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Sunday, January 30, 2022

शहीद दिवस


 

महात्मा गाँधी

देश के राष्ट्र पिता

हमारे बापू |

 

देश का मान

अहिंसा के पुजारी

सत्य के व्रती |

 

न झुके कभी

तन के डटे रहे

न रुके कभी |

 

पीर पराई

सदा हृदय धारी

आकुल मना |

 

अर्पित किया

तन मन जीवन

देश के हित |

 

बापू हमारे

देश का अभिमान

हमारा मान |

 

दुर्बल तन

शक्तिशाली था मन

दृढ संकल्प |

 

मुक्त कराया

काट कर बेड़ियाँ

देश हमारा |

 

खुद न झुके

झुकाया विरोधी को

ऐसे थे बापू |

 

कभी न डरे

डराया विरोधी को

यह थे बापू |

 

भारतवासी

चरणों में तुम्हारे

हैं नतशिर  |

 

करें वंदन

शत शत नमन

अभिनन्दन  |

 

 

साधना वैद  

 

 

Tuesday, January 25, 2022

तुम देखना माँ

 


मुझे दुर्बल समझने की
भूल न करना तुम
कोमलांगी भले ही हूँ लेकिन
आत्मबल की ज़रा भी
कमी नहीं है मुझमें !
निमिष मात्र में
सारी वर्जनाएं तोड़ दूँगी,
सारी रूढ़ियों को समूल
उखाड़ फेंकूँगी,
सड़ी गली परम्पराओं को
पल भर का समय लगाए बिना
जीवन की स्लेट पर से पल भर में
पोंछ कर मिटा दूँगी मैं !
इतिहास रचना है सफलता का मुझे !
यश के सर्वोच्च शिखर पर
अपना कीर्ति ध्वज फहराना है मुझे !
मेरी अभ्यर्थना के लिए तुम
तैयार तो रहोगी न माँ !
तुम देखना माँ
एक दिन धरती आकाश की
सारी दूरियों को पार कर
मैं चाँद के माथे पर
अपने हस्ताक्षर कर आउँगी !
इन्द्रधनुष की सतरंगी चूनर में
आकाश के सारे सितारे टाँक कर
मैं उसे ओढूँगी और
सातों सागरों की लहरों पर
ऐसा नर्तन करके दिखाऊँगी कि
तुम्हें नाज़ होगा अपनी बेटी पर !
मेरे माथे पर प्यार भरा चुम्बन देकर
तुम मुझे शुभाशीष तो दोगी न माँ !
मैं तुम्हारी आँखों में उस अभूतपूर्व
हर्षोल्लास और गर्व की
चमक देखना चाहती हूँ माँ !


साधना वैद

चित्र - गूगल से साभार

Saturday, January 22, 2022

सप्तपदी

 



तुम ही तो चाहते थे

आज के फास्ट फ़ूड जैसी

त्वरित इंस्टेंट शादी,

बिना किसी आडम्बर के

बिना शोर शराबे के

बिना भीड़ भाड़ के

बिना पंडित पुरोहितों के

बिना धार्मिक विधि विधान के !

कोर्ट मेरिज का सुझाव भी तो

तुम्हारा ही था !

फिर क्यों अनमने हो उठे थे तुम

मजिस्ट्रेट के कक्ष में

विवाह के परिपत्र पर

हस्ताक्षर करने के बाद ?

क्यों पूछा था घर आकर

हो गयी शादी ?

क्या हम अब सच में

पति पत्नी बन गए ?

अगर हाँ तो ऐसा

महसूस क्यों नहीं हो रहा ?

मैंने देखा है वर वधु को

मंडप के नीचे

हर वचन को दोहराने के बाद

उनके चहरे के हाव भाव कैसे

बदलते जाते हैं !

सप्तपदी के हर फेरे के साथ

कैसे उनकी चाल

धीर गंभीर होती जाती है !

माँग में सिन्दूर पड़ते ही

कैसे वधु बनी अल्हड बालिका

अनायास ही सात जन्मों के

बंधनों को निभाने के लिए

अपने पति का हाथ थाम

संसार की हर बाधा को

पार करने के लिए

तत्पर हो जाती है !

ये सारे विधि विधान केवल  

मनोरंजन भर नहीं,

विवाह की गुरुता को

समझने के लिए

भी बहुत ज़रूरी हैं !

तभी तो आसान नहीं रह जाता

इन बंधनों से  

आसानी से मुक्ति पाना !


चित्र - गूगल से साभार 

 

साधना वैद

 

 

 


Sunday, January 16, 2022

तुम्हारा आना

 



तुम्हारा आना

नयनों का लजाना

बातों का बिसराना

याद आ गयीं

वो बिसरी सी बातें

मीठी सी मुलाकातें

 

पुराने दिन

कॉलेज का ज़माना

तेरा खिलखिलाना

कैसे भूलेंगे

वो खिलन्दड़ापन

वो चुहलबाजियाँ

 

आओ फिर से

महफ़िल सजाएं

हँस लें मुस्कुराएँ

न जाने फिर

ऐसे सुन्दर दिन

कभी आयें न आयें  

 

आ जाओ साथी

खुशियाँ फिर जी लें

सुख मदिरा पी लें

चूक न जाएँ

दो दिन का जीवन 

हँस हँस के जी लें !

 

साधना वैद



सोदोका विधा में एक रचना 


Friday, January 14, 2022

मकर संक्रांति – चंद हाइकु

 



अद्भुत पर्व

मकर संक्रांति का

शुभकामना

 

फैला उत्साह

उषा किरण संग

सूर्योपासना

 

उड़ें पतंग

सुदूर गगन में

रंग बिरंगी

 

करती बातें

पंछियों की टोली से 

हर्षित संगी

 

सूर्य देवता

हुए उत्तरायण

दिशा बदली

 

सौंधी सुगंध

तिल गुड़ खोये की

घर में फ़ैली
 

लोहड़ी बीहू

पोंगल औ’ संक्रांति

कितने नाम

 

सभी मनाते

सम्पूर्ण भारत में

पर्व महान

 

दान धर्म का

विशेष है महत्त्व

पुण्य कमायें

 

मनाएं पर्व

उत्साह उल्लास से 

दुःख भुलाएँ  

 

गुड़ खाकर

बोलें मीठी बोलियाँ

दिलों को जीतें

 

हर त्यौहार

विधिवत मनाएं

भाग्य भी जीतें

 

साधना वैद


Thursday, January 13, 2022

प्री वेडिंग फोटो शूट - उचित या अनुचित

 



प्री वेडिंग फोटो शूट का चलन अभी कुछ सालों से ही समाज में दिखाई देना शरू हुआ है ! समाज में इसके अलावा लिव इन रिलेशनशिप का चलन भी ज़ोर पकड़ रहा है ! ऐसी और भी कई  आयातित परम्पराएं प्रथाएं चल रही हैं जिन्हें न तो धर्म ने मान्यता दी है, न क़ानून ने, न हमारी परम्पराओं ने और न ही घर परिवार के बड़े बुजुर्गों ने ! लेकिन व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के नाम पर वे भी परम्परावादी सोच के समानांतर चल ही रही हैं समाज उन्हें स्वीकारे या न स्वीकारे ! स्वयं को उदारवादी और आधुनिक कहने और समझने वाले लोग भी अपने घर की बहन बेटियों की बात आने पर पुरातन पंथी हो जायेंगे और उन्हें शादी से पूर्व लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इजाज़त कतई नहीं देंगे ! वैसे आजकल अनुमति लेकर कौन काम करता है ! आज की युवा पीढी सोचती नहीं कर गुज़रती है फिर परिणाम जो भी हो ! आजकल जब शादी का बंधन काँच से भी अधिक नाज़ुक हो गया है तो प्री वेडिंग फोटो शूट का कोई अर्थ नहीं रह जाता ! आधुनिकता के नाम पर विवाह से पूर्व ही फ़िल्मी स्टाइल में फ़ोटोज़ खिंचवाना अजीब लगता है ! हमसे पहले वाली पीढ़ी को तो अपने जीवनसाथी का दर्शन ही शादी के बाद मिलता था ! हमारे ज़माने में विवाह पूर्व एक बार देखने दिखाने का सिलसिला आरम्भ हुआ ! अब तो विवाह से पहले ही युवक युवती इतनी स्वतन्त्रता लेने लगे हैं कि विवाह के बाद के रोमांच, उत्सुकता, कौतुहल, किसी भी बात के लिए गुंजाइश ही बाकी नहीं रह जाती और अगर यह विवाह असफल हो गया या रिश्ता होने से पहले ही टूट गया तो प्री वेडिंग फोटो शूट के वही फ़ोटोज़ जीवन भर के लिए मन के संताप को बढ़ाते हैं ! मेरी नज़र में यह एक व्यर्थ की कवायद है ! विवाह के बंधन में बँध जाने के बाद ही यह सब अच्छा लगता है ! पाश्चात्य समाज की परम्पराओं और फ़िल्मी कलाकारों की नक़ल न ही की जाए तो बेहतर है ! भारतीय समाज में मध्यम वर्ग से ही मर्यादित आचरण और संस्कार संस्कृति के संरक्षण और उनकी महत्ता के निर्वहन की अपेक्षा की जाती है !

मुझे तो इस प्री वेडिंग फोटो शूट की काॅन्सेप्ट ही पसंद नहीं है ! यह भी औरों की देखा देखी होड़ में फिजूलखर्ची को बढ़ाने का एक व्यर्थ का उपक्रम है ! शादियों में सादगी हो और खर्च कम किये जाएँ वही सबके हित में होता है ! कुछ पैसे वाले धनी लोग जो आये दिन विदेश जाते रहते हैं और पाश्चात्य जीवन शैली को पसंद करते हैं वे अपने यहाँ की शादियों में ऐसी परम्पराओं का पालन करके समाज को गलत सन्देश देते हैं ! पहले शादी एक पवित्र अनुष्ठान होता था जो सादगी के साथ धार्मिक रीति रिवाजों के साथ सादगी से संपन्न किया जाता था और पति पत्नी इसे सात जन्मों का बंधन मान पूरी निष्ठा और समर्पण से इसे आजीवन निभाते थे ! पहले बिलकुल सादी सी पीली पछिया पहन कर कन्या की सप्तपदी हो जाती थी ! अब हज़ारों लाखों रुपये तो दूल्हा दुलहन के कपड़ों और गहनों में खर्च हो जाते हैं ! उस पर इस प्रकार की प्री वेडिंग फोटो शूट की परम्पराओं ने माता पिता को मानसिक उधेड़बुन में तो डाला ही है उनके बजट पर भी बुरा असर डाला है ! विवाह के नाम पर आडम्बर और दिखावे में जितनी फिजूलखर्ची होती है उसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता ! एक दोस्त फोटो शूट के लिए विदेश गया है तो दूसरे को भी वहीं जाने की इच्छा होगी आमदनी चाहे दोस्त से आधी हो ! शान को बट्टा न लग जाए कहीं ! फिर तस्वीरें खिंचवाते समय प्रस्तावित युगल कितनी स्वतन्त्रता ले लेते हैं उस पर नियंत्रण कौन रखेगा ! कई बार शादी की फ़ोटोज़ और वीडियो देखने के दौरान घर के बड़े बूढ़े लज्जित से होकर कमरे से बाहर चले जाते हैं ! यहाँ मर्यादा की सीमा रेखा कौन तय करेगा ? और क्या सभी लोगों की सोच और आचरण एक सा ही होता है ? और ज़रा सोचिये आजकल रिश्ते ज़रा ज़रा सी बात पर टूट जाते हैं ! प्री वेडिंग फोटो शूट के बाद दोनों परिवारों में किसी बात पर अनबन या असहमति हो गयी और रिश्ता विवाह होने से पूर्व ही टूट गया तो इन फ़ोटोज़ को लेकर दोनों ही बच्चे कितने असहज और शर्मिन्दा से रहेंगे और फिर नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग इन तस्वीरों का उपयोग लड़का लड़की को बदनाम या ब्लैकमेल करने के लिए भी कर सकते हैं !

 मेरे विचार से इन विदेशी परम्पराओं और रीतियों से हमारे समाज को और हमारे बच्चों को बचना चाहिए ! कुछ बातें बहुत ही निजी और अन्तरंग होती हैं उनका प्रदर्शन सबके सामने किया जाए यह कतई ज़रूरी नहीं होता !

बच्चों को भी समझना चाहिए ! शादी करने जा रहे हैं ! दूध पीते बच्चे नहीं है ! फिजूलखर्ची करके कंगाल बन जाएँ यह कहाँ की समझदारी है ! समाज में जागरूकता लाने के लिए, शादी ब्याह में व्यर्थ के आडम्बरों में फिजूलखर्ची को बंद कराने के लिए प्रयत्न तो करने ही होंगे ! शादी दो व्यक्तियों को जीवन भर के लिए एक दूसरे से जोड़ती है ! यह बिना दिखावे, शोर शराबे और आडम्बर के जितनी सादगी से संपन्न हो वही सबके हित में है ! इसलिए जो चीज़ें गैर ज़रूरी हैं उन्हें छोड़ देना ही उचित है ! वरना फिजूलखर्ची की होड़ में लग गए तो उसका तो कहीं अंत ही नहीं है !

 

साधना वैद


Thursday, January 6, 2022

दस्तूर ए बाज़ार

 



न जाने क्यों

मुझे बाज़ार का यह दस्तूर

समझ नहीं आता

कोई दुकानदार कोई खरीदार

समझ नहीं आता

न जाने क्या खरीदना चाहते हैं लोग

न जाने क्या बेचना चाहते हैं लोग

मुझे तो संशय और संभ्रम का

यह संसार ही समझ नहीं आता

मुझे बाज़ार का यह दस्तूर

समझ नहीं आता !

अपने निस्वार्थ प्रेम, त्याग, समर्पण,

निष्ठा का आज तक मुझे

कोई खरीदार ना मिला

और जो बेहद आकर्षक और

सुन्दर पैकिंग में लपेट कर वो बेचते हैं

सजीले सपने, झिलमिल आकांक्षाएं,

उड़ान भरने को तैयार अभिलाषाएं

उनका तो ढेरों मलबा

अरमानों और हसरतों की

चमकदार पन्नियों के साथ

इफरात में मेरे अंतर्मन के

हर कोने में भरा पड़ा है

कहो तो किससे जाकर करूँ मैं गिला !

इसीलिये मुझे तो खरीद फरोख्त का

यह कारोबार ही समझ नहीं आता

मुझे बाज़ार का यह दस्तूर

समझ नहीं आता !


चित्र - गूगल से साभार ! 

 

साधना वैद


Monday, January 3, 2022

पर्वत धारा

 



उन्मुक्त किया

पर्वत ने धारा को

बही सरिता

 

पर्वत राज

न हुआ विचलित

कटूक्तियों से

 

सम्मान किया

सम्पूर्ण हृदय से

नारी मन का

 

भरोसा किया

स्त्री नहीं सुकोमल

जीतेगी विश्व

 

सुलझा लेगी

हर उलझन को

बुद्धि बल से

 

पार करेगी

हर अवरोध को 

पराक्रम से

 

समाधान है 

वो हर समस्या का

बुद्धिमान है

 

द्रुत गति से 

कल कल बहती

गतिमान है !

 

साधना वैद