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Sunday, July 6, 2025

नारी अस्मिता और पुरुष मानसिकता

 



विमर्श का यह विषय वास्तव में बहुत ही चिंतनीय एवं सामयिक है ! जबसे हाथरस वाला काण्ड हुआ है घृणा और जुगुप्सा के मारे संज्ञाशून्य होने जैसी स्थिति हो गयी है ! सोशल मीडिया पर कितना ही बवाल मचता रहे ऐसी गंदी मानसिकता वाले लोग इस प्रकार के दुष्कृत्यों को बेख़ौफ़ अंजाम देते ही रहते हैं ! हाथरस की आंच ठंडी भी नहीं हुई थी की राजस्थान के बारां और उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में फिर ऐसे ही काण्ड हो गए ! शर्मिंदगी क्षोभ और गुस्से का यह आलम है कि लगता है मुँह खोला तो जैसे ज्वालामुखी फट पड़ेगा !  यह किस किस्म के समाज में हम रह रहे हैं जहाँ ना तो इंसानियत बची हैन दया माया ! ना किसी मासूम के प्रति ममता और करुणा का भाव ना किसी नारी के लिए सम्मान का भाव ही हृदय में शेष रहा है ! क्या कारण है कि नारी के प्रति पुरुषों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया ! हर युग में उसे केवल भोग्या मान कर पुरुषों ने उसका बलात्कार किया है ! कभी विचारों से, कभी निगाहों से, कभी अश्लील संवादों से और कभी मौक़ा मिल गया तो शरीर से ! पुरुषों की ऐसी घृणित मानसिकता के लिए किसे दोष दिया जाना चाहिए ! इतना तो मान कर चलना ही होगा कि इस तरह की मानसिकता वाले लोग जानवर ही होते हैं ! ऐसे अपराधियों के माता-पिता से पूछना चाहिए कि अपने ऐसे कुसंस्कारी और हैवान बेटों के लिए वे खुद क्या सज़ा तजवीज करते हैं ! अगर वे अपने बच्चों के लिए रहम की अपील करते हैं तो उनसे पूछना चाहिए कि यदि उनकी अपनी बेटी के साथ ऐसी दुर्घटना हो जाती तो क्या वे उसके गुनहगारों के लिए भी रहम की अपील ही करते ? इतनी खराब परवरिश और इतने खराब संस्कार अपने बच्चों को देने के लिए स्वयम उन्हें क्या सज़ा दी जानी चाहिए ?

मेरे विचार से ऐसे गुनहगारों को कोर्ट कचहरी के टेढ़े-मेढ़े रास्तोंवकीलों और जजों की लम्बी-लम्बी बहसों और हर रोज़ आगे बढ़ती मुकदमों की तारीखों की भूलभुलैया से निकाल कर सीधे समाज के हवाले कर देना चाहिए ! सर्व सम्मति से समाज के हर वर्ग और हर क्षेत्र से प्रबुद्ध व्यक्तियों की समिति बनानी चाहिए जिनमें प्राध्यापकवकीलजजकलाकारगृहणियाँ, डॉक्टर्स, इंजीनियर्सव्यापारीसाहित्यकार व अन्य सभी विधाओं से जुड़े लोग शामिल हों और सबकी राय से उचित फैसला किया जाना चाहिए और गुनहगारों को दंड भी सरे आम दिया जाना चाहिए ताकि ऐसी विकृत मनोवृत्ति वाले लोगों के लिए ऐसा फैसला सबक बन सके !

इतने घटिया लोगों का पूरी तरह से सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाना चाहिए ! सबसे ज्यादह आपत्ति तो मुझे इस बात पर है कि रिपोर्टिंग के वक्त ऐसे गुनाहगारों के चहरे क्यों छिपाए जाते हैं ! होना तो यह चाहिये कि जिन लोगों के ऊपर बलात्कार के आरोप सिद्ध हो चुके हैं उनकी तस्वीरेंनामपता व सभी डिटेल हर रोज़ टी वी पर और अखबारों में दिखाए जाने चाहिए ताकि ऐसे लोगों से जनता सावधान रह सके ! समाज के आम लोगों के साथ घुलमिल कर रहने का इन्हें मौक़ा नहीं दिया जाना चाहिए ! यदि किरायेदार हैं तो इन्हें तुरंत घर से निकाल बाहर करना चाहिए और यदि मकान मालिक हैं तो ऐसा क़ानून बनाया जाना चाहिए कि इन्हें इनकी जायदाद से बेदखल किया जा सके ! जब तक कड़े और ठोस कदम नहीं उठाये जायेंगे ये मुख्य धारा में सबके बीच छिपे रहेंगे और मौक़ा पाते ही अपने घिनौने इरादों को अंजाम देते रहेंगे ! जब दंड कठोर होगा और परिवार के अन्य सदस्य भी इसकी चपेट में आयेंगे तो घर के लोग भी इनके चालचलन पर निगरानी रखेंगे और लगाम खींच कर रखेंगे ! यदि इन बातों पर ध्यान दिया जाएगा तो आशा कर सकते हैं कि ऐसी घटनाओं की आवृति में निश्चित रूप से कमी आयेगी !

साधना वैद


Thursday, July 3, 2025

इम्प्रेशन - एक लघुकथा

 



“सुनिए जी, मुझे कुछ रुपये चाहिए ! एक साड़ी लानी है आज ही !”
अर्पिता अलमारी से अपना शॉपिंग बैग निकालते हुए बोली ! वरुण हैरान था !

“ऐसी भी क्या जल्दी है ! तुम्हारे पास तो एक से बढ़ कर एक कीमती और खूबसूरत साड़ियाँ भरी पडी हैं अलमारी में ! फिर ऐसी क्या इमरजेंसी आ गयी कि आज ही साड़ी खरीदनी है !”
“अरे, आपको याद नहीं है ! कल विधायक जी की माताजी की उठावनी में जाना है ना ! वहाँ शादी ब्याह में पहनने वाली तड़क भड़क की साड़ी पहन कर थोड़े ही जाउँगी ! कितने बड़े-बड़े लोग आएँगे उनके यहाँ ! सुना है दिल्ली से भी पार्टी के उच्चाधिकारी आने वाले हैं ! उनकी बहू अमेरिका से
, बेटी इंग्लैण्ड से आ रही है ! मुझे प्योर खादी सिल्क की सोबर से कलर की एक कीमती साड़ी चाहिए कल पहनने के लिए ! अच्छा इम्प्रेशन पड़ना चाहिए ! तभी तो अगले चुनाव के लिए टिकिट मिलेगा मुझे ! आप तो कुछ समझते ही नहीं !” अर्पिता झुँझला उठी थी !


साधना वैद


चित्र - गूगल से साभार 


Wednesday, June 18, 2025

सयानी श्रेया - लघुकथा

 



सरिता जी की तबीयत ठीक नहीं थी ! रात से ही बुखार चढ़ा हुआ था और बदन में भी बहुत दर्द था ! किसी तरह वो किचिन में बेटे बहू और पोती के टिफिन बनाने में लगी हुई थीं ! पोती श्रेया के स्कूल का वैन वाला आने ही वाला होगा ! ज़रा सी देर भी नहीं रुकता ! बच्चा बाहर न मिले तो वो दो बार हॉर्न बजा कर चला जाता है ! सरिता जी का बुखार शायद सुबह और तेज़ हो गया था !
बहू दीपा ऑफिस के काम में व्यस्त रहती थी तो सरिता जी ने ही उससे यह ज़िम्मेदारी ले ली थी ! अंधा क्या चाहे दो आँखें ! बहू को तो जैसे मुँहमाँगी मुराद मिल गयी थी ! उसने सुबह किचिन में आना ही बंद कर दिया ! संकोच के मारे दरवाज़ा खटखटा के बुलाना सरिता जी को उचित नहीं लगता था ! अब अगर वो टिफिन नहीं बनाएँगी तो श्रेया क्या खायेगी स्कूल में ! बेटे महेंद्र को भी उनके हाथ के बने पनीर के पराँठे बहुत पसंद हैं ! सारी तैयारी रात को ही कर ली थी लेकिन इस समय बुखार के मारे उनके हाथ काँप रहे थे ! फिर भी किसी तरह वे पराँठे सेकने की कोशिश कर रही थीं ! आँखों के आगे अँधेरा सा छा रहा था ! उन्हें पता ही नहीं चला श्रेया कब पीछे आकर खड़ी हो गयी थी !
सरिता जी अचेत होकर गिरने ही वाली थीं कि दो नन्हे हाथों ने जल्दी से एक कुर्सी खींच कर उनके पीछे लगा दी ! “मम्मी जल्दी आओ ! दादी गिर जाएँगी !” श्रेया की आवाज़ पूरे फ्लैट में गूँज रही थी !
दीपा और महेंद्र के कमरे का दरवाज़ा फटाक से खुला ! दोनों भागते हुए किचिन में आए !
सरिता जी की आँखों में अपराध बोध था, “पराँठे बन गए हैं दीपा बस टिफिन में रखने भर हैं ! मुझे ज़रा सा चक्कर आ गया था ! श्रेया ने कुर्सी पीछे लगा दी और मुझे गिरने से बचा लिया ! इसने बेकार शोर मचा दिया ! अभी लगा देती हूँ टिफिन !”
महेंद्र की घूरती हुई नज़रों से कुछ लज्जित सी दीपा ने जल्दी-जल्दी टिफिन में पराँठे डालते हुए कहा,

“नहीं माँ, श्रेया ने तो आज मुझे भी गिरने से बचा लिया !”  


चित्र - गूगल से साभार 


 साधना वैद

   


Saturday, June 14, 2025

दुमदार दोहे - मूँगफली

 




भुनी करारी कुरकुरी, मूँगफली ये लाल
भर दो सबकी जेब में, खुश हों जावें बाल !
बड़ी गुणकारी मेवा !

बैठे महफिल में सभी, छेड़ रहे हों राग
मूँगफली हों सामने, खुल जायेंगे भाग !
मज़ा दुगुना हो जावे !

हो जाड़े की धूप औ’, सुखा रहे हों बाल
रख दे दाने छील जो, मूँगफ़ली के लाल !
भला उसका भी होवे !

कितनी फुर्सत से रचा, प्रभु ने यह उपहार
सजे हुए हैं खोल में, सुन्दर दाने चार !
ईश की लीला न्यारी !

तन्मय होकर देखते, फ़िल्मों का है ज़ोर
अँधियारे में सब सुनें, चटर पटर का शोर !
धरा पर कूड़ा भारी !
  

अद्भुत है कारीगरी अद्भुत तेरा खोल
सुन्दरता से हैं सजे दाने ये अनमोल !
नमन है तुझको दाता !

गिर जाए दाना कभी, होता मन बेचैन
जब तक वह दिख जाय ना
, पीछा करते नैन !
करारी जीभ चढ़ी है !

साथ मसाला हो अगर, स्वाद मिले भरपूर
हाथ रुके ना एक पल
, करो न पैकिट दूर !
मज़ा हो जाए दूना !

राजमहल या झोंपड़ी, हो चाहे फुटपाथ
मूँगफली का राज है, देती सबका साथ !
गरीबों की ये मेवा !

साधना वैद


Thursday, June 12, 2025

सोरठा छंद

 



कैसी पोलमपोल, नाम पर साक्षरता के
ढीठ पी गए घोल, नियम सब नैतिकता के !


करिए उनका मान
, गुरू होते प्रभु जैसे
रखिये उनका ध्यान
, पिता का करते जैसे !

हो न परस्पर भीत पढ़ें जब विद्यालय में
मन में रक्खें प्रीत, विनय का भाव हृदय में !



 कैसे होगा नाम भला ऐसी शिक्षा से
रहें बराबर छात्र जहाँ बाहर कक्षा के !



दिए गए हैं ठेल छात्र अगली कक्षा में
हो जायेंगे फेल सभी जीवन रक्षा में !


साधना वैद




Monday, June 2, 2025

दो जून की रोटियाँ

 





ठंडा है चूल्हा

सीली हैं लकड़ियाँ

बुझी है आग


कैसे मिलेंगी

दो जून की रोटियाँ

खाली बर्तन


चिंतित मन

  बीच मंझधार में  

डूबती नैया
 

अभागे नहीं

मेहनतकश हैं

कमा ही लेंगे


इतना पैसा

कि जल जाए चूल्हा

आ जाए आटा


नसीब होंगी

दो जून की रोटियाँ

भूखे पेटों को


सुबह होगी

उगेगा सूरज भी 

आसमान में


होगा उजाला

हमारे भी घर में

जलेगा चूल्हा


पकायेगी माँ

दो जून की रोटियाँ

हमारे लिए !


चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद



Sunday, June 1, 2025

विलंबित न्याय प्रक्रिया के दंश

 


विलंबित न्याय प्रक्रिया हमारे समाज के लिए कितनी दोषपूर्ण है और यह किस प्रकार दीमक की तरह हमारे धैर्य, हमारी आस्था और हमारे विश्वास को चाट कर खोखला करती जा रही है इस विषय पर कई बार विमर्श हो चुका है लेकिन तब से अब तक न तो सूरते हाल में कोई बदलाव आया है, न लोगों के मन के असंतोष और हताशा में कमी आई है, न न्याय प्रक्रिया के नीति नियंताओं की नींद ही टूटी है तो आज के इस विमर्श में क्या नया जोड़ा जा सकेगा और इस विमर्श से किसका भला होगा यह कल्पना से परे है !
अंग्रेज़ी में जो कहावत है Justice delayed is justice denied. अगर यह सत्य है तो हमारे यहाँ तो शायद न्याय कभी हो ही नहीं पाता । एक तो मुकदमे ही अदालतों में सालों चलते हैं दूसरे जब तक फैसले की घड़ी आती है तब तक कई गवाह, यहाँ तक कि चश्मदीद गवाह तक अपने बयानों से इस तरह पलट जाते हैं कि वास्तविक अपराधी सज़ा से या तो साफ-साफ बच जाता है या बहुत ही मामूली सी सज़ा पाकर सामने वाले का मुहँ चिढ़ाता सा लगता है । ऐसे में क्या हम सीना ठोक कर यह कह सकते हैं कि फैसला सच में न्यायपूर्ण हुआ है । बड़ी-बड़ी अदालतों में न्याय करने के लिए जो न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठे हैं क्या वो वाकई इतने भोले और नासमझ होते हैं कि इन मुकर जाने वाले गवाहों की नीयत और मंशा को वे समझ ही नहीं पाते और उनके फैसले भी इन गवाहों के बयानों के आधार पर बदलते रहते हैं ! यह तो न्याय नहीं है !
भयमुक्त और अपराध मुक्त समाज की परिकल्पना को यदि साकार रूप देना चाहते हैं तो सबसे पहले मुकदमों के त्वरित निपटान की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की सख्त ज़रूरत है । आम आदमी समाज में भयमुक्त हो या न हो लेकिन यह तो निश्चित है कि अपराधी पूर्णत: भयमुक्त हैं और आए दिन अपने क्रूर और खतरनाक इरादों को अंजाम देते रहते हैं । य़दि हमारी न्याय प्रणाली त्वरित और सख्त हो तो समाज में इसका अच्छा संदेश जाएगा और अपराधियों के हौसलों पर लगाम लगेगी । गिरगिट की तरह बयान बदलने वाले गवाहों पर भी अंकुश लगेगा और अपराधियों को सबूत और साक्ष्यों को मिटाने और गवाहों को खरीद कर, उन्हें लालच देकर मुकदमे का स्वरूप बदलने का वक़्त भी नहीं मिलेगा । कहते हैं जब लोहा गर्म हो तब ही हथौड़ा मारना चाहिए । समाज में अनुशासन और मूल्यों की स्थापना के लिए कुछ तो कड़े कदम उठाने ही होंगे । त्वरित और कठोर दण्ड के प्रावधान से अपराधियों की पैदावार पर अंकुश लगेगा और शौकिया अपराध करने वालों की हिम्मत टूट जाएगी । इसके लिए आवश्यक है कि न्यायालयों में सालों से चल रहे चोरी या इसी तरह के छोटे मोटे अपराधों वाले विचाराधीन मुकदमों को या तो बन्द कर दिया जाए या जल्दी से जल्दी निपटाया जाए । ऐसे मुकदमों के निपटान के लिए समय सीमा निर्धारित कर दी जाए और भविष्य में और तारीखें ना दी जाएं । स्कूल कॉलेज में एक कक्षा पास करने के लिए भी तो दस महीने की सीमा तय की जाती है ! उसी तरह मुकदमों की गंभीरता के आधार पर उनकी समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए ! तारीखों पर तारीखें लेने के  चक्कर में ऐसे अनगिनती मुकदमें कई सालों से विचाराधीन पड़े हुए हैं जिनमें अधिकतम सज़ा एक से दो साल ही है ! उन अभागे मुजरिमों का कोई सरपरस्त नहीं हैं इसलिए वे अपने अपराध की अधिकतम सज़ा से भी कहीं अधिक सज़ा काट लेने के बाद भी जेलों में जीवन काटने के लिए अभिशप्त हैं सिर्फ इसलिए कि उनके मुकदमे का फैसला नहीं आया है ! यह तो न्याय नहीं है !
और कुछ फैसले आए तो भी तो कब ! ज़रा बानगी देखी !
डॉक्टर की म्रत्यु के 13 साल बाद उस पर 25 लाख रुपये का जुर्माना !
आगरा के पनवारी काण्ड का 35 साल बाद फैसला आया !
निठारी काण्ड के अभियुक्त अभी तक स्वतंत्र घूम रहे हैं !
दिल्ली के उपहार सिनेमा के भीषण अग्निकांड का फैसला 18 साल बाद आया !
जेसिका लाल मर्डर केस में मुख्य अभियुक्तों को बचाने के लिए कई दांव पेंच खेले गए जिन्होंने केस का रूप ही बदल दिया और सालों मुकदमे को विलंबित गति से कोर्ट में चला कर सारे आरोपियों को बरी कर दिया गया !
ऐसे ही न जाने कितने केसेज़ हैं जिनमें न्याय मिलने की आशा शनै: शनै: ही निराशा
, हताशा और अवसाद में बदल गई और जाने कितने लोगों के जीवन में अँधेरा छा गया !
न्यायाधीशों की वेतनवृद्धि और पदोन्नति उनके द्वारा निपटाये गए मुकदमों के आधार पर तय की जाए । अनावश्यक और अनुपयोगी कानूनों को निरस्त किया जाए ताकि अदालतों में मुकदमों की संख्या को नियंत्रित किया जा सके और उनके कारण अदालतों में निचले स्तर पर व्याप्त अव्यवस्था, भ्रष्टाचार तथा  पुलिस, प्रशासन और वकीलों के मकड़्जाल से आम आदमी को निजात मिल सके । न्यायालयों की संख्या बढ़ायी जाए और क्षुद्र प्रकृति के मुकदमों का निपटान निचली अदालतों में ही हो जाए । अपील का प्रावधान सिर्फ गम्भीर प्रकृति के मुकदमों के लिए ही हो । बेवजह तारीखें लेकर मुकदमों को घसीटने वाले वकीलों को भी दण्डित किया जाना चाहिए !
इसी तरह से कुछ कदम यदि उठाए जाएंगे तो निश्चित रूप से समाज में बदलाव की भीनी-भीनी बयार बहने लगेगी और आम आदमी चैन की साँस ले सकेगा। 



साधना वैद


Saturday, May 24, 2025

क्या हुआ रवि महाराज ... उलाहना

 




किसी काम के नहीं निकले तुम भी
भुवन भास्कर !
हैरान हूँ, कुंठित हूँ
, कुपित हूँ तुम्हारा यह
लिजलिजा सा रूप देख कर !
जब आया समय परीक्षा का
हो गए तुम भी बुरी तरह फेल,
छूट गए पसीने तुम्हारे भी
जैसे डाल दी गयी हो
तुम्हारी नाक में भी नकेल !
जब परखा गया तुम्हारा पराक्रम
जाकर छिप गए क्षितिज के किसी कोने में 
दिखा न पाए कोई भी कमाल
बिता दिया तुमने भी सारा दिन
पीली, सुनहरी, चमकीली
धूप की गुनगुनी सी चादर ओढ़
विस्तृत गगन में
पैर फैला कर सोने में !
क्या हो गया रवि महाराज ? 
कितना तो व्यापक हुआ करता था
तुम्हारा प्रभा मंडल
और प्रखर प्रकाश से सदा
जगमगाता रहता था तुम्हारा
दीप्तिमान मुख मंडल !
कहाँ चला गया सारा शौर्य तुम्हारा ?
कहाँ चली गई विश्व कल्याण की चिंता ?
और वसुधैव कुटुम्बकम का
तुम्हारा हितकारी नारा ?  
लगता है सांसारिक कर्मियों की
अकर्मण्यता से तुम भी प्रभावित हो गए हो
और निस्पृह भाव से पूरी तरह तटस्थ हो
सूर्योदय से सूर्यास्त तक की
जैसे-तैसे अपनी ड्यूटी निभा
सब कुछ आधा अधूरा छोड़ कर
घर भागने के अभ्यस्त हो गए हो !
वरना दिन दहाड़े क्या ऐसा अनर्थ होता,
भरी दोपहरी में गगन मंडल में तुम्हारे रहते
ठीक तुम्हारी आँखों के सामने
निर्दोष बहनों का सिन्दूर यों उजड़ता
छोटे-छोटे अबोध बच्चों का भविष्य
यों अंधकारमय होता !  
अब तुम्हारे अस्तित्व पर
तुम्हारी सत्ता पर,
तुम्हारी नीयत पर, तुम्हारी निष्ठा पर 
प्रश्न तो उठेंगे ही रविराज,
लोगों का भरोसा टूटा है
,
उनकी भक्ति तिरस्कृत हुई है,
उनके सर से छत हट गई है
और पैरों के नीचे से 
ज़मीन खिसक गई है, 
तुम्हें जवाब तो देना ही होगा
भुवन भास्कर
कल दो या आज ! 


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद




Thursday, May 22, 2025

बिजली का दुरुपयोग

 




आजकल हर घर में, हर संस्थान में, हर ऑफ़िस, होटल, रेस्टोरेंट में यहाँ तक कि शहर की सडकों पर भी बिजली का जम कर दुरुपयोग हो रहा है ! घरों में दिन की पर्याप्त रोशनी के बाद भी सारे दिन बिजली जलती है ! पहले भवन निर्माण के समय इस बात का ध्यान रखा जाता था कि हर कमरे में पर्याप्त रोशनी और हवा आए ! लेकिन अब खिड़की दरवाजों पर भारी भारी परदे लटका कर कमरों को डार्क बनाने की कोशिश की जाती है ! खिड़कियों के शीशों पर पेंटिंग करके या रंगीन कागज़ लगा कर रोशनी को अवरुद्ध किया जाता है ! फिर सारे दिन घर में बिजली के बल्ब जला कर रोशनी की जाती है ! पहले सुबह शाम लोग बाहर बगीचों में पार्क्स में घर की छतों पर या बालकनी में हवाखोरी के लिए निकल आते थे लेकिन अब सारे दिन अपने कमरों में घुसे रहते हैं A. C. के सामने पहले घरों को ठंडा करने के लिए खस के पर्दे या टट्टियाँ लगाई जाती थीं जो बाहर की गर्म हवा को बिलकुल ठंडा करके अन्दर भेजती थीं ! इस व्यवस्था में बिजली की खपत ज़ीरो होती थी ! बस दिक्कत यही थी कि खस के पर्दों को दिन में कई बार पानी से भिगोना पड़ता था ! इससे कमरे भी गीले हो जाते थे और काम भी बढ़ता था लेकिन बिजली की ज़रुरत नहीं होती थी ! पर सुविधाभोगी इंसान ने इन्हें हटा कर ए. सी. लगाना शुरू कर दिया और अपना बिजली का बिल कई गुना बढ़ा लिया !
पहले पत्थर के सिल बट्टे पर चटनी मसाले पीसे जाते थे
और क्या ही लाजवाब पीसे जाते थे ! हर खाने का ज़ायका ही ज़बरदस्त होता था ! बर्तनों में ठंडी लस्सी शरबत बनाए जाते थे, चूल्हे, अंगीठी पर या पानी के गरमे में नहाने धोने के लिए पानी गरम किया जाता था लेकिन अब किचिन में एक दिन भी मिक्सर ग्राइंडर काम न करे और बाथरूम का गीज़र खराब हो जाए तो तहलका मच जाता है ! अब तो किचिन में माइक्रोवेव, इलेक्ट्रिक प्रेशर कुकर, ओ, टी, जी, कुकिंग रेंज और इन्डक्शन चूल्हा आदि अनिवार्य रूप से शुमार हो चुके हैं जो सभी बिजली से चलते हैं ! इलेक्ट्रिक टोस्टर, सैंडविच मेकर आदि तो उतने ही ज़रूरी हैं जैसे तवा कढ़ाई, चकला, बेलन ! 
घर के हर छोटे बड़े सदस्य के पास मोबाइल फोन है और सारे मोबाइल फोन बिजली से चार्ज होते हैं ! घर में जितने भी सॉकेट हैं कोई भी कभी खाली नहीं मिलता ! किसी पर फोन
, किसी पर टॉर्च, किसी पर मच्छर मारने का रैकिट तो किसी पर पॉवर बैंक चार्जिंग के लिए लगे होते हैं ! छोटे-छोटे बच्चों के लिए भी तरह-तरह के इलेक्ट्रॉनिक गेम्स आने लगे हैं जिन्हें चलाने के लिए भी बिजली की ज़रुरत होती है ! इतनी दरियादिली के साथ बिजली का उपयोग करने के बाद बिजली का बिल नियंत्रित रहे और बजट में ही आये यह कैसे हो सकता है !
दरअसल हमने प्राकृतिक वातावरण में रहना बिलकुल ही बंद कर दिया है और जिस कृत्रिम जीवन पद्धति को हमने अपनाया है वह पूरी तरह से बिजली से ही चलती है तो बिजली का बिल भी बढ़ेगा और उसका दुरुपयोग भी होगा ! बच्चे भी इसी जीवन पद्धति के आदी हैं ! स्विच ऑन करने के बाद किसीको भी ऑफ करने का ध्यान नहीं रहता और बिजली का मीटर बेतहाशा दौड़ता रहता है ! अब तो कारें भी ऐसी प्रचलन में आ गयी हैं जो पेट्रोल डीज़ल के स्थान पर बिजली से चलती हैं ! उनकी बैटरी चार्ज करने के लिए बिजली की बड़ी खपत होती है ! ऐसे में जब तक हम लोग कमर कस कर इस ओर ध्यान नहीं देंगे बिजली के दुरुपयोग को रोकना संभव नहीं होगा !
हमारे देश में धूप की कोई कमी नहीं है ! हमें अपने घरों में सोलर पैनल लगा कर बिजली बनाने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहिए ! बच्चों को बिजली का दुरुपयोग करने से रोकना चाहिए और उनसे सख्ती के साथ इस बात का पालन करवाना चाहिए कि वे जब भी कमरे से बाहर निकलें तो बिजली के स्विच ऑफ़ करके ही निकलें ! ध्यान रखा जाएगा तो बिजली के बिगड़े बजट को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकेगा !



साधना वैद 

 

 


Thursday, May 15, 2025

न किस्से ये होते न अफ़साने होते

 




न किस्से ये होते न अफ़साने होते 

जहां में जो हमसे मुसव्विर न होते 

न खिलती ये कलियाँ न उड़ते परिंदे 

जो गुलशन में तुमसे मुतासिर न होते ! 


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद 

Friday, May 9, 2025

क्षुब्ध हूँ मैं




 


क्षुब्ध हूँ मैं

जाने क्यों
विक्षुब्ध हूँ, विचलित हूँ,
व्याकुल हूँ
, व्यथित हूँ !
आज सुबह की
सूर्य वन्दना के बाद भी
मन में पुलक नहीं, उत्साह नहीं
,
उमंग नहीं
, उल्लास नहीं !
अल्लसुबह  
दूर क्षितिज पर छाई लालिमा में
बालारुण की अरुणाई और
भोर के सुनहरे उजास के स्थान पर
युद्ध में हताहत
असंख्यों निर्दोष मासूम बच्चों
स्त्रियों और शूरवीर योद्धाओं के  
रक्त की लालिमा दिखाई दे रही है
जो मन में अवसाद
,
तन में सिहरन और
नैनों में कभी न सूखने वाली
नमी भर जाती है
मेरी सुबह को हर सुख,
हर आस से नि:शेष कर
बिलकुल रीता कर जाती है !


चित्र - गूगल से साभार ! 

साधना वैद
 




Saturday, May 3, 2025

कुछ फायकू

 



बनाई सुन्दर सी रंगोली
सजा दिए तोरण
तुम्हारे लिए

 

बिखेरी पाँखुरी पथ पर
चुन कर शूल
तुम्हारे लिए


रात भर जागे आतुर
द्वार खोलने को
तुम्हारे लिए

 

कितने गीत लिख डाले
मैंने डायरी में
तुम्हारे लिए

 

कितने व्यंजन बना डाले
खट्टे मीठे नमकीन
तुम्हारे लिए

 

कितने गीत गा चुकी
प्रतीक्षा करते हुए
तुम्हारे लिए

 

सब व्यर्थ हुए उपक्रम
किये जो हमने
तुम्हारे लिए

 

तुम नहीं आये तो

किया द्वार बंद

तुम्हारे लिए !




चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद  



Wednesday, April 30, 2025

पेट की आग

 



देर रात घर की कुंडी खड़की तो धड़कते कलेजे को दोनों हाथों से थाम सलमा बी ने धीरे से खिड़की का पर्दा सरका कर कनखियों से बाहर देखा ! शकील को बाहर खड़ा देख उनकी जान में जान आई ! दरवाज़ा खोल झट से उसे अन्दर कर सलमा बी ने फिर से दरवाज़े की कुंडी चढ़ा दी !

 

शकील ने अपनी जेब से कुछ रुपये और हाथ में पकड़ा हुआ नाज का थैला अम्मी को थमाते हुए कहा, “किफायत से खर्च करना अम्मी ! अब जाने कब खरीदने की जुगत लगे ! मैं कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ अम्मी फिकर मत करना ! हालात ठीक होते ही मैं घर वापिस आ जाउँगा !”

 

सलमा बी परेशान हो उठीं ! वो शकील के सामने तन कर खड़ी हो गईं और भेदने वाली नज़रों से शकील  को घूरते हुए पूछा ! 

“सच बता शकील कहाँ जा रहा है तू और क्यों जा रहा है ? तुझे मुँह छिपाने की ज़रुरत क्यों पड़ रही है ?  तेरे अब्बू ने मरते दम तक हमेशा मेहनत की और ईमानदारी से यह घर चलाया,

सच -सच बता अभी जो थोड़े बहुत हालात सुधरे हैं  उसमें किसी गुनाह के रास्ते आई हुई कमाई का शुमार तो नहीं है ना ?

 

शकील सकते में था, “अम्मी, मुझसे कुछ मत पूछो

इस समय ! बस इतना ही कह सकता हूँ कि पेट की आग को बुझाने के लिए रुपयों की ज़रुरत होती है ! फिर वो कहीं से भी मिलें ! मुझे जहाँ से मिले बिना कोई सवाल पूछे मैंने ले लिए ! ”

अगर ऐसा है तो यह हराम की कमाई मुझे कबूल नहीं !”  सलमा बी की आवाज़ काँप रही थी और आँखों से शोले बरस रहे थे !

 

शकील सलमा बी से नज़र मिलाए बिना तेज़ी से बाहर निकल गया !

 

साधना वैद


Sunday, April 27, 2025

भूख का कोई धर्म नहीं होता

 


बैसरन घाटी पहलगाम 

आज का मुद्दा बहुत ही संवेदनशील भी है और बहुत ही जटिल भी ! यह समस्या हमारे देश के एक ऐसे प्रदेश से जुड़ी हुई है जहाँ की आबादी मुस्लिम बहुल है ! देश का विभाजन जब हुआ था तो धर्म के आधार पर ही हुआ था ! भारत में रहने वाले लाखों मुसलमानों को मन में गहरी टीस लेकर अपना देश, शहर, मोहल्ला, घर छोड़ कर यहाँ से जाना पड़ा था कि यह वतन उनका नहीं है क्योंकि वे हिन्दू नहीं हैं उनका धर्म इस्लाम है ! कड़वाहट और नफ़रत के बीज उसी समय बो दिए गए थे ! फिर अब उन बीजों से नफ़रत और आतंक के ये कड़वे फल वाले जंगल उग रहे हैं तो हैरानी कैसी ! पहले भी शायद छुटपुट ऐसी घटनाएं होती हों लेकिन धर्म के नाम पर नफ़रत का ऐसा सैलाब नहीं उमड़ता था ! अब आतंकी सरगनाओं के मदरसों में इसी आतंक की शिक्षा दी जाती है और उनके मन में कूट-कूट कर यह बात भरी गयी है कि हिन्दू लोग बहुत अन्यायी हैं और उन्हें मारना सबसे बड़े सवाब का काम है ! इसी में विशेष योग्यता प्राप्त प्रशिक्षित नौजवान पहलगाम जैसी घटनाओं को अंजाम देने के लिए बिना कुछ सोचे समझे हथियार उठा कर सामने आ जाते हैं ! इन्होंने यह साबित कर दिया है कि आतंक का कोई धर्म हो या न हो धर्म के नाम पर आतंक ज़रूर फैलाया जा सकता है !
भारतवर्ष में मुस्लिमों का आगमन लूटपाट और अपने साम्राज्य के विस्तार के इरादे से हुआ था ! वे यहाँ किसी भाईचारे के इरादे से नहीं आए थे न ही यहाँ की संस्कृति
, सभ्यता या जीवन शैली से प्रभावित होकर आये थे ! हिन्दू धर्म और देवी देवताओं से उन्हें सख्त नफ़रत ही थी इसीलिए उनके आक्रमणों का सर्वप्रथम उद्देश्य मंदिरों का विध्वंस और वहाँ संचित खजानों को लूटना हुआ करता था ! वैसे भी वे मूर्तिपूजा के खिलाफ थे और हिन्दुओं को काफिर कहते थे ! हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करा उन्हें इस्लाम धर्म क़ुबूल करने के लिए बाध्य करना और उनकी स्त्रियों पर कुदृष्टि रखना उनका प्रिय शगल था ! इसीलिये तत्कालीन भारत में हिन्दू रानियों द्वारा युद्ध में पराजय के बाद जौहर करने की प्रथा प्रचलित थी ताकि मुस्लिम आतताई उनकी मृत्यु के बाद उनकी मृत देह के साथ भी दुर्व्यवहार न कर सकें ! हिन्दू मुस्लिमों में भाईचारे और आत्मीयतापूर्ण बंधुत्व की भावना कभी पनप ही नहीं सकी ! अपवादों की बात मैं नहीं कह रही ! ये हर युग में होते हैं ! अतीत में भी थे, आज भी हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे ! लेकिन आम जन के मन में सद्भावना वाली कोई बात नहीं है ! कहीं यह खामोशी अवसरवादिता की वजह से है, कहीं कूटनीति की वजह से और कहीं तूफ़ान से पूर्व किसी भीषण घटना को अंजाम देने के लिए ज़मीन तैयार करने की वजह से है !  
हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर का सामना महाराणा प्रताप से हुआ था ! उस समय अकबर की सेना के सेनापति मानसिह प्रथम थे ! दोनों ओर की सेनाओं में प्रचुर संख्या में राजपूत सैनिक थे जो अपने-अपने आकाओं की वजह से अपने भाई बंधुओं को मारने के लिए विवश थे ! अकबर की फ़ौज के एक मुस्लिम फौजदार ने अपने साथी से पूछा, “सारे राजपूत सैनिक एक तरह की पगड़ी पहने हैं कैसे जानें कि हमारी फ़ौज का सैनिक कौन है और दुश्मन की फ़ौज का कौन ?”
जानते हैं उसे क्या जवाब मिला ! उसके मुस्लिम साथी ने यही कहा, “तुम तो हर पगड़ी वाले को मारो ! चाहे हमारी सेना को हो या राणा की सेना का ! मरेगा तो काफिर ही ! जन्नत में बहुत सवाब मिलेगा हमें !” अब बताइये आतंक का धर्म होता है या नहीं ?
कश्मीर की आम रैयत मुस्लिम है ! ये बहुत भले
, सीधे सादे, ज़रूरतमंद लोग हैं ! हर धर्म में होते हैं ! सियासत, खुराफात, शरारत, और अवसरवादिता के गुण पेट भरे होने के बाद ही विकसित होते हैं ! इसलिए ये भरे पेट वाले धनिकों के शगल हैं ! गरीब का धर्म तो सिर्फ अपना और अपने परिवार का पेट पालना ही होता है ! जिसको जिस स्रोत से धन मिल जाए ! जिनका पेट इमानदारी, मेहनत, और शराफत से रोज़ी रोटी चला कर भर जाता है वे पहलगाम की घटना के विरोध में सड़क पर प्रदर्शन करने जुलूस निकालने आ जाते हैं ! अपराध का रास्ता अपनाना इतना भी आसान नहीं होता और न हर कोई आतंकवादी बनना ही चाहता है ! लेकिन जिनका पेट आतंकवादियों से मिली धन की थैलियों से भरता है वे उनके हाथों बिक जाते हैं और ऐसी खौफनाक घटनाओं को अंजाम देने में उनकी मदद करने लगते हैं ! कभी उनकी बंदूकों के खौफ से और कभी बिना मेहनत किये हाथ आई दौलत के लालच में ! सच तो यह है भूख का कोई धर्म नहीं होता !  



साधना वैद


Tuesday, April 22, 2025

मंजरी

 



नव कुसुमित पुष्पों से वन में 

करते हैं तरुवर श्रृंगार

मधु पीने को व्याकुल भँवरे 

करते हैं मधुरिम गुंजार

पवन मंजरी की खुशबू ले 

उड़ी क्षितिज की सीमा तक

पल भर में हो गए सुवासित 

धरती अम्बर और संसार !




साधना वैद 


Sunday, April 20, 2025

यह न्याय तो नहीं !

 



हमारी न्याय व्यवस्था का पहला उद्देश्य है कि चाहे कोई गुनहगार भले ही छूट जा लेकिन किसी बेगुनाह को दण्ड नहीं मिलना चाहि । निश्चित ही यह करुणा और मानवता से परिपूर्ण एक बहुत ही पावन भावना है । लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो पाता है
यह जो
एक कहावत है Justice delayed is justice denied. अगर यह सत्य है तो हमारे यहाँ तो शायद न्याय कभी हो ही नहीं पाता । एक तो मुकदमे ही अदालतों में सालों चलते हैं दूसरे जब तक फैसले की घड़ी आती है तब तक कई गवाह, यहाँ तक कि चश्मदीद गवाह तक अपने बयानों से इस तरह पलट जाते हैं कि वास्तविक अपराधी सज़ा से या तो साफ-साफ बच जाता है या बहुत ही मामूली सी सज़ा पाकर सामने वाले का मुहँ चिढ़ाता सा लगता है । मथुरा की विद्या देवी को 29 वर्ष चलने वाले हिम्मत को तोड़ देने वाले संघर्ष के बाद भी क्या न्याय मिल पाया ? फिर ऐसे जुमलों का क्या फ़ायदा ! इसके अलावा हमारी व्यवस्था में इतना भ्रष्टाचार व्याप्त है कि रिश्वत देकर किसीका भी म्रत्यु प्रमाणपत्र चुटकियों में बनवाया जा सकता है ! स्वयं अटल बिहारी बाजपेई जी जैसे बड़े नेता का उनके जीते जी फर्जी प्रमाणपत्र बनवा कर सार्वजनिक कर दिया गया तो आम आदमी की तो हैसियत ही क्या है ! चुटकियों में बनवाए गए ऐसे फर्जी दस्तावेजों को अदालतों में ग़लत ठहराने के लिए सालों की लड़ाई लड़नी पड़ती है वह भी अपने स्वास्थ्य और संसाधनों की कीमत पर ! ऐसे में क्या हम सीना ठोक कर यह कह सकते हैं कि फैसला सच में न्यायपूर्ण हुआ है । इसी वजह से समाज में न्याय प्रणाली के प्रति असंतोष और आक्रोश की भावना जन्म लेती है । लोगों में निराशा और अवसाद घर कर जाता है और वक़्त आने पर ऐसे चोट खाए हुए लोग खुद अपने हाथों में कानून लेने से पीछे नहीं हटते । दिन समाचार पत्र दिल दहला देने वाली लोमहर्षक घटनाओं के समाचारों से भरे होते हैं । पाठकों के दिल दिमाग़ पर उनका गहरा असर होता है । लोग प्रतिदिन कौतुहल और उत्सुकता से उनकी जाँच की प्रगति जानने के लिये अख़बारों और टी. वी. के समाचार चैनलों से चिपके रहते हैं लेकिन पुलिस और अन्य जाँच एजेंसियों की जाँच प्रक्रिया इतनी धीमी और दोषपूर्ण होती है कि लम्बा वक़्त गुज़र जाने पर भी उसमें कोई प्रगति नज़र नहीं आती । धीरे धीरे लोगों के दिमाग से उसका प्रभाव घटने लगता है । तब तक कोई न घटना घट जाती है और लोगों का ध्यान उस तरफ भटक जाता है । फिर जैसे तैसे मुकदमा अदालत में पहुँच भी जा तो फैसला आने में इतना समय लग जाता है कि लोगों के दिमाग से उसका असर पूरी तरह से समाप्त हो जाता है और अपराधियों का हौसला बढ जाता है । आम आदमी समाज में भयमुक्त हो या न हो लेकिन यह तो निश्चित है कि अपराधी पूर्णत: भयमुक्त हैं और आ दिन अपने क्रूर और खतरनाक इरादों को अंजाम देते रहते हैं ।
य़दि हमारी न्याय प्रणाली त्वरित और सख्त हो तो समाज में इसका अच्छा संदेश जाएगा और अपराधियों के हौसलों पर लगाम लगेगी । गिरगिट की तरह बयान बदलने वाले गवाहों पर भी अंकुश लगेगा और अपराधियों को सबूत और साक्ष्यों को मिटाने और गवाहों को खरीद कर, उन्हें लालच देकर मुकदमे का स्वरूप बदलने का वक़्त भी नहीं मिलेगा । कहते हैं जब लोहा गर्म हो तब ही हथौड़ा मारना चाहिए । समाज में अनुशासन और मूल्यों की स्थापना के लिये कुछ तो कड़े कदम उठाने ही होंगे । त्वरित और कठोर दण्ड के प्रावधान से अपराधियों की पैदावार पर अंकुश लगेगा और शौकिया अपराध करने वालों की हिम्मत टूट जाएगी ।
इसके लिये आवश्यक है कि न्यायालयों में सालों से चल रहे चोरी या इसी तरह के छोटे मोटे अपराधों वाले विचाराधीन मुकदमों को या तो बन्द कर दिया जाए या जल्दी से जल्दी निपटाया जाए । ऐसे मुकदमों के निपटान के लिये समय सीमा निर्धारित कर दी जाए और भविष्य में और तारीखें ना दी जाएँ । न्यायाधीशों की वेतनवृद्धि और पदोन्नति उनके द्वारा निपटाए गए मुकदमों के आधार पर तय की जाए । अनावश्यक और अनुपयोगी कानूनों को निरस्त किया जाए ताकि अदालतों में मुकदमों की संख्या को नियंत्रित किया जा सके और उनके कारण व्यवस्था में व्याप्त पुलिस और वकीलों के मकड़्जाल से आम आदमी को निजात मिल सके । न्यायालयों की संख्या बढ़ायी जाए और क्षुद्र प्रकृति के मुकदमों का निपटान निचली अदालतों में ही हो जाए । अपील का प्रावधान सिर्फ गम्भीर प्रकृति के मुकदमों के लिए ही हो । सालों से चलते आ रहे मुकदमों के समाप्त होने के बाद बिला वजह तारीखों पर तारीखें लेकर मुकदमों को घसीटने वाले वकीलों को भी दण्डित किया जाना चाहिए ताकि इस उत्पीड़नकारी प्रवृत्ति पर रोक लग सके !
इसी तरह से कुछ ठोस कदम यदि उठाये जाएँगे तो निश्चित रूप से समाज में बदलाव की भीनी-भीनी बयार बहने लगेगी और आम आदमी चैन की साँस ले सकेगा।

साधना वैद


Friday, April 18, 2025

वर्ण पिरामिड

 




क्या 

जानें 

आओगे 

भुलाओगे

कौन बताये 

किस्मत हमारी   

फितरत तुम्हारी ! 


है 

पता 

मुझे भी 

आसाँ नहीं 

दुःख भुलाना 

पर करें भी क्या 

ज़ालिम है ज़माना 


हे 

प्रभु

आशीष 

देना हमें  

न चाहें सुख 

कर्तव्य पथ से 

न हों कभी विमुख 


ये 

फूल 

खिलते 

महकते 

मुस्कुराते हैं 

हमें सुखी कर 

भू पे बिछ जाते हैं ! 


साधना वैद 

Monday, April 14, 2025

बेला के फूल

 




बेला के ये फूल 

कितने सुन्दर, 

कितने सुवासित 

जैसे अधरों पे सजी 

तुम्हारी मधुर मुस्कान, 

जैसे हवाओं में तैरते 

तुम्हारे सुरीले स्वर ! 

हरे कर जाते हैं 

मेरा तन मन और 

मेरे आकुल प्राण ! 

चाहता हूँ गूँथना

एक मोहक सा गजरा 

तुम्हारी वेणी के लिए 

सुरभित हो जाए जिससे 

ये फिजा और महक जाए 

हमारा भी जीवन 

बेला के इन फूलों की तरह ! 

इन सुन्दर फूलों का 

यह सन्देश पावन कर दे हमारा मन 

और सार्थक कर दे 

हमारा प्रयोजन ! 


साधना वैद  

Friday, April 11, 2025

सायली छंद

 




तुम 
क्या गए 
यह जीवन हमारा
हो गया 
बेरंग 

प्रतीक्षा 
करते रहे 
व्याकुल नैन हमारे 
डूब गए 
तारे 

दिलासा  
सिर्फ झूठी  
तुमने दी हमें  
हमने किया 
विश्वास 

तुम
कब आओगे 
अब तो कहो 
चाहती हूँ 
जानना  

द्वार 
खोल कर 
प्रतीक्षारत ही मिलूँगी 
जब आओगे 
तुम 

चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद 

Friday, April 4, 2025

माँ की वन्दना में कुछ माहिया

 





मैया तुम आ जाना 

अपने चरणों से 

घर पावन कर जाना 


मैं बाट निहारूँगी 

तेरे चरणों में 

निज शीश नवाऊँगी


मैं थाल सजाऊँगी

षठ रस व्यंजन का 

माँ भोग चढ़ाऊँगी


मैं चूनर लाऊँगी

चाँद सितारों से 

माँ रूप सजाऊँगी 


माँ द्वार सजाऊँगी 

पूरी श्रद्धा से 

तेरी महिमा गाऊँगी 


खुश होकर हँस देना 

अपने चरणों की

थोड़ी रज दे देना 


साधना वैद

Monday, March 31, 2025

दरकता दाम्पत्य

 



इन दिनों शादी विवाह के प्रसंग और चर्चा आम तौर पर सभी लोगों को बहुत ही चिंतित और आशंकित कर देने वाले विषय हो गए हैं ! एक समय था जब घर में पुत्र-पुत्री विवाह के योग्य हो जाते थे तो अच्छे घर वर की तलाश में जहाँ परिवार के वयस्क सदस्य युद्ध स्तर पर दौड़ धूप करते हुए दिखाई देते थे तो प्रस्तावित युवा भी अपने एक सुन्दर सजीले भविष्य और खूबसूरत जीवनसाथी के साथ एक सुख भरे गृहस्थ जीवन की कल्पना में खो जाया करते थे ! कई बार तो वर वधु एक दूसरे को देखते ही शादी की चर्चा के बाद थे ! और ये शादियाँ सच में बहुत सफल होती थीं ! सात जन्मों का तो नहीं पता लेकिन इस जन्म में अवश्य ही आख़िरी साँस तक निभाई जाती थीं ! उन दिनों घर के किसी सदस्य की शादी का प्रसंग सारे घर का दायित्व बन जाता था और उसमें परिवार के हर सदस्य की इच्छा, सहमति और असहमति का मान रखा जाता था ! लेकिन अब यह परिदृश्य बदल चुका है ! अब तो माता-पिता की भूमिका भी गौण हो गयी है ! अब विवाह करने वाले बच्चे बस माता-पिता को सूचित भर कर देते हैं और उनकी इच्छानुसार माता-पिता भी मेहमान की तरह उनके विवाह में सम्मिलित हो जाते हैं ! कई बार तो उन्हें सूचित भी विवाह के बाद ही किया जाता है ! ऐसी शादियों की उम्र बहुत छोटी होती है और इन शादियों की असफलता का आँकड़ा दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है ! 

असफल वैवाहिक रिश्तों के पीछे अनेक कारण हैं । उन अनेक कारणों में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण कारण है आज के युवाओं की निरंकुश रूप से बढ़ती हुई स्वच्छंदता की प्रवृत्ति और उनकी दिन प्रति दिन विकृत होती जाती मानसिकता ! स्त्री का आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना, पिछली पीढी के मुकाबले अधिक शिक्षित और आत्म विश्वासी होना, अपने निर्णय स्वयं लेने के लिए संकल्पित होना, एक समय था जब इन सभी गुणों का विकास स्त्री स्वातंत्र्य और नारी सशक्तिकरण के सन्दर्भ में बड़े गर्व से देखे जाते थे ! विवाह के समय लड़की के माता-पिता ही लड़की को समझा कर भेजते थे, “ससुराल में किसीसे दब कर रहने की ज़रुरत नहीं है ! कोई परेशानी हो तो हमें बताना ! तुम किसीकी नौकरानी बन कर नहीं जा रही हो ! अपनी शर्तों पर रहना वहाँ !” लेकिन कालांतर में ये ही गुण और यही समझाइश उन्हीं के दाम्पत्य जीवन की सुरक्षा के सन्दर्भ में खतरे की सबसे बड़ी घंटी बन चुकी है ! हर चीज़ जब तक नियंत्रण में होती है अच्छी लगती है ! लेकिन यह भी सत्य है कि अति सर्वत्र वर्जयेत ! आज की युवा पीढी में समानता का ऐसा घमासान छिड़ा हुआ है कि इसकी बहुत बड़ी कीमत उनके बच्चों को, उनके वृद्ध होते माता-पिता को चुकानी पड़ रही है इस बात का उन्हें कोई ख़याल ही नहीं है ! संयुक्त परिवार तो टूट ही चुके हैं ! पति-पत्नी दोनों काम करने वाले हैं इसलिए बच्चों की परवरिश आया, या अनपढ़ नौकरों के हाथों हो रही है ! अक्सर निर्दयी नौकरों के दुर्व्यवहार से त्रस्त उपेक्षित बच्चे मन में आक्रोश का ज्वालामुखी लिए पलते हैं ! ऐसे मामलों में दोषारोपण का ठीकरा पति-पत्नी एक दूसरे के सर पर ही फोड़ते हैं क्योंकि हर बात के लिए दोनों के पास समान अधिकार हैं तो ज़िम्मेदारी भी समान है ! इन्हीं और ऐसे ही अनेक कारणों से रोज़ घरों में अनबन और झगड़े होते हैं ! स्त्रियाँ रिश्ते के आरम्भ से ही बागी तेवर ठान लेती हैं । जब रिश्ते में बँधने वाले दंपत्ति के मन में एक दूसरे के लिए सम्मान की भावना ही न हो, रिश्ते को निभाने का इरादा ही न हो और थोड़ी भी सहनशक्ति न हो तो रिश्तों को टूटने में ज़रा भी देर नहीं लगती ।

आज की पीढ़ी सिर्फ आत्मकेंद्रित है । घर परिवार की प्रतिष्ठा, माता-पिता की मर्ज़ी, समाज की मर्यादा ये सारी बातें उन लोगों के लिए बेमानी हैं । ये ज़िम्मेदारियों से भागते हैं । ये अपना परिवार भी बनाना नहीं चाहते । सास-ससुर की सेवा करना तो बहुत दूर की बात है वे अपने बच्चों की देखभाल भी करना नहीं चाहते । सुनते हैं कि अब तो बच्चों की देखभाल के लिए किराए के माता-पिता भी मिलने लगे हैं जो बच्चों को समय से स्कूल भेजते हैं, उनका ध्यान रखते हैं, उन्हें कहानियाँ और लोरी सुनाते हैं ! अपने परिवार की अब ज़रुरत ही कहाँ रह गई है ! हर चीज़ खरीदी जा सकती है पास में पैसा होना चाहिए ! इसीलिये अब लोगों का फोकस अधिक से अधिक धन कमाने में केन्द्रित हो गया है और शायद इसीलिए विवाह जैसी संस्था की जड़ें ढीली होने लगी हैं ! तलाक के मामलों में पहले से कई गुना वृद्धि हुई है । पहले स्त्री सहनशील होती थी, रिश्तों को प्राणप्रण के साथ निभाने का प्रयास करती थी आज की स्त्री स्वच्छंद हो चुकी है वह अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहती है । विवाहेतर संबंधों के प्रति उसके मन में कोई अपराधबोध नहीं है इसीलिए वह खुल कर इन्हें स्वीकार भी करती है और अपने पति से पीछा छुड़ाने के लिये किसी भी हद तक जा सकती है । फिलहाल ऐसे कई केसेज़ सामने आए हैं जिनमें पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या तक करवा दी । पाश्चात्य जीवन शैली ने भी स्त्रियों की सोच को प्रदूषित किया है । परिवार में संस्कारों और नैतिक मूल्यों का ह्रास, अनुशासनहीनता, निरंकुश जीवन शैली और बिना किसी दायित्व के मौज मस्ती की ज़िंदगी बिताने की चाहत, बेइंतहा आज़ादी इस विघटन का सबसे बड़ा कारण हैं । लिव इन रिलेशनशिप की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है क्योंकि यह सुविधाजनक है ! जब तक अच्छा लगे साथ में रह लिए जब मन भर गया तो साथी भी बदल लिया नई पोशाक की तरह ! न शादी हुई, न बहू बने, न कोई ज़िम्मेदारी निभाई लेकिन विवाह का पूरा सुख उठा लिया ! लड़के भी खुश न शादी की, न पत्नी लाए, अलग हुए तो कोई गुज़ारा भत्ता देने की झंझट भी नहीं, न ही ज़मीन जायदाद पर किसीका कोई हक़ बना ! सारा सार इसी बात में है कि मौज मज़ा भरपूर होना चाहिए और किसी के भी प्रति ज़िम्मेदारी ज़रा सी भी कोई नहीं ! जैसी विकृत मानसिकता होगी समाज का भी वैसा ही रूप उभर कर सामने आयेगा ! समाज के निर्माता भी तो वे ही हैं जो उसके रूप और आकार का अभिन्न अंग हैं !



साधना वैद