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Saturday, December 31, 2011

है स्वागतम् ! सुस्वागतम् !


सभी पाठकों एवं साथियों को नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ! नया साल आप सभी के लिये ढेर सारी खुशियाँ लाये और आपके यश, स्वास्थ्य और समृद्धि में चार चाँद लगाये यही मंगलकामना है !


भोर की पहली किरण ने

चूम कर माथा मेरा ,

गुनगुना कर कान में पूछा,

कहो ! आ जाऊँ मैं ?

अधमुँदे नैनों को अपने

खोल कर मैंने कहा ,

आओ ना ! शुभ आगमन !

है स्वागतम् ! सुस्वागतम् !

और हेमंती हवा ने

शॉल मेरा खींच कर

फुसफुसा कर कान में पूछा,

कहो ! आ जाऊँ मैं ?

अंक में उसको छिपा कर

प्यार से मैंने कहा,

आओ ना ! शुभ आगमन !

है स्वागतम् ! सुस्वागतम् !

और नूतन वर्ष ने भर कर

विपुल उल्लास से

खिलखिला कर कान में पूछा,

कहो ! आ जाऊँ मैं ?

हर्ष विस्फारित नयन से

झूम कर मैंने कहा,

आओ ना ! शुभ आगमन !

है स्वागतम् ! सुस्वागतम् !

साधना वैद

Wednesday, December 28, 2011

मोक्ष

कब तक तुझसे सवाल करेंगे

और कब तक तुझे

कटघरे में खड़ा करेंगे !

नहीं जानते तुझसे

क्या सुनने की

लालसा मन में

करवटें लेती रहती है !

ज़िंदगी ने जिस दहलीज तक

पहुँचा दिया है

वहाँ हर सवाल

गैर ज़रूरी हो जाता है

और हर जवाब बेमानी !

अब तो बस एक

कभी ना खत्म होने वाला

इंतज़ार है

यह भी नहीं पता

किसका और क्यों

और हैं मन के सन्नाटे में

यहाँ वहाँ

हर जगह फ़ैली

सैकड़ों अभिलाषाओं की

चिर निंद्रा में लीन

अनगिनत निष्प्राण लाशें

जिनके बीच मेरी

प्रेतात्मा अहर्निश

भटकती रहती है

उस मोक्ष की

कामना में

जिसे विधाता ने

ना जाने किसके लिये

आरक्षित कर

सात तालों में

छिपा लिया है !



साधना वैद

Friday, December 23, 2011

क्या राष्ट्रीय सम्मान भी छोटा या बड़ा माना जाना चाहिये ?

विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान के लिये या अभूतपूर्व मुकाम हासिल करने के लिये सम्मानित किया जाना किसे अच्छा नहीं लगता ! बहुत प्रसन्नता होती है जब आपके कार्यों को और आपकी उपलब्धियों को सराहा जाता है और मान्यता मिलती है ! लेकिन इस प्रक्रिया के लिये भी क्या छोटी बड़ी लकीरें खींचना ज़रूरी है ? पद्मश्री. पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारत रत्न सभी राष्ट्रीय पुरस्कार हैं और सभीका अपना महत्त्व है ! जिसने भी इन्हें प्राप्त किया है वह स्वयं विशिष्ट एवं सम्मानित हो जाता है फिर इन पुरस्कारों को छोटा बड़ा या कमतर और बेहतर बना कर उनके महत्त्व को कम ज्यादह करना उचित नहीं लगता ! मेरे विचार से एक बार जिसे यह पुरस्कार मिल गया उसे दोबारा उसी कैटेगरी की उपलब्धि के लिये इन्हीं में से किसी दूसरे पुरस्कार के लिये नामांकित या चयनित नहीं किया जाना चाहिये !

राष्ट्रीय पुरस्कारों में ‘भारत रत्न’ भारत का सर्वोच्च सम्मान तथा ‘पद्मश्री’ सबसे छोटा सम्मान माना जाता है ! सम्मानित व्यक्तियों में भी हम उन्हें छोटा सम्मानित या बड़ा सम्मानित बना कर कहीं उनके क्रियाकलापों, उनकी उपलब्धियों और उनकी निष्ठा और प्रतिष्ठा पर प्रश्न चिन्ह तो नहीं लगा रहे ? जिसे पद्मश्री मिला वह छोटे दर्जे का कलाकार या समाजसेवी हो गया और जिसे पद्म विभूषण या भारत रत्न मिल गया उसकी लकीर खुद ब खुद बड़ी होकर पहले वाले को बौना बना गयी ! क्या यह प्रक्रिया मनुवादी मानसिकता की द्योतक नहीं ?

मेरे विचार से यह गलत है ! पुरस्कार देने के लिये जितनी भी श्रेणियों और क्षेत्रों को चुना जाये उन्हें चार वर्गों में बाँट देना चाहिये ! हर वर्ग के लिये एक ही पुरस्कार होना चाहिये ! जैसे उदाहरण के लिये पद्मश्री फिल्मो, संगीत या उससे जुडी शाखाओं के लिये हो, पद्मभूषण खेलों के लिये या समाज सेवा में विशिष्ट योगदान के लिये हो, पद्मविभूषण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाने के लिये हो, भारत रत्न अदम्य शौर्य, साहस एवं बहादुरी के लिये हो ! इत्यादि ! सभी श्रणियों और उनकी शाखाओं उपशाखाओं को इन्हीं चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है ! एक श्रेणी से जुड़े व्यक्ति को यह पुरस्कार मिलना स्वयमेव उसे विशिष्ट बना देता है ! सारे पुरस्कार अपने अपने क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार माने जाने चाहिये ! ऐसा नहीं होना चाहिये कि जिसे पद्मश्री मिल गया वह स्वयं को उस व्यक्ति के सामने छोटा और अपमानित या अवहेलित महसूस करे जिसे समान धर्मी होने के बावजूद भी भारत रत्न मिल गया हो ! ये सारे ही तरीके त्रुटिपूर्ण प्रतीत होते हैं ! इसलिए सबसे सही तरीका यही दिखाई देता है कि जितनी भी श्रेणियाँ और क्षेत्र पुरस्कार देने के लिये चुने जाते हैं उन्हें इन चार श्रेणियों में विभाजित कर देना चाहिये और हर फील्ड से बहुत सोच समझ कर पुरस्कार देने के लिये व्यक्ति का चयन किया जाना चाहिये क्योंकि यही उसके लिये सर्वोच्च सम्मान होगा ! किसी भी व्यक्ति को एक ही श्रेणी में विशिष्ट उपलब्धि के लिये अगली बार कोई दूसरा पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिये ! यदि उसे दोबारा भी उसी उपलब्धि के लिये सम्मानित किया जा रहा है जिसके लिये उसे पहली बार चुना गया था तो उसे वही पुरस्कार दिया जाना चाहिये जो उसे पहले मिल चुका है ! जैसे किसीको फिल्मों में अभूत पूर्व योगदान के लिये एक बार पद्मश्री से नवाजा गया है तो इसी प्रकार की उपलब्धि के लिये उसे पद्म विभूषण या भारत रत्न नहीं दिया जाना चाहिये ! दूसरी बार भी उसे पद्मश्री ही मिलना चाहिये ! हाँ यदि वह किसी अन्य श्रेणी में भी विशिष्ट मुकाम हासिल करता है तो अवश्य उसे दूसरा सम्मान दिया जा सकता है ! कभी रिपोर्टिंग करनी हो तो कहा जा सके इन्हें फिल्मों में विशिष्ट योगदान के लिये दो बार पद्मश्री से सम्मानित किया गया और खेल में विशिष्ट योगदान के लिये तीन बार पद्मभूषण से सम्मानित किया गया ! इससे किसीको भी हीन भावना से ग्रस्त नहीं होना पड़ेगा और सभी के साथ न्याय हो सकेगा !

वैसे व्यक्ति का काम ही उसके यश को विस्तीर्ण करता है ! भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ जिन ४१ विभूतियों को मिला उनमें से अधिकाँश व्यक्तियों के नाम शायद आज की पीढ़ी के युवाओं ने सुने भी नहीं होंगे ! लेकिन महात्मा गाँधी जिन्हें यह सम्मान आज तक नहीं मिला आज भी जनमानस के हृदय में वास करते हैं और विश्व के कोने कोने में उनके यश का प्रकाश फैला हुआ है ! निस्वार्थ सेवा, विशिष्ट उपलब्धियाँ या ईमानदार मेहनत से पाये गये मुकाम किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं होते उनका आकलन सारा विश्व स्वयं कर लेता है !

साधना वैद

Wednesday, December 14, 2011

सपने


रफ्ता-रफ्ता सारे सपने पलकों पर ही सो गये ,

कुछ टूटे कुछ आँसू बन कर ग़म का दरिया हो गये !


कुछ शब की चूनर के तारे बन नज़रों से दूर हुए ,

कुछ घुल कर आहों में पुर नम बादल काले हो गये !


कुछ बन कर आँसू कुदरत के शबनम हो कर ढुलक गये ,

कुछ रौंदे जाकर पैरों से रेज़ा रेज़ा हो गये !


कुछ दरिया से मोती लाने की चाहत में डूब गये ,

कुछ लहरों ने लीले, कुछ तूफ़ाँ के हवाले हो गये !


कुछ ने उड़ने की चाहत में अपने पर नुचवा डाले ,

कुछ थक कर अपनी ही चाहत की कब्रों में सो गये !


कुछ गिर कर शीशे की मानिंद चूर-चूर हो बिखर गये ,

कुछ जल कर दुनिया की तपिश से रेत का सहरा हो गये !


अब तक जिन सपनों के किस्से तहरीरों में ज़िंदा थे ,

क़ासिद के हाथों में पड़ कर पुर्ज़ा-पुर्ज़ा हो गये !


अब इन आँखों को सपनों के सपने से डर लगता है ,

जो बायस थे खुशियों के रोने का बहाना हो गये !



साधना वैद


Tuesday, December 6, 2011

एक सच

जाने क्यों

आज सारे शब्द चुप हैं ,

सपने मूर्छित हैं ,

भावनायें विह्वल हैं ,

कल्पनाएँ आहत हैं ,

गज़लें ग़मगीन हैं ,

इच्छाएं घायल हैं ,

अधर खामोश हैं ,

गीतों के सातों

स्वर सो गये हैं

और छंद बंद

लय ताल सब

टूट कर

बिखर गये हैं !

मेरे अंतर के

चिर परिचित

निजी कक्ष के

नितांत निर्जन,

सूने, नीरव,

एकांत में

आज यह कैसी

बेचैनी घिर आई है

जो हर पल व्याकुल

करती जाती है !

कहीं कुछ तो टूटा है ,

कुछ तो बिखर कर

चूर-चूर हुआ है ,

जिसे समेट कर

एक सूत्र में पिरोना

मुश्किल होता

जा रहा है !

मुझे ज़रूरत है

तुम्हारी मुट्ठी में

बँधी उज्ज्वल धूप की ,

तुम्हारी आँखों में

बसी रेशमी नमी की ,

तुम्हारे अधरों पर

खिली आश्वस्त करती

मुस्कुराहट की ,

और तुम्हारी

उँगलियों के

जादुई स्पर्श की !

क्योंकि मेरे मन पर

छाये हर अवसाद का

घना कोहरा तभी

छँटता है

जब मेरे मन के

आकाश पर

तुम्हारा सूरज

उदित होता है !

साधना वैद