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Wednesday, July 27, 2022

रेनी डे - लघुकथा

 



शोभा के घर से स्कूल काफी दूर था । छोटा सा कस्बा होने के कारण शहर में आने जाने के लिए सवारियों का भी प्रबंध आसानी से नहीं हो पाता था । स्कूल जाने के लिए वह घर से एक घंटा पहले ही निकलती क्योंकि उसे पैदल ही जाना होता था । सर्दी, गर्मी, बरसात कोई भी मौसम हो शोभा को स्कूल जाने के लिए मौसम की हर ज़्यादती को सहना ही पड़ता था । 

इन दिनों भी सावन की झड़ी लगी हुई थी । शोभा बहुत ही प्रतिभाशाली और नियमित छात्रा थी । स्कूल एक दिन भी मिस नहीं करती किसी भी हाल में । आज भी सुबह से मूसलाधार बारिश हो रही थी । लेकिन रेनकोट और छाता लेकर शोभा निश्चित समय से और भी काफी पहले स्कूल के लिए निकल गयी । टूटीफूटी सड़क के पानी भरे गड्ढों को कूदते फलाँगते, सड़कों पर रेंगते केंचुओं और भाँति भाँति के कीड़ों मकोड़ों से बचते बचाते, कहीं कहीं घने पेड़ की छाँव में या किसी शेड के नीचे रुकते रुकाते जब वह डेढ़ घंटे में स्कूल पहुँची तो बिल्कुल भीग चुकी थी । लेकिन उसे तसल्ली थी कि कपड़े तो घंटे आधे घंटे में सूख ही जायेंगे उसकी पढ़ाई नहीं छूटेगी और अगले महीने होने वाली परीक्षा के लिए उसे किसी सहेली से मदद लेने की ज़रूरत नहीं होगी । स्कूल के गेट पर पहुँच कर उसने इत्मीनान की साँस ली । लेकिन यह क्या ! गेट पर तो बड़ा सा ताला लगा हुआ था और 'रेनी डे' का बोर्ड शोभा का मुँह चिढ़ा रहा था । 


साधना वैद

Friday, July 22, 2022

आगरा - संदली मस्जिद और कांधारी बेगम का मकबरा

 


कांधारी बेगम का म्माक्बरा उर्फ़ संदली सहेली बुर्ज 

आइये आज आपको ले चलते हैं शहंशाह शाहजहाँ के हरम में और मिलवाते हैं आपको उनकी उन बेग़मात से जिनके बारे में शायद कम ही लोगों से सुना होगा ! दुनिया ने तो केवल मुमताज महल उर्फ़ अर्जुमंदबानो बेगम की बारे में ही अधिकतर सुना है कि वे दुनिया की सबसे हसीन खातून थीं और शाहजहाँ उनसे बेहद प्यार करते थे और उनकी मौत के बाद उनकी याद में उन्होंने दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत ताजमहल को बनवाया और अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिन मुसम्मन बुर्ज में औरंगजेब की कैद में बिताते हुए और मुमताजमहल को याद करते हुए बस इसी ताजमहल को निहारते हुए गुज़ार दिए ! दुनिया में कोई दूसरी ऐसी शानदार इमारत वजूद में न आ पाए इसलिए कहते हैं उन्होंने उन सभी हुनरमंद कलाकारों के हाथ कटवा दिए थे जिनकी २२ साल की अनवरत मेहनत, कारीगरी और कुशलता का यह नायाब नमूना आज लगभग चार सौ साल के बाद भी शान से सर उठाये हुए खड़ा है और दुनिया भर की खूबसूरत आलीशान इमारतों को चुनौती दे रहा है !
मुमताजमहल के अलावा भी शाहजहाँ की तीन और प्रमुख बेगमात थीं कांधारी बेगम, फतेहपुरी बेगम और सरहिंद बेगम ! इनके लिए भी छोटे छोटे मकबरे बनवाये गए जो सहेली बुर्ज के नाम से जाने जाते हैं ! सुनते हैं मुमताजमहल का इन बेगमों के साथ बहुत ही प्यार भरा सम्बन्ध था और वे इन्हें अपनी सहेली की तरह ही प्रेम किया करती थीं ! कदाचित इसीलिये इन बेगमों के मकबरों का नाम सहेली बुर्ज पड़ा !
शाहजहाँ की पहली बेगम का नाम था कांधारी बेगम ! कांधारी बेग़म सफवीद राजकुमार सुल्तान मुजफ्फर हुसैन मिर्जा सफवी की सबसे छोटी बेटी थी ! वे उस परिवार से थी जिसे फारस के सफविद राजवंश, मस्जिद के संस्थापक के रूप में जाना जाता है ! कांधारी ने 1609 में 15 साल की उम्र में शाहजहाँ से शादी की थी ! शाहजहाँ की पहली पत्नी कंधारी बेगम की मृत्यु 1666 में हुई और उन्हें संदली मस्जिद परिसर में दफनाया गया ! आज भी उनकी मजार यहाँ मौजूद है ! उनकी अन्य पत्नियों, फतेहपुरी बेगम और सरहिंदी बेगम को ताजमहल के अंदर (मुख्य मकबरे में नहीं, बल्कि स्मारक के द्वार के पास) दफनाया गया था ! कंधारी बेगम को स्मारक के बाहर दफनाया गया इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि तब तक ताजमहल का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका था और उस परिसर में कांधारी बेगम के मकबरे के लिए कोई मुनासिब जगह ना बची हो ! इनका मकबरा ताजमहल के पूर्वी गेट के पास स्थित है और ‘बियॉन्ड ताज वाक’ में दिखाए जाने वाली चंद ऐतिहासिक महत्त्व की इमारतों की सूची में सबसे पहले इसी का नाम आता है ! कुछ इतिहासकारों का मानना यह भी है कि आगरा शहर में वर्तमान में खंदारी के नाम से जाने जाने वाले स्थान में कांधारी बेगम का महल था ! कदाचित इसी वजह से इसका जगह का नाम खंदारी पड़ा ! सन १७०७ में औरंगजेब की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ हुकमरानों ने यह स्थान भरतपुर के राजा को बेच दिया जिन्होंने वहाँ स्थित भवन को गिरा कर अपनी इच्छा के अनुरूप निर्माण कार्य करा लिया और अब यह परिसर भरतपुर हाउस के नाम से जाना जाता है ! महल के अहाते से लगी कुछ छतरियाँ अभी भी बची हैं जो उस काल की याद दिला देती हैं !
कांधारी बेगम के मकबरे के सामने एक छोटी सी मस्जिद है जिसे संदली मस्जिद के नाम से लोग जानते हैं ! यह मस्जिद बड़ी रूहानी और ख़ास मानी जाती है क्योंकि यहाँ के लोगों का विश्वास है कि इस मस्जिद पर जिन्नों का साया है ! वे इस मस्जिद में वास करते हैं इसलिए इस मस्जिद को लोग ‘जिन्नात की मस्जिद’, ‘काली मस्जिद’ और ‘बिल्लियों वाली मस्जिद’ के नाम से भी जानते हैं ! कहते हैं यहाँ पर बला की खूबसूरत पर्शियन बिल्लियाँ रहती हैं जो हकीकत में परलोकवासी लोगों की अतृप्त रूहें हैं ! यहाँ के स्थानीय निवासी और मस्जिद की देखरेख करने वाले लोग बताते हैं कि लोग दूर-दूर से बिल्लियों को खाना खिलाने के लिए आते हैं ! ऐसी मान्यता है कि आप का दिया हुआ खाना अगर बिल्लियाँ खा लेती हैं तो आपकी मुराद पूरी हो जाती है ! .इसके साथ ही कई सारे लोग ऐसे भी हैं जो इस मस्जिद में मन्नत के धागे की जगह पॉलिथीन बाँधते हैं, बकायदा ख़त छोड़ते हैं और अक्सर कुछ समय बाद उनकी मुराद पूरी हो जाती है ! संदली मस्जिद धर्म निरपेक्षता का जीता जगता प्रमाण है ! अपनी मुराद पूरी करने के लिए यहाँ हर धर्म के लोग मन्नत का धागा बाँधने और बिल्लियों को खाना खिलाने के लिये आते हैं !
कई लोगों ने अपने अनुभव साझा किये तो बताया कि यहाँ पर आते ही एक अजब सी रूहानियत की अनुभूति होती है जैसे कोई अलौकिक शक्ति इस स्थान में वास करती है ! इसी मस्जिद के सामने शाहजहाँ की पहली पत्नी कंधारी बेगम का मकबरा है ! अष्टकोणीय इस छोटे से चबूतरे पर कंधारी बेगम की कब्र है जो जालीदार दीवारों से घिरी हुई है ! चबूतरे का वरांडा पतले पतले स्तंभों से सुसज्जित है और इसके ऊपर संगमरमर की छतरी बनी हुई है ! इसे ‘कांधारी बेगम सहेली बुर्ज’ भी कहा जाता है ! स्थानीय लोग यहाँ बड़ी श्रद्धा के साथ मन्नत माँगने आते हैं ! यहाँ चबूतरे पर बैठ कर पहरों इबादत करते हैं और जालीदार दीवारों की जालियों में चमकीली पन्नियों के टुकड़ों को लपेट कर मन्नत के धागे बाँध जाते हैं ! सुना है ये सब चीज़ें वे प्रेतबाधा को शांत करने के लिए करते हैं ! कई लोगों की मन्नत अगर पूरी हो जाती है तो वे इन पन्नियों को खोलने भी आते हैं !
कभी सोचती हूँ कहीं कांधारी बेगम की आत्मा ही तो अतृप्त आत्मा नहीं थीं ! मुमताजमहल को मिली मोहोब्बत, शोहरत और रुतबा कहीं उनके असंतोष का कारण तो नहीं था ! कांधारी बेगम भोग विलास से दूर एक फ़कीर सी ज़िंदगी जीना पसंद करती थीं इसीलिये वे शाहजहाँ को बहुत कम पसंद थीं ! यह भी कहते हैं कि कांधारी बेगम को बिल्लियाँ बहुत पसंद थीं ! शाहजहाँ की अन्य दो पत्नियाँ फतेहपुरी बेगम और सरहिंद बेगम ताजमहल परिसर में ही पूर्वी गेट एवं पश्चिमी गेट के पास दफनाई गयीं फिर कांधारी बेगम को ही यहाँ स्थान क्यों नहीं मिला ? ना रे बाबा ! कहानी बड़ी फ़िल्मी सी लगने लगी है ! लेकिन इतिहास और कल्पना में बहुत अंतर होता है ! क्या शाहजहाँ ने सच में अपनी पहली पत्नी के साथ अन्याय किया था ? कई स्थानों पर बड़ी विरोधाभासी जानकारी भी मिलती है ! शाहजहाँ और कंधारी बेगम के मृत्यु का साल कई इतिहासकारों ने सन १६६६ बताया है ! तब तक शाहजहाँ अपना राजपाट, रुतबा, अधिकार सब गँवा कर अपने ही बेटे की कैद में रह कर बहुत ही कष्टप्रद जीवन बिता रहे थे ! कौन जाने किसकी मृत्यु पहले हुई कंधारी बेगम की या शाहजहाँ की ! शाहजहाँ की मृत्यु की तारीख तो २२ जनवरी बताई जाती है ! तो फिर कंधारी बेगम को ताज परिसर से बाहर दफनाने का फैसला क्या औरंगजेब का था ? आपका क्या ख़याल है इस बारे में बताइयेगा ज़रूर !

नोट - इस स्मारक के बारे में अथवा आगरा के अन्य स्मारकों के बारे में तथ्यपरक जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें –
साधना वैद


संदली मस्जिद




Saturday, July 16, 2022

आगरा - जसवंत सिंह की छतरी

 



दोस्तों, अभी कुछ दिन पूर्व मैंने आपको झुनझुन कटोरा की सैर कराई थी ! आशा है आपको आनंद आया होगा ! चलिए आज चलते हैं एक और बहुत ही खूबसूरत स्थान पर जिसका नाम है जसवंत छतरी ! मुग़ल काल के दौरान किसी हिन्दू राजा द्वारा बनवाया गया यह एक ही स्मारक है ऐसा कई इतिहासकारों और विद्वानों का मानना है ! यह स्मारक अपने अतीत के वैभव और सौन्दर्य को समेट रखने की भरसक कोशिश करता हुआ आज भी खड़ा हुआ तो है लेकिन रखरखाव की कमी और पर्यटन विभाग एवं पुरातत्व विभाग की उदासीनता के चलते सैलानियों की नज़रों से दूर है और एकदम निसंग एकाकी गुमनामी के अँधेरे में उदास सा अपने गौरवशाली इतिहास की मर्मस्पर्शी कथा को खुद ही खुद से कहता और सुनता रहता है !

अगर आप जसवंत छतरी देखने के लिए उत्सुक हैं तो आपको आगरा के बल्केश्वर में यमुना किनारे बहुत ही घनी बसी हुई बस्ती में पतली पतली गलियों से होकर जाना होगा ! यहाँ पहुँचने के लिए गलियों में दिशा निर्देश के जो चिन्ह बने हैं वे भी पर्यटकों को भटकाने के लिए काफी हैं ! अगर आप बड़ी गाड़ी में हैं और पतली गलियों में गलत मुड़ जाते हैं तो बाहर निकलने में बड़ी दिक्कत होती है ! खैर ! जहाँ चाह वहाँ राह ! कहीं गाड़ी से कहीं पैदल उतर कर हम जैसे तैसे जसवंत छतरी पहुँच ही गए !
जसवंत छतरी की कहानी राजपूत राजा अमर सिंह राठौर से जुड़ी हुई है ! जिसके नाम का दरवाज़ा आज भी आगरा के लाल किले में अमर सिंह गेट के नाम से मशहूर है और अब तो किले का यही प्रमुख प्रवेश द्वार है ! इसी राजपूत राजा अमर सिंह के मरणोपरांत उनकी पत्नी अपने पति के शव के साथ इसी स्थान पर सती हुई थीं ! उनकी स्मृति और सम्मान में अमर सिंह के छोटे भाई राजा जसवंत सिंह ने यह छतरी सन १६४४ में बनवाई थी जो १६५८ तक बन कर पूरी हुई ! अमर सिंह राजस्थान के मारवाड़ राज्य के राजा गज सिंह के बड़े बेटे थे ! वे बहुत शूरवीर, स्वाभिमानी, और अपने उसूलों पर चलने वाले तेजस्वी योद्धा थे ! उनकी सौतेली माता उनसे अप्रसन्न रहती थीं और उनके विरुद्ध अपने पति को भड़काती रहती थीं ! इसके अलावा एक बार उन्होंने एक डाकू की मुगलों से रक्षा कर सहायता की थी इससे कुपित होकर राजा गजसिंह ने उन्हें राज्य से बेदखल कर दिया ! गज सिंह की मृत्यु के बाद उनके छोटे बेटे जसवंत सिंह मारवाड़ राज्य के राजा घोषित किये गए ! अमर सिंह अपनी वीरता और प्रतिभा के कारण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के प्रिय दरबारियों में शुमार हुए और दरबार में उन्होंने अच्छा रुतबा और सम्मान प्राप्त किया और राजनैतिक मामलों में उनकी सलाह को बहुत महत्त्व दिया जाने लगा ! शाहजहाँ ने उन्हें नागौर का मनसबदार बना दिया और एक बहुत ही शानदार महल उन्हें भेंट किया ! दरबार में कई लोग उनके बढ़ते प्रभाव से जलने लगे जिनमें सलाबत खान का नाम सर्वोपरि था ! वह रिश्ते में शाहजहाँ का भाई था इसलिए कुछ अधिक ही निरंकुश भी था ! वह अमर सिंह राठौर को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देता था ! कहते हैं एक बार अमर सिंह अनधिकृत रूप से कई दिनों तक दरबार से गैरहाजिर रहे ! सलाबत खान को मौक़ा मिल गया शाहजहाँ को भड़काने का ! दरबार में उपस्थित होने पर सलाबत खान ने अमर सिंह के साथ बहुत अपमानजनक ढंग से बात की ! अमर सिंह भी तैश में आ गए और बादशाह से भी उलझ पड़े ! शाहजहाँ ने उन पर भारी जुर्माना लगाया ! न देने की स्थिति में उनकी मनसबदारी महल वगैरह सब छीन लेने की धमकी भी दे डाली ! अमर सिंह का खून खौल उठा ! अमर सिंह की वीरता पूर्ण कहानी पर नौटंकी भी खूब खेली जाती है और फ़िल्में भी बन चुकी हैं ! इस दृश्य को नौटंकी वाले बड़े ही दिलचस्प तरीके से दिखाते हैं ! दरबार में सलाबत खान अमर सिंह को अपमानित करते हुए कहता है अगर जुर्माना समय से न भरा तो जमानत के लिए क्या रखोगे ! अमर सिंह तब अपनी तलवार लहराते हुए कहता है मेरी जमानत मेरी तलवार है और वह भरे दरबार में शाहजहाँ के सामने ही सलाबत खान का सिर धड़ से अलग कर देता है ! सारे दरबारी भयभीत होकर भाग खड़े होते हैं ! शाहजहाँ भी अपने रनिवास में जा छुपते हैं ! किले के सारे फाटक बंद कर दिए जाते हैं ! तब अमर सिंह किले की दीवार फाँद कर महल से बाहर भागते हैं ! शाहजहाँ ने अमर सिंह को जान से मार देने का फरमान सुना दिया और घोषणा कर दी कि जो अमर सिंह को मारेगा उसे नागौर का मनसबदार बना दिया जाएगा !

अमर सिंह की पत्नी हाड़ा रानी का भाई अर्जुन सिंह लालच में आ गया और अमर सिंह को बहला फुसला कर कि शाहजहाँ ने अमर सिंह को माफ़ कर दिया है और वो उनसे मिलना चाहते हैं उन्हें अपने साथ किले में ले गया ! तब किले का फाटक बंद था और छोटी सी खिड़की खुली हुई थी ! आत्माभिमानी अमर सिंह के सम्मान को ठेस लगी कि यह गेट इसलिए बंद किया गया है ताकि वे सर झुका कर अन्दर प्रवेश करें ! यह उन्हें गवारा न था ! उन्होंने पहले पैर अन्दर किये और जैसे ही पीछे की तरफ झुके अर्जुन सिंह ने उनकी छाती में खंजर घोंप कर उन्हें मार दिया ! जैसे ही शाहजहाँ को यह पता चला उन्हें अर्जुन सिंह पर बहुत क्रोध आया ! अमर सिंह जैसे शूरवीर को खोने का उन्हें बहुत अफ़सोस था उन्होंने अर्जुन सिंह को भी प्राण दंड दे दिया !

अमर सिंह की पत्नी हाड़ा रानी को जब उनकी मृत्यु का समाचार मिला तो वह इस बात से आशंकित हो गयी कि कहीं मुग़ल सैनिक अमर सिंह के पार्थिव शरीर का अपमान न करें ! तब वह वीर रानी अपने दो तीन विश्वस्त साथियों के नेतृत्व में किले में घुस कर अपने पति के शव को सुरक्षित उसी गेट से बाहर ले गयी जिसे आज सब अमर सिंह गेट के नाम से जानते हैं ! यमुना किनारे इसी स्थान पर हाड़ा रानी अपने पति के साथ सती हो गयी जहाँ आज यह जसवंत छतरी खड़ी हुई है ! अमर सिंह के छोटे भाई जसवंत सिंह अपने भाई और भाभी के पराक्रम से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उनके सम्मान में इस छतरी का निर्माण करवाया ! अमर सिंह की पत्नी के नाम के बारे में भी बड़ा मतभेद है ! कहीं उसका नाम हाड़ा रानी लिखा है, कहीं चन्द्रावती, कहीं हादा तो कहीं बल्लू चम्पावत ! नामों में एकरूपता का संयोग मात्र हो सकता है लेकिन यह वो हाड़ी रानी नहीं है जो सलुम्बर के राव रतन सिंह चूड़ावत की नई नवेली दुल्हन थी और जिसने युद्ध भूमि में जाने से हिचकिचाते अपने पति के पास अपनी कोई निशानी भेजने की माँग को पूरा करने के लिए अपना शीश ही काट कर भेज दिया था !

जसवंत छतरी अपने समय में बहुत ही भव्य और दर्शनीय रही होगी ! खंडहर कहते हैं कि ईमारत कितनी बुलंद थी ! यह काफी बड़े क्षेत्र में बनी हुई है ! पूरी ईमारत लाल पत्थर की बनी हुई है ! ऊँचे से चबूतरे पर एक बड़ा सा हॉल नुमा कक्ष है जिसमें ताला लगा हुआ था ! चाबी जिसके पास थी वह बन्दा नदारद था ! हॉल की चारों दीवारें बेहद खूबसूरत नाज़ुक जालियों से निर्मित हैं ! इसके निर्माण में हिन्दू व मुग़ल वास्तुकला का अद्भुत समन्वय है ! जहाँ खम्भों पर मंदिर की घंटियाँ, कमल के फूल, चक्र इत्यादि बहुत कुशलता से उकेरे गए हैं वहीं स्मारक की जालियाँ मुगलकालीन स्थापत्य की याद दिलाती हैं ! हमने जाली से अन्दर झाँक कर देखा तो वहाँ कुछ पूजा पाठ की सामग्री और बाँस बल्ली वगैरह रखे हुए दिखाई दिये ! चबूतरे के सामने एक गहरा सा चौकोर गड्ढा है ! हमारा अनुमान है उसी स्थान पर अमर सिंह एवं हाड़ा रानी का अंतिम संस्कार हुआ होगा ! अनुमान ही लगा सकते हैं ! बताने के लिए न कोई गाइड था न ही पुरातत्व विभाग का कोई बोर्ड ! अहाते के यमुना किनारे वाले दोनों कोनों पर बहुत ही सुन्दर छतरी बनी हुई हैं जिन पर आस पास रहने वाले फुरसती लोग ठंडी हवा का आनद लेने के लिए बैठे हुए थे ! ऊपर चढ़ कर गए तो इतनी गर्मी में भी ए सी जैसी शीतल बयार का सुख उठा लिया ! छतरी से यमुना नदी के दर्शन हो रहे थे जिसमें भैंसें नहाने का लुत्फ़ उठा रही थीं ! किनारे पर गन्दगी के अम्बार लगे हुए थे ! वह सब देख कर वितृष्णा तो अवश्य हुई लेकिन ठंडी हवा ने क्षोभ कुछ कम कर दिया ! सीढ़ियाँ ज़रूर बहुत ऊँची हैं ! सकरी भी हैं और उसमें रेलिंग भी नहीं है ! दर्शक अपनी सुरक्षा का ध्यान रख कर ही चढ़ने का जोखिम उठायें ! सीधे हाथ की तरफ एक छोटा सा मंदिर है और एक पुराना कुआँ भी है ! उस मंदिर में पूजा करने लोग आते रहते हैं ! कुछ स्त्रियाँ इस छतरी के आगे भी श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़ रही थीं ! जसवंत छतरी के अहाते में चारों तरफ कभी सुन्दर बगीचा था और पानी के फव्वारे लगे हुए थे लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है ! इसमें कोई संदेह नहीं जब यह स्मारक अपने पूरे यौवन पर होगा तो इसकी खूबसूरती पर निगाहें ठहरती नहीं होंगी ! अगर इस स्मारक के आस पास इतनी घनी आबादी नहीं होती तो यह निश्चित रूप से आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र होता !

तो दोस्तों, आज आपको एक और खूबसूरत स्मारक का दीदार करवाया है मैंने ! दिल थाम के बैठिये ! अगला स्थल भी शानदार होगा जिसके बारे में आगरा में रहने वाले कलाप्रेमियों को ही कम जानकारी है तो भला बाहर वालों को कैसे होगी ! मेरा उद्देश्य यही है कि आप सब भी इन सुन्दर स्थानों को देखें और इनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियों के बारे में भी जानें ! हम सब मिल कर आवाज़ उठाएंगे तो शायद पुरातत्व विभाग की नींद खुल जाए और ये स्मारक बदहाली का शिकार होने से बच जाएँ ! तो आज विदा दीजिये मुझे ! मिलते हैं दो चार दिनों में किसी और नयी जगह पर आपके साथ चलने के लिए !


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साधना वैद

 


Saturday, July 9, 2022

आज का सच


 


मुख्यमंत्री जी के बप्पा जी की मूर्ति का

धूमधाम से अनावरण कराना था

चौराहे पर मूर्ति को लगे हुए

बीत चुका लंबा ज़माना था

कभी सहयोगी बिदक जाते

तो कभी कोर्ट कचहरी के केस

आड़े आ जाते

कोरोना का तो बस कमज़ोर सा बहाना था !

जैसे तैसे इस बार मुहूर्त निकला तो

लो फिर से आफतें आ गयीं

आधे विधायक दूसरी पार्टी में चले गए

बाकी को अविश्वास प्रस्ताव लाना था !

भाई की घूसखोरी ने कुर्सी खींची

तो जनता के लबों पर

बेटे के कुकृत्यों का फ़साना था !

बप्पा जी की मूर्ति सालों से यूँ ही 

घूँघट उठाये जाने की आस में

चौराहे पर उदास खड़ी है !

न जाने वो कौन है कहाँ है

जिसे यह घूँघट उठाना था !

अब तो मन में भय और घबराहट है

कहीं यह अनावरण की रस्म

स्थाई रूप से टल ही न जाए

कहीं मंत्री जी विश्वास प्रस्ताव हार गए

तो फिर कौन सगा कौन सौतेला

किस का कहाँ ठिकाना है !

हृदय में धुकधुकी लगी है

माथे पर चिंता की लकीरें हैं

अनावरण के दिन गले में

क्या पहनाया जाएगा

फूलों और नोटों के हार पहनाये जायेंगे

या फिर जूतों के हारों को आना है !

 

साधना वैद

 


Thursday, July 7, 2022

आगरा - झुनझुन कटोरा

 



आगरा तो खूब घूमा होगा आपने ! ज़ाहिर सी बात है जिस एक शहर में विश्व विरासत की तीन तीन इमारतें स्थित हों, उनमें भी विश्व की सबसे खूबसूरत इमारत ‘ताजमहल’ का नाम शुमार हो, उसके महत्त्व और जलवे से कौन इनकार कर सकता है ! आगरा पर्यटन की दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर है ! ताजमहल, आगरे का किला और फतेहपुर सीकरी विश्वदाय समुदाय की तीन बहुत ही प्रसिद्ध इमारतें आगरा की शान और गौरव को बढाती हैं ! इनके अलावा सिकंदरा, इत्माद्दुद्दौला, स्वामीबाग, मरियम टूम आदि और भी कई स्थान हैं जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं ! लेकिन इन प्रसिद्ध स्थानों के अलावा भी आगरा में बहुत कुछ है जो न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है इनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियाँ दर्शनार्थियों की ज्ञान पिपासा को शांत करने में भी समर्थ हैं ! तो आइये आगरा और घूमिये हमारे साथ ! हम आपको ऐसे स्थलों की सैर करायेंगे जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और बाहर से आये पर्यटकों को दिखाने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा तैयार की गयी इमारतों की सूची में तो इन स्मारकों का नाम शुमार ही नहीं है ! तो चलिए शुरुआत करते हैं झुनझुन कटोरा से और आज चलते हैं हम झुनझुन कटोरा देखने !

झुनझुन कटोरा – आगरा के दीवानी कचहरी के परिसर में स्थित यह एक बहुत सुन्दर इमारत है और कदाचित ताजमहल से भी बहुत पहले की बनाई हुई है ! इससे जुड़ा किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है ! कहते हैं एक बार शेरशाह सूरी से युद्ध करते हुए बादशाह हुमायूं की जान पर बन आई थी ! वो किसी तरह अपनी जान बचा कर भाग रहे थे लेकिन रास्ते में एक गहरी नदी आ गयी ! हुमायूं का घोड़ा नदी में डूब कर मर गया और गहरी नदी को पार करना हुमायूं के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया ! तब निजाम नाम के एक भिश्ती ने हुमायूं को अपनी मशक पर सवार करा के नदी पार कराई और उनके प्राणों पर आये हुए संकट से उन्हें बचाया ! हुमायूं उस भिश्ती पर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे वचन दिया कि जब समय अच्छा आयेगा वे उसे अवश्य इनाम देंगे ! कुछ ही दिनों में संकट के बादल छँट गए और हुमायूं पुन: गद्दी पर आसीन हुए ! तब वचन के पक्के बादशाह को उस निजाम भिश्ती की याद आई ! उन्होंने उसे अपने दरबार में तलब किया और अपने वायदे के अनुसार उसकी किसी एक ख्वाहिश को पूरा करने का वचन दिया ! तब निजाम भिश्ती ने इनाम के रूप में खुद उसे एक दिन के लिए बादशाह बनाने की अपनी फरमाइश हुमायूं के सामने रखी ! वचनबद्ध बादशाह हुमायूं ने उसे एक दिन के लिए बादशाहत का दायित्व सौंप दिया ! उसी दिन उस भिश्ती बादशाह ने चमड़े के सिक्के देश में जारी कर दिए ! उसका चलाया हुआ सिक्का कोलकता के संग्रहालय में अभी भी देखा जा सकता है ! निजाम भिश्ती के एक दिन का बादशाह बन जाने की कहानी तो सबने सुनी होगी लेकिन इसका झुनझुन कटोरा से क्या सम्बन्ध है यह बहुत कम लोगों को पता होगा ! है न दिलचस्प कहानी !

‘झुनझुन कटोरा’ यह नाम सुनने में कुछ मज़ेदार सा लगता है ना ! इस स्मारक का नाम झुन झुन कटोरा क्यों पड़ा यह कहानी भी कम रोचक नहीं है ! उन दिनों में जब नल नहीं हुआ करते थे तब आम लोगों की पानी की ज़रुरत को पूरा करने का काम भिश्ती लोग ही किया करते थे ! सड़कों पर छिड़काव. नालियों की सफाई, किसी निर्माण स्थल पर पानी की आपूर्ति, ये सारे काम चमड़े की मशक में पानी भर कर भिश्ती लोग ही किया करते थे और उनके मेहनताने के स्वरुप उन्हें बदले में कौड़ियाँ दी जाती थीं ! वे चलती फिरती प्याऊ का काम भी किया करते थे ! उनके पास एक कटोरा होता था जिसमें पानी निकाल कर वे ग्राहकों को पिलाते और बदले में लोग उनके कटोरे में कौड़ियाँ डाल देते ! कौड़ियों के कटोरे में पड़ते ही एक ख़ास किस्म की झनझनाहट की आवाज़ होती ! इस कटोरे को बजा बजा कर ही भिश्ती लोग अपनी आमद की सूचना लोगों को देते ! इस प्रकार झुनझुन की आवाज़ करने वाला कटोरा भिश्तियों की पहचान बन गया और यह नाम लोगों की जुबां पर चढ़ गया ! भिश्ती निजाम की मृत्यु के बाद उन्हें इसी स्थान पर उनके परिवार के सदस्यों नें दफना दिया और इस मकबरे का नाम भी झुनझुन कटोरा पड़ गया ! निजाम भिश्ती को जिस जगह पर दफनाया गया उस पर इस इमारत का निर्माण किसने करवाया इस बारे में तो इतिहास की किताबों में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते लेकिन यह अवश्य स्पष्ट होता है कि भिश्ती निजाम अपने समय की जानी मानी हस्ती था !

आगरा के खंदारी क्षेत्र में सूर्यनगर के दीवानी परिसर में यह इमारत आज भी बुलंदी के साथ खड़ी हुई है ! इस इमारत को देखने के लिए कोई टिकिट नहीं है ! शायद इसीलिये यहाँ पर्यटकों का आवागमन भी ना के बराबर है और शायद इसीलिये इसके रखरखाव के लिए भी पर्यटन विभाग और पुरातत्व विभाग लापरवाह नज़र आते हैं ! हम जब इस स्थल को देखने पहुँचे तो संध्या के चार बज रहे थे लेकिन इमारत के गेट पर ताला लटका हुआ था ! हम अन्दर नहीं जा सके ! लोगों ने बताया कि एक चौकीदार है ज़रूर लेकिन आज शायद जल्दी चला गया ! मुफ्त में जो कुछ मिलता है या मिल सकता है लोगों को उसकी कद्र नहीं होती ! मेरे विचार से यदि इन स्मारकों पर भी चाहे पाँच ही रुपये का टिकिट लगाया जाए लेकिन लगाया ज़रूर जाए ! इस तरह लोगों की दिलचस्पी भी इन स्मारकों में जागेगी और सरकार को कुछ आमदनी भी होगी ! एक बात और कहना चाहती हूँ पुरातत्व विभाग की ओर से एक बोर्ड जो यहाँ लगाया गया है वह केवल इस स्मारक के संरक्षण के प्रति चेतावनी भर का ही सूचक है कि इसे नुक्सान पहुँचाना एक दंडनीय अपराध है और दोषी पाए जाने पर सज़ा का भी प्रावधान है लेकिन एक भी बोर्ड स्मारक के इतिहास के बारे में नहीं लगा है ! अन्य स्मारकों पर यह काम गाइड्स बखूबी करते हैं लेकिन यहाँ गाइड तो दूर चौकीदार तक दिखाई नहीं दिया ! ऐसे में स्मारक की कहानी और उसके निर्माण काल तथा इसे किसने और कब बनवाया इन बातों की जानकारी देता हुआ एक बोर्ड तो लगाया ही जा सकता है !

आज आपको झुनझुन कटोरा की कहानी सुनाई है ! आप मेरे ब्लॉग पर नियमित रूप से आते रहिये ! मैं आपको आगरा के ऐसे ही और भी कई स्मारकों के बारे में रोचक कहानियाँ सुनाउँगी जिनके बारे में आपने सुना ज़रूर होगा लेकिन वे किस स्मारक से जुड़े हैं शायद आपको ज्ञात नहीं होगा ! आज के लिए इतना ही ! मिलती हूँ आपसे शीघ्र ही एक नयी इमारत के साथ उससे जुड़ी कहानी को लेकर ! मुझे यकीन है मेरे साथ आगरा की यह सैर आपको ज़रूर आनंददायक लगेगी !  


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साधना वैद