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Wednesday, August 31, 2022

मैं और मेरी परछाईं

 




मेरे अंतर की बंजर धरती,

भावों के खोखले बीज,

विरक्ति का शुष्क सा मौसम,

मन पर छाया अवसाद का

पल पल घना होता साया

पूरी तरह से उजड़ गया है

मेरे मन का उपवन !

अब कविता की पौध नहीं उगती

मन के किसी भी कोने में !

कभी जहाँ यह फसल लहलहाती थी

वहाँ सन्नाटों के डेरे हैं

सूखे मुरझाये फूलों के

मृतप्राय पौधे धरा पर

बिखरे पड़े हैं !

अब यहाँ सुगन्धित फूल नहीं खिलते

अब यहाँ तितलियाँ नहीं मँडराती

अब यहाँ बुलबुल गीत नहीं गाती

अब यहाँ भँवरे नहीं गुनगुनाते

अब यहाँ कोई नहीं आता !

यह मेरे अंतर का वह अभिशप्त कोना है

जहाँ सिर्फ मैं हूँ और है मेरी

नितांत निसंग एकाकी परछाईं

जिसका होना न होना किसी के लिए

शायद कोई मायने नहीं रखता !

 

 साधना वैद

 

 


Sunday, August 28, 2022

अलविदा जीजाजी

 


मेरे पितृ तुल्य जीजाजी श्री हरेश कुमार सक्सेना ने २६ अगस्त की शाम ६.३० बजे अपने नश्वर शरीर को त्याग देवलोक के लिए महाप्रस्थान कर लिया ! उनके जाने के बाद नि:संदेह रूप से एक महाशून्य सा हम सबके जीवन में व्याप्त हो गया है लेकिन वह जीजाजी से जुड़ी अनेकों मधुर स्मृतियों के सौरभ से सुरभित और समन्वित है जैसे किसी पावन अनुष्ठान के बाद समूचा घर अगर कपूर की सुगंध से गमक उठता है !
हमारे जीजाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ! उनका सारा जीवन अध्ययन अध्यापन में बीता ! मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों में वे उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में और पी जी बी टी कॉलेज में प्रिंसीपल के पद पर कार्यरत रहे लेकिन इसके साथ ही वे एक कुशल तैराक, बहुत ही शानदार खिलाड़ी, एक सिद्धहस्त शिकारी और बहुत ही मधुर एवं सुरीले गायक भी थे ! बैडमिन्टन कोर्ट में जब वो बिजली की तरह पूरे कोर्ट को कवर करते हुए शॉट पर शॉट देते थे तो दर्शक हैरानी से दाँतों तले उँगलियाँ दबा लेते थे ! उन्हें हराना आसान नहीं होता था !
तैरने में उनका कोई सानी नहीं था ! खुली नदी में तैरना उन्हें बहुत पसंद था और चुटकियों में वे क्षिप्रा का चौड़ा पाट इधर से उधर पार कर लेते थे ! मुझे भी तैरना उन्होंने ही सिखाया था ! मुझे याद है छोटे थे हम और हमसे वो कहते थे, “कूद जाओ साधना पानी में” और तैरना न जानते हुए भी घाट की ऊँची मुँडेर से हम पानी में छलाँग लगा देते थे और जीजाजी नदी के किसी भी हिस्से में होते थे हमें झट से आकर गोते खाने पहले ही बचा लेते थे ! फिर पूछते, “ऐसे ही कूद गयीं ! तुम्हें डर नहीं लगता ?” हमारा जवाब होता, “हम जानते थे आप हमें डूबने नहीं देंगे !” ऐसे थे हमारे जीजाजी ! उन पर हमें हिमालय जितना भरोसा था ! हमारा तो जीवन ही उनके कारण बचा हुआ है वरना सालों पहले अरब सागर के जल जंतुओं का हम भोजन बन चुके होते ! सन १९६४ की बात है ! हायर सेकेंडरी की परीक्षाओं के बाद हमारा पूरा परिवार जगन्नाथ पुरी घूमने गया ! मम्मी, बाबूजी, हम तीनों भाई बहन, जीजाजी और उनकी बड़ी बेटी स्मिता जो उस वक्त साल सवा साल की होगी ! समुद्र से हमारा यह पहला साक्षात्कार था ! जगन्नाथ पुरी का तट रेतीला है और समुद्र की लहरें बहुत ही तीव्र और डरावनी ! हम समुद्र से काफी दूर आराम से रेत पर बैठे हुए आस पास का नज़ारा ले रहे थे कि अचानक से बहुत बड़ी सी लहर आई और हमारे नीचे की रेत के साथ साथ हमें भी बहा ले चली ! जीजाजी हमसे काफी दूर आगे घुटनों तक गहरे पानी में खड़े हुए थे ! हमें बहते देख एकदम से चीख पुकार मच गयी ! जीजाजी ने तुरंत पलट कर हमें सम्हाला ! हमें याद है हम जीजाजी का हाथ पकड़ कर पेंडुलम की तरह झूल रहे थे ! अगर वो न होते तो हम समुद्र की अतल गहराइयों में समा गए होते ! इसीलिये हमारे हीरो थे हमारे जीजाजी !
शिकार उनका जुनून था ! शिकार से जुड़े उनके किस्से इतने रोमांचक होते थे कि हम सब हैरानी से मुँह खोले घंटो सुना करते ! हवा में उड़ती चिड़िया और पानी में तैरती मछली को भी वो मार देते थे ज़मीन पर चलने वाले प्राणियों पर तो उनका निशाना अचूक होता ही था ! उनके घर में दीवारों पर हमेशा लाइसेंसी बंदूकें किसी आर्ट पीस की तरह सजी रहतीं और जब वो उनकी सफाई और सर्विसिंग करते तो सब बच्चों के लिए कौतुहल और मनोरंजन का बहुत ही बढ़िया शगल हो जाता ! हाँलाकी जीजी के साथ कई बार इसी बात पर उनकी खटपट भी हो जाती लेकिन खाने में सिर्फ मीठा ही मीठा हो तो आनंद कहाँ आता है ! थोड़ा नमकीन तो ज़रूरी होता है ना संतुलन के लिए ! इसके बाद फिर रूठने मनाने में भी तो एक अपूर्व आनंद होता था !
जीजाजी एक बहुत ही अच्छे पुत्र, भाई, पति और पिता थे ! उन्होंने हमेशा अपने परिवार को सर्वोपरि रखा और हर भूमिका में सफलतापूर्वक अपने दायित्वों को बखूबी निभाया ! हमें इस बात का बहुत ही गर्व है कि अपने सभी बच्चों को उन्होंने बहुत ही सुयोग्य, संस्कारवान और सुशिक्षित बनाया और वे सभी अपने अपने जीवन में सफल एवं स्थापित हैं !
जीजाजी एक कुशल वक्ता, एक बहुत ही सुरीले गायक और उच्च कोटि के एंकर भी थे ! उज्जैन में कहीं भी कोई समारोह हो संचालन के लिए अक्सर उन्हें ही याद किया जाता था ! मुकेश और के. एल. सहगल उनके पसंदीदा गायक थे और उनके गीत उनकी आवाज़ पर बहुत सूट भी करते थे ! संगीत का कोई भी कार्यक्रम उनके गीतों के बिना पूरा नहीं होता था ! वो शेर-ओ-शायरी के भी बहुत शौक़ीन थे ! अभी इसी साल होली से पहले जब मैं उनसे मिलने गयी थी तब अस्वस्थ होते हुए भी उन्होंने मेरे साथ मुकेश के कई गीत दोहराए थे ! ‘सारंगा तेरी याद में’ उनका फेवरेट गीत था ! यही गीत उन्होंने मेरे साथ उस दौरान कई बार गाया था !
अब तो यह गीत हम जब भी दोहराएंगे उन्हें याद करते हुए हमारे नयन भी बेचैन हो जायेंगे ! जीजाजी आप जहाँ भी रहें हमेशा इसी तरह अपने आसपास के वातावरण को सुगन्धित और पवित्र बनाए रखियेगा हमें विश्वास है वह महक हम तक भी ज़रूर पहुँच जायेगी ! हम हमेशा आपको अपनी स्मृतियों में जीवंत रखेंगे ! हमारा सादर नमन एवं अश्रुपूरित श्रद्धांजलि स्वीकार करिये !
साधना वैद

Thursday, August 25, 2022

हाँ वो सच्चे वीर थे

 



भारत की पावन माटी के

वो रक्षक रणवीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे

हाँ वो सच्चे वीर थे !


सबल सशक्त शत्रु के आगे 

झुके नहीं नत मस्तक हो !

कमर तोड़ने को शत्रु की

लड़ते रहे समर्पित हो !

थे पर्वत से धीर अटल वो 

सागर से गंभीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे

हाँ वो सच्चे वीर थे !


हँसते-हँसते झूल गये वो

फाँसी के फंदे को चूम !

थी उनमें कुछ बात अनोखी  

रहते थे मस्ती में झूम !

जिसने देखा थर थर काँपा

वो ऐसी शमशीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे !


नहीं कहीं था उनके मन में

भय का थोड़ा सा भी लेश,

वो साहस के पुतले थे

धारा था बलिदानी का वेश !

धर्म देश ही कर्म देश ही

जिनका ये वो मीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे

हाँ वो सच्चे वीर थे !


सीमित साधन और निर्धनता

कभी आड़े पाई !

बड़ेबड़े उनके करतब से

सारी दुनिया थर्राई !

दुश्मन को भी धूल चटा दें

निर्भय वो बलवीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे

हाँ वो सच्चे वीर थे !


जाने कितने क़त्ल हो गये

जलियाँवाला बाग में

जाने कितने लटकाए

पेड़ों पर झौंके आग में !

मातृभूमि का क़र्ज़ चुकाया

ऐसे वो सतवीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे

हाँ वो सच्चे वीर थे !


भगत सिंह, सुख देव, राजगुरु

अशफाकुल्ला और आज़ाद

जान लुटा दी सबने अपनी

करने को भारत आज़ाद !

लक्ष्भेदी बाणों से सज्जित

जिनके सभी तुणीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे !


और जाने कितने ही

दीवानों का लिखा है नाम

भारत माता की रक्षा में

हँस कर दे दी अपनी जान !

प्राण हथेली पर रखते थे

ऐसे वो रणधीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे

हाँ वो सच्चे वीर थे !


काश आज हर भारत वासी

याद रखे उनका बलिदान

जात पाँत और ऊँच नीच को

भूल करे उनका सम्मान !

वो भारत के कर्णधार थे

भारत की तकदीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे

हाँ वो सच्चे वीर थे !


चलो चलें उनके कदमों पर

करें देश पर हम अभिमान

अपने सत्कर्मों से उज्जवल

करें विश्व में हिन्दुस्तान !

गर्व कर सकें वो हम पर भी

हम जिनकी तस्वीर थे !

हाँ वो सच्चे वीर थे

हाँ वो सच्चे वीर थे !

 

साधना वैद