराह की तरह !

हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
भटका किये हर राह पर गुमनाम की तरह !

अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
जब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !

तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !

साधना वैद

Thursday, November 21, 2019

टुकड़ा टुकड़ा आसमान




अपने सपनों को नई ऊँचाई देने के लिये
मैंने बड़े जतन से टुकड़ा टुकड़ा आसमान जोड़ा था
तुमने परवान चढ़ने से पहले ही मेरे पंख
क्यों कतर दिये माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
  
अपने भविष्य को खूबसूरत रंगों से चित्रित करने के लिये
मैने क़तरा क़तरा रंगों को संचित कर
एक मोहक तस्वीर बनानी चाही थी
तुमने तस्वीर पूरी होने से पहले ही
उसे पोंछ क्यों डाला माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने जीवन को सुख सौरभ से सुवासित करने के लिये
मैंने ज़र्रा ज़र्रा ज़मीन जोड़
सुगन्धित सुमनों के बीज बोये थे
तुमने उन्हें अंकुरित होने से पहले ही
समूल उखाड़ कर फेंक क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

और अगर हूँ भी तो क्या यह दोष मेरा है ?

साधना वैद


मेरी बिटिया


प्यारी बिटिया मुझको तेरा ‘मम्मा-मम्मा’ भाता है,

तेरी मीठी बातों से मेरा हर पल हर्षाता है !


दिन भर तेरी धमाचौकड़ी, दीदी से झगड़ा करना,
बात-बात पर रोना धोना, बिना बात रूठे रहना,
मेरा माथा बहुत घुमाते, गुस्सा मुझको आता है,
लेकिन तेरा रोना सुन कर मन मेरा अकुलाता है !

फिर आकर तू गले लिपट सारा गुस्सा हर लेती है,
अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा भर लेती है,
गालों पर पप्पी देकर तू मुझे मनाने आती है,
‘सॉरी-सॉरी’ कह कर मुझको बातों से बहलाती है !

उलटे-पुलटे बोलों में हर गाना जब तू गाती है ,
सबके मुख पर सहज हँसी की छटा बिखर सी जाती है,
तेरी चंचलता, भोलापन और निराला नटखटपन,
मेरे सुख की अतुल निधी हैं, देते हैं मुझको जीवन !

मेरी प्यारी, राजदुलारी, भोली सी गुड़िया रानी,
सारी दुनिया भर में तुझ सा नहीं दूसरा है सानी,
मेरे घर आँगन की शोभा, मेरी बगिया का तू फूल,
तेरे पथ में पुष्प बिछा कर मैं समेट लूँ सारे शूल !

मेरी नन्ही बेटी तू मेरी आँखों का नूर है,
मेरे जीवन की ज्योती, तू इस जन्नत की हूर है,
तुझ पर मेरी सारी खुशियाँ, हर दौलत कुर्बान है,
मेरी रानी बिटिया तू अपनी ‘मम्मा’ की जान है !

साधना वैद 

Monday, November 18, 2019

आर पार


आज भी खड़े हो तुम
उसी तरह मेरे सामने
एक मुखौटा अपने मुख पर चढ़ाए
नहीं समझ पाती
क्या छिपाना चाहते हो तुम मुझसे
क्यों ज़रुरत होती है तुम्हें
मुझसे कुछ छिपाने की !
जबकि प्रेम की सबसे बड़ी और
सबसे पहली शर्त होती है
पारदर्शिता, विश्वास और ईमानदारी !
इस मुखौटे के आर पार
तुम्हारा असली चेहरा देखने की
मैंने बहुत कोशिश की कई बार
लेकिन सफल न हो सकी !
तुम्हारी बातों से ,
तुम्हारे स्वरों के आरोह अवरोह से
तुम्हारे चहरे को कल्पना में देखा करती हूँ !
फिर तुम्हारे मुखौटे के आर पार
झाँक तुम्हारे असली चहरे से
उसे मिलाना चाहती हूँ !
बताओ ना यह मुखौटा
कब उतारोगे तुम ?
मुझे सत्य के दर्शन करने हैं !
तुम्हारा असली चेहरा देखना है मुझे
बिना किसी मुखौटे के !
बिना आर पार की इस
ताकाँ झाँकी के
ज़द्दोजहद के !
फिर वह सत्य कितना भी
कड़वा क्यों न हो !

साधना वैद

Thursday, November 14, 2019

आहट



कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !

घटाटोप अन्धकार में
आसमान की ऊँचाई से
मुट्ठी भर रोशनी लिये
किसी धुँधले से तारे की
एक दुर्बल सी किरण
धरा के किसी कोने में टिमटिमाई है !
कहीं यह तुम्हारी आने की आहट तो नहीं !

गहनतम नीरव गह्वर में
सुदूर ठिकानों से
सदियों से स्थिर
सन्नाटे को चीरती
एक क्षीण सी आवाज़ की
प्रतिध्वनि सुनाई दी है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !

सूर्य के भीषण ताप से
भभकती , दहकती
चटकती , दरकती ,
मरुभूमि को सावन की
पहली फुहार की एक
नन्हीं सी बूँद धीरे से छू गयी है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !

पतझड़ के शाश्वत मौसम में
जब सभी वृक्ष अपनी
नितांत अलंकरणविहीन
निरावृत बाहों को फैला
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
प्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !


साधना वैद

Tuesday, November 12, 2019

विडम्बना - एक लघुकथा

Image may contain: 4 people, people on stage

टी वी पर धारावाहिक ‘महाभारत’ का प्रसारण चल रहा था ! आज का प्रसंग द्रौपदी के चीर हरण का था ! मुझे यह एपीसोड विशेष रूप से पसंद है ! द्रौपदी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री का अभिनय भी कमाल का और संवाद तो बहुत ही बढ़िया ! जब द्रौपदी के आग्नेय प्रश्नों के सामने सभा में उपस्थित सभी विद्वान् निरुत्तर हो जाते हैं और माधव उसकी साड़ी बढ़ाते चले जाते हैं यह दृश्य भी मुझे विशेष प्रिय है ! सारा काम निबटा कर अपनी चाय का कप लेकर मैं इत्मीनान से टी वी के सामने आ बैठी !

द्रौपदी अपनी आँखें बंद कर गोविन्द का ध्यान कर रही है ! सारी सभा शोकमग्न और लज्जित दिखाई देती है बस दुर्योधन का क्रूर हास्य गूँज रहा है ! तभी मेरी काम वाली बाई रोनी शक्ल बना कर मेरे सामने आ खड़ी हुई ! कार्यक्रम में बाधा पड़ने से मैं खिन्न थी !
“क्या बात है ?” मैंने तिक्त स्वर में पूछा !
“कल रात फिर बेटे को तीन चार लौंडों के संग पुलिस ने पकड़ लिया ! छुड़ाने के लिए बहुत पैसे माँगते हैं ! आपकी मदद चाहिए ! ”
“अरे ! समझाती क्यों नहीं उसे ! जुआ खेलना कोई अच्छी बात है ?”
“सिखाती तो बहुत हूँ बहूजी पर कह देता है भगवान् भी तो खेलते थे ! वो तो अपना राज पाट, भाई, घरवाली सबको हार गए ! हम ऐसा तो नहीं करते ! सिर्फ हज़ार पाँच सौ का ही तो खेलते हैं !”
मैंने घबरा कर फ़ौरन टी वी बंद कर दिया !


साधना वैद

Saturday, November 9, 2019

ताशकंद यात्रा – ४



मेरा यात्रा वृत्तांत द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ा जा रहा है ! देखिये ना चौथे भाग पर आ गयी हूँ लेकिन अभी ताशकंद पहुँचने के बाद पहले दिन की शाम भी पूरी तरह से सुरमई नहीं हुई है ! क्या करूँ वहाँ इतना कुछ है बहुत ही खूबसूरत, देखा हुआ, समझा हुआ, सराहा हुआ कि समझ में ही नहीं आता मन में संचित किन स्मृतियों का सम्पादन करके उन्हें छोटा कर दूँ, किन्हें मिटा दूँ और किन्हें सेव करके सुरक्षित कर लूँ ! सच कहूँ तो ताशकंद शहर मेरी कल्पनाओं और प्रत्याशाओं से कहीं अधिक सुन्दर, आधुनिक, और शानदार निकला इसलिए मेरी प्रसन्नता अपने चरम पर थी ! अमेरिका और यूरोप के कई बड़े बड़े शहर देख कर भी ऐसी अनुभूति शायद इसलिए नहीं हुई थी कि वे इतने भव्य और आलीशान तो होंगे ही यह धारणा मन में कहीं अपनी जड़ें मजबूती से जमाये हुए थी ! ताशकंद लेकिन निश्चित तौर पर आशातीत निकला !

तो चलिए ताशकंद की सैर पर चलते हैं आगे ! संध्या हो चली थी ! व्हाईट मॉस्क देखने के बाद हम देखने गये ‘मोनुमेंट ऑफ़ करेज’ ! २६ अप्रेल १९६६ को ताशकंद शहर में रिक्टर स्केल पर ८.३ की तीव्रता से बहुत ही ज़बरदस्त भूकंप आया जिसका केंद्र ज़मीन के १० किलो मीटर्स अन्दर ठीक इसी स्थान के नीचे था जहाँ पर यह स्मारक बना हुआ है ! यह भूकंप इतना तीव्र था कि आधे से अधिक ताशकंदवासी बेघर हो गए और शहर पूरी तरह से तबाह हो गया ! मोनुमेंट ऑफ़ करेज के बहुत विशाल परिसर में एक बड़ी सी काली चट्टान पर एक स्त्री पुरुष और छोटे से एक बच्चे की बहुत ही भव्य मूर्ति बनी हुई है ! परिवार का मुखिया पुरुष अपने परिवार को हर विपदा से बचाने की मुद्रा में है ! वह अपने सीने पर प्रकृति का हर वार सहने के लिए तत्पर है ! उसके पीछे उसकी पत्नी है जिसकी पीठ पर एक नन्हा शिशु सवार है ! माँ अपने बच्चे को सुरक्षा देने के लिए चिंताग्रस्त है ! पत्थर से बनी इन मूर्तियों के चहरे पर जो भाव उकेरे गए हैं वे हृदय पर अमिट प्रभाव अंकित कर जाते हैं और उस दंपत्ति के लिए घनघोर पीड़ा मन में जागृत हो जाती है ! स्टेचू के सामने काले ग्रेनाईट का एक पत्थर है जिस पर एक तरफ भूकंप की तारीख २६ अप्रेल १९६६ अंकित है और एक तरफ घड़ी बनी हुई है जिस पर सुबह के पाँच बज कर २४ मिनट का समय अंकित है जिस समय यह भूकंप आया था ! पत्थर बीच में से चटका हुआ है जो भूकंप के कारण फटी हुई धरती का प्रतीक है ! यह बहुत ही सुन्दर स्थान है और उस वक्त यहाँ कई स्थानीय निवासी और उनके बच्चे सैर के लिए आये हुए थे ! एक युवा सी दिखने वाली स्थानीय महिला के साथ मेरा मुस्कराहट का आदान प्रदान हुआ ! मैं पहले भी बता चुकी हूँ कि वहाँ के लोग बहुत ही हँसमुख और मिलनसार हैं ! वे बहुत जल्दी हम लोगों के साथ घुलमिल जाते थे ! स्टेचू के नीचे दो छोटे छोटे बच्चे खेल रहे थे ! एक नौजवान उन बच्चों की देख रेख कर रहा था और उनको खेल खिला रहा था ! मैंने ऐसे ही उस महिला से पूछ लिया आपकी बेटियाँ है ? उसने बताया एक उसकी पोती है और दूसरी बच्ची पोती की सहेली है ! और जो नौजवान उन बच्चों को खिला रहा था वह उस महिला का बेटा था ! उस नौजवान सी दिखने वाली महिला को देख कर बिलकुल भी ऐसा नहीं लग रहा था कि उसका इतना बड़ा बेटा और पोते पोतियाँ होंगे ! बहुत खुशी हुई देख कर कि ताशकंद में लोग अपने स्वास्थ्य और रख रखाव के लिए इतने जागरूक हैं !

‘मोनुमेंट ऑफ़ करेज’ देखने के बाद हम एक और बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान देखने गए जिसका नाम है ‘इंडीपेंडेंस स्क्वेयर’ जिसे ‘मुस्तकलिक स्क्वेयर’ के नाम से भी जाना जाता है ! यह ताशकंद शहर के केंद्र में बना हुआ है ! यहाँ आते आते शाम गहराने लगी थी ! बहुत विशाल परिसर में यह स्थान स्थित है ! बड़े लम्बे लम्बे गलियारे ! चारों तरफ घनी हरियाली और खूबसूरत पेड़ ! गार्डन में दूब और पेड़ पौधों को पानी से सींचने के लिए जगह जगह चलते स्प्रिन्कलर्स और शीतल जल की सुहानी फुहार के मदमस्त झोंके ! सब कुछ बहुत भला लग रहा था ! सैर के लिए ताशकंद वासियों का यह सबसे पसंदीदा स्थान है ! यहाँ बहुत ही खूबसूरत फव्वारे हर वक्त चलते रहते हैं जो इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं !

यहाँ पर उज्बेकिस्तान की सीनेट का बहुत सुन्दर भवन है और उसके आस पास सभी महत्वपूर्ण सरकारी दफ्तर भी हैं ! सारे सरकारी समारोह यहाँ आयोजित किये जाते हैं ! रूसी शासन काल में यहाँ लेनिन की मूर्ति लगी हुई थी और इस स्थान का नाम लेनिन स्क्वेयर था लेकिन सन १९९१ में जब उज्बेकिस्तान स्वतंत्र हो गया तो सन १९९२ में लेनिन की मूर्ति हटा कर यहाँ एक गोल्डन ग्लोब स्थापित किया गया जिसमें उज्बेकिस्तान का नक्शा उकेरा गया है ! इसी स्तम्भ पर एक प्रसन्न वदन स्त्री की मूर्ति बनी हुई है जिसकी गोद में एक बच्चा है ! यह स्त्री सुखी मातृभूमि की और बच्चा देश के भविष्य का प्रतीक है ! ९ मई और नए साल पर यहाँ फूल अर्पित करने की प्रथा है जिसके लिए सभी ताशकंद वासी नियम से यहाँ आते हैं !
इंडीपेंडेंस स्क्वेयर के पास जो पार्क है वह बहुत ही खूबसूरत है और देखने लायक है ! पार्क के केंद्र में व्यथित मातृभूमि की एक बहुत ही भव्य प्रतिमा रखी हुई है जो बहुत उदास है और उसकी आँखों में आँसू भरे हुए हैं ! यह उदास माँ अपने उन बहादुर बेटों का इंतज़ार कर रही है जो देश की खातिर अपनी जान कुर्बान करने गए थे और फिर लौट कर नहीं आये ! युद्ध भूमि से लौट कर आने वाले सैनिकों को राह दिखाने के लिए इस स्थान पर नीचे शाश्वत आग जलती रहती है ! यह स्मारक उन बहादुर सैनिकों की याद में बनाया गया है जो दूसरे विश्व युद्ध में अपने देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए ! हमारे गाइड ने हमें बताया कि उन दिनों उज्बेकिस्तान की आबादी बहुत कम थी ! और उनमें से भी छ: लाख सैनिकों को युद्ध में लड़ने के लिए भेजा दिया गया ! जिनमें से केवल दो लाख सैनिक ही लौट कर आये ! इस पार्क के एक बरामदे में धातु से निर्मित अनेकों बड़ी बड़ी किताबें दीवारों पर लटकाई गयी हैं जिनमें उन सैनिकों के नाम लिखे हुए हैं जो अपने देश के लिए शहीद हो गए और लौट कर नहीं आये ! बहुत ही भावुक कर देने वाला प्रसंग था ! भरे मन से हम वहाँ से लौटे !
हमारा उस दिन का आख़िरी पड़ाव आमिर तैमूर स्क्वेयर था ! यहाँ आमिर तैमूर की घोड़े पर सवार बहुत ही भव्य प्रतिमा बनी हुई है ! ताशकंद का यह केन्द्रीय स्थल है ! हमारा होटल ग्रैंड प्लाज़ा, होटल उज्बेकिस्तान सब इसीके आस पास ही हैं ! कहीं भी जाना हो तो इस स्क्वेयर से गुज़रना लाजिमी होता था ! सुबह से कई बार इसे देखा था इसलिए रात को वहाँ बस से उतरे नहीं ! रात के भोजन का समय भी हो रहा था ! सुबह समरकंद के लिए भी निकलना था ! इसलिए यही तय हुआ कि खाना खाकर ही होटल जाया जाए ताकि समय से सब सो सकें और सुबह की यात्रा के लिए तरोताज़ा उठ सकें !

रात का खाना खाने जिस होटल में गए वहाँ पहुँचते ही कई प्रकार की ड्रिंक्स और कोल्ड ड्रिंक्स के साथ कुछ स्नैक्स भी सर्व किये गए ! दिन भर घूम घूम कर थक भी चुके थे और भूख भी लग आई थी ! 
गरमागरम स्नैक्स बड़े स्वादिष्ट लग रहे थे ! हमारे ग्रुप का वेजीटेरियन खाना बनने में शायद देर थी ! होटल में आने वाले शाम के नियमित ग्राहकों की संख्या बढ़ती जा रही थी ! बाहर हॉल में बार बालाओं का डांस आरम्भ हो चुका था ! वहाँ काफी लोग थे ! होटल का स्टाफ उन्हें भोजन सर्व करने में व्यस्त था ! हमारा काम तो उन स्नैक्स से ही चल गया था ! जिन्हें ज़रुरत थी उन्होंने हॉल के खाने से ही निरामिष भोजन चुन कर अपना काम चला लिया ! सब थके हुए थे और जल्दी सोना चाहते थे ! सबको सुबह का इंतज़ार था ! सुबह ठीक सात बजे समरकंद जाने के लिए बुलेट ट्रेन में सवार हो जाना था ! उससे पहले नहा धोकर तैयार भी होना था और नाश्ता भी कर लेना था !

होटल पहुँच कर जल्दी ही सो गए हम भी ! संस्मरण लिखते लिखते बहुत रात हो गयी है यहाँ भी ! अब मैं भी सोने जाती हूँ ! आपके साथ हमारी अगली मुलाकात होगी समरकंद के संस्मरणों के साथ ! तब तक के लिए आज्ञा दें ! नमस्कार !

साधना वैद

Friday, November 8, 2019

मौन



मेरे मौन को तुम मत कुरेदो !
यह मौन जिसे मैंने धारण किया है
दरअसल मेरा कम और
तुम्हारा ही रक्षा कवच अधिक है !
इसे ऐसे ही अछूता रहने दो
वरना जिस दिन भी
इस अभेद्य कवच को
तुम बेधना चाहोगे
मेरे मन की प्रत्यंचा से
छूटने को आतुर
उलाहनों उपालम्भों
आरोपों प्रत्यारोपों के
तीक्ष्ण बाणों की बौछार
तुम सह नहीं पाओगे !
मेरे मौन के इस परदे को
ऐसे ही पड़ा रहने दो
दरअसल यह पर्दा
मेरी बदसूरती के
अप्रिय प्रसंगों से कहीं अधिक
तुम्हारी मानसिक विपन्नता की
उन बदरंग तस्वीरों को छुपाता है
जो उजागर हो गयीं
तो तुम्हारी कलई खुल जायेगी
और तुम उसे भी कहाँ
बर्दाश्त कर पाओगे !
मेरे मौन के इस उद्दाम आवेग को
मेरे मन की इस
छिद्रविहीन सुदृढ़ थैली में
इसी तरह निरुद्ध रहने दो
वगरना जिस भी किसी दिन
इसका मुँह खुल जाएगा
मेरे आँसुओं की प्रगल्भ,
निर्बाध, तूफानी बाढ़
मर्यादा के सारे तट बंधों को
तोड़ती बह निकलेगी
और उसके साथ तुम्हारे
भूत भविष्य वर्त्तमान
सब बह जायेंगे और
शेष रह जाएगा
विध्वंस की कथा सुनाता
एक विप्लवकारी सन्नाटा
जो समय की धरा पर
ऐसे बदसूरत निशाँ छोड़ जाएगा
जिन्हें किसी भी अमृत वृष्टि से
धोया नहीं जा सकेगा !
इसीलिये कहती हूँ
मेरा यह मौन
मेरा कम और तुम्हारा
रक्षा कवच अधिक है
इसे तुम ना कुरेदो
तो ही अच्छा है !

चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद

Wednesday, November 6, 2019

ताशकंद यात्रा - ३



तारीख - २५ अगस्त २०१९ 

छूटे हुए सिरों को दोबारा से समेट कर लिखना बहुत मुश्किल हो जाता है ! दीपावली के त्यौहार की व्यस्तता, मेहमानों का आवागमन, घरों में बढ़े हुए अतिरिक्त कामों के कारण तन मन पर छाई थकन और शिथिलता कुछ भी लिखने की इजाज़त नहीं दे रहे थे ! कम्प्यूटर की चेयर पर बैठते ही नींद के झोंके आने लगते और सारा काम धरा रह जाता ! लेकिन ज़ेहन में सभी कुछ बिलकुल उसी तरह सुरक्षित है जैसे कल की ही बात हो ! इसीलिये आज फिर इस संस्मरण को लिखने बैठ गयी हूँ !

सुबह के सम्मलेन की साहित्यिक गतिविधियों का खुमार अभी तक दिलो दिमाग पर छाया हुआ था ! साहित्यिक सत्र इतना स्तरीय और शानदार चल रहा था कि उठने का मन ही नहीं हो रहा था लेकिन साईट सीइंग के लिए हमारे गाइड और बस दोनों ही आ चुके थे और हमें इस बीच लंच की औपचारिकता भी पूरी करनी थी ! हमारी ग्रुप लीडर और विश्व मैत्री मंच की अध्यक्षा श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी ने निर्णय लिया कि साहित्यिक सत्र का दूसरा भाग जिसमें सदस्यों को अपनी लघु कथा और कविताओं का पाठ करना था किसी और दिन रख लेंगे !

सब जल्दी जल्दी अपने कमरों में गए ! अपने हाथों का अतिरिक्त सामान कमरों में रखा कपड़े बदले और भोजन की औपचारिकता निभा कर जल्दी से बस में जा बैठे ! अब सच में ताशकंद शहर की रोमांचक यात्रा आरम्भ होने जा रही थी ! लेकिन साईट सीइंग से पहले सबको अपने डॉलर्स को उज़बेकिस्तान की स्थानीय करेंसी में बदलवाना था ! उसके लिए हमें होटल उज़बेकिस्तान जाना था जहाँ यह सुविधा उपलब्ध थी ! लगभग सभी लोगों को अपना मनी कन्वर्ट कराना था इसलिए वहाँ कुछ देर लगी ! जब तक पतिदेव होटल में अपने डॉलर्स वहाँ की स्थानीय करेंसी सोम में बदलवाने में व्यस्त थे मैं बस से उतर कर उस शानदार होटल और उसके आस पास के खूबसूरत नजारों को कैमरे में कैद करने लगी ! जी हाँ दोस्तों उज़बेकिस्तान की करेंसी का नाम है सोम ! १००० सोम के नोट का मूल्य भारत के लगभग १० रुपये के बराबर होता है ! वहाँ के स्थानीय बाज़ार में १०००० सोम को अमेरिकन एक डॉलर के बराबर मान कर सौदा करते हैं दुकानदार जबकि वास्तविक मूल्य १०००० सोम से कुछ कम ही होता है ! दिन का समय था लेकिन ताशकंद का मौसम बहुत खुशगवार था ! एकदम साफ़ सुथरा शहर, बिलकुल शांत वातावरण, ना भीड़ भाड़ ना वाहनों का कोलाहल, सामने होटल उज़बेकिस्तान की बहुत ही खूबसूरत शानदार इमारत और रंग बिरंगे सुन्दर फूलों से महकते बगीचे ! बगीचे में मोर सारस आदि की सुन्दर मूर्तियाँ ! सब कुछ एक सुन्दर चित्र की तरह मनमोहक !

ताशकंद में साईट सीइंग के लिए हमारा सबसे पहला स्थान था हमारे देश के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का स्मारक, जिनका स्वर्गवास ११ जनवरी, १९६५ को ताशकंद में ही हुआ था ! जिन संदेहास्पद स्थितियों में उनकी मृत्यु हुई वह रहस्य आज तक खुल नहीं सका लेकिन अपने अल्प कार्यकाल में ही वे देश की जनता के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ने में कामयाब हुए थे ! शास्त्री जी की बहुत ही आकर्षक एवं भव्य मूर्ति एक स्तम्भ पर रखी हुई है ! इस स्थान का नाम शास्त्री स्क्वेयर है और इस सड़क का नाम शास्त्री जी की याद में शास्त्री स्ट्रीट रखा गया है ! विदेश की भूमि पर अपने देश के इस रत्न का यह सम्मान और  कद देख कर मन अपरिमित गर्व से भर उठा ! ग्रुप के सभी साथियों ने शास्त्री जी की मूर्ति के साथ अपनी अपनी तस्वीरें खींचीं और खिंचवायीं ! पहला ही पड़ाव मन को तृप्त कर गया !

हमारा अगला पड़ाव था मेमोरियल ऑफ़ रिप्रेशन ! यह खूबसूरत स्मारक ३१ अगस्त २००२ में उन शहीदों की याद में बनाया गया जिन्होंने उज़बेकिस्तान के स्वतंत्र होने से पहले बहुत संघर्ष किया, अत्याचार सहे और क्रूर शासकों की दमन नीतियों के चलते जिन्हें बड़ी यातनाएं देकर मार दिया गया ! जो हाल यहूदियों का जर्मनी में हुआ यातनाओं के लगभग वैसे ही दौर से उज़बेकिस्तान के बाशिंदे भी गुज़रे ! इस स्थान पर जब म्यूज़ियम बनाने के लिए तैयारियाँ चल रही थीं तो क्रांति के दौरान मारे गए अनेक लोगों की कब्रें यहाँ मिली ! यह स्मारक आमिर तैमूर स्ट्रीट पर ताशकंद टी वी टॉवर के सामने बना हुआ है और अन्होर नहर इसके बगल से बहती है ! नहर का बिलकुल साफ़ नीला पानी आँखों को बड़ी ठंडक पहुँचा रहा था ! म्यूज़ियम तो उस दिन बंद था लेकिन हम गार्डन और उसमें बनी छतरी को देख देख कर ही मुग्ध होते रहे ! बड़ा खुशगवार मौसम था ! उस दिन पार्क में कई नव विवाहित जोड़े मौजूद थे ! सफ़ेद गाउंस में दुल्हनें बहुत सुन्दर लग रही थीं ! उनका फोटो सेशन चल रहा था ! उन्होंने बड़ी प्रसन्नतापूर्वक हमारे कैमरे के लिए भी आकर्षक पोज़ दिए और वीडियो रिकॉर्डिंग भी करने दी ! पार्क की लोकेशन बहुत सुन्दर है ! वहाँ उस दिन बहुत लोग मौजूद थे !

अगला स्थान जो हमने देखा वह था व्हाईट मॉस्क ! उज्बेकिस्तान एक मुस्लिम बहुत देश है ! यहाँ दर्शनीय स्थलों में मकबरे, मस्जिदें और मदरसे ही अधिक हैं ! लेकिन वे भी इतने सुन्दर और आलीशान हैं कि नज़रें हटना ही नहीं चाहतीं उनसे ! सदियों पुराने मदरसों और मकबरों का भी रख रखाव इतना बढ़िया है कि देखते ही बनता है ! व्हाईट मॉस्क सफ़ेद संगमरमर से बनी हुई है और इसमें नीले कीमती पत्थरों से इनले वर्क किया गया है जो बहुत ही खूबसूरत है ! आस पास बहुत खुली जगह ! पार्किंग के लिए बहुत बड़ा स्थान सुरक्षित ! ना कहीं भीड़ ना लोगों का जमघट ! सब कुछ एकदम व्यवस्थित शांत एवं अनुशासित ! अज्ञानतावश हम मस्जिद के अन्दर चले गए ! बहुत विशाल हॉल था अन्दर का और बहुत ऊँची और बेशकीमती कारीगरी से बनी हुई उसकी सुन्दर गुम्बद थी ! पूरे हॉल में नमाज़ियों के लिए कालीन बिछे हुए थे ! और कई लोग नमाज़ पढ़ भी रहे थे ! हमें इशारे से बताया गया कि मस्जिद के अन्दर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है ! हम तुरंत ही बाहर आ गए लेकिन अन्दर का नज़ारा तो आँखों में भर ही लिया था ! हमारे गाइड जायद ने हमारे लिए अन्दर की फ़ोटोज़ भी खींच कर ला दीं और एक खूबसूरत सा वीडियो भी बना दिया !

पोस्ट काफी बड़ी हो गयी है ! आप सब पढ़ते पढ़ते थक गए होंगे ! ताशकंद के अन्य स्थानों की सैर अगली कड़ी में ! तब तक के लिए आज्ञा दें ! नमस्कार !


साधना वैद

Saturday, November 2, 2019

सूरज दादा - बाल गीत




छिप बादल की ओट गगन में चमक रहे हैं 
सूरज दादा आज खुशी से चहक रहे हैं 
भोला सा यह रूप भानु का प्यारा लागे 
धुप छाँह का जाल जगत में न्यारा लागे !

जब जब भी पंछी दल उड़ कर ऊपर जाते 
सूरज दादा हँस-हँस कर उनसे बतियाते 
गूँज रहा उनके कलरव से कोना-कोना 
भाता हमको सूरज का यह रूप सलोना !

कभी-कभी है उनको गुस्सा भी आ जाता 
तब धरती का हर प्राणी है जल सा जाता 
लेकिन जब कौतुक करने का मन आता है 
नभ में सुन्दर इन्द्रधनुष इक छा जाता है ! 



साधना वैद