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Sunday, October 13, 2024

मेरा फैसला – लघुकथा

 





आज कक्षा में टीचर बहुत खुश दिखाई दे रही थीं | उन्होंने इशारा करके रोहित को खड़ा किया |

“रोहित, तुम अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद क्या बनना चाहते हो ?”

“जी टीचर, मैं डॉक्टर बन कर दीन दुखियों और निर्धन रोगियों का मुफ्त में उपचार कर मानवता की सेवा करना चाहता हूँ |”

“शाबाश ! और आकाश तुम ?”

“टीचर, मैं पायलट बनना चाहता हूँ और देश विदेश के सभी प्रसिद्ध स्थानों को देखना चाहता हूँ |”

इसी तरह, कोई जज, कोई वकील, कोई इंजीनियर, कोई स्पेस साइंटिस्ट, कोई कलाकार तो कोई अध्यापक बनना चाहता था और सबके पास अपने सबल तर्क भी थे जो उनकी महत्वाकांक्षा का समर्थन कर रहे थे | टीचर बहुत खुश हो रही थीं अपने विद्यार्थियों की खूबसूरत सपनों की उड़ान और उनकी सुलझी हुई सोच को देख कर |

अंत में बारी आई देवांश की | टीचर ने उससे भी यही सवाल किया |
“टीचर, मैं साधू बाबा बनना चाहता हूँ |”

टीचर के साथ सारे बच्चे हैरान थे !

“और भला तुम साधू बाबा क्यों बनना चाहते हो बताओगे |” टीचर ने पूछा |

“टीचर, सबसे बड़ा फ़ायदा तो साधू बाबा बनने में ही है | कहीं कोई डिग्री नहीं दिखानी पड़ती, कोई एंट्रेंस इम्तहान पास नहीं करना पड़ता, किसी को रिश्वत नहीं देनी पड़ती | बस किराए के कपड़े पहन कर, दो चार बढ़िया बढ़िया भजन याद कर कीर्तन और सत्संग के नाम पर थोड़ी सी भीड़ जुटा लो एक दो बार, आपके तो समर्थक बढ़ते ही जायेंगे | पुराने संतों के उपदेशों को सुन कर चार छ: दमदार डायलॉग्स याद कर लो | इस धंधे में बड़ी इज्ज़त मिलती है | आप चाहे तीस बरस के भी न हों बड़े बूढ़े बुज़ुर्ग भक्त आपके चरणों में लोट लगाने को तैयार रहते हैं | भेंट पूजा उपहार में इतने फल फ्रूट मेवा मिठाई और तरह तरह के व्यंजन आते हैं कि कितना भी खाओ खिलाओ ख़त्म ही नहीं होते | दान पेटी हर समय रुपयों से भरी रहती है और बिन माँगे पुलिस प्रशासन आपकी सेवा सुरक्षा में लगा रहता है | बड़े बड़े नेता आपके आगे सर झुकाते हैं और हर समाचार पत्र में, टी वी के हर चैनल पर आपके ही इंटरव्यू आते रहते हैं | इसके अलावा लोग हज़ारों रुपयों के टिकिट खरीद कर आपकी सभा में आने के लिए हफ़्तों पहले से बुकिंग कराते हैं | जितना पैसा ये जीवन भर नौकरी करके नहीं कमा पायेंगे उससे कहीं अधिक मेरे पास बिना कुछ करे धरे एक सभा में आ जाएगा ! इंसान को इससे ज़्यादह और क्या चाहिए | बताइये टीचर मेरा फ़ैसला इन सबसे बढ़िया है या नहीं ?”  


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद

 


Thursday, October 10, 2024

त्योहार

 



आज शारदेय नवरात्रि की अष्टमी है ! बस्ती के घरों में खूब हलचल है ! जो बच्चियाँ अपनी माँओं की डाँट फटकार खाने के बाद भी दिन चढ़े तक ऐसे ही घूमती रहती हैं आज सुबह से नहा धोकर साफ़ सुथरे कपड़े पहन कर बाल बाँध कर तैयार हो रही हैं ! आज का दिन उन सबके लिए सबसे बड़े त्योहार का दिन है ! सबको आज कई घरों में आमंत्रित किया जाएगा ! खूब हलवा पूरी खाने को मिलेंगी और भेंट उपहार मिलेंगे सो अलग ! लड़कियों के ग्रुप में बड़ा उत्साह है !
बिल्मा भी सबके साथ जाना चाहती है ! लेकिन न तो उसके पास कोई अच्छी सी फ्रॉक है न जूते या चप्पल ! जूता फट गया है चप्पल टूट गयी है ! अम्माँ के पास पैसे भी नहीं है जो खरीद कर दिला देती ! इसलिए माँ ने जाने से मना कर दिया है ! बिल्मा आँखों में आँसू भरे उदास बैठी है ! आज बापू ज़िंदा होते तो ज़रूर उसके लिए कोई न कोई जुगत लगा कर इंतजाम कर देते ! तभी उसकी पक्की सहेली मुनिया उसके लिए एक फ्रॉक लेकर आ गयी ! “ले बिल्मा ! इसे पहन ले और जल्दी से तैयार हो जा ! पूजा में इतने पैसे तो मिल ही जायेंगे कि तेरी चप्पल आ जाए !” बिल्मा ने माँ की तरफ देखा ! माँ की आँखों में आँसू भी थे और इजाज़त भी !


चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद

Friday, October 4, 2024

प्रेम पर्याय

 




दिग दिगंत

सुरभित प्रेम से

दिव्य है भाव

सागर से गहरा

आकाश से व्यापक !

 

प्रीत की ज्योत

सदा बाले रखना

उर अंतर

तृप्त रहेगा मन

आलोकित जीवन !

 

रही निहार

खिड़की पर खड़ी

बूंदों की लड़ी

कब आयेगी पिया

तेरे आने की घड़ी !

 

प्रेम के रंग

भावों की पिचकारी

रंग दे पिया

अपने ही रंग में

मेरी चूनर कोरी !

 

दिव्य प्रकाश

प्रेम मय जगत

धरा प्रफुल्ल

करे अभिनंदन

नवोदित रवि का !

 

रास की रात

मंत्रमुग्ध राधिका

विमुग्ध कान्हा

हर्षित ग्वाल बाल

औ’ आल्हादित धारा !


चित्र - गूगल से साभार 

 

साधना वैद 

 


Monday, September 30, 2024

ओफ्फोह दादू हाइकु संवाद पोएम 2

दादा और पोते का प्यारा सा रिश्ता, जो हर पल खास होता है। इस वीडियो में देखें कैसे एक पोता अपने दादा की हर छोटी-छोटी ज़रूरत का ख्याल रखता है और अपनी सेवा और शरारतों से दादा का दिल जीतता है। o दादा-पोते के रिश्ते की मासूमियत को महसूस करें o बचपन की यादें ताजा करें o परिवार के प्यार का अनुभव करें o एक मर्मस्पर्शी कहानी का आनंद लें o दादा और पोते के बीच प्यारे संवाद o पोते का दादा का ख़याल रखने का अनोखा अंदाज़ o पोते की शरारतें और दादा की प्रतिक्रिया o परिवार के साथ बिताए हुए खूबसूरत पल

साधना वैद 


Thursday, September 26, 2024

बच्चों में अनुशासन की कमी – कारण और निदान

 



बच्चों में अनुशासन की कमी – कारण और निदान

आजकल के बच्चों में मुख्य रूप से किशोर वय के बच्चों में अनुशासनहीनता एवं निरंकुशता के दर्शन कुछ अधिक ही हो रहे हैं ! उसका मुख्य कारण भी घर परिवार का वातावरण है और इसका निदान भी घर में ही है ! संयुक्त परिवारों का टूटना इसका सबसे बड़ा कारण है ! जहाँ माता पिता दोनों ही काम करने वाले होते हैं वहाँ बच्चों की अच्छी परवरिश की समस्या आ जाती है ! लेकिन उन परिवारों में जहाँ घर में और भी कई सदस्य रहते हैं इसका निदान आसानी से हो जाता है क्योंकि परिवार के वे सभी सदस्य बच्चों का बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखते हैं उनमें अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करते हैं और बच्चे भी उनका कहना मानते हैं उनका आदर करते हैं ! लेकिन जहाँ संयुक्त परिवार टूट गए हैं घर के बड़े बुजुर्गों का स्थान अल्प शिक्षित नौकरों, आया व नैनीज़ वगैरह ने ले लिया है जिनका एक मात्र सरोकार सिर्फ अपने वेतन से होता है बच्चों की परवरिश से नहीं ! अक्सर इनमें से अधिकाँश नौकर स्वयं बुरी आदतों के शिकार होते हैं, जैसे झूठ बोलना, चोरी करना, बहाने बनाना आदि और बच्चों को भी वे ही यही बातें सिखाते हैं ! माता पिता अपने बच्चों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाते इस अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए वे बच्चों की हर सही गलत माँग को पूरा करने के लिए बाध्य रहते हैं और बच्चे इस मौके का फ़ायदा उठाते हैं ! घर में बच्चों पर कोई अंकुश नहीं होता तो वे अपने फोन पर या टी वी पर अनर्गल कार्यक्रम देख कर अपना मनोरंजन करते हैं जिसका उनके मन मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है ! आजकल बच्चों में स्वेच्छाचारिता व् एकान्तप्रियता की भावना भी प्रबल रूप से घर करती जा रही है ! वे अपने पसंद के लोगों के अलावा अन्य किसीसे से बात करना मिलना जुलना बिलकुल पसंद नहीं करते ! कोई घर आ जाए तो कमरे से भी बाहर नहीं आते ! उन्हें मँहगे मँहगे वीडियो गेम्स और बाहर दोस्तों के साथ सैर सपाटा करने में ही आनंद आता है जो बिलकुल गलत है ! वे किसीसे आदरपूर्वक बात नहीं करते !
इन समस्याओं के निदान माता पिता के हाथ में ही हैं ! सबसे पहले वे अपना आचरण सुधारें ! बच्चों की पहली पाठशाला घर में ही होती है ! बच्चों को घर के सभी सदस्यों का आदर करने की और उनकी बात मानने की शिक्षा दें ! बच्चों के दोस्तों पर भी सतर्क नज़र रखें एवं उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में भी जानें ! अक्सर टूटे परिवारों के बच्चे अस्वस्थ मानसिकता के शिकार हो जाते हैं और ऐसे बच्चों का साथ आपके बच्चे पर भी बुरा प्रभाव डाल सकता है ! घर में कुछ अच्छी परम्पराओं का प्रतिपादन करें और स्वयं भी उनका पालन करें ! शाम का समय सब साथ बैठ कर खाना खाएं ! खाने के समय टेलीफोन का प्रयोग बिलकुल वर्जित कर दें ! बच्चों के हाथों से घर के अन्य सदस्यों को खाना परसवायें ! बुज़ुर्ग अगर घर में हैं तो प्रतिदिन उनके पास कुछ समय बैठने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करें ! इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बच्चे उनका अनादर न करें ! बच्चों को उनके कर्तव्यों का भान अवश्य कराते रहें ताकि उनमें अच्छे संस्कारों की नींव पड़े और वे अच्छे इंसान बनें ! उन्हें जो भी समझाएं प्यार से समझाएं ताकि वे उसे मन से आत्मसात करें चिढ़ कर नहीं ! क्योंकि जिन बातों को मन से नहीं किया जाता उनका असर भी अस्थाई ही होता है ! स्वयं भी बच्चों के सामने नियंत्रित रहें और किसीसे अपमानजनक भाषा में बात न करें ! आजकल असभ्यता और बदतमीजी को आधुनिकता और बोल्डनेस का पर्याय समझा जाने लगा है !


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद


Wednesday, September 18, 2024

यह घर भी तुम्हारा ही है

 


रिंगटोन से ही पहचान गयी सविता ! यह सुपर्ण का ही फोन है ! मन उदास था कि इस बार क्रिसमस वेकेशंस में वह होस्टल से घर नहीं आ रहा था ! अपने दोस्त के साथ उसने यूरोप के कुछ बहुत खूबसूरत स्थान देखने का प्रोग्राम बना लिया था ! सविता को फ़िक्र थी यूरोप में बहुत सर्दी होगी ! सुपर्ण के पास तो पर्याप्त गरम कपड़े होंगे भी नहीं ! मुम्बई में सर्दी पड़ती ही कहाँ है ! उसे कह दूँगी न हो तो वहीं से कुछ खरीद ले या यहीं से कुछ बढ़िया वाले कपड़े खरीद कर भेज देती हूँ ! इसी उधेड़बुन में उलझा था सविता का दिमाग ! अच्छा हुआ सुपर्ण का फोन आ गया ! उसने जल्दी से दौड़ कर फोन उठाया !

“हाँ बेटा बोलो ! तुम्हारे एयर टिकिट्स बुक हो गए ? किस तारीख के हुए हैं ? मैं सोच रही थी पापा का नीला वाला ओवरकोट और कुछ नए एक्स्ट्रीम ठण्ड में पहनने वाले गरम कपड़े तुम्हारे पास भेज दूँ ! वहाँ तो उन दिनों गज़ब की ठण्ड होगी ना |”

“रुको ना मम्मी ! इस सबकी कोई ज़रुरत नहीं है हम कहीं नहीं जा रहे !” सविता हतप्रभ थी ! 

“क्यों क्या हुआ ? अभी तक तो तुम बहुत उत्साह में थे ! पैसे कम पड़ रहे हैं क्या ? मैं भेज दूँगी न और ! क्या बात है सब ठीक तो है ?”

“नहीं मम्मी ! फरहान के साथ यूक्रेन की राजधानी कीव जाने का प्लान था हम तीन दोस्तों का ! बहुत ही खूबसूरत शहर था वो ! सारी दुनिया से लोग पढ़ने आते हैं वहाँ ! लेकिन पिछले शुक्रवार के हमले में कीव के उस इलाके में बमबारी हुई जहाँ फरहान का सारा परिवार रहता था ! सुना है वह हिस्सा बिलकुल तबाह हो गया है ! मम्मी फरहान का चार पाँच मंजिला शानदार घर भी तहस नहस हो गया और उसके माता पिता चाचा चाची, भाई बहन सब इस हमले में मारे गए ! अब उसके पास न घर रहा जाने के लिए न परिवार !” सुपर्ण का गला भर आया था !
“मम्मी इसीलिये मैं भी इस बार घर नहीं आउँगा ! हम तीन चार दोस्त यही रहेंगे फरहान के साथ मुम्बई में ताकि वह अकेला न हो जाये !”
“नहीं बेटा ! तुम घर ज़रूर आओगे और अकेले नहीं आओगे फरहान को साथ लेकर आओगे ! उससे कहना यह घर भी तुम्हारा ही है और यह परिवार भी !” सविता की आवाज़ में दृढ़ता भी थी और अकथनीय प्यार भी !   

 

साधना वैद  


Sunday, September 15, 2024

"ओफ्फोह दादू"- हाइकु संवाद पोएम 1

 



एक प्यारा पोता अपने दादू के लिए अपनी भावनाओं को इस खूबसूरत हाइकु कविता के माध्यम से बयां करता है। दादू की चिंताओं को दूर करने और उन्हें खुश करने के लिए वह तरह-तरह के प्यारे काम करने की बात करता है। इस वीडियो में आप देखेंगे कि कैसे एक पोते का प्यार अपने दादू के लिए कितना मायने रखता है। कविता के प्रत्येक पंक्ति के साथ आप दादू और पोते के बीच के भावुक पलों को दिखा सकते हैं। जैसे दादू की चिंता, पोते का दादू को ढांढस बंधाना, साथ में शतरंज खेलना, और अंत में दादू को सोने के लिए कहना।


साधना वैद

Sunday, September 1, 2024

बिकाऊ

 



आज दुनिया में हर चीज़ बिकाऊ हो चुकी है
हवा से लेकर पानी तक
खुशबू से लेकर मुस्कान तक
चितवन से लेकर चाल तक
लेकिन अभी भी बहुत कुछ बाकी है
जो अनमोल होते हुए भी 
बिलकुल बिकाऊ नहीं है
जो संसार में
सबसे कीमती होते हुए भी
नितांत नि:शुल्क है
लेकिन जिसकी कद्र करना
आज का इंसान भूल गया है
जिसे एक कोने में उपेक्षा से डाल कर
इंसान ने उससे नज़रें फेर ली हैं
वह है माता पिता का प्यार
माता पिता का आशीर्वाद
माता पिता का सान्निध्य !
कब समझेगा यह मूरख इंसान
यह वह अनमोल वरदान है
जो कभी बिकाऊ नहीं हो सकता
जिसका मोल इस संसार में
कभी कोई लगा ही नहीं सकता

क्योंकि उसे बिलकुल मुफ्त
अबाध मात्रा में पाया तो जा सकता है
लेकिन उसका अल्पांश भी
खरीदने की औकात
किसी में नहीं है !   

 

साधना वैद   


Thursday, August 29, 2024

‘रोज़ी – द रिवेटर’

 


आप जानते हैं रोज़ी को ? कभी मिले हैं उससे ? नाम तो सुना होगा उसका ! अरे नाम भी नहीं सुना ? तब तो आपको मिलवाना ही होगा इस विलक्षण व्यक्तित्व की स्वामिनी रोज़ी से ! अमेरिका के इस प्रवास से पूर्व मैंने भी रोज़ी का नाम पहले कभी नहीं सुना था ! लेकिन जब उसके बारे में जाना, समझा और उसका थोड़ा सा परिचय मिला तो रोक नहीं सकी खुद को और उससे मिलने के लिए एक दिन अपने बेटे और पतिदेव के साथ जा ही पहुँची उसके घर जो सैन फ्रांसिस्को में है ! आप अभी तक इतिहास के पन्नों में दर्ज अनेकों उन दर्ज़नों महान महिलाओं से मिल चुके होंगे जिनके नाम समूचे विश्व में प्रसिद्ध हैं और जिनकी तस्वीरें, जिनके तैल चित्र, जिनकी मूर्तियाँ, जिनकी कहानियाँ संसार के बड़े बड़े संग्रहालयों में सजी हुई हैं ! लेकिन अगर आप रोज़ी से नहीं मिले तो मेरी नज़र में आप सच में एक बहुत बड़ी उपलब्धि से आज तक वंचित ही रह गए हैं ! मिलना चाहते हैं ना रोज़ी से ? तो चलिए मेरे साथ !
रोज़ी की कहानी जानने के लिए हमें काल खण्ड की दुर्गम वीथियों में प्रवेश कर समय की विपरीत दिशा में मुड़ कर लगभग अस्सी पिच्चासी वर्ष पीछे जाना होगा ! स्वाभिमानी, सक्षम, समर्थ, दृढ़ इच्छाशक्ति वाली और अदम्य उत्साह व जोश से भरी रोज़ी का अवतरण इसी काल में हुआ था जो आज भी सबके लिए मिसाल बन हुई है ! यह काल था द्वितीय विश्व युद्ध का ! हेनरी काइज़र उस समय के बहुत बड़े उद्योगपति थे और सैन फ्रांसिस्को के रिचमंड क्षेत्र में उनका एक बहुत बड़ा शिप यार्ड था जिसमें युद्ध के लिए बड़े-बड़े युद्ध पोत और उनसे जुड़ी अनेक तरह की सामग्री का निर्माण किया जाता था ! द्वितीय विश्व युद्ध का वह समय बहुत ही कठिन था जिसने तत्कालीन अमेरिकन्स के जीवन को आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से सबसे अधिक प्रभावित किया था ! अधिकतर पुरुष युद्ध के मोर्चे पर चले गए थे और घरों में केवल स्त्रियाँ, बच्चे और बुज़ुर्ग लोग रह गए थे ! रोज़ी के म्यूज़ियम में कई परिवारों के लोगों के अनुभव प्लेकार्ड्स पर लिखे हुए दिखाई देते हैं ! उसमें एक प्लेकार्ड पर किसी व्यक्ति ने लिखा था कि उसने अपने बचपन में अपने घर में किसी भी पुरुष को नहीं देखा ! आपको जान कर आश्चर्य होगा कि उस समय के अमेरिका में भी लोगों की यही मानसिकता थी कि औरतों को केवल घर सम्हालना चाहिए ! उन्हें बाहर जाकर काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है ! क्या हम भारतीयों की मानसिकता से मिलती जुलती नहीं लगी आपको भी यह बात ? मैंने जब वहाँ पत्थर पर इसे खुदा हुआ देखा तो मुझे भी बहुत हैरानी हुई थी ! लेकिन जब जीवन में ऐसी कठिन परिस्थितियाँ आ जाएँ तो घर परिवार चलाने के लिए स्त्रियों को भी बाहर तो निकलना ही पड़ेगा ! भारत हो या अमेरिका ! यह भी एक निर्मम यथार्थ है !
हालात ऐसे थे कि मर्दों के युद्ध में चले जाने से घर में बड़ा भारी आर्थिक संकट पैदा हो गया ! मजबूर होकर स्त्रियों को काम के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा ! मर्दों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में उनकी स्वीकार्यता न के बराबर थी ! कोई भी उन्हें काम पर लेने के लिए तैयार नहीं था ! न वे मर्दों की तरह प्रशिक्षित थीं, न उनकी तरह ताकतवर थीं और शायद न ही उनकी तरह होशियार थीं ऐसा बड़े बड़े व्यापारिक संस्थानों को चलाने वाले लोगों की राय थी ! ‘रोज़ी द रिवेटर’ का जन्म इसी काल में हुआ ! स्त्रियों को फैक्ट्रीज में काम करने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा ! कदम-कदम पर स्वयं को सिद्ध करना पड़ा और मर्दों के इस संसार में कई तरह की असमानताओं, अन्याय और शोषण को झेलना पड़ा ! रिचमंड के शिप यार्ड से इस संघर्ष का सूत्रपात हुआ ! स्त्रियाँ यहाँ आकर नौकरी पर रखे जाने के लिए मालिकों को हर संभव तरीके से कन्विंस कराने की कोशिश करती थीं लेकिन परिणाम कभी संतोषप्रद नहीं निकलते थे ! वे यह सिद्ध करना चाहती थीं कि ऐसा कोई भी काम नहीं है जो मर्द कर सकते हैं और वे नहीं कर सकतीं ! रिवेटिंग, वेल्डिंग, मशीनिंग, शिपफिटिंग, पाइपफिटिंग, पेंटिंग, इलेक्ट्रीशियन आदि का कोई भी काम वे मर्दों से बेहतर कर सकती हैं उन्हें सिर्फ मौक़ा दिए जाने की दरकार है ! महिलाओं का यह संघर्ष दिन ब दिन उग्र होता गया और इसकी गूँज बड़े बड़े उद्योगपतियों तक भी पहुँचने लगी ! इस आन्दोलन से जुड़ी हर महिला रोज़ी कहलाई और “ We can do it.” इस आन्दोलन का नारा बन गया ! रोज़ी के नाम से १९४३ में एक गाना सारे अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हुआ ! ‘रोज़ी’ सारे अमेरिका की महिलाओं की आवाज़ बन गयी ! गीत अंग्रेज़ी में है ! इसका मुखड़ा लिख रही हूँ ! आप चाहें तो गूगल पर सर्च कर इसे सुन सकते हैं ! गीत के बोल इस प्रकार हैं –
“She is a part of the assembly line
She is making history
Working for victory
Rosie the riveter.”
हेनरी काइज़र, जो उस वक्त के सबसे बड़े उद्योगपति थे, ने समय की नज़ाकत को समझा ! उन दिनों अमेरिका का वेस्ट कोस्ट युद्ध सामग्री बनाने का केंद्र स्थल था ! द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान समूचे विश्व में जितनी युद्ध सामग्री की खपत हो रही थी उसका ४०% अमेरिका में बन रहा था ! जिन कारखानों में कारें व विविध प्रकार के अन्य समाजोपयोगी सामान बनाये जा रहे थे वे सभी अपने काम छोड़ कर युद्ध सामग्री बनाने में जुट गए ! सैनफ्रांसिस्को के बे एरिया से, जिसमें रिचमंड शिपयार्ड भी शामिल था, ४५% कार्गो टनेज और 20% युद्ध पोतों के टनेज की आपूर्ति की जाती थी ! हेनरी काइज़र के पास युद्ध से जुड़ी सामग्री बनाने के बड़े-बड़े ऑर्डर्स थे और शिप यार्ड में कामगारों की भारी कमी थी ! उसने महिलाओं को काम पर रखना शुरू किया ! महिलाओं का आन्दोलन रंग लाया ! उन्हें काम तो मिला लेकिन यहाँ भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा ! एक ही तरह के काम के लिए उन्हें मर्दों से कम मेहनताना दिया जाता था ! उन्हें अपने सीनियर्स की झिड़कियाँ खानी पड़ती थीं और बात-बात पर अपमानित होना पड़ता था ! फिर भी उस समय हर रोज़ी में अदम्य जोश था, हौसला था और थी स्वयं को मर्दों के बराबर योग्य सिद्ध करने की उत्कट लालसा ! स्त्रियों के लिए कामों की कमी नहीं थी ! शिप यार्ड्स में और फैक्ट्रीज में काम करने के अलावा भी कई क्षेत्र थे जैसे शिक्षा विभाग, नर्सिंग, पुलिस आदि जिनमें उस समय की महिलाओं ने अभूतपूर्व योगदान दिया और स्वयं को सिद्ध किया !
युद्ध के इस काल ने जहाँ लोगों को जीवन की कठिनाइयों और अभावों से परिचित कराया तो वहीं कुछ क्षेत्र में कई वर्जनाएं भी टूटीं ! काले गोरे का भेद उन दिनों भी चरम पर था जिन्हें हमेशा भेदभाव का शिकार होना पड़ता था उन्हें व्हाईट अमेरिकन्स के साथ एक स्तर पर काम करने के अवसर मिलने लगे ! काले पुरुष तो युद्ध के मोर्चे पर भेज दिए जाते थे कारखानों में काली स्त्रियों को भी काम मिलने लगा ! यद्यपि उनका वेतन व्हाइट अमेरिकन्स से कम होता था लेकिन भेद भाव और अस्पर्श्यता की मानसिकता में फर्क आया ! उनमें भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता आई और वे भी कालान्तर में समानता के स्तर पर आने के लिए संघर्षरत हुए ! विश्व युद्ध के समापन के बाद जब पुरुष मोर्चे से वापिस आ गए तो अनेकों महिलाओं को और दोयम दर्जे के इन अमेरिकन्स को नौकरी से हटा दिया गया ! लेकिन उस वक्त देश और समाज के प्रति किये गए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता !
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद रिचमंड का यही शिपयार्ड ‘रोज़ी द रिवेटर’ का म्यूज़ियम बना दिया गया ! अभी यह ‘रोज़ी द रिवेटर / वर्ल्ड वार II, होम फ्रंट नेशनल हिस्टोरिक पार्क, कैलीफोर्निया’ के नाम से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है ! तो यह था ‘रोज़ी’ का घर ! महिला सशक्तिकरण की अद्भुत मिसाल थी रोज़ी ! आज भी कितने लोगों की प्रेरणा बनी हुई है ‘रोज़ी’ इसे कोई नहीं जानता ! स्कूल के बच्चों को यह म्यूज़ियम दिखाया जाता है ! म्यूज़ियम के एक रैक में दर्शनार्थियों एवं स्कूली बच्चों की भावपूर्ण प्रतिक्रियाओं की चिटों को बड़े करीने सजाया गया है ! कुछ दूरी पर स्थित शिपयार्ड में अब एक कॉफ़ी हाउस और रेस्टोरेंट बना दिया गया है जिसका इंटीरियर अभी भी पुराने ज़माने का ही है ! हमने भी यहाँ की कॉफ़ी का आनद लिया ! म्यूज़ियम से कुछ दूर बे एरिया के समीप इस शिप यार्ड में बना हुआ ‘रेड ओक विक्ट्री’ नाम का एक युद्ध पोत भी पर्यटकों के देखने के लिए रखा हुआ है ! इसके निर्माण में कितनी ‘रोज़ियों’ का अकथनीय श्रम लगा होगा यह सोच कर ही रोमांच हो आता है ! मैं भी ‘रोजी’ से कितना प्रेरित हुई हूँ इसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है ! लेकिन यह सच है कि नारी सशक्तिकरण की मिसाल यह ‘रोज़ी’ युग-युग तक किसी भी स्वाभिमानी नारी के आत्मबल को कभी झुकने नहीं देगी ! उस ज़माने की अनेक रोज़ी चिर निंद्रा में लीन हो चुकी हैं ! लेकिन म्यूज़ियम की इंचार्ज लेडी ऑफीसर ने बताया कि दो रोज़ी अभी भी जीवित हैं वे कभी कभी इस म्यूज़ियम में आती हैं ! वे अब बहुत वृद्ध हो चुकी हैं ! हमारा नमन उनको ! दोस्तों इन ‘रोज़ियों’ का शरीर थक गया है ! शायद इनके पास ज्यादह वक्त भी न हो ! लेकिन ‘रोज़ी द रिवेटर’ उसी साहस, उसी जोश और उसी हौसले के साथ आज भी ज़िंदा है ! वह कालजयी है ! वह चिर युवा है ! उसे कभी कोई पराजित नहीं कर सकता ! आज भी समूचे ब्रह्मांड में उसकी ललकार गूँज रही है जिसका कोई दमन नहीं कर सकता !
“We can do it.” “We can do it.” “We can do it.”


साधना वैद







Thursday, August 22, 2024

चेतावनी

 




चेतावनी
खूब जानती हूँ राणा जी तुम्हें
तुम पर भरोसा करने का मन भी बनाती हूँ
सिर्फ इसीलिए, क्योंकि बहुत प्यार करती हूँ तुम्हें
लेकिन फिर जाने कितने प्रसंग याद आ जाते हैं
जब मेरे भरोसे को रौंद कर तुमने
अपने क्षणिक सुख को प्राथमिकता दी
और मेरे हृदय में प्रज्वलित क्रोधाग्नि को
अपने तुच्छ आचरण की आहुति दे
और प्रबल कर दिया !
क्षमा तो मैं कर दूँगी तुम्हें
स्त्री जो ठहरी, दयामई, करुणामई, त्यागमई !
लेकिन यह कभी न भूलना
यह क्षमा तुम्हें एक घायल क्षत्राणी से मिली है
जिसने अपने स्वाभिमान को सदैव
सर्वोच्च शिखर पर रखा है !
यह अंतिम अवसर है
इस बार जो चूके तो कहीं ऐसा न हो
कि मेरे अंतर में सुलगती ज्वाला
आँखों की राह बाहर निकल
हमारे संसार को ही भस्म कर दे
और सब कुछ पल भर में स्वाहा हो जाए !


साधना वैद

Tuesday, August 20, 2024

हाइकु दोहे

 



धरा पुकारे, चीख कर सुन ले, पागल गाँव

बंद करो ना, छीनना मनहर, शीतल छाँव !

 

तप्त ज़मीं थी, रो पड़े खग जन, कर धिक्कार

अब तो रोको, मूर्खजन अपना, दुर्व्यवहार !

 

बरस रही, है झूम के शीतल, मंद फुहार

चलती देखो, घूम के सुरभित, मस्त बयार !

 

चितवन से, घायल करे अरु, स्मित से घात

अँखियन से, सब दुःख हरे दे, बातों से मात !

 

परम पिता, करुणा तेरी की है, हमको आस,

बुझ जायेगी, शरण में व्याकुल, मन की प्यास !

 

साधना वैद

 

 


Thursday, August 1, 2024

लॉस एंजीलिस से सेंटा बारबारा का यादगार सफ़र

 

बोस्टन फर्न 


मुझे यात्रा करना बहुत पसंद है ! सबसे ज्यादह ट्रेन से, फिर सड़क मार्ग से; पर हवाई जहाज से तो बिलकुल भी नहीं ! जानते हैं क्यों ? इसलिए कि ट्रेन के माध्यम से रास्ते में आने वाले सभी नदी तालाब, पर्वत, झरने, खेत खलिहानों से बातें भी हो जाती हैं और गाँव देहात की सुन्दर इन्द्रधनुषी जीवन शैली के दर्शन भी हो जाते हैं ! सड़क मार्ग से भी कई शहरों के अंदरूनी भाग के दर्शन हो जाते हैं और वहाँ के रहवासियों के जनजीवन की कुछ झलक तो मिल ही जाती है ! हवाई जहाज से क्या ! टेक ऑफ के कुछ देर बाद ही बस बादलों के बीच उड़ते रहो ! न ज़मीन दिखाई दे न आसमान ! न कोई परिंदा दिखे न पहाड़ ! बस एक डिब्बे में बंद बैठे रहो हाथ पैर सिकोड़े ! न ठीक से खड़े होने के, न पैर सीधे करने के और जो साथ वाली सीट पर कोई बंद किताब सा बन्दा बैठा हो तो बोलने बतियाने से भी गए ! 

इन दिनों अमेरिका में हूँ ! बस शिकागो ही हवाई जहाज से गए थे और लौटे थे बाकी बच्चों के साथ शिकागो से परड्यू यूनीवर्सिटी, जहाँ मेरा बड़ा पोता कम्प्युटर साइंस में ग्रेजुएशन कर रहा है, और सेनोजे से सैनफ्रांसिस्को, सेंटा बारबारा, लॉस एन्जीलिस, लेक टाहो, सेक्रामेन्टो, सेंटा क्लारा, ओकलैंड, लिवरमोर आदि कई स्थानों की सैर सड़क मार्ग से ही कर रहे हैं ! ये ड्राइव इतनी खूबसूरत हैं कि उस सौन्दर्य को शब्दों में व्यक्त कर पाने की क्षमता अभी तक तो मुझमें विकसित नहीं हो पाई है ! कदाचित भविष्य में शायद हो जाए आप सब प्रतिष्ठित साहित्यकारों की संगति में रह कर !

यहाँ के खेत खलिहान जंगल मैदान इतने सुन्दर हैं कि नज़रें हटने का नाम ही नहीं लेतीं ! बस दिल करता है देखते ही रहें ! एक ओर ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ तो दूसरी ओर क्षितिज तक फैला महासागर, एक ओर हर तरह के नयनाभिराम वृक्षों की समृद्ध प्रजातियाँ तो दूसरी ओर सुदूर एकांत में आमंत्रण सा देते गिने चुने खिलौने जैसे खूबसूरत घरों के छोटे-छोटे समूह ! बस यहाँ एक ही चीज़ की कमी महसूस होती है कि किसी भी छोटे शहर में आपको किसी भी प्रकार की गतिविधि या सक्रियता का आभास नहीं मिलता ! न कोई शोर, न भीड़, न सडकों पर आदमियों की आवाजाही ! यहाँ तक कि पेट्रोल पम्प पर भी कोई कर्मचारी नज़र नहीं आता ! आप खुद कार्ड से पेमेंट करें, अपने आप पेट्रोल गाड़ी में भरें और अपनी राह पकड़ लें ! न किसीसे दुआ न सलाम ! सिर्फ कुछ कारें सडकों पर चलती हुई ज़रूर दिखाई दे जाती हैं या इक्का दुक्का लोग अपने पेट डॉग्स को टहलाते हुए भूले से दिखाई दे जाते हैं ! ऐसा नहीं है कि दिन में भी नगरवासी गहरी निंद्रा में लीन रहते हैं ! बस यहाँ की संस्कृति यही है कि कोई भी सड़क पर अकारण नहीं निकलता ! शायद यहाँ का मौसम इसकी एक वजह हो ! लेकिन इन दिनों तो मौसम भी सुहाना है ! जैसा भारत में सिंतंबर अक्टूबर में होता है ! न अधिक गर्मी है न अधिक ठण्ड ! यहाँ पान की दुकानों का चलन जो नहीं है और वो भी शायद इसीलिये नहीं है कि कोई पान का खोका लगाता भी तो वह तो घाटे में ही जाता ! रेस्टोरेंट्स के अन्दर खूब चहल पहल होती है ! सिनेमा हॉल्स और थियेटर्स में भी खूब भीड़ होती है लेकिन सड़क पर किसी हॉर्न तक की आवाज़ सुनाई नहीं देती ! भीड़ के दर्शन करने के लिए महानगरों की राह पकड़नी होगी जैसे, न्यू यॉर्क, लॉस एंजीलिस, शिकागो इत्यादि ! यहाँ लोग सड़कों पर भी घूमते हुए दिखाई दे जाते हैं ! लेकिन शोर शराबा यहाँ भी नहीं होता ! किसीको ज़ोर से आवाज़ लगाते हुए आज तक नहीं सुना, न किसीके घर में, न बाग़ बगीचे में, न ही पार्क या बीच पर !  

कैलीफोर्निया खूबसूरत पाम वृक्षों के लिए जाना जाता है ! सेंटा बारबारा से लॉस एंजीलिस तक का मार्ग बहुत ही खूबसूरत है ! एक तरफ वेस्टर्न कोस्ट की हरी भरी पहाड़ियाँ हैं तो दूसरी ओर जहाँ तक दृष्टि जाए दूर तक फैला हुआ प्रशांत महासागर का अपने नाम को चरितार्थ करता बिलकुल खामोश सा विस्तार है जिसमें कहीं-कहीं कुछ उत्साही साहसी सैलानियों की नावें दिखाई दे जाती हैं या कुछ शौक़ीन लोग सर्फिंग करते हुए भी दिखाई दे जाते हैं ! आने जाने वाली कई लेन्स की सड़कों के बीच में डिवाईडर पर बेहद ही खूबसूरत फूलों से सजी अनेकों रंगों की खुशनुमां झाड़ियाँ शोभायमान हैं ! इन झाड़ियों की कटिंग इतनी सफाई से और निपुणता के साथ की जाती है कि लगता है सुन्दर रंग बिरंगे फूलों के गुलदस्तों से पूरे रास्ते को सजाया गया है ! मुझे तो अपनी दाईं ओर की हरी भरी पहाड़ियाँ और तरह-तरह के सुन्दर वृक्षों से सुसज्जित घाटियाँ ही अधिक लुभाती रहीं ! आपको एक राज़ की बात बताऊँ ! मुझे लगता है ये पेड़ भी मुझसे बातें करते हैं ! मुझे उनकी बातों में बड़ा रस आता है ! लगता है घंटों उनकी गुफ्तगू सुनती रहूँ ! एक फर्न का पेड़ है उसका नाम शायद बोस्टन फर्न है वह मुझे हमेशा गुस्से में भरा लगता है ! मैंने उसका नाम ‘चिड़चिड़ा पेड़’ रखा है ! बड़ा अनुशासनहीन सा और रूठा हुआ लगता है मुझे ! भय लगता है कुछ बोलते ही जैसे अपनी ऊबड़ खाबड़ सी डालियों से जम के खबर ले लेगा ! अगर न देखा हो तो उसे गूगल पर सर्च करके देखिएगा ज़रूर ! क्या आपको भी वही महसूस हुआ जो मुझे होता है ! बाकी पेड़ तो इतने सुन्दर थे कि क्या ही कहूँ उनकी खूबसूरती के बारे में ! छोटे बड़े, ऊँचे ठिगने, सुतवाँ लम्बे या पीपल नीम जैसे घने गोल छायादार, घने पत्तों वाले या झीनी पत्तियों वाले, सब के सब अपने पूरे अनुपम सौन्दर्य के साथ सजे धजे खड़े हुए थे जैसे किसी ब्यूटी कांटेस्ट के रैंप वॉक में हिस्सा लेने के लिए तैयार हुए हों और अभी अपने नाम की घोषणा सुन पूरे नाज़ो अंदाज़ के साथ चल पड़ेंगे प्रतियोगिता जीतने के लिए ! हमारी कार सड़क पर दौड़ रही थी और मुझे लग रहा था किनारे खड़े पाम, देवदार, फर्न, साइप्रस, ओक, पाइन आदि के पेड़ मुझे आवाज़ देकर बुला रहे हैं,
“अरे ! कहाँ जा रहे हो ? हमारी बारी आने तक तो रुक जाओ !” इन मधुर आवाजों को नकारना बहुत कष्टप्रद था ! लेकिन अपने गन्तव्य पर समय से पहुँचना भी ज़रूरी था ! छोटा पोता प्रशान्त सेंटा क्लारा यूनीवर्सिटी में अपने समर डिस्कवरी कैम्प के समापन के बाद कॉलेज में हमारा इंतज़ार कर रहा था ! मैं भी अपने अनुभव बच्चों को और पतिदेव को सुनाती तो सब मुझे पागल ही समझते ! आप भी मुझे ऐसा ही कुछ कहें इससे पहले अपना यह संस्मरण यहीं समाप्त करती हूँ ! अब तो आगरा आने में दो सप्ताह ही बाकी हैं ! वहीं आने के बाद कुछ लिखना हो पायेगा ! आज के लिए इतना
ही !

 नमस्कार !



साधना वैद   


Friday, July 12, 2024

कमाओ कीर्ति

 



किसीने किसीसे कुछ कहा !  

क्या ? 

किसीने किसीसे कुछ कहा !

किसने किससे कुछ कहा ? 

क्या कहा ? 

क्यों कहा ? 

किसने कहा ?

किससे कहा ?

कब कहा ? 

कहाँ कहा ? 

कैसे कहा ? 

कितना कहा ?

कुपित किया क्या ?  

क्यों कुपित किया ? 

क्यों करते करुण क्रंदन 

कम करो कोलाहल 

करो कोई कालजयी कृत्य 

कमाओ कीर्ति 

कमाओ कुमुदिनी कर कमल 

करें कोटिजन करतल कलरव 

करें किरीटाभिषेक !  


साधना वैद 


Wednesday, July 3, 2024

जल ही जीवन है

 



जल जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक है ! जल के बिना जीवन की कल्पना ही असंभव है ! इसलिए जल की कीमत और महत्त्व को समझना हमारे लिए परम आवश्यक है ! अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा जितने भी ग्रह नक्षत्रों के बारे में जानकारी जुटाई गयी है उसके अनुसार केवल हमारी पृथ्वी पर ही पानी मिला है ! किसी और ग्रह पर पानी मिलने के संकेत नहीं मिले हैं इसीलिये जीवन भी पृथ्वी पर ही है ! सारे ही प्राणियों का जीवन, जिनमें हम मनुष्य भी शामिल हैं, जल के बिना असंभव है ! इसलिए यह बात स्वयं सिद्ध हो जाती है कि जल है तो जीवन है !   

यूँ तो हमारी पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा पानी है और एक चौथाई हिस्सा ज़मीन है लेकिन यह सारा पानी पीने योग्य नहीं है ! इस जल का ९७% हिस्सा बिलकुल खारा है और जो तीन प्रतिशत पानी पीने योग्य है उसमें भी दो प्रतिशत पानी बर्फ व ग्लेशियर के रूप में जमा हुआ है ! इस तरह केवल एक प्रतिशत पानी ही हमें पीने के लिए उपलब्ध हो पाता है ! इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि बढ़ती जनसंख्या के साथ इस सीमित पेयजल के इस्तेमाल के लिए अनेकों प्राणी प्रतिदिन और जन्म ले रहे हैं ! इसलिए यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि हम इस सीमित मात्रा में मिलने वाले पेयजल का समझदारी के साथ उपयोग करें और इसे बर्बाद तो बिलकुल भी न होने दें ! अक्सर हम देखते हैं कि लोग नल खुले छोड़ देते हैं और कोई ध्यान नहीं देता ! सार्वजनिक स्थानों पर लगे पेयजल के नलों की टोंटियाँ खराब हो जाती हैं और पानी बेवजह बहता रहता है ! ये नल राहगीरों की सुविधा के लिए लगाए गए हैं ! अगर इनकी देखभाल नहीं की जायेगी तो इनको लगाने का उद्देश्य ही ख़त्म हो जाएगा ! एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा दायित्व है कि उचित विभाग में सम्बंधित अधिकारी के संज्ञान में इसे लाया जाए और पानी की बर्बादी को रोका जाए ! 

पानी की आवश्यकता पशु पक्षियों को भी होती है ! उनके लिए पेय जल की व्यवस्था की जानी चाहिए !  हमें याद है पहले शहरों में जगह-जगह पर सड़क के किनारे पानी की हौदियाँ बना दी जाती थीं जिन्हें सुबह शाम मशक से भरा जाता था ! उन दिनों ताँगे, इक्के और शिकरम चला करते थे ! सामान को इधर उधर बैलगाड़ियों से या टट्टू से ले जाया जाता था ! यातायात के आधार स्तम्भ इन घोड़ों, बैलों और टट्टुओं की प्यास बुझाने के लिए ये हौदियाँ बहुत काम आती थीं ! 

मनुष्य हो या जानवर पानी तो सभीके लिए जीने का आधार है ! बचपन में एक कविता खूब सुनी थी- मछली जल की रानी है 

जीवन इसका पानी है 

हाथ लगाओ डर जायेगी 

बाहर निकालो मर जायेगी ! 

हमारा भी वही हाल हो जाएगा अगर हमें दो दिन पानी न मिले ! इंसान खाने के बिना जीवित रह सकता है लेकिन पानी के बिना नहीं ! इसीलिये समझदारी इसीमें है कि हम पानी का इस्तेमाल किफायत से करें और यह कभी भी न भूलें कि जो पानी बेवजह बह रहा है उससे किसी प्यासे व्यक्ति की पानी की ज़रुरत पूरी हो सकती है ! 

साधना वैद 


Friday, June 28, 2024

उपहार स्वरुप क्या दें - फूल या फल और सब्जियाँ ?

 

यह बिलकुल सत्य है कि पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करते करते किसी भी समारोह में फूलों का गुलदस्ता देना अब बहुत अधिक प्रचलन में आ गया है ! किसीके प्रति अपनी सद्भावना एवं आदर भाव को व्यक्त करने के लिए यह एक सर्वमान्य, सुन्दर, सुरुचिपूर्ण एवं स्वस्थ परम्परा है ! अंग्रेज़ी में एक मुहावरा भी है, “Say it with flowers”.लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इन फूलों का जीवन बहुत अल्पावधि का होता है और दो तीन दिन बाद ही ये सारे सुन्दर फूल कूड़े के ढेर पर फेंक दिए जाते हैं साथ ही हज़ारों रुपये भी कूड़े के ढेर को समर्पित हो जाते हैं ! फूलों के स्थान पर सब्जियाँ देने का प्रस्ताव भी मुझे कुछ विशेष अच्छा नहीं लगा ! आजकल समाज की जैसी व्यवस्था है प्राय: परिवार बहुत छोटे छोटे हो गए हैं ! किसी समारोह में अगर दस पंद्रह लोगों ने भी सब्जी की बास्केट उपहार में दे दी तो उपहार पाने वाले के सामने कितनी बड़ी समस्या खड़ी हो जायेगी उन्हें इस्तेमाल करने की ! कोई बड़ा कलाकार हुआ तो उसे तो सब्जी की दूकान लगाने की आवश्यकता पड़ जायेगी ! छोटे से परिवार में फल फ्रूट या सब्जी की खपत ही कितनी होती है ! अधिक से अधिक एक डेढ़ किलो ! एक तो समारोह स्थल से घर ले जाने की समस्या फिर ज़रा सोचिये उनके घर में २५-३० किलो सब्जी और फल आ जायेंगे तो वे क्या करेंगे ! फूल तो मुरझाने के बाद फेंक भी दिए जाते हैं लेकिन फल और सब्जियों को तो फेंकना भी गवारा नहीं होगा न ही इतनी खाई जा सकेंगी ! मोहल्ले पड़ोस में बाँटने की मुसीबत और मढ़ दी जाए उस सम्मानित व्यक्ति पर ! मेरे विचार से सबसे अच्छा उपहार पौधों का ही होता है ! हरे भरे छायादार वृक्षों के या खूबसूरत फूलों के पौधे उपहार स्वरुप दिए जाने चाहिए ताकि पर्यावरण का भी संरक्षण हो, प्रदूषण भी घटे और हरियाली भी भरपूर हो जाए ! सोचिये ज़रा शहर में कितने सम्मान समारोह रोज़ होते हैं ! सम्मानित व्यक्तियों को नीम, पीपल, बरगद, आम, अमरुद, जामुन इत्यादि के पौधे उपहार स्वरुप दिए जाएँ तो शहर की तस्वीर ही बदल जायेगी ! कितना वृक्षारोपण होगा और शहर की वायु शुद्ध हो जायेगी ! पौधे उपहार स्वरुप देने से धन की भी बर्बादी नहीं होगी बल्कि उपहार देने वाले के धन का सच्चे अर्थों में सदुपयोग ही होगा ! सम्मानित व्यक्ति के घर में भी अनुपयोगी उपहारों का ढेर नहीं लगेगा ! धरती माँ और प्रकृति भी प्रसन्न हो जायेगी ! पंछी पखेरुओं की दुआ लगेगी और इतने फूलों को भी असमय पेड़ों से नहीं तोड़ना पड़ेगा ! फूल वृक्षों पर ही शोभित होते हैं, घूरे पर नहीं ! 


साधना वैद 


Tuesday, June 25, 2024

प्रेम प्रसाद - पहली प्रांजल प्रस्तुति





प्रियतम पुकारे

प्रेमातुर प्रणयिनी प्रियतमा

परसे परछाईं

पूछे प्रश्न प्रति प्रश्न

प्रबल प्रखर प्रवाहमान प्रेमावेग

प्रस्फुटित प्रेम पाती

पी पी प्याला प्रेमरस

पागल पवन पहुँचाए पाती

प्यारी प्रियतमा

पहने पीत परिधान

पहुँचे पवित्र प्रकोष्ठ

पूजे परम पूज्य

प्राण प्रतिष्ठित पावन प्रतिमा

प्रज्वलित प्रदीप

पहनाये पुष्पहार

प्रति पल प्रार्थनारत

पावे प्रतिदान

प्रेम प्रसाद !



चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद 

Thursday, June 20, 2024

क्या कहते हैं ये पेड़

 




जो काट दोगे

कहाँ फिर पाओगे

इतने फल

 

कैसे मिलेगी

इतनी प्राणवायु

इतना बल

 

काट के मुझे

बन जाएगा सोफा

या एक कुर्सी

 

जिन पे बैठ

कर लेना बातें या

मिजाजपुर्सी

 

पर न भूलो

घुट जायेगी साँस

जो पेड़ काटे

  

रोयेगी कुर्सी

धूल फाँकेगा सोफा

सहोगे घाटे

 

कृतघ्न प्राणी

हमने सिर्फ दिया

तुमने लिया

 

कभी न माँगा

उदारतापूर्वक

दिया ही दिया

 

और तुमने ?

हमें ही काट डाला

यह क्या किया ?

 

कितना क्रूर

हमारे सौहार्द्र का

बदला दिया ?

 

कैसे पाओगे

ताकत के प्रतीक

रसीले फल


शीतल हवा

जीने को प्राणवायु

सुखद पल

 

तपी धरती

झुलसता ब्रह्माण्ड

अब तो जागो

 

छोड़ो मूढ़ता

लगाओ हरे पेड़

इन्हें न काटो

 

हरे वृक्ष हैं

जीवन का आधार

यही सत्य है

 

इनकी सेवा

इनका संरक्षण

पुण्य कृत्य है !

 

साधना वैद

 


Saturday, June 15, 2024

जाने कहाँ गए वो दिन




 बचपन और शरारतों का वैसा ही रिश्ता होता है जैसा पतंग और डोर का ! और इस संयोग को और दोबाला करना हो तो कुछ हमउम्र संगी साथी और भाई बहनों का साथ मिल जाये और गर्मियों की छुट्टियों का माहौल तो बस यह समझिए कि सातों आसमान ज़मीन पर उतार लाने में कोई कसर बाकी नहीं रह जाती ! और तब घर के बड़े बुजुर्गों को भी बच्चों को अनुशासन में रखने के लिये जो नाकों चने चबाने पड़ जाते हैं उसका तो मज़ा ही कुछ और होता है !

सालाना इम्तहान समाप्त होते ही हम बड़ी बेसब्री से अपने मामाजी और चाचाजी के परिवारों से मिलने के लिये अधीर हो जाते थे ! कभी हम तीनों भाई बहन मम्मी बाबूजी के साथ उन लोगों के यहाँ चले जाते तो कभी वे सपरिवार हम लोगों के यहाँ आ जाते ! पाँच बच्चे मामाजी केपाँच बच्चे चाचाजी के और हम तीन भाई बहन और साथ में आस पड़ोस के बच्चों की मित्र मण्डलीबस पूछिए मत कितना ऊधमकितना धमाल और कितना हुल्लड़ सारे दिन होता था ! लड़कियों का ग्रुप अलग बन जाता और ज़माने भर के लोक गीतों और फ़िल्मी गीतों के ऊपर सारे-सारे दिन नाच-नाच कर कमर दोहरी कर ली जाती ! उधर लड़कों का ग्रुप अलग बन जाता जो कभी तो छत पर चढ़ कर पतंग उड़ाने में और पेंच लड़ाने में व्यस्त रहते तो कभी इब्ने सफी बी.ए. के जासूसी उपन्यासों से प्रेरणा ले विनोद हमीद की भूमिका ओढ़ झूठ मूठ के केसों की छानबीन में लगे रहते ! दिन में धूप में बाहर निकलने की सख्त मनाही होती थी ! उन दिनों कूलर और ए सी का ज़माना नहीं था ! खस की टट्टियाँ दरवाजों पर और खिड़कियों पर लगा कर कमरों को ठंडा रखा जाता था ! दिन भर कमरे में हम लोग या तो कैरमसाँप सीढ़ीलूडो और ताश आदि खेलते या फिर मम्मी सब लड़कियों को कढ़ाई करने के लिये मेजपोश या तकिये के गिलाफों पर डिजाइन बना कर दे देतीं कि जब तक बाहर का मौसम अनुकूल ना हो जाये कमरे में ही रह कर कुछ हुनर की चीज़ें भी लड़कियों को सिखा दी जायें ! सबसे सुन्दर कढ़ाई करने वाले के लिये आकर्षक इनाम दिये जाने की घोषणा भी की जाती ! बस फिर क्या था हम सभी बहनें स्पर्धा की भावना के साथ जुट जातीं कि यह इनाम तो हमें ही जीतना है ! दिन भर बच्चों के लिये कभी फालसे या बेल का शरबत तो कभी कुल्फी और आइसक्रीम या कभी आम और खरबूजे के खट्टे मीठे पने का चुग्गा डाल कर मम्मियाँ हम लोगों को कमरे में ही टिकाये रखने के लिये सारे प्रयत्न करती रहतीं ! बीच-बीच में बच्चों की ड्यूटी बाहर जाकर खस के पर्दों की तराई करने के लिये भी लगा दी जाती ! कमरे में खूब हो हल्ला मचा रहता ! कभी अन्त्याक्षरी का शोर मचता तो कभी कोरस में नये पुराने फ़िल्मी गीतों को फुल वॉल्यूम पर गाने का शोर मचता ! कभी-कभी बड़े लोग भी हमारे इस खेल में शामिल हो जाते अन्त्याक्षरी के खेल में हारने वाली टीम के कानों में गाने बता कर उन्हें जीतने में मदद करने लगते ! उस समय ‘चीटिंग-चीटिंग’ का बड़ा शोर मचता और ‘शेम-शेम’ की गगन भेदी चीत्कारों के साथ खेल वहीं समाप्त कर दिया जाता !

यूँ तो लड़के अपना ग्रुप अलग ही बना कर रखते थे लेकिन जब उन्हें अपनी पतंगों के लिये ‘माँझा’ बनाने की ज़रूरत होती थी तो उन्हें हमारे सहयोग की बड़ी ज़रूरत होती थी ! उसके लिये घर के कबाड़े में से पुरानी काँच की शीशियों को जमा करतोड़ करकूट पीस कर और कपड़े से छान कर उसका पाउडर बनाना पड़ता था ! उसके बाद काँच के उस महीन पाउडर को गोंद में मिला कर उसका लेप तैयार करना पड़ता था ! फिर बगीचे के किसी एक पेड़ से धागे के एक सिरे को बाँध कर दूसरा सिरा सबसे दूर वाले पेड़ से बाँधा जाता था ! फिर गोंद में मिले उस लेप को धागे पर अच्छी तरह से लपेटा जाता था ! निगरानी भी करनी पड़ती थी कि जब तक धागा पूरी तरह से सूख ना जाये कोई बच्चा उसके पास जाकर घायल ना हो जाये ! अपने इस बहुमूल्य सहयोग की मोटी कीमत भी वसूलते थे हम अपने भाइयों से ! वे बड़े थे तो कभी हम लोगों को मम्मी बाबूजी की इजाज़त लेकर बाहर पार्क में घुमाने ले जाते थे जहाँ पूरी शाम हम लोग झूलोंशूटसी सौ आदि पर जमे रहते थे और ‘आई स्पाई’ और ‘बोल मेरी मछली कितना पानी’ खेला करते थे या कभी-कभी वे लोग हमें पिक्चर हॉल में बच्चों की कोई फिल्म दिखाने के लिये ले जाते थे ! कई अच्छी फ़िल्में जैसे जागृतिबूट पॉलिशहम पंछी एक डाल केकैदी नंबर नौ सौ ग्यारहमासूमप्यार की प्यासतूफ़ान और दिया आदि हमने इसी तरह देखी थीं ! शाम होते ही आँगन में पानी का छिड़काव और छिड़काव के बहाने एक दूसरे को पानी से सराबोर करने की शरारतें तो अंतहीन होती थीं ! जब तक ठन्डे पानी से बदन काँपने नहीं लगता था और मम्मी बाबूजी की डाँटने की आवाज़ सुनाई नहीं पड़ती थी यह सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता था !

कितने सुहाने दिन थे वे ! जहाँ सिर्फ मस्ती थीमौज थीबेफिक्री थी और थीं ढेर सारी खुशियाँ ही खुशियाँ ! उन्हें याद करके आज भी मन यही कहता है !

जाने कहाँ गये वो दिन!'

साधना वैद