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Sunday, December 30, 2018

आशियाना




आओ देखो
ढूँढ लिया है मैंने
हम दोनों के लिये
एक छोटा सा आशियाना
चलो इस घर में आकर रहें
सारी दुनियावी ज़हमतों से दूर
सारी दुनियावी रहमतों से दूर !
प्रेम को ओढें
प्रेम को बिछाएं
प्रेम को पियें
प्रेम को ही जियें
ना कोई हमसे मिलने आ सके
ना हम किसीसे मिलने जायें
दिन में लहरों को गिनें
रात में तारों को
दिन में पंछियों का गान सुनें
रात में झींगुरों का !
चलो न !
बहुत सुन्दर है यह मकान
हम दोनों मिल कर इसे घर बना लें
अपने ख़्वाबों की हसीं दुनिया बसा लें !


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद   
    

Friday, December 28, 2018

छुअन




खुले आसमान के नीचे
प्रशांत महासागर के तट पर
शिशिर ऋतु की भीषण सर्दी में
अपने चहरे से टकराती ठंडी हवाओं की
बर्फीली छुअन को याद कर रही हूँ !
एक चहरे के अलावा बाकी सारा बदन
गर्म कपड़ों से कस कर लिपटा होता है   
चेहरे पर जैसे बर्फ सी मल देती है हवा !
नाक ठण्ड से सुर्ख हो जाती है
पलकों पर रुई के फाहे सी हिम जम जाती है
फिर भी शिशिर की यह शीतल छुअन
मुझे बड़ी सुखदाई लगती है !

फूलों के सौरभ से बोझिल वासंती बयार जब
बदन को छूकर मदालस कर जाती है
मन में ढेर सारे अरमान जगा जाती है
बागेश्री और मालकौंस की मधुर रागिनी
मन में अनुराग जगा मुझे
मदहोश सा कर जाती है तब
वासंती पवन की यह नशीली छुअन
मुझे बहुत सुहाती है !

ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी 
विकट गर्मी से व्याकुल प्राण
स्वेद बिन्दुओं से सिक्त बोझिल शरीर
कोमल बदन को भस्मसात सा करतीं
गर्म हवाएं और लू के सुलगते थपेड़े
इन हवाओं की छुअन मुझे सदा ही
आकुल कर जाती है !

वर्षा ऋतु के आगमन के साथ
माटी की सौंधी-सौंधी सुगंध से
प्राणों का एक बार पुन: खिल उठना  
बारिश की नमी सोखते ही धरा में दबे
असंख्य बीजों का अंकुरित हो जाना
हथेलियों पर झरती पहली फुहार की
नन्ही नन्ही बूंदों के सपर्श से पुलकित हो  
मन मयूर का झूम के नाच उठना
वर्षा की यह तरल छुअन मेरे लिए
जैसे संजीवनी सा जादू कर जाती है !

शरद ऋतु का शांत निरभ्र आकाश
चहुँ ओर फ़ैली उज्जवल धवल चाँदनी
प्रकृति का हर रंग हर रूप
पूर्ण रूप से मनोहारी एवं नयनाभिराम
जैसे कैनवस पर उकेरी गयी कोई नयी पेंटिंग !
शरद ऋतु की शीतल स्निग्ध चाँदनी की यह छुअन
मेरे मन में जाने कितनी कल्पनाओं,
जाने कितनी कामनाओं, जाने कितनी भावनाओं को  
स्फुरित कर जाती है !

और लो अब आ गयी हेमन्त ऋतु
साथ ले आई ढेर सारा उत्साह, सुख,
स्वास्थ्य, खुशियाँ और पर्व ही पर्व !
सुबह शाम की गुलाबी सर्दी की छुअन
कर जाती है मन प्राण आल्हादित
हो जाता है मन सुमन मुकुलित
और नव आवरण में लिपटी वसुधा
लगती है प्रफुल्लित !

हे माँ प्रकृति
तुमने हर मौसम में बड़े प्यार से
दिया है मुझे अपनी गोद में संरक्षण  
तुम्हारे वात्सल्य का यह मृदुल स्पर्श  
करता रहा है मुझमें जीवन का संचरण
मेरी प्रणाम स्वीकार करो माँ
वर दो कि कर सकूँ मैं आने वाली पीढ़ियों को
इस प्राणदायी प्रीतिकर छुअन का
अक्षुण्ण हस्तांतरण !


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद   














Wednesday, December 26, 2018

उधड़ी ज़िंदगी




उधडी ज़िंदगी
ज़िंदगी के बेशकीमती पैरहन से 
जिन खूबसूरत लम्हों को 
ज़िंदगी ने बड़ी आसानी से उधेड़ दिया 
उन्हें लाख जतन करके भी 
मैं कभी पहले सा बुन न सकी 
लेकिन इस उधड़े पैरहन को 
कभी फेंक भी तो ना सकी !



साधना वैद

Monday, December 24, 2018

महादेव की विडम्बना




महादेव तो बन गए कर के विष का पान
भला कौन सा कर दिया ज़रा कहो श्रीमान !

भरे असुर संसार में धारे पद सम्मान
भोली जनता लुट रही आफत में है जान !

विष पीकर जग में भला मिला किसे है चैन
नीलकंठ बनते नहीं मुंदते खुद के नैन !

चाहे जितने भी चलें धर्म नीति के बाण
विष मिलते ही रुधिर में खिंच जाते हैं प्राण !

आशुतोष कह कर तुम्हें ठग लेते हैं लोग
तुम्हें चढ़ा फल फूल खुद करें माल का भोग !

सुर नर मुनि जन नाम के गिनने को हैं आज
भाँति भाँति के पाप से भरता जाय समाज !

क्या कर पाए देव तुम करके विष का पान
उच्श्रन्खल हो घूमते दानव क्या है भान ?

इससे तो कर डालते उसी वक़्त संहार
हल्का हो जाता तभी धरती माँ का भार !

वंश बेल जो बढ़ रही असुरों की है आज
उस पर गिर जाती तभी सदा सदा को गाज !

अब भी कुछ बिगड़ा नहीं धारो हाथ त्रिशूल  
नेत्र खोल दो तीसरा इन्हें चटा दो धूल !

भगवन दुविधा त्याग के करो तुमुल जय घोष
सभी असुर औ’ दानवों के उड़ने दो होश !

सुन्दर स्वस्थ समाज की कर दो रचना आज
शुद्ध करो मन वचन से और सँवारो काज !  



साधना वैद   

  


Thursday, December 20, 2018

मुस्कान




यूँ तो ज़िंदगी
इतनी बेनूर, बेरंग और उबाऊ
हो गयी है कि ऐसी कोई वजह
मिलती ही नहीं कि अधरों पर
हल्की सी ही सही
कोई मुस्कान कभी आ जाए लेकिन

जब पुल के नीचे रहने वाली
उस कर्कशा स्त्री को
किसी दूसरी औरत के साथ
झोंटा पकड़ गुत्थमगुत्था होते हुए
और अनर्गल गालियाँ बकते हुए
देखती हूँ और फिर अचानक ही
अपने दुधमुंहें का रोना सुन
सारे झगड़े भूल उसे आँचल से लगा 
उसी कर्कशा औरत को 
परम वात्सल्य भाव से बच्चे के सर पर
हाथ फेरते हुए देखती हूँ तो
अधरों पर मुस्कान आ ही जाती है !

जब छोटे से किसी किशोर को
घोड़ा बन अपने से भी छोटे
भाई या बहन को पीठ पर सवारी करा
घुमाते हुए और अपनी एकमात्र रोटी से
निवाले तोड़ उन्हें खिलाते हुए देखती हूँ तो
अधरों पर मुस्कान आ ही जाती है !

जब देखती हूँ किसी बाइक सवार को
कि अपने कीमती कपड़ों की परवाह
न करते हुए वह सड़क पर घायल पड़े
किसी छोटे से पिल्ले को असीम करुणा से
गोदी में उठा कर प्यार से सहला रहा है
और धीमे धीमे उसके साथ
मीठी सी आवाज़ में बातें कर
उसका दर्द बाँट रहा है तो
अधरों पर मुस्कान आ ही जाती है

सोचती हूँ बेशक अपना जीवन  
कितना भी नीरस और फीका क्यों न हो
आसपास तमाम वजहें
ऐसी मिल ही जाती हैं
जिन्हें देखने मात्र से ही
हमें अभूतपूर्व सुख मिल जाता है
तो ज़रा सोचिये उनका हिस्सा बन कर
हमें कितना पुण्य मिल सकता है !


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद

  


Saturday, December 15, 2018

समझौता



नितांत 
प्रेम विहीन, 
संवेदन विहीन,
सौन्दर्य विहीन,
सम्मान विहीन 
अनेकों समझौतों की 
खूँटियों से लटके 
अपने बेरंग बदसूरत से जीवन को 
उसने बड़े करीने से 
हालात से एक और समझौता करके
अपने रिश्तों की अलमारी में 
बेहद खूबसूरती से सजी 
एक बहुत सुन्दर सी मंजूषा में 
सजा कर रखा हुआ है 
अपने उन अपनों के लिए 
जो उसे जीवन में बहुत सुखी 
देखना चाहते हैं !


साधना वैद


चित्र - गूगल से साभार

Thursday, December 13, 2018

शिशिर की भोर





शिशिर ऋतु की सुहानी भोर
आदित्यनारायण के स्वर्ण रथ पर
आरूढ़ हो धवल अश्वों की
सुनहरी लगाम थामे
पूर्व दिशा में शनैः शनैः
अवतरित हो रही है !
पर्वतों ने अपना लिबास
बदल लिया है !
कत्थई रंग के हरे फूलों वाले
अंगवस्त्र को उतार
लाल और सुनहरे धागों से कढ़े
श्वेत दुशाले को अपने तन पर
चारों ओर से कस कर
लपेट लिया है !
पर्वत शिखरों के देवस्थान पर
रविरश्मियों ने अपने जादुई स्पर्श से
अंगीठी को सुलगा दिया है !  
वहाँ पर्वत की चोटियों पर देवता
और यहाँ धरा पर हम मानव
गरम चाय की प्याली
हाथ में थामे शीत लहर से
स्पर्धा जीतने के लिये
स्वयं को तैयार कर रहे हैं !
कल-कल बहती जलधारायें
सघन बर्फ की मोटी रजाई ओढ़
दुबक कर सो गयी हैं !
सृष्टि की इस मनोहारी छटा पर
मुग्ध हो दूर स्वर्ग में बैठे
देवराज इंद्र ने मुक्त हस्त से
अनमोल मोतियों की दौलत
न्यौछावर करने का आदेश
सजल वारिदों को दे दिया है !
नभ में विचरण करते
ठिठुरते श्यामल बादलों के
कँपकँपाते हाथों से छिटक कर
ओस के मोती नीचे धरा पर
यत्र यत्र सर्वत्र बिखर गये हैं !
धन्य धरा ने विनीत भाव से
हर कली, हर फूल,
हर पत्ते, हर शूल
यहाँ तक कि
नर्म मुलायम दूर्वा के
हर तिनके की खुली मंजूषा में
इन मनोरम मोतियों को  
सहेज कर रख लिया है !
शीत ऋतु का यह सुखद
शुभागमन है और प्रकृति के
इस नये कलेवर का
हृदय से स्वागत है,
अभिनन्दन है,
वंदन है !

साधना वैद

Tuesday, December 11, 2018

शुभाशंसा – श्रीमती आशा लता सक्सेना



मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि मेरी छोटी बहन साधना वैद की एक और पुस्तक, ‘एक फुट के मजनू मियाँ’, प्रकाशित होने जा रही है जिसमें उनकी लिखी बीस अनमोल बाल कहानियों का संकलन है ! साधना बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं ! वे लेखन की विविध विधाओं में पारंगत हैं एवं भाषा पर उनका बहुत अच्छा अधिकार है ! बचपन से ही साहित्य में रूचि रही है ! स्कूल कॉलेज की पत्रिकाओं में लेखन से आरम्भ हुआ यह सफ़र अबाध गति से निरंतर चलता ही रहा है !

इस पुस्तक में बहुत ही रोचक, मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक बीस कहानियाँ संगृहीत हैं ! आजकल जिस प्रकार की जीवन शैली बन गयी है उसने बच्चों को किताबों की दुनिया से बहुत दूर कर दिया है ! बच्चों में पठन पाठन की रूचि बिलकुल समाप्त प्राय हो गयी है ! वे केवल इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों से खेलना पसंद करने लगे हैं जो मोबाइल या टी वी पर चलते हैं ! साधना की इस पुस्तक में इतनी मनोरंजक एवं मजेदार कहानियाँ हैं जो ऐसे बच्चों में पढ़ने के प्रति रूचि जागृत करने की अद्भुत क्षमता रखती हैं ! बच्चों के व्यक्तित्व को सँवारने और निखारने में जो भूमिका शिक्षाप्रद कहानियाँ निभा सकती हैं वह मोबाइल या टी वी पर खेले जाने वाले खेल तो कदापि नहीं कर सकते ! इस दृष्टिकोण से भी इस पुस्तक का महत्व और बढ़ जाता है !

साधना का रचना धर्म इसी तरह अनवरत रूप से चलता रहे और उनकी लेखनी बच्चों का उचित मार्गदर्शन कर उन्हें सही दिशा दिखाती रहे यही मंगलकामना है ! इस पुस्तक की सफलता के लिए अनंत अशेष शुभकामनाएं !


श्रीमती आशा सक्सेना
सेवानिवृत व्याख्याता उज्जैन,
मध्य प्रदेश


साधना वैद 

Friday, December 7, 2018

शहनाई का दर्द




कैसे हो कलाकार ?
सुना था कलाकार तो बहुत ही 
संवेदनशील होते हैं
उनके हृदय में अपार करुणा होती है  
लेकिन तुम तो ......
तुम भी औरों जैसे ही निकले
स्वार्थी, हृदयहीन और निर्मम !
तुम्हें तो बस औरों की
वाहवाही लूटने से मतलब है
महसूस किया है कभी 
मुझ जैसी शहनाई का दर्द 
कभी सोचा है मुझ पर क्या गुज़रती है
जब मेरे तन के हर छेद पर
तुम्हारी ये उँगलियाँ नाचती हैं !
ये मुझे कितना आहत कर जाती हैं
कभी जानने की कोशिश की है तुमने ?
जीवन पर्यंत बजती रही हूँ मैं
हर विवाह, हर उत्सव, हर समारोह में
मेरे मन में कितनी पीड़ा है
कितना दर्द है किसने जाना है !
मेरी आत्मा की चीत्कार
लुभाती है श्रोताओं को !
शहनाई की हर बंदिश पर
वे विभोर हो झूम उठते हैं
बारम्बार सुनने का आग्रह करते हैं
और अपनी इस कला के प्रदर्शन पर
कितना सम्मान, कितने पुरस्कार,
कितने पारितोषिक
मिलते हैं तुम्हें कलाकार !
लेकिन कौन जानता है
मेरे दिल का हाल !
मन्द्र हो, मध्य हो या तार
हर सप्तक के सुर मेरे मन की
व्यथा कथा ही सुनाते हैं
सुन कर समझने वाला चाहिए !   
मेरे हृदय के छेदों पर
ऊँगलियाँ रख स्वर निकालने में
बहुत आनंद आता है ना तुम्हें !
आये भी क्यों ना ?
दर्द में भी तो बहुत मिठास होती है,  
एक आकर्षण होता है और होती है
सम्मोहित कर लेने की
एक अद्भुत क्षमता !
तभी तो कहते हैं सब
हैं सबसे मधुर वो गीत
जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं
धन्य हो तुम कलाकार
जो मेरे अंतर के हर क्रंदन को
इतनी दक्षता से ऐसे मधुर संगीत में
परिवर्तित कर देते हो कि श्रोता
मंत्रमुग्ध हो स्वरों के इस
अलौकिक संसार में खो से जाते हैं
और मैं धन्य हो जाती हूँ
कि दर्द सह कर भी मैं जगत को
कुछ तो सुखी कर पाई !



साधना वैद