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Thursday, January 6, 2022

दस्तूर ए बाज़ार

 



न जाने क्यों

मुझे बाज़ार का यह दस्तूर

समझ नहीं आता

कोई दुकानदार कोई खरीदार

समझ नहीं आता

न जाने क्या खरीदना चाहते हैं लोग

न जाने क्या बेचना चाहते हैं लोग

मुझे तो संशय और संभ्रम का

यह संसार ही समझ नहीं आता

मुझे बाज़ार का यह दस्तूर

समझ नहीं आता !

अपने निस्वार्थ प्रेम, त्याग, समर्पण,

निष्ठा का आज तक मुझे

कोई खरीदार ना मिला

और जो बेहद आकर्षक और

सुन्दर पैकिंग में लपेट कर वो बेचते हैं

सजीले सपने, झिलमिल आकांक्षाएं,

उड़ान भरने को तैयार अभिलाषाएं

उनका तो ढेरों मलबा

अरमानों और हसरतों की

चमकदार पन्नियों के साथ

इफरात में मेरे अंतर्मन के

हर कोने में भरा पड़ा है

कहो तो किससे जाकर करूँ मैं गिला !

इसीलिये मुझे तो खरीद फरोख्त का

यह कारोबार ही समझ नहीं आता

मुझे बाज़ार का यह दस्तूर

समझ नहीं आता !


चित्र - गूगल से साभार ! 

 

साधना वैद


14 comments :

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी एक रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।
    नववर्ष मंगलमय हो।

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०८-०१ -२०२२ ) को
    'मौसम सारे अच्छे थे'(चर्चा अंक-४३०३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

      Delete
  3. त्याग, समर्पण,निष्ठा और प्रेम की भावनाएँ अनमोल हैं, इन्हें हवा और धूप की तरह सब के हिस्से में दिया है परमात्मा ने पर अक्सर लोग इन्हें मन की गहराई में छिपाकर भूल ही जाते हैं

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    Replies
    1. जी बिलकुल सही कहा आपने ! इस भौतिकवादी दुनिया में इनका खरीदार कोई नहीं मिलता ! आपका बहुत बहुत आभार अनीता जी !

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  4. अत्यंत गहन भावपूर्ण रचना..
    वाकई जीवन-व्यवहार में उतरती बाज़ार की परिपाटी को समझना बेहद कठिन है...
    बहुत सुंदर रचना 🌷

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    1. हार्दिक धन्यवाद शरद जी ! आपका बहुत बहुत आभार !

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।

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    1. स्वागत है आपका दीपक जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !

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  6. अपने निस्वार्थ प्रेम, त्याग, समर्पण,
    निष्ठा का आज तक मुझे
    कोई खरीदार ना मिला
    और जो बेहद आकर्षक और
    सुन्दर पैकिंग में लपेट कर वो बेचते हैं
    सजीले सपने, झिलमिल आकांक्षाएं,
    उड़ान भरने को तैयार अभिलाषाएं
    उनका तो ढेरों मलबा.....!
    यही हकीकत है इस जमाने की!
    उम्दा सृजन😍💓

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  7. हार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! आपका बहुत बहुत आभार !

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  8. सुप्रभात
    उम्दा अभिव्यक्ति |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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