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Monday, November 3, 2025

हाइकु मुक्तक - २

 




चलती रही , मुश्किल सफ़र पे , ज़िंदगी मेरी 
माँगा न कुछ , फिर क्यों भला तू ने , नज़र फेरी 
तू भी तो कर, नज़रे इनायत , ओ खुदा मेरे 
करती रहूँ , कब तक यूँ ही मैं , बंदगी तेरी ! 

जनमे राम, हर्षाए पुरवासी , सजी नगरी 
बजे बधावे , गावें मंगल गान , धरें गगरी 
द्वार-द्वार पे , सजे वंदनवार , सजी रंगोली 
जागे न लल्ला ,  धीमे धीमे धरतीं , मैया पग री ! 


साधना वैद