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Friday, October 28, 2016

हर्ष का त्यौहार है दीपावली



है मिटाना तम अगर संसार का

दीप हर घर में सजाना चाहिए

प्रेम और सौहार्द्र का घृत डाल कर

नेह की बाती जलाना चाहिए !



दूर हो जायें सभी शिकवे गिले

सोच कर हर डग बढ़ाना चाहिए

खिल उठें मुस्कान से चहरे सभी

हर्ष से उत्सव मनाना चाहिए !



भूल जायें पल सभी अवसाद के

कोई ऐसा ढब बताना चाहिए

बाँट लें मिल कर सभी के दर्द को

फ़र्ज़ का मतलब सिखाना चाहिए !



व्यर्थ पुतले को जलाना है यहाँ

सोच का रावण जलाना चाहिए

एक दिन के मारने से ना मिटे

इसे तो हर पल मिटाना चाहिए !



एक घर रौशन किया तो क्या किया

ज्योति का पर्वत बनाना चाहिए

हर्ष का त्यौहार है दीपावली

रंजो ग़म सबका मिटाना चाहिए !

  
चुभ न जायें शूल पैरों में कहीं

पंथ आलोकित बनाना चाहिए

हर्ष को विस्तार देने के लिए 

प्रेम तरु सबको लगाना चाहिए !

प्यार से दीपक जलाना चाहिए 

तम ज़माने का मिटाना चाहिए ! 



दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं



साधना वैद





Saturday, October 22, 2016

हारती रही हर युग में सीता




राम जानकी
सतयुगी आदर्श
आज भी पूज्य

न पाया सुख
सम्पूर्ण जीवन में
राजा राम ने

जलते रहे
पुरुषोत्तम राम
विरहाग्नि में

करते रहे
कर्तव्य निर्वहन
वैरागी राम

कद्र न जानी
जानकी के तप की
निष्ठुर लोग

एक निर्णय
जीवन जानकी का
हुआ बेरंग

विवेकी राम
क्रूर कुतर्क आगे
क्यों कर झुके ?

नारी जीवन
सनातन काल से
पराधीन है

नारी अस्मिता
उपेक्षित ही रही
सतयुग से

लगाता रहा
अभियोग सीता पे
क्रूर समाज

सक्षम राम
निरीह बन गए
असत्य आगे

सीता का मान
पुरुषोत्तम राम
बचा न पाए

हारती रही
हर युग में सीता
समक्ष राम

कैसा था धर्म
दण्डित हुईं सीता
राम के हाथों

विवश राम
कर न सके न्याय
सीता हक में

कैसी मर्यादा
खिलौना बने राम
नियति हाथों

राम राज्य में
परित्यक्त की गयीं
निर्दोष सीता

अग्नि परीक्षा
सिद्ध की पवित्रता
न माना कोई

 रहीं फिर भी
सवालों के घेरे में
राम की सिया

सम्मान हित
समाईं धरती में
भूमिजा सीता


साधना वैद








Wednesday, October 19, 2016

साहब ने की बागबानी





हमारे पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी के परिवार से मैं आपका परिचय पहले ही करा चुकी हूँ ! घर के लिए सब्ज़ी खरीद कर लाने की उनकी शर्माइन द्वारा लगाई गयी क्लास के किस्से आप निश्चित रूप से भूले नहीं होंगे ! जो पाठक इस पोस्ट को पढ़ने से वंचित रह गए हैं उनकी सुविधा के लिए मैं अपने ब्लॉग की लिंक दे रही हूँ ! पोस्ट को पढ़ने से पहले शर्मा जी और शर्माइन जी को अच्छी तरह से समझ लेना भी ज़रूरी है ! किस्से में मज़ा तब ही आता है जब किरदारों की मानसिकता से हमारा परिचय भली भाँति हो ! तो लीजिए दोस्तों यह रही लिंक मेरे ब्लॉग ’सुधीनामा’ पर मेरी कहानी “साहब सब्ज़ी लाये“ की ! वैसे यह कहानी मेरी फेसबुक वॉल पर और ‘लघुकथा – गागर में सागर’ पर भी उपलब्ध है !
 http://sudhinama.blogspot.in/2015/10/blog-post_4.html
आपसे अनुरोध है पहले आप इसे पढ़िए और फिर आज की इस नई कहानी का लुत्फ़ लीजिए ! 
तो हुआ यूँ कि एक दिन फिर सुबह-सुबह शर्माइन हमारे यहाँ प्रकट हुईं ! चेहरा सदा की तरह खिला हुआ ! मुख पर मुस्कान और नव ऊर्जा से संचरित उनकी चहकती आवाज़ !
“दीदी, सब्ज़ी खरीदना तो साहब को आई नहीं लेकिन आज से हमने इन्हें बागबानी का काम सौंप दिया है ! सुबह का सारा बखत अखबार पढ़ने में ही गुज़ार देते हैं कुछ ताज़ी हवा में बाग बगीचे में काम करेंगे तो तन को भी सुख मिलेगा और तनिक पेड़ पौधों की भी देख भाल हो जाया करेगी ! माली मुआ कुछ करता तो है नहीं यूँ ही मुफ्त की तनख्वाह ले जाता है !“ शर्माइन बोले जा रही थीं और हम कभी बेचारे शर्मा जी का हाल सोच कर चिंतित हो रहे थे तो कभी शर्माइन के बगीचे के पेड़ पौधों के भविष्य के बारे में सोच कर आशंकित हो रहे थे ! लेकिन फिर भी ऊपर से हमने भी बड़ी गर्मजोशी से शर्माइन का अनुमोदन किया !
“और क्या ! बिलकुल ठीक तो है !“ शर्माइन खुशी-खुशी घर लौट गयीं ! 
शर्मा जी के घर में काफी बड़ा बगीचा है ! मेरे किचिन की खिड़की से उनके घर का पूरा अहाता दिखाई देता है ! अब बेचारे शर्मा जी रोज़ सुबह कभी हजारा तो कभी खुरपी हाथ में लिए बगीचे में पेड़ों से उलझते दिखाई देते और उनकी क्लास लगाती शर्माइन कभी टोकतीं, कभी सिखातीं, कभी डाँटतीं तो कभी समझातीं उनके पीछे-पीछे नमूदार होती नज़र आने लगीं ! 
गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं ! शर्माइन की छोटी बेटी अपने मायके आई हुई थी ! उसका एक बेटा है यही कोई तीन चार साल का ! बहुत ही नटखट और प्यारा ! शर्मा जी के बगीचे में एक कोने में बड़ी सी सीमेंट की पानी की टंकी है जिसे नल आने पर पम्प से भर कर पानी स्टोर कर लिया जाता है ! और फिर जब जी चाहे उसके नल में पाइप लगा कर सारे बगीचे में पानी देते रहो ! शर्माइन की हुक्मराना आवाज़ अक्सर मेरे घर तक भी सुनाई दे जाती है ! शर्मा जी से कह रही थीं ! 
“अब अखबार बाद में पढ़ लीजियेगा ! ज़रा बगीचे में पानी लगा दीजिए सब क्यारियों में ! पाइप से लग जाएगा ! और तनिक बंटू को भी बुला लीजिए अपने पास ! सारे बखत टी वी देखता रहता है ! चश्मा चढ़ जाएगा अभी से !”  
शर्मा जी अखबार मेज़ पर रख कमर कसे बगीचे में आ गए ! दस बारह छोटे-बड़े टुकड़ों में विभाजित बड़े से पाइप को जोइंट्स से जोड़-जोड़ कर हर क्यारी तक पहुँचाना खासी मशक्कत का काम था ! बंटू अपने नाना जी की मदद करने के लिए मुस्तैदी से साथ खड़ा था ! टंकी के नल में पाइप लगा कर शर्मा जी बड़े मनोयोग से पाइप के एक-एक टुकड़े को कनेक्टर्स के साथ जोड़-जोड़ कर आगे बढ़ते जा रहे थे ! बंटू पीछे-पीछे उनका अनुसरण करता चल रहा था ! जब सारे टुकड़े जुड़ गए तो शर्मा जी ने चैन की लंबी सी साँस ली ! सीधे खड़े होकर कुछ देर अपनी कमर को सहलाया और टंकी का नल खोल कर फिर से क्यारी के पास आ खड़े हुए ! लेकिन यह क्या पानी तो आया ही नहीं ! शर्मा जी बड़े हैरान आखिर ये हुआ क्या ! पीछे मुड़ कर देखा तो शर्मा जी का गुस्सा सातवें आसमान पर ! “ठहर जा शैतान ! अभी बताता हूँ तुझे !” शर्मा जी जितनी मेहनत से पाइप के एक-एक टुकड़े को जोड़ आगे बढ़ रहे थे बंटू उनके पीछे-पीछे चलता हुआ हर जोइंट को खोलता जा रहा था ! तो यूँ बंटू महाशय ने किया शर्मा जी की मेहनत का बंटाढार और पहली बार मैंने सीधे सादे शर्मा जी को बंटू का कान पकड़ कर डाँटते हुए देखा ! शोरगुल सुन शर्माइन भी बगीचे में निकल आईं ! और प्यारे से नाती की भोली सी नादानी पर बलि-बलि जाते हुए उन्होंने शर्मा जी की ही अच्छी खासी क्लास लगा डाली ! मेरा तो हँसते-हँसते बुरा हाल हुआ जा रहा था ! 
एक दिन शर्माइन कई खूबसूरत गुलाब हाथों में लिए मेरे घर आती दिखीं ! मैं सोच में पड़ गयी क्या आज फ्रेंडशिप डे है या फिर सिस्टर्स डे है या फिर कोई नया दिन नेबर्स डे मनाया जाने लगा है जिसके बारे में मुझे नहीं पता ! आज शर्माइन इतने सारे गुलाब लेकर कैसे आ रही हैं ! तभी खूबसूरत गुलाबों का गुच्छा मुझे थमातीं शर्माइन धम्म से कुर्सी पर बैठ गयीं ! 
“गुलाब तो बड़े सुन्दर हैं ! लेकिन आज है क्या ? क्यों तोड़ लिए पेड़ों से ? कितने सुन्दर लग रहे थे क्यारियों में !”
“अरे अब क्या बताएं दीदी ! हमें लगता है हमारे साहब कभी कुछ नहीं सीखेंगे ! हमने इन्हें कैंची देकर बताया था कि गुलाब का मौसम है ! पेड़ों से अगर सूखी टहनियाँ और मुरझाए झड़े हुए फूलों की डंडियाँ काट देंगे तो गुलाब के फूल और सुन्दर निकलेंगे ! और देखो तो ज़रा सूखी डंडियाँ तो अपनी जगह पर ही है पेड़ों में और फूल सारे कटे पड़े हैं नीचे क्यारी में ! आप अपने गुलदस्ते में सजा लेना !” शर्माइन की आवाज़ में चिड़चिड़ाहट थी और आँखों में गुस्सा और मायूसी ! 
“हाँ ! यह तो बड़ी गड़बड़ कर दी शर्मा जी ने ! लेकिन छोड़ो ना तुम भी उन्हें ! बूढ़े तोते कभी राम-राम नहीं रटते ! कुछ और देखना सिखाने के लिए ! अपने बगीचे पर तो रहम खाओ कम से कम !” 
“अजी कैसे छोड़ दूँ ! अब क्या साहब यह भी नहीं सीख पायेंगे ?” शर्माइन की आवाज़ फिर से कड़क हो गयी थी और आँखों में दृढ़ निश्चय की चमक थी ! 
हमने भी चुप रहने में ही भलाई समझी ! शर्माइन के मिजाज़ से वाकिफ जो थे ! जो सोच लिया सो सोच लिया ! किसी और के कहने से वो अपना निर्णय कभी नहीं बदलती थीं ! रोज सुबह एक घंटा शर्मा जी की इसी तरह क्लास लगती बगीचे में ! भूले भटके ही वो कुछ सही कर पाते ! अधिकतर तो शर्माइन की ही तेज-तेज आवाज़ सुनाई देती !
एक दिन शर्मा जी के यहाँ खूब गुलगपाड़ा मचा हुआ था ! शर्मा जी बिचारे सिटपिटाये से एक ओर खड़े थे ! माली अलग सिर पर हाथ धरे बैठा था और शर्माइन का गुस्सा सातवें आसमान पर था ! उनकी बुलंद आवाज़ सारी कॉलोनी में गूँज रही थी ! पता नहीं क्यों आज हमारी छठी इंद्री यह संकेत दे रही थी कि आज शर्मा जी की बागबानी की यह आख़िरी क्लास होनी चाहिए ! कौतुहलवश हम भी शर्माइन के बगीचे में पहुँच गए ! हमें देख कर शर्मा जी ने राहत की साँस ली कि हमें देख कर कम से कम अब तो शर्माइन की फायरिंग थम जायेगी ! 
“क्या हो गया शर्माइन ? क्यों इतना तूफ़ान मचाये हो ?”
शर्माइन हमसे उम्र में छोटी हैं इसलिए कभी कभार उन पर हमारा रौब चल जाता है ! हमें देखते ही वो फट पड़ीं, “आप ठीक कहती हैं दीदी ! ये कभी कुछ नहीं सीख सकते !” आग्नेय नेत्रों से शर्मा जी को घूरते हुए उन्होंने बम फोड़ा ! 
“हमने माली से इतने बढ़िया डेहलिया की पौध मँगवा कर लगाई थी ! देखिये तो ज़रा साहब ने क्या कर डाला ! हमने इनसे इतना भर कहा था कि क्यारियों से घास पात हटा कर ज़रा निराई गुड़ाई कर दें और खुरपी से पुरानी पौध के सूखे ठूँठ और फालतू के पेड़ पौधे उखाड़ कर फेंक दें ! इन्होंने तो इतने मँहगे डेहलिया के सारे पौधे ही उखाड़ कर फेंक दिए ! ये तो जंगली घास और फूल के पौधे में फर्क करना ही नहीं सीखे अभी तक ! बागबानी कैसे सीखेंगे ?” 
शर्माइन का मलाल शिखर पर था ! माली मुँह को गमछे में छिपाए अपनी हँसी दबा रहा था और शर्मा जी ऊपर से तो मुँह लटकाए खड़े थे लेकिन उनकी आँखों में छुटकारा मिल जाने बाद कौंधने वाली एक दबी सी चमक थी और चहरे पर इत्मीनान की मुस्कान – जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आये !  


साधना वैद

Friday, October 14, 2016

खाली कमरा



त्यौहारों का मौसम है
घर के दरो दीवार
साफ़ करके चमकाने का वक्त है !
कहीं कोई निशान बाकी न रह जाये
कहीं कोई धब्बा नज़र न आये
कुछ भी पुराना धुराना
बदसूरत दिखाई न दे !
सोचती हूँ बिलकुल इसी तरह
आज मैं अपने अंतर्मन की
दीवारों को भी खरोंच-खरोंच कर
एकदम से नये रंग में रंग दूँ !
उतार फेंकूँ उन सारी तस्वीरों को
जिनके अब कोई भी अर्थ
बाकी नहीं रह गए हैं
मेरे जीवन में
धो डालूँ उन सारी यादों को
जो जीवन की चूनर पर
पहले कभी सतरंगी फूलों सी
जगमगाया करती थीं
लेकिन अब बदनुमाँ दाग़ सी
उस चूनर पर सारे में चिपकी
आँखों में चुभती हैं !
शायद इसलिए भी कि
कोई रिश्ता तभी तक
फलता फूलता और महकता है
जब तक ताज़ी हवा के
आने जाने के लिए
रास्ता बना रहता है !
अपने अंतर्मन के कक्ष से
इन अवांछित रिश्तों की
निर्जीव यादों को हटा कर
मैं मुक्ति का लोबान
जला कर चिर शान्ति के लिए
यज्ञ करना चाहती हूँ !
मैं आज नये सिरे से
दीवाली का पर्व
मनाना चाहती हूँ !


साधना वैद

   चित्र – गूगल से साभार