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Tuesday, December 28, 2021

चिकित्सालय, एलोपैथी, आयुर्वेद और योग

 



हमारे शरीर को अपने पूरे जीवन काल में अनेक कारणों से इलाज की सहायता की आवश्यकता पड़ती है ! वो कारण हैं मामूली बुखार खाँसी जैसी बीमारियाँ अथवा मलेरिया, टायफाइड या कोरोना जैसी गंभीर बीमारियाँ ! रोज़ के जीवन में अनेक प्रकार की दुर्घटनाओं के कारण घायल हो जाने पर भी इलाज की ज़रुरत होती है ! यह चोट छोटी मोटी भी हो सकती है और किसी बड़ी दुर्घटना के कारण हड्डी टूटने जैसी या अंग भंग जैसी गंभीर भी हो सकती है !

मनुष्य ने प्राचीन समय से ही जो भी वस्तुएं व साधन उपलब्ध होते थे उन्हीं से अपना इलाज शुरू किया ! तरह तरह की पत्तियों, फूलों और उनके बीजों को खाकर उसने यह समझना शुरू कर दिया कि कौन सी वनस्पति किस रोग में लाभकारी होती है ! चोट लग जाने पर इन्हीं पत्तियों आदि को पीस कर जख्म पर लगाने से और उसके ऊपर पट्टी बाँधने से मनुष्य ने आरंभिक ( फर्स्ट एड ) चिकित्सा करना सीखा ! हड्डी टूट जाने पर बाँस के टुकड़े के साथ पट्टी बाँध देना इसी तरह का इलाज होता था !

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ! जल्दी ही समूह में रहना उसे अच्छा लगने लगा ! अपने समूह में रहने वाले उस व्यक्ति, जिसको इस प्रकार इलाज करना अधिक अच्छा आता था, वह धीरे धीरे उस समय का डॉक्टर बन गया !

आधुनिक समय में तो यह इलाज की कला पूरी तरह से विज्ञान बन चुकी है और उसको विश्व विद्यालयों में अनेक कोर्स बना कर पढ़ाया भी जाने लगा है ! सबसे छोटा चिकित्सालय वह होता है जिसमें एक डॉक्टर  और एक सहायक अथवा नर्स होती है ! वहाँ पर साधारण बीमारियों की दवाएं भी उपलब्ध होती हैं ! इन्हें बोलचाल की भाषा में डॉक्टर साहेब की दूकान कहा जाता है ! यह एक तरह के वाक इन अस्पताल होते हैं जिनमें कोई भी मरीज़ जा सकता है और डॉक्टर की सलाह से अपना इलाज करवा सकता है !

ख़ास तरह के रोगों के लिए यहाँ से मरीजों को विशेषज्ञों द्वारा चलाये जाने वाले चिकित्सालयों में भेज दिया जाता है जहाँ पर अनेक प्रकार के उपकरण व टेस्टिंग की सुविधाएं भी होती हैं ! इन्हें क्लीनिक कहा जाता है ! ये भी बहुत उपयोगी होते हैं !

चौबीस घंटे इलाज की सुविधा देने वाले बड़े क्लीनिकों को अस्पताल कहा जाता है ! यहाँ पर मरीज़ के रहने की भी सुविधा होती है ! एक्स रे की मशीन आदि अन्य उपकरण भी लगे होते हैं ! डॉक्टर्स भी अनेक होते हैं जो बारी बारी आकर चौबीस घंटे इलाज की सुविधा देते हैं ! ज़रुरत पड़ने पर बाहर से दूसरे विशेषज्ञ आकर भी चिकित्सा कर सकते हैं ! ऑपरेशन की सुविधा भी यहाँ उपलब्ध होती हैं ! इसी प्रकार के और भी बड़े अस्पताल भी होते हैं जिनमें एक साथ अनेकों रोगियों का इलाज किया जा सकता है !

ऐसे बड़े अस्पताल भी होते हैं जिनमें मरीजों के इलाज के साथ साथ डॉक्टर्स और नर्सों की शिक्षा और प्रशिक्षण का प्रबंध भी होता है ! इन्हें मेडिकल कॉलेज वाले अस्पताल कहा जाता है ! यहाँ के डॉक्टर्स बहुत अनुभवी होते हैं व लाइब्रेरी, प्रयोगशाला व शोध आदि करने की सुविधाएं भी होती हैं !   

भारत में उपचार के लिए एलोपैथी और आयुर्वेद दोनों पद्धतियों का प्रयोग होता है ! एलोपैथिक एक आधुनिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें दवाओं और सर्जरी द्वारा छोटी बड़ी बीमारियों का इलाज किया जाता है ! इसकी दवाएं अनेक तरह के रसायनों को मिला कर आधुनिक प्रयोगशालाओं में बनाई जाती हैं और गोली, इंजेक्शन व सीरप के रूप में इन दवाओं का उत्पादन किया जाता है ! एलोपैथी से इलाज की शिक्षा मेडीकल कॉलेज में दी जाती है ! सबसे पहली डिग्री को एम बी बी एस कहते हैं ! इसके ऊपर एम एस और एम डी डिग्रियाँ विशेषज्ञों के लिए होती हैं ! सर्जरी के लिए तरह तरह के यंत्र और मशीनों की सहायता ली जाती है ! एलोपैथी तत्काल आराम और लम्बे इलाज दोनों के लिए लाभकारी है ! इसकी दवाओं को डॉक्टर्स की सलाह से ही प्रयोग में लाना चाहिए ! पूरी दुनिया में इस पद्धति का प्रयोग बीमारी का इलाज और उसकी रोक थाम दोनों के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है !

आयुर्वेदिक पद्धति भी इलाज की एक बहुत प्राचीन पद्धति है ! जिसका अविष्कार भारत में प्राचीन काल में हुआ था ! आयुर्वेद में दवाएं प्राकृतिक पदार्थों जैसे जड़ी बूटियाँ, पत्तियाँ व बीज और लवण आदि का प्रयोग कर निर्मित की जाती हैं और इनसे बीमारियों का इलाज किया जाता है ! इस पद्धति में डॉक्टर को वैद्य जी कहा जाता है जो आयुर्वेदिक विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते हैं और इस पद्धति में इलाज करने की डिग्री प्राप्त करते हैं ! आयुर्वेद की दवाओं का मानव शरीर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है इसलिए इस पद्धति से किये जाने इलाज को सुरक्षित माना जाता है ! इसका इलाज एलोपैथी की तुलना में कुछ समय तो अधिक लेता है किन्तु रोग को जड़ से दूर कर देता है ऐसा माना जाता है ! सर्जरी इस पद्धति में भी होती है और आजकल आधुनिक यंत्रों का प्रयोग भी किया जाने लगा है ! भारत में इन दोनों पद्धतियों का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है ! कभी कभी तो एक ही मरीज़ अपनी दो बीमारियों में किसी एक बीमारी का इलाज आयुर्वेदिक पद्धति से करते हैं और दूसरी का इलाज एलोपैथी पद्धति से करना पसंद करते हैं ! इसकी दवाएं अधिकतर चूर्ण के रूप में एवं काढा या आसव इत्यादि के रूप में बनती हैं जिन्हें आजकल गोलियों व कैप्सूल के रूप में भी बनाया जा रहा है !

उपचार की इन दोनों पद्धतियों से अलग लेकिन बहुत असरकारी एक और पद्धति है जिसे योग कहते हैं ! योग वास्तव में व्यायाम करने का एक वैज्ञानिक तरीका है जिसे प्रारम्भ में तो हमारे साधू संतों ने स्वयं को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए विकसित किया जिससे वे दूरस्थ प्रदेशों में बिना किसी चिकित्सकीय सहायता के अपना जीवन सुगमता से बिता सकें ! योग में शरीर के सभी अंगों व मांसपेशियों को व्यायाम के द्वारा इस तरह से संचालित किया जाता है कि बीमार अंग शक्तिशाली होकर बीमारी को बिना दवा के ही दूर भगा देता है ! योग में हर बीमारी व हर अंग के लिए अलग अलग तरह के व्यायाम निर्धारित किये गए हैं जिन्हें आसन कहा जाता है ! योग बच्चे बूढ़े, स्त्री पुरुष और स्वस्थ व बीमार सभी के लिए लाभकारी होता है ! एलोपैथिक व आयुर्वेदिक दोनों पद्धतियों के डॉक्टर्स योग को अपनाने की सलाह देते हैं ! इलाज का यह तरीका पूरी तरह से नि:शुल्क होता है ! प्रसन्नता की बात यह भी है कि भारत में विकसित यह प्रणाली सारे विश्व में प्रसिद्द हो गयी है और २१ जून का दिन विश्व योग दिवस के रूप में सारी दुनिया में मनाया जाने लगा है !

स्वस्थ रहना हमारा अधिकार भी है और उसके लिए तीनों पद्धतियों का उचित उपयोग करना हमारा कर्तव्य भी है ! रोग की गंभीरता को आँकते हुए हमें तीनों पद्धतियों का संतुलन बनाते हुए उपचार करना चाहिए ! योग स्वस्थ जीवन का सबसे सुदृढ़ सूत्र है ! योग को अपना कर हम अपने शरीर को इतना शक्तिशाली बना सकते हैं कि हमें दवाओं की आवश्यकता ही नहीं होगी ! इसलिए प्रतिदिन नियम से व्यायाम करिये और स्वस्थ रहिये ! 

 

साधना वैद    

 

Sunday, December 26, 2021

दिल्ली की एक शाम

                                                     



ज़िंदगी यूँ तो संघर्षमयी रही सदा से लेकिन फिर भी कभी कभी प्रभु अनायास ही झोली में सुखद पलों की ऐसी अनमोल सौगातें डाल देते हैं कि लगता है अब जीवन में इससे अनमोल और कुछ घटित हो ही नहीं सकता ! ऐसा ही एक वाकया मेरी ज़िंदगी में भी घटित हुआ जिसे मैं जीवन भर कभी भूल नहीं पाउँगी और वह प्रसंग मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत प्रसंग बन कर जीवन भर मेरे साथ साथ चलता रहेगा !
यह घटना सन् १९६८ की है ! दिन महीना समय अब याद नहीं रहा ! शायद सितम्बर या अक्टूबर का रहा होगा ! मेरे विवाह को साल भर भी नहीं हुआ था ! हम पति पत्नी दिल्ली के करोलबाग में एक बरसाती में रहते थे और अपनी कच्ची गृहस्थी को सजाते सँवारते फाकामस्ती में दिन गुज़ार रहे थे ! उन दिनों डी टी य़ू की लोकल बस में रविवार के दिन एक रुपये का टिकिट मिलता था सारे दिन के लिए ! आप कहीं भी आयें जाएँ कोई बंदिश नहीं थी ! लिहाजा वह दिन होता था मौज मस्ती का ! हम पूरे सप्ताह अखबारों में देख देख कर रविवार को होने वाले उन कार्यक्रमों की सूची बना लेते जो या तो फ्री होते थे या जिनका टिकिट बहुत ही कम हुआ करता था ! रविवार का बेसब्री के साथ इंतज़ार रहता था ! उस दिन हम सुबह से ही दो टिकिट लेकर बस में सवार हो जाते और अपनी लिस्ट के हर कार्यक्रम का आनंद भरपूर उठाते ! लंच के लिए कभी केले, कभी सेव संतरे या कभी सैंडविच से काम चल जाता ! देर रात को घर लौटते ! पूरे दिन का खर्च मुश्किल से दस बारह रुपये और मनोरंजन भरपूर !
उस दिन भी हम घूमने निकले थे तो दिल्ली के मावलंकर हॉल के पास ही एक कंसर्ट हॉल में किसी बड़े नामी कलाकार का प्यानो वादन का कार्यक्रम देखने के इरादे से निकले थे ! संगीत का हम दोनों को ही भारी शौक और उस कार्यक्रम में प्रवेश नि:शुल्क था ! जैसे ही वहाँ पहुँचे मावलंकर हॉल के गेट पर कई लोग किसी विशिष्ट अतिथि के स्वागत के उद्देश्य से फूलों के गुलदस्ते और मालाएं लेकर खड़े हुए थे ! हम भी कुछ ठिठक गए ! तभी बड़ी ही गर्मजोशी से उन्होंने हमें मुस्कुरा कर अभिवादन किया और अन्दर हॉल में जाने का संकेत किया ! हमें तो पता भी नहीं था कि यहाँ क्या हो रहा है लेकिन कुछ इतने विनम्र आग्रह के कारण और कुछ जिज्ञासावश हम भी अन्दर हॉल में पहुँच गए ! वहाँ जो दृश्य देखा वह हमारी कल्पना से परे था ! अन्दर उस वर्ष के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वरिष्ठ साहित्यकार कविवर सुमित्रानंदन पन्त का अभिनन्दन समारोह चल रहा था और साहित्याकाश के सभी चमकते सितारे उस समय मंच पर आसीन थे ! श्री सुमित्रानंदन पन्त, श्री हरिवंश राय बच्चन, श्रीमती तेजी बच्चन, श्री रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. प्रभाकर माचवे, श्री विष्णू प्रभाकर, बाबा नागार्जुन ! इनके अलावा और भी कई बड़े बड़े साहित्यकार ! कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री जगजीवन राम जी की अगवानी के लिए आयोजकों का बड़ा समूह गेट पर तैनात था और कदाचित उनके आगमन पर कोई व्यवधान उत्पन्न न हो इसीलिये हमें जल्दी से अन्दर भेज दिया गया था ! जो भी हुआ हमारे लिए तो गर्व के अनमोल पलों की थाती लेकर आया था वह पल ! वैसे इनमें से कई साहित्यकारों को कवि सम्मेलनों में हमने पहले देखा भी था और सुना भी था लेकिन सबको एक साथ एक ही मंच पर देखना यह निश्चित रूप से आशातीत था और इसे मैं अपना परम सौभाग्य मानती हूँ ! सब बहुत ही प्रसन्न थे ! अवसर ही ऐसा था ! मुझे स्मरण है बच्चन जी परिहास के मूड में थे ! उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर जी की चिबुक उठाते हुए हँस कर माइक पर जैसे ही उनसे कहा, “सुमुखी तुम कितनी सुन्दर हो”, हॉल ठहाकों से गूँज उठा और एकदम गोरे चिट्टे दिनकर जी का चेहरा हँसते हँसते बिलकुल लाल हो गया था !
यह प्रसंग मेरे जीवन की अविस्मरणीय स्मृतियों में मूल्यवान हीरे की तरह दमकता रहता है ! दिल्ली के रविवार के सैर सपाटों की लम्बी सूची है लेकिन यह प्रसंग सबसे अनूठा और सबसे अनमोल है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती !


नोट - यह चित्र उस अवसर का नहीं है ! वह युग मोबाइल का नहीं था ! वरना कम से कम हर साहित्यकार को फोकस करते हुए २० - २५ तस्वीरें तो हमने खींच ही ली होतीं जो हमारे पास अनमोल धरोहर के रूप में जीवन भर साथ रहतीं ! यह तो इंटरनेट पर एक फोटो मिली है जिसमें कविवर सुमित्रानंदन पन्त, श्री हरिवंश राय बच्चन और श्रीमती तेजी बच्चन जी एक साथ एक मंच पर उपस्थित हैं जो उस दिन के कार्यक्रम में भी मौजूद थे इसलिए साभार गूगल के इस फोटो को हम अपने संस्मरण के साथ उद्धृत करने की स्वतन्त्रता ले रहे हैं ! काश उस दिन हमारे साथ कैमरा भी होता !

चित्र - साभार गूगल

साधना वैद


Monday, December 13, 2021

मन्नत

 



तू ही तू

बस तू ही तू हो

इस दिल में !

बंद आँखों का ख्वाब,

खुली आँखों का मंज़र

जो भी हो

होता रहे बस उसमें

तेरा ही दीदार !

धड़के जो दिल

तो बस सुन कर

तेरा ही नाम

और डूबे जो दिल

तो बस लेकर तेरा

और सिर्फ तेरा ही नाम !

सुनूँ जो कोई आवाज़

तो उसमें तेरा ही ज़िक्र हो

दूँ कोई आवाज़

तो होठों पर बस

तेरा ही नाम हो !

छू ले कभी जो हवा

वो तुझे छूकर लौटी हो

और मुझे छूकर

जाए जो कभी हवा

तो तुझे छूकर ही ठहरे !

और कुछ भी न हो

तेरे मेरे दरमियाँ

और कोई न हो

तेरे मेरे दरमियाँ !

बस एक यही मन्नत है

बस इतनी सी ही मन्नत है ! 

 

साधना वैद


Wednesday, December 8, 2021

संवेदन व्यथाओं का

 



चुभता है दंश कभी निर्मम यथार्थ का ?

देखा प्रतिबिम्ब कभी दर्पण में स्वार्थ का ?

भीगी कभी पलकें लख लोगों के कष्टों को ?

पढ़ कर तो देखो निज कर्मों के पृष्ठों को

जानते हो क्या है दुखांत इन कथाओं का ?

पिघला क्या मन सुन संवेदन व्यथाओं का ?


माना हो सर्वश्रेष्ठ प्राणी इस सृष्टि में 

भीगते हो मगन निज प्रशंसा की वृष्टि में

लेकिन कब पोंछे हैं आँसू दुखियारों के  

चूल्हे कब जलते हैं निर्धन परिवारों के

फेंको ये इंद्रजाल स्वार्थ की प्रथाओं का

मत बैठो मौन सुन संवेदन व्यथाओं का !


जन जन के दुख से है कैसी यह निस्पृहता 

क्यों नहीं दिखती अब आँखों में विह्वलता

क्यों नहीं मिलता अब बातों में अपनापन

क्यों नहीं छिलता अब पीड़ा से पत्थर मन

चाहती हूँ बरस जाए विष सब घटाओं का

मन में हो केवल संवेदन व्यथाओं का !

 

साधना वैद

 

 

 


Monday, December 6, 2021

मैं मूर्तिकार तो नहीं

 



मैं मूर्तिकार तो नहीं

लेकिन वर्षों पहले बनाई थी मैंने

तुम्हारी एक मूरत

अपने मनमंदिर में स्थापित करने के लिए !

जानते हो तुम यह मूरत

वैसी बिलकुल भी नहीं थी जैसे तुम थे

इसे मैंने बड़ी मेहनत से तराशा था !

अपनी कल्पना की छैनी से मैंने

इसके मुख पर भावों को उभारा था,

अपने मन की कोमलता से मैंने

इस मूरत के हर अंग को आकार दिया था,  

अपने अंतर में प्रवाहित करुणा की

अजस्त्र प्रवाहित अश्रुधारा से मैंने

इस मूरत की आँखों से झरते अलौकिक प्रेम के

दिव्य प्रकाश को सँवारा था ! 

मैं इस मूर्ति के शिल्प में

अपना ही प्रतिरूप देखना चाहती थी !

इसीलिये तो मेरे उर अंतर में बसी

इस मूर्ति का शिल्प शायद

उन सभी मूर्तियों से भिन्न है

जो संग्रहालयों की वीथियों में,

वहाँ के भव्य सभागारों में

युग युगांतर से सजी हुई खड़ी हैं !

क्योंकि इस मूर्ति में मेरे

मन के देवता का वास है

इसीलिये इसका शिल्प भी

मेरे मनोनुकूल है !


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद