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Monday, September 29, 2025

देवी माँ के दिव्यास्त्र

 



ओ माँ मेरी मुझको तुम खुद सा सम्पूर्ण बना दो
मार सकूँ असुरों को मैं सब अस्त्र शस्त्र पहना दो !


एक हाथ में महादेव से मिला त्रिशूल थमा दो
रजस
, तमस और सत्व गुणों की महिमा भी समझा दो !


जो तलवार मिली गणपति से वह भी मुझे दिला दो  
ज्ञान और बुद्धि की पैनी धार लगा चमका दो !


अग्नि देव से मिला तुम्हें जो भाला वह भी ला दो
ओ माँ शक्ति का प्रतीक यह अस्त्र मुझे दिलवा दो !


वज्र मिला जो इंद्र देव से वह भी मुझको दे दो
आत्म निरीक्षण कर लूँ अपना इतना मुझको बल दो !


हर बुराई से लड़ने का मुझमें विश्वास जगा दो  
मिले विश्वकर्मा से तुमको कवच कुल्हाड़ी ला दो !


माँ कृष्णा ने दिया तुम्हें जो चक्र सुदर्शन पहनूँ
रहूँ केंद्र में मैं इस जग के सबको निर्भय कर दूँ !


धनुष बाण जो पवन देव और सूर्य देव से पाए
उनकी दिव्य अलौकिक ऊर्जा देख असुर घबराए !


गदा
, शंख और खंजर से माँ शौर्य शक्ति वरना है,
सत्य धर्म के स्थापन का शंखनाद करना है !


दसों भुजाओं में माँ मुझको दिव्य अस्त्र पहना दो
,
प्राण प्रतिष्ठा कर मुझको भी खुद सा वीर बना दो !


इन अस्त्रों से मैं हर नारी को सबला कर दूँगी
,
उसके मन से भय और भ्रम का सारा तम हर लूँगी !

  
इस धरती को मुझे स्वर्ग सा पावन जो करना है,
इस जग के हर प्राणी की भव बाधा को हरना है !


जग जननी
, कल्याणकारिणी, सकल सुखों की दाता,   
करूँ वंदना तव चरणों में सिद्धि प्रदायिनी माता ! 


करूँ वंदना तव चरणों में सिद्धि प्रदायिनी माता ! 


चित्र - गूगल से साभार 



साधना वैद
 
 


Thursday, September 18, 2025

छोटे-छोटे सपने

 


रेल की खिड़की से देखती हूँ
रेलवे लाइन के समानांतर बसी
झुग्गी झोंपड़ी की एक लम्बी सी कतार
,
मेरे डिब्बे के ठीक सामने   
एक छोटी सी झोंपड़ी,
झोंपड़ी में एक छोटा सा कमरा
कमरे में एक नीचा सा दरवाज़ा
दरवाजे से सटी कपड़े के टुकड़े से
आधी ढकी एक छोटी सी खिड़की
और कमरे के नंगे फर्श पर
असंख्य छेदों वाली
मटमैली सी फटी बनियान पहने
लेटा वह सपनों में डूबा हुआ
एक कृशकाय नौजवान !
सोचती हूँ,
कितना छोटा सा होगा न संसार
इस घर में रहने वालों का !
लेकिन क्या सच में उनकी सोच
,
उनकी आशाएं
, उनकी इच्छाएं,
उनकी आकांक्षाएं
, उनके सपने,
उनकी अभिलाषाएं
उस सीमित संसार में ही
घुट कर रह गयी होंगी ?
मेरे लिए वह एक अनाम सी
छोटी झोंपड़ी भर नहीं है !
वह तो है एक आँख
और खिड़की पर टंगा
वह आधा पर्दा है
उस आँख की पलक !
जैसे अपनी पलक खोलते ही
हम देखते हैं समूचा आसमान
,
विशाल धरती
, पेड़-पौधे
नदी-पहाड़
, बाग़-बगीचे,
झील-झरने
, चाँद-सितारे,
पशु-पंछी और भी न जाने क्या-क्या !
इस छोटे से कमरे के
नंगे फर्श पर लेटा यह युवक भी
अपनी आँख खोलते ही
यही सब तो देखता होगा
जो मैंने देखा, तुमने देखा
,

सारी दुनिया ने देखा !
तो फर्क कहाँ रहा
उसके या हमारे सपनों के संसार में,
सपनों के आकार में,
और सपनों के साकार होने के
उपक्रम में ?
कोई बता दे मुझे !




चित्र - गूगल से साभार 
 


साधना वैद




Sunday, September 14, 2025

खामोश हो गई वो आवाज़

 



रात में किसी भी समय फोन की घंटी बज जाती है और मेरा दिल धड़क उठता है ! घबरा के फोन उठाती हूँ नाम देखती हूँ, आशा जीजी !
“क्या हुआ जीजी, सब ठीक तो है ?”
“हाँ सब ठीक है ! फोन में तेरी फोटो दिखी तो ऐसे ही लगा लिया !”
कुछ शान्ति मिली ! घड़ी देखी रात के दो बज रहे हैं !
“क्या कर रही थी तू?’
“ओफ्फोह जीजी ! रात के दो बज रहे हैं ! ज़ाहिर है इस समय सब सोते ही हैं ! मैं भी सो रही थी ! कुछ काम था ?”
“नहीं तेरी आवाज़ सुनने का मन हो रहा था ! फेसबुक पर तेरी कविता सुनी बहुत अच्छी लगी !”
“अरे तो यह सुबह बता देतीं ! डरा देती हो !”
“अच्छा ! चल सो जा अब !”
अगले दिन रात में साढ़े तीन बजे फिर घंटी बजी ! जीजी के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से फ़िक्र लगी रहती थी ! दौड़ के फोन उठाती हूँ !
“क्या हुआ जीजी ? नींद नहीं आ रही है क्या ? कोई परेशानी है ?”
“नहीं, कुछ हाइकु लिखे थे उन्हें देख लेना !”
“अच्छा ! अब सो जाओ मुझे भी नींद आ रही है !”
“कितनी देर तक सोती है ! अभी सुबह नहीं हुई तेरी !”
“अरे बाबा अभी सिर्फ साढ़े तीन बजे हैं ! आप भी सो जाओ और मुझे भी नींद आ रही है !”
ऐसे ही हफ्ते में तीन चार बार उनके फोन रात बिरात कभी भी आ जाया करते थे ! कभी उनकी मासूमियत पर प्यार आता था, कभी हँसी आती थी, कभी चिंता हो जाती थी ! कविता, हाइकु या आवाज़ सुनने का तो सिर्फ बहाना होता था ! क्या जीजी किसी गहन पीड़ा से गुज़र रही थीं ! कभी अपनी तकलीफ नहीं बताती थीं ! हमेशा उत्साह से लबरेज़, बेहद कर्मठ, बेहद ज़हीन, बेहद प्यार करने वाली मेरी जीजी की आवाज़ १३ सितम्बर की सुबह पाँच बजे हमेशा के लिए खामोश हो गयी ! इंदौर के सुयश अस्पताल में १२ दिन असह्य पीड़ा झेलने के बाद उन्होंने महाप्रस्थान के लिए अपने कदम स्वर्ग की राह पर मोड़ लिए ! नहीं जानती मैं सुकून भरी नींद अब कभी सो भी पाउँगी या नहीं ! लेकिन मुझे झकझोर कर उठाने वाली फोन की घंटी अब कभी नहीं बजेगी !
मेरी माँ समान बड़ी बहन श्रीमती आशा लता सक्सेना ने अपना आवास स्वर्ग की सुन्दर सी कोलोनी में बहुत पहले ही बुक करा लिया था ! काफी समय से बहुत अस्वस्थ चल रही थीं वे ! १३ सितम्बर का बृह्म मुहूर्त उन्होंने गृह प्रवेश के लिए चुना और अपने नए घर में रहने के लिए बड़ी शान्ति के साथ वे चुपचाप निकल गईं ! हमारी परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वे उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें और वहाँ उनके सारे कष्टों का अंत हो जाए ! तुम्हें बहुत याद करेंगे जीजी ! चाहे जब उज्जैन इंदौर के टिकिट बुक कराने की जिद पकड़ लेने की अब सारी वजहें ख़त्म हो गईं ! सच पूछो तो सर से ममता, प्यार और पीहर की छाँव और आश्वस्ति देने वाला आख़िरी पल्लू भी सरक गया ! अब कौन हमारे नाज़ नखरे उठाएगा, कौन लाड़ लड़ायेगा ! आज ऐसा लग रहा है जैसे हम फिर से अनाथ हो गए हैं ! बहुत याद आओगी जीजी ! जहाँ भी रहो सुख से रहना और मम्मी, बाबूजी, दादा, भाभी, जीजाजी सबको हमारा प्रणाम कहना ! सादर नमन और अश्रुपूरित भावभीनी श्रद्धांजलि !


साधना वैद

Friday, September 5, 2025

राम नवमी

 



राम नवमी
श्रीराम की नगरी

सजी अयोध्या


रामलला का
आज हुआ जनम
सरयू तीरे


श्रीराम जन्मे

हर्षित पुरवासी

उल्लास छाया

 

कुल गौरव
दशरथ नंदन

अनन्य राम

 

हर्षित जग
सुर नर किन्नर

बजी बधाई

 

उत्सव मना
जन्मे रघुनन्दन

गर्वित कुल

 

मन की खुशी
छिपाए न छिपती
भावों से भरी

राम नवमी
आया हर्ष का पल

सुखी अयोध्या

 

राम सा पुत्र
गर्वित रघुकुल

धन्य कौशल्या

 

राम सा सुत
दशरथ विभोर

धन्य रानियाँ

 

उदित हुआ
सूर्यवंश का मान

हमारा राम

 

गूँजा महल
राम की किलकारी

भू बलिहारी

 

 चित्र - गूगल से साभार 



साधना वैद

Friday, August 29, 2025

वर्ण पिरेमिड - पधारो जी महाराज

 




हे

देवा

गणेशा

करती हूँ

सर्वप्रथम

तुम्हारा वंदन

स्वीकारो अभ्यर्थना

मेरी पूजा अर्चना

पूर्ण करो मेरी

हर कामना

चढ़ाती हूँ

नेवैद्य

भक्ति

से 


हे

देवा

सुमुख

लम्बोदर 

गौरी नंदन

सिद्धि विनायक

विकट विघ्नहर्ता

करो दूर संकट

महा गणपति

मंगलमूर्ति

गणाध्यक्ष

आराध्य

मेरे

हो 

 

मैं

आई

शरण

विनायक

रखना लाज

ओ पालनहारे

निर्गुण और न्यारे 

तुम्हीं हो विघ्न हर्ता

जगत के स्वामी

हो अन्तर्यामी

सारी पीड़ा

भक्तों की

हर

लो


साधना वैद  





यादों के अलाव

 




क्या होगा मन में

यादों के अलाव जला के,

मन के घनघोर वीराने में सुलगे

अतीत की भूली बिसरी यादों के

इस अलाव से जो चिनगारियाँ निकलती हैं

वो आसमान के सितारों की तरह

प्यार की राह रोशन नहीं करतीं

दिल की दीवारों को जला कर उनमें

बड़े-बड़े सूराख कर देती हैं

जो वक्त के साथ धीरे-धीरे

नासूर में तब्दील हो जाते हैं !

कुछ दिनों तक अच्छा लगता है

इन बाँझ सपनों की जीना लेकिन  

जिस भी किसी दिन यह

मोहनिंद्रा भंग होती है और

यह रूमानी दिवास्वप्न टूटता है  

खुद को अगले ही पल

मोहोब्बत की सबसे ऊँची मीनार से

हकीकत की सख्त ज़मीन पर

गिरता हुआ पाते हैं और

यह दुःख तब और दोगुना हो जाता है  

जब देखते हैं कि उन ज़ख्मों पर

मरहम रखने वाला भी कोई  

आस पास नहीं है,

हैं तो सिर्फ चूर-चूर हुए 

उन दिवास्वप्नों की बिखरी हुई किरचें

जो तन, मन, आत्मा, चेतना सबको 

लहूलुहान कर जाती हैं !


साधना वैद

Friday, August 22, 2025

कान्हा आए - माहिया

 



नंदलाला घर आए 

यमुना धन्य हुई 

पुरवासी हर्षाए !

 

नंदबाबा पुलकित हैं

धूम मची जग में 

जसुदा के मुख स्मित है ! 

 

मैया माखन लाए 

नटखट बाल किशन 

खाने को ललचाए !


कान्हा पर सब खीझें 

मटकी फूट गई

मन ही मन पर रीझें ! 


कान्हा तुम आ जाओ 

यमुना तीर खड़ी 

बंसुरी सुना जाओ  ! 


सखियाँ भी आयेंगी 

झूला झूलेंगी 

नाचेंगी गायेंगी ! 


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद