Wednesday, October 22, 2025

यम द्वितीया

 



यम द्वितीया पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 

वरदानी माँ

शरण में हूँ तेरी  

कल्याण कर ! 

                                                                           

ज्योति का पर्व

दीप से दीप जले

हृदय मिले !

                                                                                                                                                           
 दीप जलाओ 

 
अंधकार मिटाओ

पर्व मनाओ !

                                                                       

रंगों से खेलो

अल्पना के बूटों से

द्वार सजाओ !

                                         

थाल सजाओ 

यम द्वितीया पर्व 

टीका लगाओ 


उज्जवल हो 

यशस्वी, दीर्घायु हो 

जीवन भैया 


यही कामना 

बहन हृदय में 

दोहराती है 

                                                                             

ज्योतित मन

ज्योतित हो आँगन

शुभ दीवाली




साधना वैद

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Wednesday, October 15, 2025

सड़कों पर यातायात की समस्या

 



आज हम एक ऐसी समस्या पर परिचर्चा करने जा रहे हैं जिससे हम सभी प्रतिदिन जूझते हैं और सड़कों के ट्रैफिक से हैरान परेशान थके माँदे शाम को जब घर पहुँचते हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई जंग लड़ कर आये हैं ! न मन में उत्साह बाकी रहता है न ही खुशी ! सड़कों पर यातायात बढ़ने के अनेक कारण हैं ! सिलसिलेवार अगर हम इनका विश्लेषण करें तो कई बातें सामने निकल कर आएँगी ! आज से पचास साठ साल पुराने समय में ही हम लौट जाएं तो पायेंगे कि उन दिनों लोगों के पास आवागमन के लिए प्राय: साइकिल हुआ करती थी वह भी कार्यालय जाने वाले मर्दों के लिए ! बच्चे या महिलाएं तो अक्सर पैदल ही चले जाया करते थे स्कूल या बाज़ार हाट के लिए ! शहर में कारें गिने चुने धनाढ्य लोगों के पास हुआ करती थीं ! हमारे शहर या गाँव की सड़कें भी उसी यातायात के अनुकूल होती थीं पतली और सँकरी ! फिर स्कूटर और मोटर साइकिलों का ज़माना आ गया ! लोगों को रफ़्तार भी चाहिए थी और स्कूल कॉलेज की दूरियाँ भी बढ़ गयी थीं ! जनसंख्या का दबाव बढ़ा तो उन्हीं घरों में अतिक्रमण होने लगा और सड़कें घेर कर घर और दूकानें बढ़ा दी गईं ! लोगों की आमदनी बढीं तो जीवनस्तर भी बढ़ा ! अब स्कूटर, मोटर साइकिलें छात्रों के मतलब की रह गईं और वयस्क लोगों को कारें पसंद आने लगीं ! शहर वही रहा ! सड़कें वही रहीं लेकिन आवागमन के साधनों का साइज़ बढ़ गया परिणाम यह हुआ कि सडकों पर ट्रेफिक जाम होना आम बात हो गयी ! शहरों में नई कॉलोनीज़ भी बनीं. सड़कें भी चौड़ी की गईं लेकिन कारों की संख्या हर घर में बढ़ने लगी ! अब तो यह आलम है कि कई घरों में हर सदस्य के पास अपनी अलग कार है ! जिन घरों में साइकिल रखने की जगह नहीं थी उनके यहाँ कारें आ गईं ! घर में तो गैरेज बनाने की जगह नहीं है इसलिए कारें सड़कों पर पार्क होने लगीं और सड़क घेरने लगीं ! सड़कें पहले से भी पतली हो गईं ! यातायात में तो असुविधा होना लाज़मी है !

दूसरा बड़ा कारण है कि सड़क पर मिला जुला ट्रेफिक चलता है ! कायदे की व्यवस्था नहीं है ! एक ही सड़क पर कार, सिटी बस, स्कूटर, मोटर साइकिल, ऑटो रिक्शा, साइकिल रिक्शा, और पैदल चलने वाले, सभी एक साथ चलते हैं ! इसीलिये दुर्घटनाएं आम बात हो चुकी हैं और इनकी वजह से सड़कों पर बड़ी अफरा तफरी मची रहती है !

लोग ट्रेफिक नियमों के बारे में जागरूक नहीं हैं ! अपने आगे निकलने की होड़ में कहीं से भी घुस कर आगे निकलना चाहते हैं ! लोगों को ओवरटेक किस तरफ से करना चाहिए इसकी जानकारी नहीं है ! पैदल चलने वालों को जेब्रा क्रॉसिंग से सड़क पार करनी चाहिए यह ठीक से नहीं पता है ! अगर पता है भी तो वे दूर होने की वजह से चाहे जहाँ से सड़क पार करने लगते हैं और आवागमन बाधित होता है !

इस समस्या के समाधान के लिए लोगों को स्वयं ही जागरूक होना पड़ेगा तब ही कुछ हल निकलेगा ! सड़कों को पार्किंग के लिए न घेरें ! थोड़ी ही दूर जाना हो तो चौपहिया वाहनों का प्रयोग न करें ! घरों और दूकानों को आगे बढ़ा कर सड़कों पर अतिक्रमण न करें ! यातायात के नियमों का पालन करें और पड़ोसी धर्म निभा कर अगर एक ही स्थान पर जाना हो तो निजी वाहनों का प्रयोग न करके एक दूसरे के साथ चले जाएं ! इससे कुछ फर्क तो ज़रूर ही पड़ेगा !

साधना वैद

🙏🌹🌹🌹🙏


Monday, October 13, 2025

मुक्तक




 कब आओगे साजन मन के दीप जलाऊँ

व्रत है करवा चौथ हाथ मेंहदी लगवाऊँ

सबका चाँद तो दूर गगन में चमक रहा है

अपने चंदा का दर्शन कर अर्ध्य चढ़ाऊँ !



साधना वैद

Friday, October 10, 2025

त्रिभंगी छंद

 



ओ श्यामबिहारी, शरण तिहारी
जग तज आई, सुध लो ना !

है दूर किनारा, छुटा सहारा
तन मन हारा, आओ ना !

अब किसे पुकारूँ. किसे बुलाऊँ
कौन सुनेगा, बोलो ना !

तुम सा पथ दर्शक, विघ्न विनाशक
कहाँ जगत में, सच है ना !

तू बुला तो सही, मना तो सही
आ जाउंगा, वचन दिया !

दुःख दिखा तो सही, बता तो सही
सुख लाउंगा, वचन दिया !

तू अकेली नहीं, जगत में कहीं
संग रहूँगा, वचन दिया !


गीत गा तो सही, सुना तो सही
मैं गाउंगा, वचन दिया !  



साधना वैद

Monday, September 29, 2025

देवी माँ के दिव्यास्त्र

 



ओ माँ मेरी मुझको तुम खुद सा सम्पूर्ण बना दो
मार सकूँ असुरों को मैं सब अस्त्र शस्त्र पहना दो !


एक हाथ में महादेव से मिला त्रिशूल थमा दो
रजस
, तमस और सत्व गुणों की महिमा भी समझा दो !


जो तलवार मिली गणपति से वह भी मुझे दिला दो  
ज्ञान और बुद्धि की पैनी धार लगा चमका दो !


अग्नि देव से मिला तुम्हें जो भाला वह भी ला दो
ओ माँ शक्ति का प्रतीक यह अस्त्र मुझे दिलवा दो !


वज्र मिला जो इंद्र देव से वह भी मुझको दे दो
आत्म निरीक्षण कर लूँ अपना इतना मुझको बल दो !


हर बुराई से लड़ने का मुझमें विश्वास जगा दो  
मिले विश्वकर्मा से तुमको कवच कुल्हाड़ी ला दो !


माँ कृष्णा ने दिया तुम्हें जो चक्र सुदर्शन पहनूँ
रहूँ केंद्र में मैं इस जग के सबको निर्भय कर दूँ !


धनुष बाण जो पवन देव और सूर्य देव से पाए
उनकी दिव्य अलौकिक ऊर्जा देख असुर घबराए !


गदा
, शंख और खंजर से माँ शौर्य शक्ति वरना है,
सत्य धर्म के स्थापन का शंखनाद करना है !


दसों भुजाओं में माँ मुझको दिव्य अस्त्र पहना दो
,
प्राण प्रतिष्ठा कर मुझको भी खुद सा वीर बना दो !


इन अस्त्रों से मैं हर नारी को सबला कर दूँगी
,
उसके मन से भय और भ्रम का सारा तम हर लूँगी !

  
इस धरती को मुझे स्वर्ग सा पावन जो करना है,
इस जग के हर प्राणी की भव बाधा को हरना है !


जग जननी
, कल्याणकारिणी, सकल सुखों की दाता,   
करूँ वंदना तव चरणों में सिद्धि प्रदायिनी माता ! 


करूँ वंदना तव चरणों में सिद्धि प्रदायिनी माता ! 


चित्र - गूगल से साभार 



साधना वैद
 
 


Thursday, September 18, 2025

छोटे-छोटे सपने

 


रेल की खिड़की से देखती हूँ
रेलवे लाइन के समानांतर बसी
झुग्गी झोंपड़ी की एक लम्बी सी कतार
,
मेरे डिब्बे के ठीक सामने   
एक छोटी सी झोंपड़ी,
झोंपड़ी में एक छोटा सा कमरा
कमरे में एक नीचा सा दरवाज़ा
दरवाजे से सटी कपड़े के टुकड़े से
आधी ढकी एक छोटी सी खिड़की
और कमरे के नंगे फर्श पर
असंख्य छेदों वाली
मटमैली सी फटी बनियान पहने
लेटा वह सपनों में डूबा हुआ
एक कृशकाय नौजवान !
सोचती हूँ,
कितना छोटा सा होगा न संसार
इस घर में रहने वालों का !
लेकिन क्या सच में उनकी सोच
,
उनकी आशाएं
, उनकी इच्छाएं,
उनकी आकांक्षाएं
, उनके सपने,
उनकी अभिलाषाएं
उस सीमित संसार में ही
घुट कर रह गयी होंगी ?
मेरे लिए वह एक अनाम सी
छोटी झोंपड़ी भर नहीं है !
वह तो है एक आँख
और खिड़की पर टंगा
वह आधा पर्दा है
उस आँख की पलक !
जैसे अपनी पलक खोलते ही
हम देखते हैं समूचा आसमान
,
विशाल धरती
, पेड़-पौधे
नदी-पहाड़
, बाग़-बगीचे,
झील-झरने
, चाँद-सितारे,
पशु-पंछी और भी न जाने क्या-क्या !
इस छोटे से कमरे के
नंगे फर्श पर लेटा यह युवक भी
अपनी आँख खोलते ही
यही सब तो देखता होगा
जो मैंने देखा, तुमने देखा
,

सारी दुनिया ने देखा !
तो फर्क कहाँ रहा
उसके या हमारे सपनों के संसार में,
सपनों के आकार में,
और सपनों के साकार होने के
उपक्रम में ?
कोई बता दे मुझे !




चित्र - गूगल से साभार 
 


साधना वैद




Sunday, September 14, 2025

खामोश हो गई वो आवाज़

 



रात में किसी भी समय फोन की घंटी बज जाती है और मेरा दिल धड़क उठता है ! घबरा के फोन उठाती हूँ नाम देखती हूँ, आशा जीजी !
“क्या हुआ जीजी, सब ठीक तो है ?”
“हाँ सब ठीक है ! फोन में तेरी फोटो दिखी तो ऐसे ही लगा लिया !”
कुछ शान्ति मिली ! घड़ी देखी रात के दो बज रहे हैं !
“क्या कर रही थी तू?’
“ओफ्फोह जीजी ! रात के दो बज रहे हैं ! ज़ाहिर है इस समय सब सोते ही हैं ! मैं भी सो रही थी ! कुछ काम था ?”
“नहीं तेरी आवाज़ सुनने का मन हो रहा था ! फेसबुक पर तेरी कविता सुनी बहुत अच्छी लगी !”
“अरे तो यह सुबह बता देतीं ! डरा देती हो !”
“अच्छा ! चल सो जा अब !”
अगले दिन रात में साढ़े तीन बजे फिर घंटी बजी ! जीजी के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से फ़िक्र लगी रहती थी ! दौड़ के फोन उठाती हूँ !
“क्या हुआ जीजी ? नींद नहीं आ रही है क्या ? कोई परेशानी है ?”
“नहीं, कुछ हाइकु लिखे थे उन्हें देख लेना !”
“अच्छा ! अब सो जाओ मुझे भी नींद आ रही है !”
“कितनी देर तक सोती है ! अभी सुबह नहीं हुई तेरी !”
“अरे बाबा अभी सिर्फ साढ़े तीन बजे हैं ! आप भी सो जाओ और मुझे भी नींद आ रही है !”
ऐसे ही हफ्ते में तीन चार बार उनके फोन रात बिरात कभी भी आ जाया करते थे ! कभी उनकी मासूमियत पर प्यार आता था, कभी हँसी आती थी, कभी चिंता हो जाती थी ! कविता, हाइकु या आवाज़ सुनने का तो सिर्फ बहाना होता था ! क्या जीजी किसी गहन पीड़ा से गुज़र रही थीं ! कभी अपनी तकलीफ नहीं बताती थीं ! हमेशा उत्साह से लबरेज़, बेहद कर्मठ, बेहद ज़हीन, बेहद प्यार करने वाली मेरी जीजी की आवाज़ १३ सितम्बर की सुबह पाँच बजे हमेशा के लिए खामोश हो गयी ! इंदौर के सुयश अस्पताल में १२ दिन असह्य पीड़ा झेलने के बाद उन्होंने महाप्रस्थान के लिए अपने कदम स्वर्ग की राह पर मोड़ लिए ! नहीं जानती मैं सुकून भरी नींद अब कभी सो भी पाउँगी या नहीं ! लेकिन मुझे झकझोर कर उठाने वाली फोन की घंटी अब कभी नहीं बजेगी !
मेरी माँ समान बड़ी बहन श्रीमती आशा लता सक्सेना ने अपना आवास स्वर्ग की सुन्दर सी कोलोनी में बहुत पहले ही बुक करा लिया था ! काफी समय से बहुत अस्वस्थ चल रही थीं वे ! १३ सितम्बर का बृह्म मुहूर्त उन्होंने गृह प्रवेश के लिए चुना और अपने नए घर में रहने के लिए बड़ी शान्ति के साथ वे चुपचाप निकल गईं ! हमारी परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वे उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें और वहाँ उनके सारे कष्टों का अंत हो जाए ! तुम्हें बहुत याद करेंगे जीजी ! चाहे जब उज्जैन इंदौर के टिकिट बुक कराने की जिद पकड़ लेने की अब सारी वजहें ख़त्म हो गईं ! सच पूछो तो सर से ममता, प्यार और पीहर की छाँव और आश्वस्ति देने वाला आख़िरी पल्लू भी सरक गया ! अब कौन हमारे नाज़ नखरे उठाएगा, कौन लाड़ लड़ायेगा ! आज ऐसा लग रहा है जैसे हम फिर से अनाथ हो गए हैं ! बहुत याद आओगी जीजी ! जहाँ भी रहो सुख से रहना और मम्मी, बाबूजी, दादा, भाभी, जीजाजी सबको हमारा प्रणाम कहना ! सादर नमन और अश्रुपूरित भावभीनी श्रद्धांजलि !


साधना वैद

Friday, September 5, 2025

राम नवमी

 



राम नवमी
श्रीराम की नगरी

सजी अयोध्या


रामलला का
आज हुआ जनम
सरयू तीरे


श्रीराम जन्मे

हर्षित पुरवासी

उल्लास छाया

 

कुल गौरव
दशरथ नंदन

अनन्य राम

 

हर्षित जग
सुर नर किन्नर

बजी बधाई

 

उत्सव मना
जन्मे रघुनन्दन

गर्वित कुल

 

मन की खुशी
छिपाए न छिपती
भावों से भरी

राम नवमी
आया हर्ष का पल

सुखी अयोध्या

 

राम सा पुत्र
गर्वित रघुकुल

धन्य कौशल्या

 

राम सा सुत
दशरथ विभोर

धन्य रानियाँ

 

उदित हुआ
सूर्यवंश का मान

हमारा राम

 

गूँजा महल
राम की किलकारी

भू बलिहारी

 

 चित्र - गूगल से साभार 



साधना वैद

Friday, August 29, 2025

वर्ण पिरेमिड - पधारो जी महाराज

 




हे

देवा

गणेशा

करती हूँ

सर्वप्रथम

तुम्हारा वंदन

स्वीकारो अभ्यर्थना

मेरी पूजा अर्चना

पूर्ण करो मेरी

हर कामना

चढ़ाती हूँ

नेवैद्य

भक्ति

से 


हे

देवा

सुमुख

लम्बोदर 

गौरी नंदन

सिद्धि विनायक

विकट विघ्नहर्ता

करो दूर संकट

महा गणपति

मंगलमूर्ति

गणाध्यक्ष

आराध्य

मेरे

हो 

 

मैं

आई

शरण

विनायक

रखना लाज

ओ पालनहारे

निर्गुण और न्यारे 

तुम्हीं हो विघ्न हर्ता

जगत के स्वामी

हो अन्तर्यामी

सारी पीड़ा

भक्तों की

हर

लो


साधना वैद  





यादों के अलाव

 




क्या होगा मन में

यादों के अलाव जला के,

मन के घनघोर वीराने में सुलगे

अतीत की भूली बिसरी यादों के

इस अलाव से जो चिनगारियाँ निकलती हैं

वो आसमान के सितारों की तरह

प्यार की राह रोशन नहीं करतीं

दिल की दीवारों को जला कर उनमें

बड़े-बड़े सूराख कर देती हैं

जो वक्त के साथ धीरे-धीरे

नासूर में तब्दील हो जाते हैं !

कुछ दिनों तक अच्छा लगता है

इन बाँझ सपनों की जीना लेकिन  

जिस भी किसी दिन यह

मोहनिंद्रा भंग होती है और

यह रूमानी दिवास्वप्न टूटता है  

खुद को अगले ही पल

मोहोब्बत की सबसे ऊँची मीनार से

हकीकत की सख्त ज़मीन पर

गिरता हुआ पाते हैं और

यह दुःख तब और दोगुना हो जाता है  

जब देखते हैं कि उन ज़ख्मों पर

मरहम रखने वाला भी कोई  

आस पास नहीं है,

हैं तो सिर्फ चूर-चूर हुए 

उन दिवास्वप्नों की बिखरी हुई किरचें

जो तन, मन, आत्मा, चेतना सबको 

लहूलुहान कर जाती हैं !


साधना वैद

Friday, August 22, 2025

कान्हा आए - माहिया

 



नंदलाला घर आए 

यमुना धन्य हुई 

पुरवासी हर्षाए !

 

नंदबाबा पुलकित हैं

धूम मची जग में 

जसुदा के मुख स्मित है ! 

 

मैया माखन लाए 

नटखट बाल किशन 

खाने को ललचाए !


कान्हा पर सब खीझें 

मटकी फूट गई

मन ही मन पर रीझें ! 


कान्हा तुम आ जाओ 

यमुना तीर खड़ी 

बंसुरी सुना जाओ  ! 


सखियाँ भी आयेंगी 

झूला झूलेंगी 

नाचेंगी गायेंगी ! 


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद 

Wednesday, August 13, 2025

दरार - एक लघुकथा

 



आज रक्षा बंधन का त्योहार है ! असलम के पैर धीरे-धीरे अपने प्रिय दोस्त विशाल के घर की तरफ बढ़ रहे थे ! सालों से उसकी बहन प्रतिभा विशाल के साथ-साथ उसे भी बड़े प्यार से राखी बाँधती आ रही है ! विशाल की माँ ने भी हमेशा असलम को अपने बेटे की तरह ही माना है ! हर ईद पर वे असलम और उसकी छोटी बहन सबा के लिए मिठाई और उपहार देना कभी नहीं भूलीं लेकिन इस बार पहलगाम के आतंकी हमले के बाद विशाल के घर में असलम का पहले सी गर्मजोशी के साथ स्वागत होना बंद हो गया था ! प्रकट रूप से किसीने कुछ कहा नहीं लेकिन व्यवहार में आया ठंडापन बिन कहे भी बहुत कुछ कह जाता था !
दरवाज़े पर पहुँच कर असलम ने कॉल बेल का बटन दबा दिया ! विशाल ने ही दरवाज़ा खोला ! माथे पर तिलक और कलाई पर सुन्दर सी राखी जगमगा रही थी !
“अरे, राखी बँध भी गई
? मुझे आने में देर हो गई क्या ?” असलम ने अपनी मायूसी को छिपाते हुए परिहास करते हुए कहा !
“कहाँ है प्रतिभा ? जल्दी से बुला लो उसे ! मुझे भी बाँध दे राखी ! आज अम्मी को नर्सिंग होम ले जाना है दिखाने के लिए !”
“अरे तो वही काम पहले करो न !” विशाल की माँ बोली ! “राखी का क्या है ! बाद में भी बँध सकती है ! अभी तो प्रतिभा को भी जाना है अपनी सहेली के यहाँ ! तुम पहले अपनी अम्मी को दिखा आओ !”
असलम संबंधों में आई दरार को शिद्दत से महसूस कर रहा था ! विशाल की माँ के लिए अम्मी की बीमारी की बात ढाल का काम कर रही थी ! वे चोर निगाहों से अन्दर कमरे की ओर देख रही थीं कहीं प्रतिभा बाहर न आ जाए !
तभी राखी की सजी हुई थाली हाथ में लिए प्रतिभा ने कमरे में प्रवेश किया !
“ओफ्फोह, कितनी देर लगा दी असलम भैया ! आप जानते तो हैं मैं जब तक आपको राखी नहीं बाँध लेती पानी भी नहीं पीती !” मिठाई का टुकड़ा असलम को खिलाते हुए प्रतिभा की आवाज़ रुँध गयी थी ! असलम की आँखें में भी नमी आ गई थी ! आकाश में धुंध को चीर कर धूप निकल आई थी !  

साधना वैद   


Sunday, August 10, 2025

नौकरी करने वाली महिलाओं की समस्याएँ

 




आज की सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था में यह एक बहुत ही ज्वलंत समस्या है ! यह एक निर्मम यथार्थ है कि नौकरी करने वाली कामकाजी महिलाओं पर दोहरी ज़िम्मेदारी होती है और उन्हें घर की जिम्मेदारियों के साथ अपने कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारियों को भी निभाना पड़ता है !

अभी भी हमारे पुरुष प्रधान समाज में घर गृहस्थी के सारे कामों का दायित्व स्त्री पर ही होता है ! घर में खाना बनाना हो, मेहमानों की आवभगत करनी हो, बच्चों की लिखाई पढ़ाई हो या घर परिवार में किसी की बीमारी हारी की समस्या हो ! पतिदेव अपनी ज़िम्मेदारी पैसों की व्यवस्था करना या बाज़ार हाट का थोड़ा बहुत काम कर देने तक ही समझते हैं ! बाकी सारे कामों का दाइत्व स्त्री को ही निभाना पड़ता है ! अगर कहीं चूक हो जाती है तो घर में असंतोष और क्लेश का वातावरण बन जाता है ! जहाँ संयुक्त परिवार अभी भी अस्तित्व में हैं वहाँ परिवार की अन्य महिलाएं कुछ सहायता कर देती हैं लेकिन वह भी अक्सर एहसान की तरह ! जिसकी वजह से अक्सर सम्बन्ध खराब हो जाते हैं !

संपन्न घरों में सहायता के लिए नौकर रख लिए जाते हैं लेकिन अक्सर उन घरों में चोरी इत्यादि के समाचार भी सुनने में आते हैं ! बच्चों की परवरिश पर भी बुरा असर पड़ता है और बच्चे उस प्यार और परवरिश से वंचित रह जाते हैं जो एक माँ उन्हें दे सकती है ! कभी काम से खीझ कर या कभी बच्चों की जिद या असहयोग से चिढ कर नौकर अक्सर बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करने लगते हैं ! उनके साथ गाली गलौज की भाषा का प्रयोग करते हैं जिसकी वजह से बच्चे भी गंदी आदतें और गंदी भाषा का प्रयोग करना सीख जाते हैं ! काम के बोझ से त्रस्त माता-पिता भी अपने अपराध बोध की क्षतिपूर्ति के लिए बच्चों की हर जिद पूरी करने का प्रयास करते हैं जिसकी वजह से बच्चे जिद्दी और उद्दंड हो जाते हैं ! नौकरों के हाथ का बना खाना पसंद न आने पर वे बाहर से खाना ऑर्डर करके मँगवाने लगते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है ! बच्चों को न तो अच्छे संस्कार मिलते हैं, न स्वास्थ्यवर्धक भोजन, न ही उचित परवरिश !
रुग्ण मानसिकता वाले परिवारों में कामकाजी महिलाओं के चरित्र पर भी संदेह किया जाता है और ऑफिस के काम में देर हो जानी वजह से घर पर उनके काम का बोझ और अधिक बढ़ा दिया जाता है !
कामकाजी स्त्रियों को भी स्कूल या ऑफिस के लिए समय पर ही निकलना होता है ! जहाँ पुरुष को उनके हाथों में चाय नाश्ता, खाना, कपड़े आदि थमाए जाते हैं वहीं स्त्री को ये सारे काम परिवार के बाकी सदस्यों के लिए भी करना पड़ता है और अपने खुद के लिए भी ! अगर न कर पाए तो उसी दिन सबका मूड खराब हो जाता है !
यह समस्या तो विकट है लेकिन इसका समाधान यही है कि पति व परिवार के अन्य सदस्यों को अपनी सोच को थोड़ा बदलना चाहिए और कामकाजी स्त्री का पूरी तरह से सहयोग करना चाहिए ! आखिर वह अपने परिवार की बेहतरी के लिए ही तो इतनी मेहनत कर रही है ! अभी तक कई घरों में लोगों की यह मानसिकता बनी हुई है कि जो स्त्री नौकरी कर रही है तो वह शौकिया कर रही है ! उसका स्थान परिवार में हमेशा सबसे नीचा ही माना जाता है ! जो कि सर्वथा अनुचित है और गलत है ! खुद स्त्रियाँ भी ऐसा ही सोचती हैं इसीलिये न वो डट कर विरोध ही कर पाती हैं और न ही लोगों की सोच बदल पाती हैं ! अपनी स्वयं की सोच के चलते वे खुद भी पिसती जाती हैं और दोहरी जिम्मेदारियाँ उठा कर थकती भी हैं
, असंतुष्ट भी रहती हैं और अवसादग्रस्त भी हो जाती हैं !
इस समस्या का एक ही समाधान है कि परिवार के लोग स्त्री के साथ सहानुभूति और संवेदना के साथ व्यवहार करें ! उसके काम को भी गंभीरता से लें, घर के कामों में उसकी सहायता और सहयोग करें और उसकी समस्याओं का संज्ञान लेते हुए उसके साथ नरमी से पेश आएं और उसके साथ मीठा व्यवहार करें ! स्त्रियाँ स्वभाव से ही भावुक होती हैं और अगर उनकी उपेक्षा अवहेलना की जाती है तो स्थिति सम्हलने की जगह और बिगड़ जाती है ! यहाँ परिवार के सभी सदस्यों से समझदारी की अपेक्षा की जाती है ! 

साधना वैद  


Friday, August 8, 2025

बचपन का रक्षा बंधन

 



बचपन की बातें और बचपन की यादें जब भी दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती हैं मन गुलाबी-गुलाबी सा होने लगता है ! विशेष तौर पर जब किसी त्योहार से जुड़ी यादों का ज़िक्र हो तो न जाने कितनी खुशबुओं से घिरा पाने लगती हूँ खुद को !
कोई भी पर्व त्योहार हो मम्मी का आसन रसोई में सुनिश्चित होता था और घर भर में सुबह शाम पकवानों की खुशबू बरबस ही हम सबको खींच-खींच कर चौके में ले जाती जहाँ हर पकवान का भोग हम ही सबसे पहले लगाते !
सावन का महीना विशेष रूप से उल्लास और उत्साह को समेट लाता ! घर में बड़ी मजबूत रस्सी वाला झूला डाला जाता ! कारपेंटर से लकड़ी की बड़ी सी पटलियाँ बनवाई जातीं कि कम से कम दो लोग तो एक साथ झूले पर बैठ जाएं ! तीजों पर मम्मी हमारे दुपट्टे रंगतीं कभी चुनरी प्रिंट के कभी लहरिये के ! उनमें रात-रात भर जाग कर किरण गोटा लगातीं ! पत्तों वाली मेंहदी सिल बट्टे पर पीस कर मूँज की खरेरी खाट पर पुरानी दरी पर लिटा कर हमारे हाथों और पैरों में मेंहदी लगातीं और घर में सिंवई
, घेवर, खीर, अंदरसे की खुशबू तैरती रहती !
रक्षा बंधन के आने से पंद्रह दिन पहले से हलचल मची रहती ! राखियाँ दूसरे शहरों में रहने वाले चचेरे, तयेरे
, मौसेरे, ममेरे भाइयों को भी तो भेजनी होती थीं ! लिफ़ाफ़े में कौन सी राखी ठीक रहेगी और कौन सी सबसे सुन्दर भी हो यह छाँटने में ही बहुत समय लग जाता ! आठ दिन पहले ही सब पोस्ट हो जाएं यह कोशिश रहती थी ताकि सबको समय से मिल जाएं !
रक्षा बंधन के दिन सुबह से व्रत रखते थे कि जब तक राखी नहीं बाँध लेंगे मुँह नहीं जुठारेंगे ! भैया को सुबह से ही जल्दी-जल्दी तैयार होने के लिए मम्मी टोकती रहतीं, “अरे ! नहाए नहीं अभी तक ? जल्दी राखी बँधवा लो देखो तुम्हारी छोटी बहन सुबह से भूखी बैठी है !”
बड़ी खातिर होती थी उस दिन हमारी ! राखी बाँधने के बाद शगुन के पाँच रुपये मिला करते थे ! पाँच रुपये भैया देते पाँच रुपये बाबूजी ! कुछ अपनी गुल्लक से बचत किये हुए पैसे निकाल कर हम दूसरे ही दिन बाज़ार पहुँच जाते ! उन दिनों आजकल की तरह मँहगे-मँहगे सूट साड़ियों या उपहारों का फैशन नहीं था ! दो तीन रंगों की सलवारें हुआ करती थीं ! उनसे मैचिंग प्रिंट का कपड़ा लाकर घर में ही हमारे कुरते मम्मी खुद सिया करती थीं ! दर्जी से जनाने कपडे सिलवाने का चलन उन दिनों नहीं था ! बहुत बढिया कॉटन के प्रिंटेड कपड़े चार पाँच रुपये मीटर के आ जाया करते थे ! दो मीटर में हमारा कुर्ता बन जाता था ! कुछ पैसे मम्मी से भी मिल जाते ! तो बस रक्षाबंधन के अगले ही दिन कम से कम दो कुर्तों का कपड़ा आ जाता और हमारी बल्ले-बल्ले हो जाती !
तो ऐसे मनाते थे हम अपने त्योहार ! न थोड़ा सा भी शोर शराबा
, न कोई आडम्बर, न दिखावा लेकिन सुख, आनंद और संतुष्टि अपरम्पार !

चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद


Friday, August 1, 2025

दो - मुक्तक - सावन

 



जाने कैसे सावन में मेरा ये मन बँट जाता है !
‘पी’ घर ‘बाबुल’, ‘बाबुल’ के घर ‘साजन’ क्यों तरसाता है
बैठी हूँ बाबुल के अँगना झूल रही हूँ झूले पे 
पर कजरी का हर मुखड़ा प्रियतम की याद दिलाता है !  


सीला सावन, तृषित तन मन, दूर सजन 
गाते विहग, सुरभित सुमन, पुलकित पवन
सावन आया, रिमझिम फुहार, झूमी धरा  
भीगे नयन, व्याकुल है मन, आओ सजन !


चित्र  - गूगल से साभार 

साधना वैद 

Tuesday, July 29, 2025

विकास का रथ – लघुकथा

 



नव निर्मित पुल का उदघाटन करके मंत्री जी अभी-अभी मंच पर आए थे ! पीछे-पीछे पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों का हुजूम था ! उनके पीछे आम जनता की बड़ी भारी भीड़ नेता जी की जय जयकार करती और ‘नेता जी जिंदाबाद’ के नारे लगाती उमड़ी पड़ रही थी ! मंच पर आसीन होते ही नेता जी ने माइक सम्हाला, “ हमारी सरकार का पहला उद्देश्य रहा है जनता की सेवा और उनका सर्वांगीण विकास ! हमारा तो ध्येय ही जनता को जोड़ने का रहा है ! इसीलिए हमने अपने तीन साल के कार्यकाल में प्रदेश में तीन नए पुलों का निर्माण किया है और हज़ारों लोगों को इन पुलों के माध्यम से एक दूसरे के साथ जोड़ा है ! उनके बीच व्यापार और सामाजिक सौहार्द्र की संभावनाओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है ! हमारा विकास का रथ बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है ! अपने दो वर्ष के कार्यकाल में अभी हमारी दो पुल बनाने की योजना और है ! इस तरह प्रदेश में पुलों की संख्या आठ हो जाएगी ! पाँच पुल हमारे बनाए हुए और तीन पुल पहले के बने हुए !”
“नहीं-नहीं नेता जी ! कुछ भूल हो रही है ! वर्तमान में पुलों की संख्या कुल तीन ही है ! तीन पुल तो देख रेख और मरम्मत के अभाव में ढह चुके हैं ! एक पुल और जिसका निर्माण दो साल पहले ही हुआ था, गिरने की कगार पर है ! दो साल बाद कितने पुल अस्तित्व में होंगे अभी से कहना मुश्किल है !” भीड़ में से एक आवाज़ उभरी !




साधना वैद

चित्र - गूगल से साभार 

Monday, July 28, 2025

काँवड़ यात्रा

 



संकल्प की शक्ति
भक्ति की पराकाष्ठा
श्रद्धा की अनुपम परिणति
काँवड़ियों की यह यात्रा !
सिर्फ एक भोला सी आशा
कि चढ़ा दें अपने देवता पर
श्रद्धा से संकल्पित
यह पवित्र जल
जो भर कर लाए हैं
अपनी गागर में
पवित्र नदियों से !
ले जा रहे हैं धर कर
श्रम से सुसज्जित काँवड़ में
चढ़ाने को अपने इष्ट देव पर
कि प्रसन्न कर उन्हें
पा सकें वरदान
जीवन में सफलता का
सुख समृद्धि का
परिवार की खुशियों का
कि बना लें अपना जीवन
खुशहाल प्रभु की कृपा से !
हे महादेव
पूरण करना आशा  
इन भोले-भाले काँवडियों की
रक्षा करना इनके विश्वास की
और कर देना इनकी
यह यात्रा सफल !
मेरा विश्वास भी तो जुड़ा है
इनके विश्वास के साथ !
इन्होंने तो अपनी पारी खेल ली
अब तुम्हारी बारी है !  



साधना वैद  
 


Sunday, July 20, 2025

कुण्डलियाँ

 



पेड़ों पे झूले पड़े सखियों का है शोर

खनक रही हैं चूड़ियाँ मन आनंद विभोर

मन आनंद विभोर मगन मन झूल रही हैं

कजरी, गीत, मल्हार, सभी दुख भूल रही हैं

बोली कोयल, फूल ‘साधना’ वन में फूले

आया सावन मास पड़े पेड़ों पर झूले !



रास रचैया की सुनी, जब मुरली की तान।

भागीं जमुना तीर पर, ज्यों तरकश से बाण।।

ज्यों तरकश से बाण, किशन को ढूँढ रही हैं ।

थिरक उठे हैं पाँव मुदित मन झूम रही हैं ।।

होतीं सभी विभोर, ‘साधना काकी, मैया।

दिखे न कोई और,  कान्ह सा रास रचैया ।


चित्र - गूगल से साभार 



साधना वैद


Friday, July 11, 2025

बहका सा मन

 





देखा था जब तुम्हें पहली बार

तो न जाने क्यों दिल दिमाग को

झकझोर रही थी महुआ की

मदिर गंध बारम्बार !

उठती गिरती बरौनियों की

चिलमन में छिपी तुम्हारी

नशीली सी आँखें,

जैसे दे रहीं थीं आमंत्रण मुझे

कि ‘चलो उड़ चलें दूर गगन में

खोल कर अपनी पाँखें’ !

प्रणय की अनुभूतियों से प्रकम्पित

तुम्हारी लड़खड़ाती सी आवाज़,

खींच कर मुझे भी लिए जाती थी

महुआ के उस उपवन में

जहाँ महुआ के सुर्ख लाल फूलों की

चूनर ओढ़ थिरकती थी हवा और

महुआ के हरे चिकने पात

हर्षित होकर बजा रहे थे सुरीला साज़ !

कहाँ छिप गयी हो तुम प्रिये

आ जाओ न !

जीवन में फिर से बसंत महका है,

महुआ में फिर से फूल खिले हैं,

तुमसे मिलने को आतुर

मेरा मन चिर तृषित मन आज

फिर तुम्हारे लिए बहका है !



चित्र - गूगल से साभार ! 

साधना वैद