कैसी पोलमपोल,
नाम पर साक्षरता के
ढीठ पी गए घोल, नियम सब नैतिकता के !
करिए उनका मान, गुरू होते प्रभु जैसे
रखिये उनका ध्यान, पिता का करते जैसे !
हो न परस्पर
भीत पढ़ें जब विद्यालय में
मन में रक्खें प्रीत, विनय का भाव हृदय में !
कैसे होगा नाम भला ऐसी शिक्षा से
रहें बराबर छात्र जहाँ बाहर कक्षा के !
दिए गए हैं ठेल छात्र अगली कक्षा में
हो जायेंगे फेल सभी जीवन रक्षा में !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबहुत ही सटीक
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिया जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शिवम् जी ! आभार आपका !
Deletesachchi aur kadwi baatein.
ReplyDeleteधन्यवाद माननीय ! हृदय से आभार आपका !
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