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Sunday, April 30, 2017

प्यासा मन




रीती गागर 
गहरा सरवर
रीता अंतर 

प्यासा है मन 
प्यासा है मधुबन 
प्यासा जीवन 

अब तो आओ 
तृषित हृदय की 
प्यास बुझाओ 

निहारूँ राह 
दर्शन की है चाह 
करो निर्वाह 


साधना वैद

Thursday, April 27, 2017

मैं नदी हूँ


बहती रही 
अथक निरंतर 
मैं सदियों से 

करती रही 
धरा अभिसिन्चित
मैं सदियों से 


साधना वैद

Thursday, April 20, 2017

अंतहीन सिन्धु सा तेरा अंतर माँ



अंतहीन सिन्धु सा तेरा अंतर माँ



सर्वोच्च स्थान

आदि शक्ति माता का

शाश्वत सत्य



असीम नभ

अपरिमित धरा

तेरा आलय



माँ तेरी कृपा

अथाह सागर सी

अपरम्पार



जग जननी

अगाध तेरा प्यार

सुखी संसार



दयामयी माँ

बेहद दीन पर  

करम कर



ममतामयी

अंतहीन सिन्धु सा

तेरा अंतर



अनंत शून्य

व्योम तक विस्तीर्ण

तेरी महिमा



शब्द अशेष

कैसे हो गुणगान

मैं नादान माँ



करूँ गुहार

माँ तेरी ममता का

आर न पार



कैसे समेटूँ

विपुल तेरा प्यार

गयी मैं हार



गाये संसृति

चिरंतन युग से

माँ की वन्दना



दीप जलाऊँ

आरती गाऊँ करूँ

माँ की अर्चना





साधना वैद




Sunday, April 16, 2017

द्रौपदी का दर्द


कब तक तुम उसे 
इसी तरह छलते रहोगे !
कभी प्यार जता के, 
कभी अधिकार जता के,
कभी कातर होकर याचना करके,
तो कभी बाहुबल से 
अपना शौर्य और पराक्रम दिखा के,
कभी छल बल कौशल से 
उसके भोलेपन का फ़ायदा उठाके,
तो कभी सामाजिक मर्यादाओं की 
दुहाई देकर उसकी कोमलतम 
भावनाओं का सौदा करके ?
हे धर्मराज युधिष्ठिर
भरी सभा में धन संपत्ति की तरह 
अपनी पत्नी द्रौपदी को 
चौसर की बाजी में हार कर 
और दुशासन के हाथों
उसके चीरहरण का लज्जाजनक दृश्य देख
तुम्हें अपने पौरुष पर 
बड़ा अभिमान हुआ होगा ना ?
छि:, लानत है तुम पर
पाँच-पाँच पति मिल कर भी
एक पत्नी के सतीत्व की 
रक्षा न कर सके !
क्यों युधिष्ठिर
शर्म तो नहीं आई थी न तुम्हें ?
पत्नी की लाज हरी गयी तो क्या हुआ
तुम तो आज भी 
‘धर्मराज’ ही कहलाते हो
क्या यही था तुम्हारा ‘धर्म’ ? 
भरी सभा में अपमानित होती 
द्रौपदी के नेत्रों से बरसती अश्रुधार 
और तानों, उलाहनों उपालम्भों के 
अग्नेयास्त्र भी क्यों तुम्हारे 
मृतप्राय आत्माभिमान को 
जगा नहीं सके ? 
बोलो युधिष्ठिर 
है कोई उत्तर तुम्हारे पास ?
आखिर कब तक तुम नारी के कंधे पर
बन्दूक रख कर अपने निशाने लगाते रहोगे ?
अब तो बस करो !
कब तलक देवीबनाओगे उसे
'मानवी' भी ना समझ पाये जिसे !

साधना वैद
 

Tuesday, April 11, 2017

तू और तेरा ख़याल




सुनाये सिर्फ मोहब्बत के गीत दुनिया को
हम अपने सीने में ऐसा सितार रखते हैं !

तुम्हारा प्यार न ले जाए कहीं जान मेरी
तुम्हीं से मिलने का बस इंतज़ार रखते हैं !

गए परदेस तो फिर लौट कर भी आओगे  
तुम्हारे वादे पे हम एतबार रखते हैं !

बचा सकेंगे तुझे ज़ुल्मते ज़माने से
वफ़ा में अपनी हम इतना मयार रखते हैं ! 

जो ख़त लिखे थे कभी तूने नागवारी में

उनके अल्फ़ाज़ हमें बेक़रार रखते हैं !


भले ही फूल खिले हों तमाम गुलशन में
हम अपने हिस्से में तो सिर्फ खार रखते हैं !

न छू सकेंगी तुझे तोहमतें जहां भर की
तेरे रसूख से इतना तो प्यार रखते हैं !

न तुम बुलाओगे न खुद ही चल के आओगे
खयालो ख़्वाब का हम इंतज़ार रखते हैं !

न कर सकेगा ज़माना कभी हमें रुसवा
जुबां में अपनी हम इतनी तो धार रखते हैं !

जहान भर की नेमतें नसीब हों तुझको
दुआ मनाने का तो अख्तियार रखते हैं !

हमें यकीन है मैयत में आ ही जाओगे
तुम्हारे कौल का हम एतबार करते हैं !

जनाज़ा उठने से पहले चले ही आओगे
तेरे कदमों पे जाँ अपनी निसार करते हैं !

साधना वैद