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Thursday, December 29, 2022

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

 



“किन्शुल, और कितनी देर है भई ! बाहर वैन वाला कब से हॉर्न बजा रहा है ! जल्दी निकलो बाहर ! वो चला जाएगा छोड़ कर !”

“जाने दो वैन को मम्मी मैं श्यामा के साथ साइकिल से चली जाउँगी !” ब्रेड पर मक्खन लगाते हुए किन्शुल ने किचिन से जवाब दिया !” बालों को हाथों से समेटते हुए मीता ने हड़बड़ा कर किचिन में प्रवेश किया !

“क्या कहा ? और यहाँ किचिन में तुम क्या कर रही हो ? श्यामा कहाँ है ? ये दो टिफिन बॉक्स किसके है ?” मीता के चेहरे पर झुँझलाहट झलक रही थी ! 

“मम्मी, श्यामा नहाने गयी है ! आज वह भी मेरे साथ स्कूल जायेगी ! कल मैंने पड़ोस वाली वर्मा आंटी, जो सरकारी स्कूल में प्रिंसीपल हैं, उनसे बात कर ली है श्यामा के एडमीशन की ! उन्होंने कहा था कि कल उसे स्कूल भेज देना ! उसका टेस्ट लेकर देख लेंगे कि किस क्लास में उसे दाखिला मिल सकता है ! यह दूसरा टिफिन उसीके लिए बना रही हूँ !”

“अच्छा ! इतनी बड़ी हो गयी हो तुम कि सारे फैसले खुद करने लगीं ! हमसे पूछने की ज़रुरत भी नहीं समझी !” मीता का गुस्सा सातवें आसमान पर था !

“रोज़ श्यामा तुम्हारा टिफिन तैयार करती थी अब तुम उसका टिफिन बनाओगी ? तुम्हारे दिमाग में क्या भूसा भरा हुआ है ?” मीता की आवाज़ तार सप्तक तक पहुँच गयी थी ! श्यामा बाथरूम से निकल किन्शुल की पुरानी ड्रेस में खड़ी थर थर काँप रही थी !

“किसने कहा था तुमसे मिसेज़ वर्मा के पास जाने को ? इस श्यामा ने ? पहले हमसे बात करना ज़रूरी नहीं लगा तुम्हें ? ये स्कूल जायेगी तो घर का काम कौन करेगा ? मैं या तुम ?”

हिकारत से श्यामा को भस्मीभूत करने वाली नज़रों से देखते हुए मीता किन्शुल पर बरस पडीं ! अप्रत्याशित रूप से मम्मी की डाँट खाकर किन्शुल घबरा गयी थी ! मिमियाते हुए बोली,

“मम्मी हम आपको प्लेजेंट सरप्राइज़ देना चाहते थे इसलिए नहीं बताया था !”

“प्लेजेंट सरप्राइज़ ? कैसा सरप्राइज़ ?”

“वो कल टी वी के टॉक शो में आप ही तो कह रही थीं न कि नारी सशक्तिकरण के लिए लड़कियों का शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है ! जब तक हर लड़की शिक्षित नहीं होगी नारी सशक्तिकरण की बातें करना बेमानी है ! समाज के समृद्ध वर्ग का दायित्व है कि वो निर्धन वर्ग की बेटियों को पढ़ाने का बीड़ा उठायें ! अपने घरों में काम करने वाली अशिक्षित महिलाओं और बच्चियों को साक्षर बनाने का संकल्प लें ! बस इसीलिये !“

किन्शुल का गला रुंध गया था !


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद  


Sunday, December 18, 2022

काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता

 



काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता

प्यार से उसने मेरा हर लफ्ज़ लब से छुआया होता !

मिलते जो कभी फूलों की शक्लों में प्यार के तोहफे

मेरे पन्नों के बीच उसने गुलाबों को दबाया होता !

उसके हर दर्द की हर दुःख की दवा थी मेरी तहरीरों में  

बना के काढ़ा दुआओं का उसे मैंने पिलाया होता !

देने को बेकलों का सन्देश खतों के ज़रिये

बनके कासिद मैंने बिछड़ों को मिलाया होता !

मेरे हर चिपके हुए वर्क को जब वो खोलती

अपनी लम्बी पतली गीली ऊँगली से

मैंने अपने हर सफे को और भी कस के

एक दूजे से चिपकाया होता !  

मेरे पन्नों के बीच दबे साजन के

उस बेहद प्रतीक्षित ख़त को पढ़ कर

उसने बेसाख्ता मुझे चूम अपने

धड़कते हुए सीने से लगाया होता !

काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता

प्यार से उसने मेरा हर लफ्ज़ लब से छुआया होता !



चित्र - गूगल से साभार 

 

साधना वैद

 


Wednesday, December 7, 2022

अम्माँ

 



कितने दिनों के बाद बेटा गौरव बहू और बच्चों के साथ गाँव आया था ! खुशी के मारे अम्माँ के पैर धरती पर पड़ते ही नहीं थे ! कभी उनके लिए हलुआ बनातीं कभी तरह तरह की पूरी कचौड़ी तो कभी खीर और मालपुए ! आज के पिजा, बर्गर, हॉट डॉग, सैंडविच खाने वाली पीढी के लिए अम्माँ के हाथ के ये पकवान किसी छप्पन भोग से कम नहीं थे !

“दादी और दो ना खीर !” पोता प्रतुल कटोरा लेकर अम्माँ के पास आता तो अम्माँ निहाल हो जातीं !

“ऐसा करो प्रतुल दादी को अपने साथ दिल्ली ले चलो वहाँ तुम्हें रोज़ खीर पूरी मालपुए बना कर खिलायेंगी दादी !” गौरव प्रतुल के गाल थपथपा कर कहता तो अम्मा गदगद हो जातीं !

आँखों पर चश्मा चढ़ चुका था लेकिन बहू के दुपट्टे पर बड़े सलीके से उन्होंने जरी के फूल और बेल टाँक कर उसे बेहद खूबसूरत बना दिया था ! यही दुपट्टा किसी बुटीक में तीन चार हज़ार से कम का नहीं मिलता ! नन्ही पोती अन्वेषा के लिए उन्होंने बहुत ही खूबसूरत क्रोशिये का मल्टी कलर्ड स्कर्ट टॉप बन दिया था !

गौरव बहू से कहता, “अम्माँ के हाथों में आज भी कितनी सफाई है ! देखो अन्वेषा की ड्रेस किसी डिज़ाईनर की बनाई ड्रेस से कम नहीं ! तुम भी सीख लेतीं अम्माँ से कुछ !”

“हाँ, अगली बार जब आऊँगी तब पक्का सीखूंगी !” और अम्माँ उत्साहित हो बहू के लाये सारे कपड़ों की साज सज्जा में जुट जातीं ! किसी में बोर्डर लगाना तो किसी में तुरपन, किसी में लेस तो किसी में फूल ! बच्चों के वेकेशंस गाँव में खूब बढ़िया गुज़र रहे थे ! रोज़ रोज़ बच्चों की तरह तरह की फरमाइशें और दिल्ली चलने के आमंत्रण ने अम्माँ के मन में भी दिल्ली जाने की लौ लगा दी थी ! सालों से गाँव के बाहर कदम नहीं रखा था ! गौरव इतना कह रहा है तो इस बार उसका मन रखने के लिए अम्माँ ने भी दिल्ली जाने का फैसला ले ही लिया ! बच्चों की छुट्टियाँ ख़त्म होने को आ रही थीं ! दो दिन के बाद बच्चों के साथ दिल्ली जाने के लिए अम्माँ ने भी अपनी अटेची चुपचाप ज़माना शुरू कर दिया था ! एकाध साड़ी नयी लाना चाहती थीं ! वहाँ गौरव के धनवान पड़ोसियों के सामने वे अपनी जीर्ण शीर्ण कपड़ों की नुमाइश नहीं लगाना चाहती थीं लेकिन संकोचवश न गौरव से कह पाईं न ही बहू से !
दस बजे की ट्रेन थी ! अम्माँ सुबह से ही नहा धोकर तैयार हो गयीं थीं ! बच्चों को भी बड़े प्यार से नाश्ता करा दिया था ! सफ़र के लिए भी खाना बना कर पैक कर लिया था ! ठीक नौ बजे ऑटो दरवाज़े पे आ खड़ा हुआ ! सारा सामान ऑटो में रख दिया गया था !

“अच्छा अम्माँ ! चलते हैं ! आप अपना ख़याल रखना ! दवाइयां वगैरह समय से लिया करना ! अगली बार जल्दी आने का प्रोग्राम बनायेंगे ! पहुँचते ही फोन पर खबर कर देंगे !” और बेटा बहू जल्दी से घुटनों तक झुक कर ऑटो में जा बैठे थे ! अम्माँ की अटेची दरवाज़े के पीछे से बाहर आ ही नहीं पाई और रिक्शा निगाहों से ओझल हो चुका था !

 

चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद