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Sunday, January 31, 2021

क्या यही है अभिव्यक्ति की आज़ादी ?

 



देश में कहीं कुछ हो जाये हमारे मुस्तैद उपद्रवकारी हमेशा बड़े जोश खरोश के साथ हिंसा फैलाने में, तोड़ फोड़ करने में और जन सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाने में सबसे आगे नज़र आते हैं । अब तो इन लोगों ने अपना दायरा और भी बढ़ा लिया है । वियना में कोई दुर्घटना घटे या ऑस्ट्रेलिया में, अमेरिका में कोई हादसा हो या इंग्लैंड में, हमारे ये जाँबाज़अपने देश की रेलगाड़ियाँ या बसें जलाने में ज़रा सी भी देर नहीं लगाते । विरोध प्रकट करने का यह कौन सा तरीका है समझ में नहीं आता । क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी का यही स्वरुप होता है ? मेरी नज़र में यह हद दर्ज़े का पागलपन है ।
आजकल यह रिवाज़ सा चल पड़ा है कि सड़क पर कोई दुर्घटना हो गयी तो तुरंत रास्ता जाम कर दो । जितने भी वाहन आस पास खड़े हों  उनको आग के हवाले कर दो फिर चाहे उनका दुर्घटना से कोई लेना देना हो या ना हो और घंटों के लिये धरना प्रदर्शन कर यातायात को बाधित कर दो । किसी अस्पताल में किसी के परिजन की उपचार के दौरान मौत हो गयी तो डॉक्टर के नर्सिंग होम में सारी कीमती मशीनों को चकनाचूर कर दो और डॉक्टर और उसके स्टाफ की जम कर धुनाई कर दो । जनता का यह व्यवहार कुछ विचित्र लगता है । हद तो तब हो जाती है जब अपना आक्रोश प्रदर्शित करने के लिये ये लोग आम जनता की सहूलियत और ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वर्षों के प्रयासों और जद्दोजहद के बाद जैसे तैसे जुटायी गयी बुनियादी सेवाओं को अपनी वहशत का निशाना बनाते हैं ।
आम जनता के मन में यह भ्रांति गहराई तक जड़ें जमाये हुए है कि सारी रेलगाड़ियाँ, बसें या सरकारी इमारतें सरकारकी हैं जो कोई दूसरे पक्ष का बड़ा ही अमीर, अत्याचारी और खलनायक किस्म का व्यक्ति है और उसके सामान की तोड़ फोड़ करके वे उससे अपना बदला निकाल सकते हैं । हम सभी यह जानते हैं कि हमारा देश अभी पूरी तरह से सुविधा सम्पन्न नहीं हुआ है । अभी भी किसी क्षेत्र की किसी ज़रूरत को पूरा करने के लिये सरकार को एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ता है और उस सुविधा का उपभोग करने से पहले आम जनता को भारी मात्रा में टैक्स देकर धन जुटाने में अपना योगदान करना पड़ता है तब कहीं जाकर दो शहरों को जोड़ने के लिये किसी बस या किसी रेल की व्यवस्था हो पाती है या किसी शहर में बच्चों के लिये स्कूल या मरीज़ों के लिये किसी अस्पताल का निर्माण हो पाता है । लेकिन चन्द वहशी लोगों को उसे फूँक डालने में ज़रा सा भी समय नहीं लगता । अपने जुनून की वजह से वे अन्य तमाम नागरिकों की आवश्यक्ताओं की वस्तुओं को कैसे और किस हक से नुक्सान पहुँचा सकते हैं ? जो लोग इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं क्या वे कभी रेल से या बस से सफर नहीं करते ? अपने परिवार के बच्चों को स्कूलों में पढ़ने के लिये नहीं भेजते या फिर बीमार पड़ जाने पर उन्हें अस्पतालों की सेवाओं की दरकार नहीं होती ? फिर बुनियादी ज़रूरतों की इन सुविधाओं को क्षति पहुँचा कर वे किस तरह से एक ज़िम्मेदार नागरिक होने का दायित्व निभा रहे होते हैं ?

लोगों तक यह संदेश पहुँचना बहुत ज़रूरी है कि जिस सरकारी सम्पत्ति को वे नुक्सान पहुँचाते हैं वह जनता की सम्पत्ति है और उसके निर्माण के लिये उनकी खुद की भी गाढ़े पसीने की कमाई कर के रूप में जब सरकार के पास पहुँचती है तब ये सुविधायें अस्तित्व में आती हैं । इन के नष्ट हो जाने से पुन: इनकी ज़रूरत का शून्य बन जाता है और उसकी पूर्ति के लिये पुन: अतिरिक्त कर भार और उसके परिणामस्वरूप बढ़ने वाली मँहगाई का दुष्चक्र आरम्भ हो जाता है जिसका खामियाज़ा चन्द लोगों की ग़लतियों की वजह से सभी को भुगतना पड़ता है । इसे कहते हैं घर फूँक तमाशा देखना ! यह नादानी कुछ इसी तरह की है कि घर में किसी बच्चे की नयी कमीज़ की छोटी सी माँग पूरी नहीं हुई तो वह अपने कपड़ों की पूरी अलमारी को ही आग के हवाले कर दे ।
इस समस्या के समाधान के लिये ज़रूरी है कि जन प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के नागरिकों को केवल धरना प्रदर्शन का प्रशिक्षण ही ना दें वरन उनके कर्तव्यों के लिये भी उन्हें जागरूक और सचेत करें । नेता गण खुद भी धरना प्रदर्शन और हिंसा की राजनीति से परहेज़ करें और आम जनता के सामने संयमित और अनुशासित आचरण कर अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करें ताकि जनता के बीच उद्देश्यपूर्ण संदेश प्रसारित हो । रेडियो और टी.वी. चैनल्स पर नागरिकों को इस दिशा में जागरूक करने के लिये समय समय पर संदेश प्रसारित किये जायें और मौके पर तोड़ फोड़ की असामाजिक गतिविधि में लिप्त पकड़े गये लोगों को कठोर दण्ड दिया जाये उन्हें सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ा ना जाये । जब तक कड़े कदम नहीं उठाये जायेंगे हम इसी तरह पंगु बने हुए इन उपद्रवकारियों के हाथों का खिलौना बने रहेंगे ।

हर लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है ! सरकार की नीतियों पर अंकुश लगाने के लिए विपक्ष का सक्रिय, सचेत और जागरूक होना परम आवश्यक है ! आदर्श विपक्ष सरकार के समानांतर चल कर एवं रचनात्मक और सकारात्मक सहयोग देकर देश को विकास के पथ पर ले जाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है ! लेकिन यह तब ही संभव हो सकता है जब उसका सरकार के साथ दोस्ताना सम्बन्ध हो ! विपक्ष में होने का यह अर्थ नहीं कि सरकार के हर फैसले का विरोध किया जाए ! हर योजना के निष्पादन में अड़ंगे लगाए जाएँ और भड़काऊ भाषण देकर और अलगाव वादी नारे लगा कर भीड़ तंत्र को उकसाया जाए ! आम नागरिकों की ज़िंदगी को दुश्वार कर दिया जाए ! यह अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है ! यह अभिव्यक्ति की आज़ादी का महा दुरुपयोग है और इस पर अंकुश लगना बहुत ज़रूरी है !

साधना वैद

 

 

Thursday, January 28, 2021

चाय




सर्दी की रात 

ठिठका सा कोहरा 

ठिठुरा गात

 

कोई दे जाता

चाय का एक प्याला

ज़रा सी बात

 

 

तान के सोया 

 कोहरे की चादर 

पागल चाँद

 

काँपते हाड़

ठिठुरता बदन 

बजते दाँत 

 

मंदा अलाव 

कँपकँपाता तन 

झीने से वस्त्र

 

चाय का प्याला

शीत को भगाने का

है मूल मन्त्र


धरतीपुत्र

दिन रात करते

जी तोड़ काम

 

मारक सर्दी 

अदरक की चाय 

देती आराम 

 

ठंडी हवाएं 

सिहरता बदन

बुझा अलाव 

 

ठिठुरे लोग

ढाबे की गर्म चाय 

जले अलाव 

 

चाय का प्याला 

सर्दी की बिसात पे 

बौना सा प्यादा  

 

दे देता मात 

सर्दी के वज़ीर को

बन के दादा

 

गर्म रजाई

धरती की शैया पे 

 कहाँ से लाये 

 

चाय की प्याली 

सर्दी के दानव की

बैंड बजाये

 

 जो मिल जाए  

जला हुआ अलाव 

गरम चाय

 

ओ मेरे मौला

जीत लेंगे दुनिया

दे दे तू चाय !

 

साधना वैद  

 


Tuesday, January 26, 2021

दिव्य प्रसंग - दिव्य छटा


 

आया है गणतंत्र का, शुभ दिन देखो आज
दुल्हन सी दिल्ली सजी, हर्षित सकल समाज !

संविधान की शान से, दिवस बन गया ख़ास 
भारत में लागू हुआ, लोकतंत्र का राज ! 


गूँज रहे हैं पार्श्व में, देश भक्ति के गीत
उमड़ पड़ा सारा शहर, डरा न पाई शीत !


सीना फूला गर्व से, आँख अश्रु से लाल 
मर के सम्मानित हुए, भारत माँ के लाल !


बढ़ते सीना तान के, पथ पे वीर जवान
कदम मिला कर चल रहे, ऊँट, अश्व अरु श्वान !


भारत संस्कृति की छटा, सैन्य शक्ति का जोश
   देख विश्व विस्मित हुआ, प्रजा हुई मदहोश ! 
  

बच्चों के उत्साह की, महिमा अपरम्पार
गीत नृत्य और बैंड से, मोहा मन हर बार !


अद्भुत करतब देख के, दर्शक हैं हैरान
ध्वजा बनाते उड़ रहे, नभ में विकट विमान  !


गज पर बैठे शान से, बच्चों के सरताज 
उनके अद्भुत शौर्य पर, गर्वित हर जन आज !


अपने इस गणतंत्र से, हमें बहुत है प्यार  
इसकी रक्षा हित सदा, मिटने को तैयार !  


साधना वैद

Saturday, January 23, 2021

जौहर


रणक्षेत्र से बराबर चिंताजनक समाचार आ रहे थे ! महारानी अपनी परिचारिकाओं के साथ आकुल व्याकुल हरकारे के संदेशों की प्रतीक्षा कर रही थीं ! राणा सवाई सिंह जी का कोई समाचार नहीं मिला था ! बहादुर और साहसी रानी अपनी मातृभूमि के लिए, अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देने के लिए तत्पर थीं ! जानती थीं कि यदि रणभूमि में पराजय हो जाती है तो जौहर की तैयारी करनी होगी ! लेकिन वे अभी से जौहर की चर्चा करके सबका मनोबल तोड़ना नहीं चाहती थीं ! जब तक कोई निश्चित समाचार नहीं मिल जाता उन्होंने मौन रहना ही उचित समझा ! 

पिछले युद्धों के अनेकों हृदयविदारक अनुभवों की स्मृतियाँ उन्हें विचलित कर रही थीं जब आतताई मुग़ल सैनिकों ने युद्ध जीतने के बाद हमारे देश के शूरवीर सेनानियों के घर की स्त्रियों के साथ कितना बर्बर और नृशंस व्यवहार किया था ! रानी की आँखों में ज्वाला सुलग उठी थी ! दृढ़ संकल्प से उनका मुखमंडल प्रदीप्त हो चुका था ! 

तभी राणा जी का क्षत विक्षत शरीर साथ में लिए हुए तीव्रगति से घुड़सवार ने महल के प्रांगण में प्रवेश किया ! महारानी ने एक पल भी गँवाए बिना उच्च स्वर में आदेश दिया ! 

“जौहर की अग्नि प्रज्जवलित की जाये !” 

राणा जी के शव को बाहों में घेरे सर्वप्रथम महारानी ने अग्नि में प्रवेश किया  ! अगले ही पल महल में उपस्थित सारी स्त्रियाँ उस विकराल अग्नि में  प्रवेश कर चुकी थीं ! 


साधना वैद 

Monday, January 18, 2021

“बक अप ! स्वीटू ! पिक द बॉल”

 


हिरन से भी तेज़ दौड़ने वाला हमारा प्यारा पपी स्वीटू आज निढाल पड़ा था ! कल सड़क पर एक लापरवाह स्कूटी वाले ने उसे ज़ोर से टक्कर मार दी और उसके पिछले पैर पर गाड़ी चढ़ा दी ! चीख चीख कर स्वीटू बेहाल हो गया और उससे भी अधिक दुखी मेरे दोनों बच्चे डॉली और बंटी थे ! उन्हें बहुत अफ़सोस हो रहा था कि वे क्यों उसे सड़क पर घुमाने के लिए ले गये ! न वो उसे ले जाते न ये एक्सीडेंट होता ! दोनों का रो रो कर बुरा हाल था ! घर में सबका मन दुखी था ! डॉक्टर साहेब ने चेक कर के बताया था चोट ज़ोर की लगी है ! ठीक होने में वक्त लगेगा ! हो सकता है पीछे वाले पैर में स्थाई लिम्प रह जाये ! वो एक इंजेक्शन लगा कर चले गये थे ! तब से स्वीटू ऐसे ही निढाल पड़ा हुआ था ! 

जब से स्वीटू इस घर में आया था सबकी आँखों का तारा बना हुआ था ! बेहद प्यारा, बेहद चंचल और बहुत ही समझदार ! उसके बदन में तो जैसे बिजली भरी हुई थी ! पलक झपकते ही वह घर का हर कोना नाप लेता ! डॉली और बंटी को तो जैसे चाबी वाला खिलौना मिल गया था ! सारे सारे दिन उसे नये नये करतब सिखाने में लगे रहते ! स्वीटू को ऐसे निश्चल पड़े हुए देख दोनों बेचैन थे ! 

दवा का असर धीरे-धीरे स्वीटू पर होने लगा था ! उसकी तंद्रा टूटी और उसने आँखें खोलीं ! बंटी भाग कर बिस्किट ले आया ! डॉली उसके कटोरे में दूध ले आई ! बिस्किट खाकर और थोड़ा सा दूध पीकर स्वीटू फिर से लुढ़क गया ! बंटी ने उठाने की कोशिश की लेकिन वह उठ नहीं पाया ! बंटी और डॉली ने तार थोड़ा नीचा करके उसमें स्वीटू के खिलौने लटका दिए ! यह उसका प्यारा गेम था ! उछल कर उन खिलौनों को तोड़ कर ले आना !

बंटी ने व्हिसिल बजाई, “कम ऑन स्वीटू ! पिक द बॉल !”

स्वीटू उठ कर बैठ गया ! आँखें चमकने लगीं लेकिन खड़ा नहीं हो पाया !

बंटी ने फिर व्हिसिल बजाई, “कम ऑन स्वीटू ! पिक द बॉल !”

इस बार स्वीटू ने पूरी दम लगाई ! उसकी पूँछ बड़ी तेज़ी से हिल रही थी ! पूरी ताकत से वह अपने हौसले को जमा करने की कोशिश कर रहा था ! वह काँपते पैरों से खड़ा हुआ लेकिन उछल नहीं पाया ! बंटी और डॉली की खुशी का ठिकाना  नहीं था ! हम सब भी दम साधे यह तमाशा देख रहे थे !

बंटी ने इस बार तीसरी व्हिसिल बजाई, “बक अप स्वीटू ! पिक द बॉल !” बंटी ने हाथ में पकड़ा हुआ बिस्किट का पैकेट लहराया ! और हौसले के एक तेज़ झोंके ने जैसे स्वीटू को हवा में उछाल दिया ! अगले ही पल बॉल स्वीटू के मुँह में थी और बंधी हुई रस्सी ज़मीन पर ! तालियों की गड़गड़ाहट से कमरा गूँज रहा था और हीरो बना हुआ स्वीटू सीना तान के निष्कंप चारों पैरों पर खड़ा हुआ था !

 

साधना वैद   

Thursday, January 14, 2021

संक्रांति

 

मकर संक्रांति के पावन पर्व की आप सभीको हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं ! यह नया साल हर प्रकार से आप सभी के लिए शुभ फलदायी हो यही मंगलकामना है !

 



संक्रांति

 

आया नया साल आया संक्रांति का त्यौहार,

भीनी खुशबू पकवानों की और सुन्दर से उपहार,

आओ बाँटें हम भी खुशियाँ गीत प्यार के गायें,

आया जीवन में मधुबन छाई चहुँ ओर बहार !

 

होने लगे बड़े दिन लगने लगी सुहानी धूप,

कर सोलह श्रृंगार ओस से खिला धरा का रूप,

सूर्यनरायण हुए मुग्ध, लख कर वसुधा का मुखड़ा,

सात अश्व के रथ को लेकर उतरे नभ से भूप !

 

साधना वैद

Wednesday, January 6, 2021

इम्तहान

 

अब बस भी कर
ऐ ज़िंदगी !
और कितने इम्तहान
देने होंगे मुझे ?
मेरे सब्र का बाँध
अब टूट चला है !
मुट्ठी में बँधे
सुख के चंद शीतल पल
न जाने कब फिसल कर
हथेलियों को रीता कर गए
पता ही नहीं चला !
बस एक नमी सी ही 
बाकी रह गयी है जो
इस बात का अहसास
करा जाती है कि भले ही
क्षणिक हो लेकिन कभी
कहीं कुछ ऐसा भी था
जीवन में जो मधुर था,
शीतल था, मनभावन था !
वरना अब तो चहुँ ओर
मेरे सुकुमार सपनों और
परवान चढ़ते अरमानों की
प्रचंड चिता की भीषण आग है,
अंगारे हैं, चिंगारियाँ हैं
और है एक
कभी खत्म न होने वाली
जलन, असह्य पीड़ा और
एक अकल्पनीय घुटन
जो हर ओर धुआँ भर जाने से  
मेरी साँसों को घोंट रही है
और जिससे निजात पाना
अब किसी भी हाल में
मुमकिन नहीं !

साधना वैद