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Wednesday, October 22, 2025

यम द्वितीया

 



यम द्वितीया पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 

वरदानी माँ

शरण में हूँ तेरी  

कल्याण कर ! 

                                                                           

ज्योति का पर्व

दीप से दीप जले

हृदय मिले !

                                                                                                                                                           
 दीप जलाओ 

 
अंधकार मिटाओ

पर्व मनाओ !

                                                                       

रंगों से खेलो

अल्पना के बूटों से

द्वार सजाओ !

                                         

थाल सजाओ 

यम द्वितीया पर्व 

टीका लगाओ 


उज्जवल हो 

यशस्वी, दीर्घायु हो 

जीवन भैया 


यही कामना 

बहन हृदय में 

दोहराती है 

                                                                             

ज्योतित मन

ज्योतित हो आँगन

शुभ दीवाली




साधना वैद

🙏🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🙏

Wednesday, October 15, 2025

सड़कों पर यातायात की समस्या

 



आज हम एक ऐसी समस्या पर परिचर्चा करने जा रहे हैं जिससे हम सभी प्रतिदिन जूझते हैं और सड़कों के ट्रैफिक से हैरान परेशान थके माँदे शाम को जब घर पहुँचते हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई जंग लड़ कर आये हैं ! न मन में उत्साह बाकी रहता है न ही खुशी ! सड़कों पर यातायात बढ़ने के अनेक कारण हैं ! सिलसिलेवार अगर हम इनका विश्लेषण करें तो कई बातें सामने निकल कर आएँगी ! आज से पचास साठ साल पुराने समय में ही हम लौट जाएं तो पायेंगे कि उन दिनों लोगों के पास आवागमन के लिए प्राय: साइकिल हुआ करती थी वह भी कार्यालय जाने वाले मर्दों के लिए ! बच्चे या महिलाएं तो अक्सर पैदल ही चले जाया करते थे स्कूल या बाज़ार हाट के लिए ! शहर में कारें गिने चुने धनाढ्य लोगों के पास हुआ करती थीं ! हमारे शहर या गाँव की सड़कें भी उसी यातायात के अनुकूल होती थीं पतली और सँकरी ! फिर स्कूटर और मोटर साइकिलों का ज़माना आ गया ! लोगों को रफ़्तार भी चाहिए थी और स्कूल कॉलेज की दूरियाँ भी बढ़ गयी थीं ! जनसंख्या का दबाव बढ़ा तो उन्हीं घरों में अतिक्रमण होने लगा और सड़कें घेर कर घर और दूकानें बढ़ा दी गईं ! लोगों की आमदनी बढीं तो जीवनस्तर भी बढ़ा ! अब स्कूटर, मोटर साइकिलें छात्रों के मतलब की रह गईं और वयस्क लोगों को कारें पसंद आने लगीं ! शहर वही रहा ! सड़कें वही रहीं लेकिन आवागमन के साधनों का साइज़ बढ़ गया परिणाम यह हुआ कि सडकों पर ट्रेफिक जाम होना आम बात हो गयी ! शहरों में नई कॉलोनीज़ भी बनीं. सड़कें भी चौड़ी की गईं लेकिन कारों की संख्या हर घर में बढ़ने लगी ! अब तो यह आलम है कि कई घरों में हर सदस्य के पास अपनी अलग कार है ! जिन घरों में साइकिल रखने की जगह नहीं थी उनके यहाँ कारें आ गईं ! घर में तो गैरेज बनाने की जगह नहीं है इसलिए कारें सड़कों पर पार्क होने लगीं और सड़क घेरने लगीं ! सड़कें पहले से भी पतली हो गईं ! यातायात में तो असुविधा होना लाज़मी है !

दूसरा बड़ा कारण है कि सड़क पर मिला जुला ट्रेफिक चलता है ! कायदे की व्यवस्था नहीं है ! एक ही सड़क पर कार, सिटी बस, स्कूटर, मोटर साइकिल, ऑटो रिक्शा, साइकिल रिक्शा, और पैदल चलने वाले, सभी एक साथ चलते हैं ! इसीलिये दुर्घटनाएं आम बात हो चुकी हैं और इनकी वजह से सड़कों पर बड़ी अफरा तफरी मची रहती है !

लोग ट्रेफिक नियमों के बारे में जागरूक नहीं हैं ! अपने आगे निकलने की होड़ में कहीं से भी घुस कर आगे निकलना चाहते हैं ! लोगों को ओवरटेक किस तरफ से करना चाहिए इसकी जानकारी नहीं है ! पैदल चलने वालों को जेब्रा क्रॉसिंग से सड़क पार करनी चाहिए यह ठीक से नहीं पता है ! अगर पता है भी तो वे दूर होने की वजह से चाहे जहाँ से सड़क पार करने लगते हैं और आवागमन बाधित होता है !

इस समस्या के समाधान के लिए लोगों को स्वयं ही जागरूक होना पड़ेगा तब ही कुछ हल निकलेगा ! सड़कों को पार्किंग के लिए न घेरें ! थोड़ी ही दूर जाना हो तो चौपहिया वाहनों का प्रयोग न करें ! घरों और दूकानों को आगे बढ़ा कर सड़कों पर अतिक्रमण न करें ! यातायात के नियमों का पालन करें और पड़ोसी धर्म निभा कर अगर एक ही स्थान पर जाना हो तो निजी वाहनों का प्रयोग न करके एक दूसरे के साथ चले जाएं ! इससे कुछ फर्क तो ज़रूर ही पड़ेगा !

साधना वैद

🙏🌹🌹🌹🙏


Monday, October 13, 2025

मुक्तक




 कब आओगे साजन मन के दीप जलाऊँ

व्रत है करवा चौथ हाथ मेंहदी लगवाऊँ

सबका चाँद तो दूर गगन में चमक रहा है

अपने चंदा का दर्शन कर अर्ध्य चढ़ाऊँ !



साधना वैद

Friday, October 10, 2025

त्रिभंगी छंद

 



ओ श्यामबिहारी, शरण तिहारी
जग तज आई, सुध लो ना !

है दूर किनारा, छुटा सहारा
तन मन हारा, आओ ना !

अब किसे पुकारूँ. किसे बुलाऊँ
कौन सुनेगा, बोलो ना !

तुम सा पथ दर्शक, विघ्न विनाशक
कहाँ जगत में, सच है ना !

तू बुला तो सही, मना तो सही
आ जाउंगा, वचन दिया !

दुःख दिखा तो सही, बता तो सही
सुख लाउंगा, वचन दिया !

तू अकेली नहीं, जगत में कहीं
संग रहूँगा, वचन दिया !


गीत गा तो सही, सुना तो सही
मैं गाउंगा, वचन दिया !  



साधना वैद

Monday, September 29, 2025

देवी माँ के दिव्यास्त्र

 



ओ माँ मेरी मुझको तुम खुद सा सम्पूर्ण बना दो
मार सकूँ असुरों को मैं सब अस्त्र शस्त्र पहना दो !


एक हाथ में महादेव से मिला त्रिशूल थमा दो
रजस
, तमस और सत्व गुणों की महिमा भी समझा दो !


जो तलवार मिली गणपति से वह भी मुझे दिला दो  
ज्ञान और बुद्धि की पैनी धार लगा चमका दो !


अग्नि देव से मिला तुम्हें जो भाला वह भी ला दो
ओ माँ शक्ति का प्रतीक यह अस्त्र मुझे दिलवा दो !


वज्र मिला जो इंद्र देव से वह भी मुझको दे दो
आत्म निरीक्षण कर लूँ अपना इतना मुझको बल दो !


हर बुराई से लड़ने का मुझमें विश्वास जगा दो  
मिले विश्वकर्मा से तुमको कवच कुल्हाड़ी ला दो !


माँ कृष्णा ने दिया तुम्हें जो चक्र सुदर्शन पहनूँ
रहूँ केंद्र में मैं इस जग के सबको निर्भय कर दूँ !


धनुष बाण जो पवन देव और सूर्य देव से पाए
उनकी दिव्य अलौकिक ऊर्जा देख असुर घबराए !


गदा
, शंख और खंजर से माँ शौर्य शक्ति वरना है,
सत्य धर्म के स्थापन का शंखनाद करना है !


दसों भुजाओं में माँ मुझको दिव्य अस्त्र पहना दो
,
प्राण प्रतिष्ठा कर मुझको भी खुद सा वीर बना दो !


इन अस्त्रों से मैं हर नारी को सबला कर दूँगी
,
उसके मन से भय और भ्रम का सारा तम हर लूँगी !

  
इस धरती को मुझे स्वर्ग सा पावन जो करना है,
इस जग के हर प्राणी की भव बाधा को हरना है !


जग जननी
, कल्याणकारिणी, सकल सुखों की दाता,   
करूँ वंदना तव चरणों में सिद्धि प्रदायिनी माता ! 


करूँ वंदना तव चरणों में सिद्धि प्रदायिनी माता ! 


चित्र - गूगल से साभार 



साधना वैद
 
 


Thursday, September 18, 2025

छोटे-छोटे सपने

 


रेल की खिड़की से देखती हूँ
रेलवे लाइन के समानांतर बसी
झुग्गी झोंपड़ी की एक लम्बी सी कतार
,
मेरे डिब्बे के ठीक सामने   
एक छोटी सी झोंपड़ी,
झोंपड़ी में एक छोटा सा कमरा
कमरे में एक नीचा सा दरवाज़ा
दरवाजे से सटी कपड़े के टुकड़े से
आधी ढकी एक छोटी सी खिड़की
और कमरे के नंगे फर्श पर
असंख्य छेदों वाली
मटमैली सी फटी बनियान पहने
लेटा वह सपनों में डूबा हुआ
एक कृशकाय नौजवान !
सोचती हूँ,
कितना छोटा सा होगा न संसार
इस घर में रहने वालों का !
लेकिन क्या सच में उनकी सोच
,
उनकी आशाएं
, उनकी इच्छाएं,
उनकी आकांक्षाएं
, उनके सपने,
उनकी अभिलाषाएं
उस सीमित संसार में ही
घुट कर रह गयी होंगी ?
मेरे लिए वह एक अनाम सी
छोटी झोंपड़ी भर नहीं है !
वह तो है एक आँख
और खिड़की पर टंगा
वह आधा पर्दा है
उस आँख की पलक !
जैसे अपनी पलक खोलते ही
हम देखते हैं समूचा आसमान
,
विशाल धरती
, पेड़-पौधे
नदी-पहाड़
, बाग़-बगीचे,
झील-झरने
, चाँद-सितारे,
पशु-पंछी और भी न जाने क्या-क्या !
इस छोटे से कमरे के
नंगे फर्श पर लेटा यह युवक भी
अपनी आँख खोलते ही
यही सब तो देखता होगा
जो मैंने देखा, तुमने देखा
,

सारी दुनिया ने देखा !
तो फर्क कहाँ रहा
उसके या हमारे सपनों के संसार में,
सपनों के आकार में,
और सपनों के साकार होने के
उपक्रम में ?
कोई बता दे मुझे !




चित्र - गूगल से साभार 
 


साधना वैद




Sunday, September 14, 2025

खामोश हो गई वो आवाज़

 



रात में किसी भी समय फोन की घंटी बज जाती है और मेरा दिल धड़क उठता है ! घबरा के फोन उठाती हूँ नाम देखती हूँ, आशा जीजी !
“क्या हुआ जीजी, सब ठीक तो है ?”
“हाँ सब ठीक है ! फोन में तेरी फोटो दिखी तो ऐसे ही लगा लिया !”
कुछ शान्ति मिली ! घड़ी देखी रात के दो बज रहे हैं !
“क्या कर रही थी तू?’
“ओफ्फोह जीजी ! रात के दो बज रहे हैं ! ज़ाहिर है इस समय सब सोते ही हैं ! मैं भी सो रही थी ! कुछ काम था ?”
“नहीं तेरी आवाज़ सुनने का मन हो रहा था ! फेसबुक पर तेरी कविता सुनी बहुत अच्छी लगी !”
“अरे तो यह सुबह बता देतीं ! डरा देती हो !”
“अच्छा ! चल सो जा अब !”
अगले दिन रात में साढ़े तीन बजे फिर घंटी बजी ! जीजी के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से फ़िक्र लगी रहती थी ! दौड़ के फोन उठाती हूँ !
“क्या हुआ जीजी ? नींद नहीं आ रही है क्या ? कोई परेशानी है ?”
“नहीं, कुछ हाइकु लिखे थे उन्हें देख लेना !”
“अच्छा ! अब सो जाओ मुझे भी नींद आ रही है !”
“कितनी देर तक सोती है ! अभी सुबह नहीं हुई तेरी !”
“अरे बाबा अभी सिर्फ साढ़े तीन बजे हैं ! आप भी सो जाओ और मुझे भी नींद आ रही है !”
ऐसे ही हफ्ते में तीन चार बार उनके फोन रात बिरात कभी भी आ जाया करते थे ! कभी उनकी मासूमियत पर प्यार आता था, कभी हँसी आती थी, कभी चिंता हो जाती थी ! कविता, हाइकु या आवाज़ सुनने का तो सिर्फ बहाना होता था ! क्या जीजी किसी गहन पीड़ा से गुज़र रही थीं ! कभी अपनी तकलीफ नहीं बताती थीं ! हमेशा उत्साह से लबरेज़, बेहद कर्मठ, बेहद ज़हीन, बेहद प्यार करने वाली मेरी जीजी की आवाज़ १३ सितम्बर की सुबह पाँच बजे हमेशा के लिए खामोश हो गयी ! इंदौर के सुयश अस्पताल में १२ दिन असह्य पीड़ा झेलने के बाद उन्होंने महाप्रस्थान के लिए अपने कदम स्वर्ग की राह पर मोड़ लिए ! नहीं जानती मैं सुकून भरी नींद अब कभी सो भी पाउँगी या नहीं ! लेकिन मुझे झकझोर कर उठाने वाली फोन की घंटी अब कभी नहीं बजेगी !
मेरी माँ समान बड़ी बहन श्रीमती आशा लता सक्सेना ने अपना आवास स्वर्ग की सुन्दर सी कोलोनी में बहुत पहले ही बुक करा लिया था ! काफी समय से बहुत अस्वस्थ चल रही थीं वे ! १३ सितम्बर का बृह्म मुहूर्त उन्होंने गृह प्रवेश के लिए चुना और अपने नए घर में रहने के लिए बड़ी शान्ति के साथ वे चुपचाप निकल गईं ! हमारी परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वे उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें और वहाँ उनके सारे कष्टों का अंत हो जाए ! तुम्हें बहुत याद करेंगे जीजी ! चाहे जब उज्जैन इंदौर के टिकिट बुक कराने की जिद पकड़ लेने की अब सारी वजहें ख़त्म हो गईं ! सच पूछो तो सर से ममता, प्यार और पीहर की छाँव और आश्वस्ति देने वाला आख़िरी पल्लू भी सरक गया ! अब कौन हमारे नाज़ नखरे उठाएगा, कौन लाड़ लड़ायेगा ! आज ऐसा लग रहा है जैसे हम फिर से अनाथ हो गए हैं ! बहुत याद आओगी जीजी ! जहाँ भी रहो सुख से रहना और मम्मी, बाबूजी, दादा, भाभी, जीजाजी सबको हमारा प्रणाम कहना ! सादर नमन और अश्रुपूरित भावभीनी श्रद्धांजलि !


साधना वैद