Saturday, May 27, 2023

जीवन घट

 




देख रही हूँ

जीवन घट रीतता ही जाता है

सुख का कोई भी पल

कहाँ थोड़ी देर भी टिकता है

वक्त के हलके से झोंके के साथ

बीतता ही जाता है !

बड़े नाज़ से उठाये थी मैं

अपने अनमोल रिश्तों की

खूबसूरत सी कलसी

कितनी उल्लसित थी  

बाँध ली थीं खूब कस कर  

सारी खुशियाँ मुट्ठी में !

पुरज़ोर कोशिश रहती थी

एक भी नन्हा सा लम्हा

कभी खिसकने न दूँ अपने हाथों से !

सारी दुनिया गुलज़ार कर दूँ

अपने मधुर गीतों से

अपनी मीठी बातों से !

लेकिन जाने कब, कैसे, किस जतन से

यह निष्ठुर वक्त मुझे छल गया

और मेरी हथेलियों से

मेरी खुशियों का वो राजमहल

रेत की मानिंद फिसल गया !

रीतता जाता है मेरा जीवन घट !

अब जो शेष है उस घट में

वो हैं कुछ आतंकित उम्मीदें,

कुछ सहमी हुई अभिलाषाएं,

कुछ कुम्हलाये हुए सपने

और हैं वक्त के सफ़र में

हाथ छुड़ा कर जाने को तैयार

कई परिचित अपरिचित चहरे

कुछ बेगाने कुछ अपने !

जाने कब कौन हाथ छुड़ा कर

अगले स्टेशन पर उतर जाए

और मेरा जीवन घट

और भी रीता कर जाए !  

 

चित्र - गूगल से साभार 



साधना वैद

 

 


9 comments:

  1. क्या खोया, इसका हिसाब क्यों किया जाए?
    आज का पल जी भर के जी लिया जाए और बीते हुए कल की या आने वाले कल की फ़िक्र ऊपर वाले पर छोड़ दी जाए !

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    1. सौ टका सही बात गोपेश जी लेकिन मन है कि मानता नहीं ! बहुत बहुत आभार आपका !

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    1. हार्दिक धन्यवाद विक्षिप्त जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. खूबसूरत भावनात्मक पंक्तियाँ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद तिवारी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. बहुत ही बढ़िया

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    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका ओंकार जी !

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  5. हार्दिक धन्यवाद आपका सुधा जी ! बहुत बहुत आभार !

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