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एक सूर्य सृष्टि नियन्ता ने रचा
सुदूर आकाश में,
दूसरा सूर्य इंसान ने रचा
वेधशाला में !
ईश्वर ने जो सूर्य रचा
उसने सृष्टि को जीवन दिया
मानव ने जो सूर्य रचा
उसने सृष्टि नियंता की रचना में
व्याघात पैदा किये और जन्म दिया
ऐसी विनाशलीला को
जिसने इस सुन्दर धरती से
सारे सौंदर्य को जड़ से समाप्त कर देने में
कोई कसर ना छोड़ी !
अविवेकी इंसान की इस मानसिकता की
साक्षी है यह समस्त सृष्टि
और साक्षी है उस
विकराल विनाशकारी विध्वंस की
जो पल भर में ही
जला कर राख कर गया
सदियों से संचित
एक अति समृद्धशाली सभ्यता को |
पेड़ों को पौधों को,
फूलों को रंगों को,
सौरभ को सौंदर्य को,
पंछी को कलरव को,
पिता को पुत्र को,
माँ को माँ जायों को,
सारे के सारे इंसानों को
और इंसानियत को ।
और दे गया एक बदनुमा उपहार
आने वाली तमाम पीढ़ियों को
विकलांगता और विक्षिप्तता का,
बदहाली और बेचारगी का !
क्या इसी उपलब्धि के लिये
रचा था तुमने यह सूरज ?
क्या यही था तुम्हारा अभीष्ट इस सूरज से ?
ईश्वर रचित सूरज सबको जीवन देता है
और मानव रचित सूरज ?
वह जीवन देता नहीं जीवन लेता है,
अगर पड़ जाये अविवेकी हाथों में ।
क़ैसी विडम्बना है !
यही फर्क है ईश्वर और इंसान में ।
साधना वैद
बहुत सटीक प्रस्तुति ...इंसान भगवान बनने चला है ..क्लोन तक बन गए हैं ...रोबोट पिक्चर में यही दिखाया है कि इंसान खोज करता है विकास के लिए लेकिन यही खोज कैसे विध्वंस कर डालती है ...प्रकृति से जितना खिलवाड़ करेंगे उतनी ही सज़ा भी पायेंगे ... आपकी यह रचना इस ओर इशारा कर रही है ...बहुत अच्छी लगी .
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और सामयिक रचना...
ReplyDeleteभगवान बनने की कोशिश...इंसान का अस्तित्व ही मिटा डालती है
सामयिक और सार्थक रचना, इस जिन्दा परिवेश की बधाई
ReplyDeleteआदरणीय साधना वैद जी
ReplyDeleteनमस्कार !
.........बहुत ही सार्थक और सामयिक रचना...
बहुत सार्थक सटीक कविता |बधाई
ReplyDeleteआशा
saamyil aur sarthak lekhan .
ReplyDeleteक़ैसी विडम्बना है !
ReplyDeleteयही फर्क है ईश्वर और इंसान में ।
दानव----मानव ---देवता ......
अगर मानव ही बन के जी लें तो अनेक आपदाओं से बच जाएँ .....!!
vinash ki satik rachna
ReplyDeleteaaj ke vigyan ke galat istemaal par bahut sateek aur samyik rachna likhi hai.
ReplyDeletebadhayi.
अंतस को झकझोरती हुई रचना.....
ReplyDeleteतस्वीर विचलित कर रही है साधना जी..कोई और लगा दें..
ReplyDeleteप्रकृति से मनमानी का दुष्परिणाम तो भुगतना ही होगा..
संवदनशील पाठकों के सुझाव पर मैंने तस्वीर बदल दी है ! भविष्य में भी इसी तरह मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी ! धन्यवाद !
ReplyDeleteआदरणीया साधना जी
ReplyDeleteप्रणाम !
सादर अभिवादन !
आदमी ने जब जब भगवान के काम में हस्तक्षेप किया है , दुष्परिणाम ही अधिक सामने आए हैं …
रचना करुणा और सम्वेदना से परिपूर्ण है । …और चेतावनी भी दी है आपने … लेकिन , किसी को किसी की सुनने की फ़ुर्सत नहीं …
भगवान सबका भला करे … तथास्तु !
* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना.........
ReplyDeleteशुभकामनाओं सहित....
बधाई.....
ये तय है दोस्त सृष्टि के साथ जब - जब ज्यादा छेड खानी होने लगेगी प्रकृति के रूप में उसे उसका हिसाब हमेशा चुकाना पड़ेगा और हमे उसे हर हाल में झेलना ही पड़ेगा |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |
....और स्वयं विज्ञान क्या है?
ReplyDeleteपरिकल्पनाओं का परीक्षण,और क्या?
तथा अस्तित्व है - इन्हीं मापकों का मापन.
प्रमाणों को भी प्रमाणित करनेवाला प्रमाण.
और दृश्यमान यह कृत्रिम संरचना?
यह है विज्ञान का लाडला पुत्र,'तकनीक',
जिसके एक हाथ में है -
'ध्वंस' और दूसरे में 'सृजन'.
'विज्ञान' ज्ञानरूप में तो है -
निश्छल - निर्वैर और निस्पृह.
परन्तु तकनीक रूप में भयावह.
उसके ट्रिगर और बटन पर
है शासन संकल्प और
परिकल्पनारूपी उँगलियों का.
परिकल्पना, जिसके मूल में है
एक चाहत, जो होता है विकसित
आचार से, संस्कार से, विचार से.
कि वह विश्व पर करना चाहता है
शासन या बनता है विश्वामित्र.
भाई को समझता है-शत्रु या मित्र.
विज्ञान तो है बूढा - लाचार,
थमा दी है उसने अपनी
मशाल बन्दर के हाथ में.
और बन्दर जिसका अपना
कोई घर नहीं होता.. जब भी
जलाएगा दूसरे का ही छप्पर.
श्रम - श्वेद से निर्मित कुटिया.
किन्तु बन्दर को इससे लेना क्या,
डूबे जिस भी गरीब की लुटिया.
विज्ञान मौन है,
तकनीक अश्वत्थामा रूपी
विज्ञान का वह ब्रह्मास्त्र है
जिसे छोड़ा तो जा सकता है
परन्तु लौटाया नहीं जा सकता.
तो कौन संभालेगा-
विज्ञान के इस बिगडैल पुत्र को?
अरे वही जिसने मोड़ी था दिशा,
अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र का - 'कृष्ण'.
आज वही मोड़ेगा विज्ञान के
इस बिगडैल के अस्त्र को.
आज का कृष्ण है -
'नैतिकता' और 'इंसानियत'.
'मानवता', 'दिव्यमानव' की
संकल्पना और परिकल्पना.