वादा तो किया
था तुमने
ताउम्र साथ
चलने का
प्यार की बारिश
में
साथ-साथ भीगने
का
दर्द के सहरा
में
साथ-साथ जलने
का !
कोई बात नहीं
तुम भूल गए तो
आज भी मेरे
हमराह
कुछ तो है
तुम्हारा दिया
जो लम्हा दर
लम्हा
कदम दर कदम
मेरे साथ-साथ
चलता है
न जाने क्यों
जैसे तुम साथ
हो मेरे
इस मीठे से भरम
से
ज़िंदगी का हर
पल
मुझे रात दिन
छलता है !
एक शिद्दत भरा
एहसास
तुम्हारी चुभती
बेवफाई का
मेरी चीरती रुसवाई
का
जान खींचती तुम्हारी
खामोशी का
दम घोंटती मेरी
तन्हाई का
मेरे दिल ओ
दिमाग में पलता है !
क्या हुआ जो
तुम नहीं हो साथ
हर पल लहूलुहान
करतीं
तुम्हारी यादें
तो हैं मेरे हमराह !
मंज़िले मक़सूद
तक
पहुँचने के लिए
इतने हमसफ़र
काफी हैं !
शुक्रिया दोस्त
तुम्हारे इस
करम के लिए !
साधना वैद