विमर्श का यह विषय वास्तव में बहुत ही चिंतनीय
एवं सामयिक है ! जबसे हाथरस वाला काण्ड हुआ है घृणा और जुगुप्सा के मारे
संज्ञाशून्य होने जैसी स्थिति हो गयी है ! सोशल मीडिया पर कितना ही बवाल मचता रहे
ऐसी गंदी मानसिकता वाले लोग इस प्रकार के दुष्कृत्यों को बेख़ौफ़ अंजाम देते ही रहते
हैं ! हाथरस की आंच ठंडी भी नहीं हुई थी की राजस्थान के बारां और उत्तर प्रदेश के
बलरामपुर में फिर ऐसे ही काण्ड हो गए ! शर्मिंदगी, क्षोभ और गुस्से का यह आलम है
कि लगता है मुँह खोला तो जैसे ज्वालामुखी फट पड़ेगा ! यह किस किस्म के समाज में हम रह रहे हैं जहाँ ना तो इंसानियत
बची है, न दया माया ! ना किसी मासूम
के प्रति ममता और करुणा का भाव ना किसी नारी के लिए सम्मान का भाव ही हृदय में शेष
रहा है ! क्या कारण है कि नारी के प्रति पुरुषों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं
आया ! हर युग में उसे केवल भोग्या मान कर पुरुषों ने उसका बलात्कार किया है ! कभी
विचारों से, कभी निगाहों से, कभी अश्लील संवादों से और कभी मौक़ा मिल गया तो शरीर
से ! पुरुषों की ऐसी घृणित मानसिकता के लिए किसे दोष दिया जाना चाहिए ! इतना तो
मान कर चलना ही होगा कि इस तरह की मानसिकता वाले लोग जानवर ही होते हैं
! ऐसे अपराधियों के माता-पिता से पूछना चाहिए कि अपने ऐसे
कुसंस्कारी और हैवान बेटों के लिए वे खुद क्या सज़ा तजवीज करते हैं ! अगर वे अपने
बच्चों के लिए रहम की अपील करते हैं तो उनसे पूछना चाहिए कि यदि उनकी अपनी बेटी के
साथ ऐसी दुर्घटना हो जाती तो क्या वे उसके गुनहगारों के लिए भी रहम की अपील ही
करते ? इतनी खराब परवरिश और इतने खराब संस्कार
अपने बच्चों को देने के लिए स्वयम उन्हें क्या सज़ा दी जानी चाहिए ?
मेरे विचार से ऐसे गुनहगारों को कोर्ट कचहरी के
टेढ़े-मेढ़े रास्तों, वकीलों और जजों की लम्बी-लम्बी बहसों और हर रोज़
आगे बढ़ती मुकदमों की तारीखों की भूलभुलैया से निकाल कर सीधे समाज के हवाले कर देना
चाहिए ! सर्व सम्मति से समाज के हर वर्ग और हर क्षेत्र से प्रबुद्ध व्यक्तियों की
समिति बनानी चाहिए जिनमें प्राध्यापक, वकील, जज, कलाकार, गृहणियाँ, डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, व्यापारी, साहित्यकार व अन्य सभी विधाओं से जुड़े लोग शामिल हों और सबकी
राय से उचित फैसला किया जाना चाहिए और गुनहगारों को दंड भी सरे आम दिया जाना चाहिए
ताकि ऐसी विकृत मनोवृत्ति वाले लोगों के लिए ऐसा फैसला सबक बन सके !
इतने घटिया लोगों का पूरी तरह से सामाजिक
बहिष्कार कर दिया जाना चाहिए ! सबसे ज्यादह आपत्ति तो मुझे इस बात पर है कि
रिपोर्टिंग के वक्त ऐसे गुनाहगारों के चहरे क्यों छिपाए जाते हैं ! होना तो यह
चाहिये कि जिन लोगों के ऊपर बलात्कार के आरोप सिद्ध हो चुके हैं उनकी तस्वीरें, नाम, पता व सभी डिटेल हर
रोज़ टी वी पर और अखबारों में दिखाए जाने चाहिए ताकि ऐसे लोगों से जनता सावधान रह
सके ! समाज के आम लोगों के साथ घुलमिल कर रहने का इन्हें मौक़ा नहीं दिया जाना
चाहिए ! यदि किरायेदार हैं तो इन्हें तुरंत घर से निकाल बाहर करना चाहिए और यदि
मकान मालिक हैं तो ऐसा क़ानून बनाया जाना चाहिए कि इन्हें इनकी जायदाद से बेदखल
किया जा सके ! जब तक कड़े और ठोस कदम नहीं उठाये जायेंगे ये मुख्य धारा में सबके
बीच छिपे रहेंगे और मौक़ा पाते ही अपने घिनौने इरादों को अंजाम देते रहेंगे ! जब
दंड कठोर होगा और परिवार के अन्य सदस्य भी इसकी चपेट में आयेंगे तो घर के लोग भी इनके
चालचलन पर निगरानी रखेंगे और लगाम खींच कर रखेंगे ! यदि इन बातों पर ध्यान दिया
जाएगा तो आशा कर सकते हैं कि ऐसी घटनाओं की आवृति में निश्चित रूप से कमी आयेगी !
साधना वैद