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Monday, April 27, 2015

आस्था अभी मरी नहीं

नेपाल और स्वदेश में आई इस भीषण संकट की घड़ी में यह रचना प्रस्तुत है ! हृदय इतना विचलित है कि शब्द सारे कहीं खो से गये हैं ! बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि दुःख की इस घड़ी में सबका हौसला बनाए रखें और सब पर अपने अनन्य प्रेम और दया की वृष्टि करें !






हिलती हुई मुंडेरें हैं और चटके हुए हैं पुल,
दुनिया एक चुरमुराई हुई सी चीज़ हो गई है। 
लड़खड़ाते हुए सहारे हैं और डगमगाये हुए हैं कदम,
लक्ष्य तक पहुँचने की चाह आकाशकुसुम छूने जैसी हो गयी है। 
खण्डहर हो चुकी इमारतें हैं और धराशायी हैं भवन,
मलबे के ढेर में ‘घरों’ को ढूँढने की कोशिश अब थक चली है। 
टूटा हुआ विश्वास है और डबडबाई हुई है आँख,
अंधेरे की डाकिन आशा की नन्हीं सी लौ को 
फूँक मार कर बुझा गयी है। 
बेईमानों की भीड़ है और ख़ुदगर्ज़ों का है हुजूम,
इंसानियत के चेहरे की पहचान कहीं गुम हो गयी है। 
लहूलुहान है शरीर और क्षतविक्षत है रूह,
दुर्भाग्य के इस आलम में सुकून की एक साँस तक जैसे दूभर हो गयी है। 
ऐसे में मलबे के किसी छेद से बाहर निकल 
पकड़ ली है मेरी उँगली नन्हे से एक हाथ ने
भर कर आँखों में भोला विश्वास,
और लिये हुए होठों पर एक कातर गुहार।
आस्था अभी पूरी तरह मरी नहीं!
हे ईश्वर! तुझे कोटिश: प्रणाम,
आस्था अभी पूरी तरह मरी नहीं।

साधना वैद 
 

Saturday, April 25, 2015

तेरा नाम


आसान होता मिटाना
तेरा नाम

जो लिखा होता
उँगली से पानी पर
वह स्वत: ही पानी में
विलीन हो जाता !

जो लिखा होता 
चॉक से स्लेट पर
वह गीले कपड़े से
पोंछ दिया जाता !

जो लिखा होता
पेन्सिल से पन्ने पर
वह रबर से
मिटा दिया जाता !

जो लिखा होता
कलम से कागज़ पर 
और जो वह आसानी से
मिटता नहीं तो
माचिस की तीली दिखा
जला दिया जाता !

लेकिन क्या करूँ
जाने किस पैने नश्तर से
दिल की चट्टान पर
गहराई तक खंरोंच कर
उकेरा था 
तेरा नाम मैंने 
जो मिटाये नहीं मिटता !

बल्कि वक्त के तमाम
मौसमों की मार ने
उन गहरे अक्षरों में
अनेकों रंग भर कर
उन्हें और स्पष्ट
और उजागर
कर दिया है !

साधना वैद

Monday, April 20, 2015

अंतहीन सफर




अस्तप्राय चाँद की उँगली थामे
और कब तक, कितनी दूर तक
सागर की इन उत्ताल तरंगों पर
मुझे बहते रहना होगा ?
यह सफर तो खत्म होने का
नाम ही नहीं लेता
भोर होने को है
रात भर चाँदनी की
ज्योत्सना से जगमगाते
मेरे आँसू सितारे बन
तुम तक पहुँचाने वाली
हर रहगुज़र को जी जान से
आलोकित करते रहे
लेकिन न तुम आये
न तुम्हारा पता ही मिला !
तुम तो मुँह फेर कर
मुझसे विदा लिये बिना ही
चल दिये और मैं
झंझा के साथ बहते-बहते
इस अनंत अथाह सागर में
कितनी दूर आ गयी
तुम्हें तो पता ही नहीं !  
यहाँ से ना तो अब
तुम दिखाई देते हो
ना ही किनारे की भीड़,
ना सुबहो शाम की रंगीनियाँ, 
ना भागती दौड़ती ज़िंदगी
ना पेड़ पौधे नदी पहाड़
जो तुम्हारे आस पास होने का
अहसास कराते रहते थे 
ना आसमान में उड़ते पंछी 
जो मेरी कल्पना में ही सही
तुम तक मेरा सन्देश 
पहुँचाने वाले 
मेरे सर्वाधिक प्रिय 
दूत हुआ करते थे !
धीरे-धीरे हर मंज़र
नज़र से ओझल हो चुका है !
अब ना कोई आहट है
ना कोई आवाज़
ना कोई कूल ना किनारा
ना कोई आस ना विश्वास
ना कोई उमंग ना इंतज़ार
अब बाकी रह गयी है बस
एक उबाऊ तटस्थता
और हवा के वेग से
चाँद को छूने की कोशिश में
आसमान तक उठने की
कोशिश करतीं
सागर की उद्दाम तरंगें 
जिन पर अपने बीते दिनों की
यादों के सूत्रों को थाम
मुझे इस अंतहीन सफर पर
तब तक बहते रहना है
जब तक इन
श्वासों का आवागमन
विधाता रोक नहीं देता !

साधना वैद  



Saturday, April 18, 2015

अपसंस्कृति फैलाते टी वी धारावाहिक और रियलिटी शोज़



इन दिनों टी वी पर अनेकों चैनल्स चल रहे हैं और हर चैनल पर अनेकों धारावाहिक, रीयलिटी शोज़ और कॉमेडी सीरियल्स चल रहे हैं जो मनोरंजन के नाम पर निम्न स्तरीय भाषा, अश्लील और फूहड़ हास्य तथा घटिया विचारों के वाहक बन अपसंस्कृति को परोसने में संलग्न हैं ! आश्चर्य इस बात का है कि इस तरह के स्तरहीन कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए हरी झंडी कौन दिखाता है जबकि यह सर्वमान्य सत्य है कि भारतीय समाज में एक टी वी ही पारिवारिक मनोरंजन का इकलौता माध्यम है और परिवार में हर उम्र के सदस्य होते हैं जो प्राय: ऐसे कार्यक्रमों के प्रसारण के समय एक साथ एक कमरे में बैठने पर असहज महसूस करने लगते हैं !


टी वी धारावाहिकों की भाषा बहुत ही आपत्तिजनक होती जा रही है ! यथार्थ के नाम पर आजकल संवादों में हर तरह की गालियों का जी भर कर प्रयोग किया जाता है ! आजकल कलर्स पर एक धारावाहिक चल रहा है जिसमें दो स्त्रियाँ जातिसूचक संबोधनों के साथ चीख-चीख कर एक दूसरे को खूब जली कटी सुनाती हैं ! आरम्भ होने से पहले ही इस धारावाहिक के विज्ञापन में कई दिनों तक इन्हीं संवादों को इतना दोहराया गया कि धारावाहिक देखने की इच्छा ही खत्म हो गयी ! चलिये यह मान भी लें कि कहानी का पात्र समाज के जिस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है वह वर्ग ऐसी ही भाषा का प्रयोग करता है तो क्या इस घटिया चलन को रोकना हमारी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिये ? 

कहानी तक तो बात फिर भी हजम की जा सकती है हद तो तब हो जाती है जब अत्यंत माननीय माने जाने वाले प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय सेलीब्रिटीज़ इस तरह की भाषा का अनुमोदन करते दिखाई देते हैं ! कुछ समय पूर्व प्रसारित नृत्य के एक रीयलिटी शो के एक माननीय जज कलाकारों की सर्वोत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार देते थे, ‘यह आपकी बहुत ही बदतमीज़ परफॉर्मेंस थी !’ बताइये किसीकी तारीफ़ करने का भला यह कौन सा अंदाज़ हुआ ! टी वी से गोंद की तरह चिपके रहने वाले नादान बच्चे तो यही सीखेंगे कि जब टी वी पर बड़े-बड़े लोग इस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं तो इसमें कोई ग़लत बात कैसे हो सकती है ! 


एक अन्य बात जो मुझे बहुत अखरती है कि हास्य के नाम पर इन दिनों पुरुष कलाकार स्त्रियों की वेशभूषा पहन कर अभिनय करने के लिये आ जाते हैं और घटियापन एवं अश्लीलता की सारी हदें पार कर जाते हैं ! कार्यक्रम में साक्षात्कार के लिये आये हुए मेहमान कलाकार और दर्शक सभी जानते हैं कि स्त्री के वेश में ये पुरुष कलाकार हैं इसलिए इन कलाकारों को तो जैसे पूरी तरह से फ्लर्ट करने की छूट ही मिल जाती है ! ये कार्यक्रम इतने स्तरहीन एवं असहनीय हो जाते हैं कि जैसे ही स्टेज पर इनका आगमन होता है तुरंत ही टी वी स्विच ऑफ कर देना ही उचित लगता है ! अफ़सोस होता है कि हमारा सेन्स ऑफ ह्यूमर इतना खराब हो चुका है कि हम बिना कोई आवाज़ उठाये इतने स्तरहीन कार्यक्रम झेले जाते हैं और समाज पर होने वाले इसके नकारात्मक प्रभाव को रोकने के लिये कोई कदम नहीं उठाते !


समाज में कोई भी संदेश प्रसारित करने के लिये टी वी एक बहुत ही सशक्त माध्यम है ! यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसका उपयोग समाज में जागरूकता, चेतना एवं उत्थान के प्रचार प्रसार के लिये करते हैं या फिर मनोरंजन की काली पट्टी आँखों पर बाँध समाज में अपसंस्कृति फैलाने के लिये करते हैं ! यह नहीं भूलना चाहिये कि अधिकांश परिवारों में मनोरंजन का एक मात्र साधन यह टी वी ही है इसलिए इसमें प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की गुणवत्ता का ध्यान रखना हमारी सर्वोपरि प्राथमिकता होनी चाहिये ! सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भी इस ओर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है कि जिन कार्यक्रमों को प्रसारण की अनुमति मिल रही है वे किस स्तर के हैं और उनमें कितनी रचनात्मकता है ! केवल बड़े-बड़े प्रोडक्शन हाउसेज़ के नाम से प्रभावित होना आवश्यक नहीं होता ! कार्यक्रम कितना उच्च स्तरीय है और समाज के हित में है या नहीं यह सुनिश्चित करना अधिक आवश्यक हो जाता है ! आशा है आप भी मेरी बात से अवश्य ही सहमत होंगे ! 



साधना वैद    



Monday, April 13, 2015

बन्दर और कछुआ



एक कछुआ था | वह एक नदी में रहता था ! नदी के किनारे कुछ पेड़ लगे थे ! उन पेड़ों पर रहता था एक बन्दर ! कछुआ उस बन्दर को पेड़ों पर उछलता कूदता देखता रहता था ! उन दोनों में धीरे-धीरे कुछ दोस्ती भी हो गयी थी ! बच्चों तुमको तो पता है कि कछुआ एक ऐसा जीव है जो पानी और ज़मीन दोनों पर ही रह लेता है ! एक दिन कछुआ किनारे पर आकर धूप में बैठा हुआ था और बन्दर का तमाशा देख रहा था तभी बन्दर ने एक केले के पेड़ को नदी में बहते हुए देखा जिसमें फल भी लगे हुए थे ! अब बन्दर तो पानी में जा नहीं सकता था क्योंकि उसे तो तैरना आता नहीं था इसलिए उसने कछुए से कहा, “कछुए कछुए चलो हम दोनों मिल कर उस पेड़ को किनारे पर ले आते हैं फिर उसको आधा-आधा बाँट लेंगे !”
कछुआ बोला, “ठीक है !” और पानी में उतर गया ! तैरता-तैरता कछुआ पेड़ के पास पहुँच गया और केले के पेड़ को किनारे की ओर धकेलने लगा ! बड़ी मेहनत के बाद वह पेड़ को किनारे तक ले आया ! किनारे आने पर  बन्दर ने जल्दी से केले के पेड़ को ज़मीन पर खींच लिया और अपने दाँतों से पेड़ के दो टुकड़े कर दिए ! फिर वो कछुए से बोला, ”नीचे वाला बड़ा हिस्सा तुम्हारा और ऊपर वाला छोटा हिस्सा मेरा !” कछुए ने देखा फल तो ऊपर वाले हिस्से में ही लगे हुए हैं ! वह उदास तो हुआ पर चुप रहा ! बन्दर केले लेकर पेड़ पर चढ़ गया और कई दिन तक मज़े से केलों को खाता रहा ! 
कछुए ने देखा कि नीचे वाले हिस्से में तो खाली तना और जड़ ही थी ! कछुए ने सोचा इस तने को अगर वह ज़मीन में रोप देगा तो हो सकता है कि पेड़ ज़िंदा हो जाए ! उसने बड़ी मेहनत से वहीं गीली ज़मीन में एक गड्ढा खोदा और अपने हिस्से वाले कटे पेड़ को उसमें बो दिया और मिट्टी से ढक दिया ! रोज़ नदी से पानी लाकर वह उस पेड़ की सिंचाई भी करने लगा ! कुछ समय बाद जड़ों में से पत्तियाँ फूटने लगीं और केले के तीन नये पेड़ उग आये ! पेड़ बड़े हो गये और उनमें फूल भी निकल आये !

कछुआ समझ गया कि अब इनमें फल भी निकलेंगे और मेरी मेहनत सफल हो जायेगी ! बन्दर उसको रोज़ मेहनत करते हुए देखा करता था ! कछुए ने बन्दर को धन्यवाद दिया और कहा कि उसने बहुत अच्छा बँटवारा किया जिसकी वजह से आज उसके पास केले के तीन-तीन पेड़ हो गये हैं ! बन्दर खिसिया कर देखता रहता था ! जब पेड़ में फल आ गये तो बन्दर दोस्ती के बहाने रोज़ फल देखने आ जाता था और पेड़ पर चढ़ कर चोरी छिपे एक केला खा जाता था ! एक दिन कछुए ने उसे चोरी करते हुए देख लिया ! उसे बहुत गुस्सा आया ! 
उसने बन्दर को सही सबक सिखाने का निश्चय किया ! पास में बेर और करील की काँटे भरी झाड़ियाँ लगी हुई थीं ! उसने इन झाड़ियों की कुछ डालें काट कर जमा कर लीं ! अगले दिन बन्दर जब फल देखने के बहाने पेड़ पर चढ़ा तो कछुए ने काँटों वाली डालियों को खींच कर केले के पेड़ के नीचे रख दिया और खुद एक सूखे नारियल के खोल में छिप कर बैठ गया ! खोल के छेद में से वह सारा तमाशा देखने लगा ! केला खाकर बन्दर कूद कर जैसे ही नीचे आया उसके पैरों में काँटे घुस गये ! वह दर्द से चिल्लाता हुआ हाय-हाय करने लगा ! काँटे निकालने के लिये बन्दर उसी नारियल के खोल पर बैठ गया जिसमें कछुआ छिपा हुआ बैठा था ! बन्दर अपने पैरों से काँटे निकालने में लगा था और उसकी पूँछ लटक रही थी जो कछुए के मुँह के पास थी ! कछुए ने बन्दर को सबक सिखाने के लिये उसकी पूँछ अपने दाँतों से काट दी ! दर्द से बिलबिला कर बन्दर ने नीचे झाँक के देखा कि नारियल के खोल में कछुआ छिपा हुआ बैठा है तो उसने गुस्से के मारे नारियल ही उठा कर नदी में फेंक दिया ! पर बच्चों आप तो यह जानते ही हो कि कछुआ तो पानी में भी खुश रहता है ! इसलिए वह तो पानी में मज़े के साथ तैरने लगा ! पूँछ कटा कर बन्दर रोता हुआ पेड़ पर चढ़ गया और पेड़ पर रहने वाले पंछियों और गिलहरियों से कछुए की शिकायत करने लगा ! पर वे सब बन्दर की धूर्तता और मक्कारी को अच्छी तरह से जानते थे ! वे यह भी जानते थे कि कछुआ बहुत ही ईमानदार, सब्र वाला और मेहनती था ! बन्दर ने चालाकी से उसे पेड़ का वह हिस्सा दिया था जिसमें एक भी फल नहीं था ! और जब कछुए ने उस तने को बो कर मेहनत से पेड़ उगाए तो बन्दर उसके फल भी चुराने से बाज नहीं आया ! इसलिए उन्होंने बन्दर को ही दोषी माना और आगे से उसे कछुए के पेड़ों से दूर रहने की नसीहत भी दे डाली ! 
तो बच्चों कैसी लगी आज की कहानी ! मज़ा आया न आपको ? चालाकी और बेईमानी से कभी किसीका भला नहीं होता और धीरज रखने वाले तथा मेहनत करने वाले को हमेशा मीठा फल मिलता है !  

साधना  वैद