रफ्ता-रफ्ता सारे सपने पलकों पर ही सो गये ,
कुछ टूटे कुछ आँसू बन कर ग़म का दरिया हो गये !
कुछ शब की चूनर के तारे बन नज़रों से दूर हुए ,
कुछ घुल कर आहों में पुर नम बादल काले हो गये !
कुछ बन कर आँसू कुदरत के शबनम हो कर ढुलक गये ,
कुछ रौंदे जाकर पैरों से रेज़ा रेज़ा हो गये !
कुछ दरिया से मोती लाने की चाहत में डूब गये ,
कुछ लहरों ने लीले, कुछ तूफ़ाँ के हवाले हो गये !
कुछ ने उड़ने की चाहत में अपने पर नुचवा डाले ,
कुछ थक कर अपनी ही चाहत की कब्रों में सो गये !
कुछ गिर कर शीशे की मानिंद चूर-चूर हो बिखर गये ,
कुछ जल कर दुनिया की तपिश से रेत का सहरा हो गये !
अब तक जिन सपनों के किस्से तहरीरों में ज़िंदा थे ,
क़ासिद के हाथों में पड़ कर पुर्ज़ा-पुर्ज़ा हो गये !
अब इन आँखों को सपनों के सपने से डर लगता है ,
जो बायस थे खुशियों के रोने का बहाना हो गये !
साधना वैद
वाह साधना जी आज की आपकी इस गज़ल की जितनी तारीफ़ की जाये कम है………अगर कोई गायक इसे स्वरबद्ध करे तो कमाल ही हो जाये……………शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteइतने सरल शब्दों में इतनी गूढ़ बातें .... बेहतरीन !!!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteअच्छी गजल|सुन्दर शब्द संयोजन |
ReplyDeleteबधाई उर्दू गजल लेखन के लिए |
आशा
bahut dard bhari gazal....aur dard par to kuchh bhi kahna munasib nahi.
ReplyDeleteमौसीजी, नमस्ते आज की कविता वैसे तो खूब अच्छी है,पर इतनी उदास ?अरे भई अब तो नया साल आने को है नए-नए ख़्वाब बुनिए मुस्कुराइए ...
ReplyDeleteअब इन आँखों को सपनों के सपने से डर लगता है ,
ReplyDeleteजो बायस थे खुशियों के रोने का बहाना हो गये !
सच सपने कब रोने का बायस बन जाते हैं...पता भी नहीं चलता....
सुन्दर रचना..
ओह ... सपनों का ऐसा हश्र ...भले ही आँखों को सपनों के सपने से डर लगता हो पर वो उन्हें देखना नहीं छोड़ सकतीं ... सपनों पर बहुत मार्मिक प्रस्तुति दी है ..
ReplyDeleteकुछ दरिया से मोती लाने की चाहत में डूब गये कुछ लहरों ने लीले, कुछ तूफ़ाँ के हवाले हो गये !
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
संगीता जी की हलचल से यहाँ आकर
मन प्रसन्न हो गया है साधना जी.
आप मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला'
पर अभी तक भी नही आ पाई हैं.
आपका इंतजार है.आपके आने से
मेरा उत्साह बढ़ता है.महीने में एक
ही पोस्ट लिखता हूँ.मेरी कोशिश है
कि आप जैसे प्रेमी भक्त व नियमित
पाठकों के दर्शन और सुवचनों से मैं
वंचित न रहूँ.मेरी बात का बुरा न
मानियेगा,प्लीज.
बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteआप की माताश्री आ. किरण जी के संस्कारों को बहुत आगे ले जाएंगी आप।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं उम्दा गजल !
ReplyDeleteआभार !
वाह! खुबसूरत ग़ज़ल....
ReplyDeleteसादर बधाई...
अब तक जिन सपनों के किस्से तहरीरों में ज़िंदा थे ,
ReplyDeleteक़ासिद के हाथों में पड़ कर पुर्ज़ा-पुर्ज़ा हो गये !
ये पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं।
सादर
behtreen aur sundar abhivaykti....
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्यारी गजल.........बहुत खूब ..
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
वाह साधना जी ! कैसे एक एक सपने को बुनाहाई आपने शब्दों में.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत.
Nice .
ReplyDeleteअब इन आँखों को सपनों के सपने से डर लगता है
ReplyDeleteजो बायस थे खुशियों के रोने का बहाना हो गये !
..dari huyee ankhen sapno ko dekhne se darti hai...bahut achhi rachna...
अब इन आँखों को सपनों के सपने से डर लगता है ,
ReplyDeleteजो बायस थे खुशियों के रोने का बहाना हो गये !
कमाल की प्रस्तुति. गहरी बात भी.
bahut sunder bhavmai shandar rachanaa .bahut badhai aapko.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२२) में शामिल की गई है /कृपया आप वहां आइये .और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इसी तरह हमको मिलता रहे यही कामना है /लिंक है
http://hbfint.blogspot.com/2011/12/22-ramayana.html